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साइमन पर नज़र पड़ते ही दोनों दोस्त चुप हो गए। एक दूसरे की तरफ देखने लगे। साइमन और इंस्पेक्टर हरीश उनके सामने जाकर बैठ गए। साइमन ने कहा,
"दोनों दोस्तों के बीच कोई बहस चल रही थी।"
पवन ने कहा,
"सर हमको जबसे गिरफ्तार करके लाया गया है तबसे हम लोगों ने पानी भी नहीं पिया है। हमें भी थकावट महसूस हो रही है।"
"हमारे सवालों के जवाब दे दो। उसके बाद खाने पीने को मिल जाएगा।"
कौशल ने कहा,
"सर अब हम दोनों के अंदर इतनी ताकत नहीं रह गई है कि और बातें कर सकें।"
साइमन ने उसे घूरकर देखा। उसके बाद बोला,
"इस जगह को लोग मज़ाक में ससुराल कहते हैं। लेकिन यहाँ दामादों वाली खातिर नहीं होती है। पहले हमारे सारे सवालों के जवाब दो।"
कौशल ने कहा,
"मैंने किसी की हत्या नहीं की है। आप मुझसे एक कातिल की तरह पेश आ रहे हैं।"
साइमन ने एकबार फिर उसे घूरा। उसने कहा,
"तुमने हत्या की है या नहीं यह तो सामने आ ही जाएगा। लेकिन तुमने विशाल से पैसे लिए थे। किस काम के लिए यह जानना है हमें।"
साइमन ने पवन की तरफ देखकर कहा,
"तुम विशाल को कबसे जानते हो ?"
पवन समझ गया था कि साइमन से उलझना ठीक नहीं है। उसने कहा,
"एक साल पहले भवानीगंज लौटकर आया था। यहाँ आने के कुछ महीनों के बाद हमारी जान पहचान हुई थी। मैं कुछ करता नहीं था। यही सोचता था कि जब कौशल अपना काम शुरू करेगा तो उसके साथ लग जाऊँगा। इसलिए दिनभर इधर से उधर घूमता था। अक्सर तालाब वाले नए मंदिर के चबूतरे पर जाकर बैठ जाता था। वहाँ विशाल भी आता था। हमारे बीच बातचीत शुरू हुई। पता चला कि वह भी कुछ खास नहीं करता है। धीरे धीरे हमारे बीच दोस्ती हो गई।"
इंस्पेक्टर हरीश ने पूछा,
"यह बताओ कि उसे कैसे पता चला कि तुम उसके काम आ सकते हो ? तुमने उसकी बात कौशल से कराई थी। क्या काम था उसे ?"
पवन ने उन्हें कहानी बतानी शुरू की......
पवन और विशाल के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी। दोनों तालाब वाले मंदिर के चबूतरे पर मिलते। कभी कभी विशाल उसके कमरे पर भी चला जाता था। दोनों अब एक दूसरे से बहुत बातें करते थे। लेकिन अभी तक एक दूसरे के व्यक्तिगत जीवन के बारे में नहीं जानते थे। एक दिन विशाल पवन के कमरे में गया था। बातों बातों में पवन ने विशाल को अपने बारे में सबकुछ बता दिया। वह विशाल के बारे में जानने को इच्छुक था। उसने विशाल से कहा,
"इतने दिनों से मैं महसूस कर रहा हूँ कि तुम बहुत उदास रहते हो। कोई बात है जो तुम्हें अंदर से तकलीफ देती है। बताओ क्या बात है ?"
