चमकीला बादल - 14 Ibne Safi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चमकीला बादल - 14

(14)

अचानक राजेश ने महसूस किया कि उसके निकट कोई और भी मौजूद है। उसने गर्दन मोड़ी और एकदम से चौंक पड़ा। एक लंबे कद का काला जंगली खड़ा था। वह भी राजेश ही के समान हाथी की ओर नहीं गया था। दोनों मौन खड़े आंखें फाड़ फाड़कर एक दूसरे को देखे जा रहे थे और फिर अचानक राजेश को एहसास हुआ कि वह सपना नहीं देख रहा। सब कुछ यथार्थ है।

अचानक लंबे जंगली में इंग्लिश में कहा।

"मैं इनमें से नहीं हूं।"

"मैं भी यही देख रहा हूं।" राजेश ने कहा। "इन में न कोई तुम्हारे सामान दुबला पतला है और ना ही इतना लंबा। किसी की नाक भी चिपटी नहीं है।"

"ओहो_ तो यह तुम हो।" लंबे जंगली ने हंस कर कहा।

"मगर हम काले कैसे हो गए?" राजेश ने चिंताजनक स्वर में कहा।

"यह बाद की बात है। पहले यह सोचो कि यहां तक पहुंचे किस प्रकार?"

"मुझे याद नहीं।" राजेश ने कहा। "थोड़ी देर पहले तक मुझे ऐसा महसूस होता रहा था जैसे मैं कोई स्वप्न देख रहा हूं।"

"बड़ी विचित्र बात है।" लंबे जंगली ने कहा। "मैं भी यही समझता रहा था मगर यह सपना नहीं था भतीजे।"

"मगर हमारी रंगत_" राजेश कराहा।

"असली ही लगती है।" लंबा जंगली हंसा। अचानक किसी ने निकट ही से खनकता हुआ अट्टहास लगाया। आवाज औरत की थी। दोनों चौंक कर पत्थर के उसे ढेर की ओर देखने लगे जिससे आवाज आई थी।

"शुभागमन _" पत्थरों के ढेर से वही आवाज आई। टी थर्टी बी अर्थात थारसा तुम दोनों से संबोधित है।" दोनों मौन रहे आवाज फिर आई।

"तुम दोनों बहुत सुंदर लग रहे हो। किंतु थोड़ी देर बाद जब तुम हाथी का मांस खाने से इनकार करोगे तो यह जंगली अपने भालों की नोंक से तुम्हें छेद कर रख देंगे।"

"इस प्रकार वार करना कायरता है।" लंबे जंगली ने कहा।

"नारी कायर ही होती है। तुमने कोई नई बात नहीं कहीं। बहरहाल अब कुछ दिनों तक मैं तुम दोनों की बेबसी से आनंद उठाऊंगी। ना तुम इन जंगलियों की भाषा समझ सकोगे और ना यह तुम्हारी भाषा समझेंगे।" अचानक राजेश ने जोरदार अट्टहास लगाया फिर बोला।

"क्यों अकारण धीर्सा रही हो। इन जंगलियों में से एक भी बानडेरी नहीं है। यह सब वैसे ही जंगली है जैसे हम आए दिन फिल्मों में देखा करते हैं। बहरहाल अच्छा खासा ड्रामा है। पसंद आया। रही रंगत बदलने की बात तो शेष जीवन यूं ही सही। कोई अंतर नहीं पड़ता।"

अट्टहास फिर सुनाई दिया मगर कुछ कहा नहीं गया। पहले ही के समान सन्नाटा छा गया।

"कुतिया_" लंबा जंगली दांत पीसकर बोला।

"समाप्त करो।" राजेश हाथ उठाकर बोला।

"नहीं। आओ इस पत्थर के ढेर को उलट पलट दे।"

"इससे क्या होगा?"

"देखें की आवाज़ किस प्रकार आई थी?"

"ओह संगही भी बच्चों जैसी बातें करने लगा है।"

"यह क्या बकवास है?" संगही झल्लाकर बोला।

"बकवास नहीं चाचा। अगर एक ऑटोमेटिक ट्रांसमीटर हाथ लग भी गया तो क्या होगा?" राजेश ने कहा। फिर चौंकता हुआ बोला।

"सुनो। क्या कोई पैकेट ट्रांसमीटर फाउंटेन पेन जैसा रूप वाला तुम्हारे पास था?"