उसकी बात सुनकर पहले तो विशाल ने टालने की कोशिश की। पवन ने उससे कहा कि उसने तो अपने बारे में सबकुछ खुलकर बता दिया है। विशाल को उस पर भरोसा रखना चाहिए। अपने मन की बात बताने से हो सकता है कि उसे अच्छा लगे। कुछ सोचकर विशाल ने पवन को अपनी पूरी कहानी बताई। उसने कहा,
"माया का प्यार पाने के लिए हम हिम्मत नहीं जुटा पाए थे। फिर भी किस्मत मेहरबान थी। हमें कुसुम जैसी पत्नी मिली। हमारा काम अच्छा चलने लगा। मोहित के आने से हमारी ज़िंदगी में जैसे सबकुछ ठीक हो गया था। लेकिन माया के साथ जो गलत हुआ था उसकी सज़ा हमें भुगतनी पड़ी। एक झटके में सबकुछ छिन गया। हम अकेले रह गए।"
विशाल भावुक होकर चुप हो गया। पवन ने उसे दिलासा दिया। विशाल ने आगे कहा,
"हम माया को चाहते थे। घरवालों को यह बात पता थी। फिर भी अपनी ज़िद की वजह से उन लोगों ने माया से हमारी शादी नहीं होने दी। घरवालों की ज़िद की सज़ा हमें मिली। पहले माया से अलग होकर। उसके बाद माया ने अपना बदला हमारी खुशियां छीनकर लिया। नुकसान सिर्फ हमारा हुआ। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा।"
विशाल एकबार फिर रुका। अपने आंसू पोंछकर बोला,
"हम अपने मन में बहुत कुछ दबाकर जी रहे हैं। धीरे धीरे यह एक बोझ की तरह महसूस होने लगा है। हमारे आसपास ऐसा कोई नहीं था जिसके सामने हम अपना बोझ कम कर सकते। तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसने यह समझा कि हमारे भीतर कुछ है जो हमें परेशान कर रहा है। हमारे परिवार के लोगों ने कभी इस बात की कोशिश नहीं की कि हमारे मन की उदासी को समझा जाए। हमें बस हमारे हाल पर छोड़ दिया। तुमने हमारी उदासी को सिर्फ समझा ही नहीं बल्कि जानने की कोशिश भी की। इसलिए तुम्हें इतना सब बता दिया।"
उस दिन अपने मन की बात करके विशाल चला गया था। उसके बाद करीब एक हफ्ते तक वह विशाल को ना तो तालाब वाले मंदिर के चबूतरे पर मिला और ना उसके कमरे पर आया। पवन को लगा कि शायद तबीयत ठीक ना हो। विशाल ने पवन से कहा था कि उसके घरवाले उसके दोस्तों को पसंद नहीं करते हैं। इसलिए वह कभी उसे अपने घर चलने को नहीं कहता है। पवन कभी उसके घर गया भी नहीं था। आंठवें दिन भी जब विशाल नहीं मिला तो पवन ने उसे फोन किया। विशाल ने कहा कि घर में कुछ समस्या हो गई थी इसलिए आ नहीं पाया था। जल्दी ही उसके कमरे पर आकर मिलेगा।
फोन करने के बाद भी विशाल मिलने नहीं आया। पवन ने दोबारा फोन नहीं किया। करीब पंद्रह दिन बाद विशाल दोपहर को उसके कमरे में आया। उस वक्त अक्सर पवन कमरे में ही होता था। पवन ने उससे कहा,
"क्या कोई खास समस्या हो गई थी घर में ? बहुत दिनों बाद आना हुआ।"
विशाल ने एक आह भरकर कहा,
"खास समस्या ही थी। पर अब घरवालों ने सुलझा ली है।"
विशाल ने यह बात इस तरह कही थी कि पवन को लगा कि समस्या का सुलझ जाना उसे बहुत रास नहीं आया। उसने कहा,
"समस्या सुलझ गई यह तो अच्छी बात है। लेकिन तुम इस बात से खुश नहीं लग रहे हो।"
विशाल कुछ देर चुप रहा। उसके बाद बोला,
"घरवाले खुश हैं। हम तो घरवालों को खुशियां दे नहीं पाए। उन्हें हमारे छोटे भाई पुष्कर से उम्मीद थी कि उसके ज़रिए घर में खुशियां आएंगी। अब उसके ज़रिए घर में खुशियां आने वाली हैं।"
पवन समझ गया कि उसके मन में अपने घरवालों के लिए नाराज़गी है। पिछली बार जब वह आया था तब उसके कहने पर विशाल ने उसे अपनी कहानी सुनाई थी। उससे कहा था कि उसके घरवालों ने कभी उसकी उदासी को समझने का प्रयास नहीं किया। आज फिर उसके बात करने का तरीका बता रहा था कि जो कुछ हो रहा है उससे उसे शिकायत है। पवन ने उसे कुरेदने के लिए कहा,
"तुम्हारा भाई पुष्कर तो दिल्ली में नौकरी करता है। क्या उसकी तरक्की हो रही है ?"