"हां _ था तो?" संगही ने सिर हिला कर कहा।

"तो बस उसी के कारण धर लिए गए हो। उसी ने तुम्हारी भो निशानदही की होगी।"

संगही किसी सच में पड़ गया और राजेश उसे बताने लगा कि किस प्रकार एक हेलिकॉप्टर ने खेमों पर मच्छर मार दवा छिड़की थी और वह अपने साथियों सहित बेहोश हो गया था।

"कदाचित यही कुछ मेरे साथ भी हुआ था किंतु उस समय में किसी छत के नीचे नहीं था। हेलीकॉप्टर मेरे ऊपर से भी गुजरा था।"

"जो कुछ भी हुआ हो।" राजेश ने कहा। "अब केवल यह सोचो कि हम किस प्रकार इस मायाजाल से निकल सकेंगें?"

संगही मौन रहा और राजेश जंगलियों की ओर  देखने लगा। वह अब भी उसे मरे हुए हाथी का मांस काट रहे थे।

"इस समय में अपने आप को बिल्कुल उल्लू महसूस कर रहा हूं।" संगही ने कहा और उत्तर में राजेश चहक कर बोला।

"तुम इस समय महसूस कर रहे हो। मैं हमेशा से यही समझता आया हूं।"

"चुप बे_" संगही झल्लाकर बोला। "क्रोध न दिला।"

"तुम तो इतने चिड़चिड़े नहीं थे चाचा।" राजेश ने कहा।

"मैं कहता हूं कि चुप रहो।"

"अब क्या मुझसे उलझोगे?" राजेश आंखें निकाल कर बोला।

संगही कुछ कहने के बजाय टीले से उसी ओर उतरने लगा जिधर जंगली थे।

फिर राजेश ने देखा कि संगही भी उन्हीं में सम्मिलित हो गया है जो हाथी का मांस काट रहे थे। उसने आश्चर्य से पलके झपकाई। फिर ख्याल आया की वह उसी जाती से संबंध रखता है जो मांस के नाम पर चूहा और छिपकली भी नहीं छोड़ते। किंतु खुद उसका क्या होगा? वह क्या खाएगा?

अचानक किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा और वह चौंक पड़ा। सामने एक जवान जंगली औरत खड़ी थी। उसने राजेश का हाथ पकड़ा और बड़ी तेजी से टीले की दूसरी ओर उतरने लगी। यदि वह उसी ओर ले जाती जिधर मांस काटा जा रहा था तो शायद राजेश हिचकिचाहट प्रकट करता। मगर वह तो दूसरी ओर लिए जा रही थी। इसलिए उसने कोई आपत्ति नहीं की थी। नीचे पहुंचकर वह लंबी और घनी झाड़ियों में घुसे थे। किंतु यह कोई बनाया हुआ मार्ग था। वरना उन घनी झाड़ियों में एक कदम पर चलना दुष्कर होता है। थोड़ी देर बाद फिर ढलान में उतरना पड़ा। औरत बिना रुके दौड़ रही थी। फिर वह क्यों अपने कदम रोकता या प्रकट करता कि यह उसके लिए कोई नई बात है।

अंत में वह एक जगह रुकी थी। दोनों एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हांफ रहे थे। थोड़ी देर बाद औरत ने अंग्रेजी में कहा।

"तुम सबसे अलग थलग नजर आए तो मन में विचार उत्पन्न हुआ कि कहीं मेरी ही तरह के ना हो।"

"सही विचार पैदा हुआ था।" राजेश ने भी अंग्रेजी ही में कहा। फिर बोला। "मेरे योग्य कोई सेवा?"

"ओह माय गॉड_" वह एकदम से उछल पड़ी फिर राजेश से लिपट पड़ने का प्रयास करती हुई बोली। "अब मैं अकेली नहीं हूं।"

"वह तो ठीक है।" राजेश बौखला कर पीछे हटता हुआ बोला। "मगर इसकी क्या आवश्यकता है?"

वह ठिठक गई और आश्चर्य पूर्ण ढंग से पलके झपकती हुई बोली।

"मैं वास्तव में गौर वर्ण हूं।"

"लेकिन मैं नीग्रो ही हूं।" राजेश ने कहा। "अमेरिकी नीग्रो।"

"कोई बात नहीं।" औरत ने कहा। "हम दोनों एक दूसरे को समझ तो सकते हैं।"

"वह तो ठीक है मगर क्या तुम भी हाथी की गोश्त खाती हो?"