विशाल ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"उसकी तरक्की हो रही है। घरवालों की भी तरक्की हो जाएगी। हम जहाँ थे वहीं रहेंगे।"
इस जवाब से विशाल की हताशा झलक रही थी। पवन ने कहा,
"तुमको यह अच्छा नहीं लग रहा है। ज़रा खुलकर बताओ कि बात क्या है ?"
विशाल ने फिर एक आह भरकर कहा,
"पुष्कर की शादी होने वाली है। एक ऐसी लड़की से जो उसने अपने लिए पसंद की है। लड़की की माँ तलाकशुदा है। वह शहर के तौर तरीकों में पली बढ़ी लड़की है। जो कभी यहाँ नहीं रह सकती है। हमारी बिरादरी की भी नहीं है।"
विशाल के चेहरे पर एक व्यंग भरी मुस्कान आ गई। उसने कहा,
"कमाल हैं हमारे घरवाले भी। माया जानी समझी थी। उसके परिवार को अच्छी तरह जानते थे। हमारी बिरादरी की थी। जब वह घर आती थी तो सारे घर का माहौल खुशनुमा हो जाता था। सब उसे पसंद भी करते थे। लेकिन जब पता चला कि माया और हम एक दूसरे से प्यार करते हैं तो उन्हें वह घर की बहू बनाने लायक नहीं लगी। हमने समझाने की कोशिश की नहीं माने। माया घर के आंगन में गिड़गिड़ाती रही। सब पत्थर का बुत बने रहे। उसने मजबूरी में घर को श्राप दिया। जिसकी सज़ा हमें मिल रही है।"
विशाल की आँखों में आंसू थे लेकिन उनके पीछे गुस्सा भी दिख रहा था। उसने आगे कहा,
"हम जानते थे कि मम्मी हमारी और माया की शादी कराना चाहती हैं। पर उन्होंने उस वक्त सर झुका कर सब मान लिया था। लेकिन जब पुष्कर की बारी आई तो पापा को मनाने लगीं। बुआ जी जिन्होंने माया और उसके घरवालों को बहुत उल्टा सीधा कहा था, इस बार थोड़े से ना नुकुर के बाद पिघल गईं। किसी ने एकबार भी नहीं सोचा कि हम पर क्या बीतेगी। अपनी ज़िद में हमारी ज़िंदगी बर्बाद कर दी। अब अपनी ज़िद इतनी आसानी से छोड़ दी।"
पवन बड़े ध्यान से उसके चेहरे की तरफ देख रहा था। उसके चेहरे से स्पष्ट था कि अपने भाई को मिलने वाली खुशी उसे बहुत खटक रही थी। विशाल बहुत देर तक अपनी शिकायतें करता रहा। उसकी हर एक शिकायत से स्पष्ट था कि उसके मन में बहुत समय से अपने घरवालों के लिए गुस्सा था। जो लावे की तरह भीतर ही भीतर खौल रहा था। अब पुष्कर को मिलने वाली खुशी ने उसे और उबाल दे दिया था।
कहानी सुनाते हुए पवन रुक गया। उसने कहा कि उसका गला सूख रहा है। भूख भी लग रही है। इंस्पेक्टर हरीश और साइमन ने एक दूसरे की तरफ देखा। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सर इन लोगों को कुछ खा पी लेने देते हैं।"
साइमन मान गया। कौशल और पवन के खाने पीने की व्यवस्था करने का आदेश दिया।