"बिल्कुल नहीं।" औरत ने कहा। "इसीलिए तो उन लोगों से दूर रहती हूं।"

"फिर क्या खाती हो?"

"जल, पक्षियों का मांस और फल।"

"यह दोनों वस्तुएं कहां पाई जाती है?" राजेश ने पूछा।

"क्या तुम भूखे हो?"

"बहुत अधिक।"

"तो आओ मेरे साथ।" औरत ने कहा और उसका हाथ पकड़ कर फिर दौड़ने लगी।

"क्या हम धीरे-धीरे नहीं चल सकते?" राजेश ने दौड़ते हुए पूछा।

"धीरे-धीरे चलने का मौका नहीं है।"

"क्यों?"

"मैं जल्दी से जल्दी अपने ठिकाने पर पहुंचना चाहती हूं।"

"मैं अब इतना भूखा भी नहीं हूं कि घंटे आधे घंटे में मर जाऊं।" राजेश ने कहा।

"यह बात भी नहीं है। मैं यह भी चाहती हूं कि हम पर किसी की नजर ना पड़ने पाए।" राजेश मौन रहा। दौड़ जारी रही। इस बार की दौड़ की समाप्ति गुफा के मुख पर हुई थी।

"क्या यही तुम्हारा ठिकाना है?" राजेश ने कहा।

"हां _अंदर चलो।" औरत ने कहा और उसका हाथ पकड़े ही गुफा में प्रविष्ट हुई। गुफा में गहरा अंधकार था। फिर एक जगह वह रुक गई और राजेश का हाथ छोड़ दिया। राजेश अंधेरे में आंखें फाड़ने लगा। जब आंखें अंधेरे की आदी हो गई तो उसने देखा कि उसके सामने एक भुना हुआ बड़ा सा पक्षी रखा हुआ है। कुछ जंगली फल भी थे।

"खाओ।" औरत ने कहा।

"धन्यवाद।" राजेश ने कहा और फल खाने लगा।

"इसे भी खाओ।" उसने पक्षी की ओर संकेत करके कहा। "यह काज है।"

"कितने दिनों का है?"

"बिल्कुल ताजा है।"

"अच्छा_" राजेश ने कहा। मगर पक्षी की ओर हाथ नहीं बढ़ाया। फल ही खाता रहा।

"मैं यहूदी हूं।" औरत ने कहा।

"अच्छा-अच्छा।" राजेश ने सिर हिला कर कहा फिर बोला। "एक बात पूछूं? यदि सही उत्तर देने का वादा करो तो_"

"अवश्य पूछो। वादा करती हूं कि सही उत्तर दूंगी।"

"तुम मेरे ही समान काली क्यों हो?" राजेश ने पूछा।

"मैं काली नहीं थी। यहूदी काले नहीं होते। मैं काली बना दी गई हूं।"

"क्या मतलब?" राजेश ने चौंकने का अभिनय करते हुए पूछा। औरत ने लंबी सांस खींची फिर कहने लगी।

"मैं नहीं जानती कि वह कौन लोग हैं जिन्होंने अगणित श्वेत वर्णों को काला बना कर रख दिया है।"

"मगर यह तो जानती ही होगी कि तुम्हें किस प्रकार कल बनाया गया था?" राजेश ने कहा।

"मुझे बेहोश करके मुझ पर कोई साइंसी अनुभव किया गया था। होश में आई तो मेरा पूरा शरीर गौर से काला हो गया था।"

"तो वह सब भी गौर वर्ण ही थे?" राजेश ने पूछा।

"नहीं उनमें अधिकतर चीनी और नीग्रो है।" औरत ने कहा। "मगर वह इंग्लिश नहीं बोल और समझ सकते।"

"मगर इसका ध्येय क्या है?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा है।" औरत ने कहा।

"यह अनुभव तुम पर कहां किया गया था?"

"कुछ स्वप्न सा याद है। जैसे अंतरिक्ष उड़ान से संबंध्ध कोई फिल्म रही हो और मैंने भी उस फिल्म में एक रोल अदा किया हो तुमने ऐसी फिल्में तो देखी ही होगी?"

"मेरे पल्ले ही कुछ नहीं पड़ा।" राजेश ने कहा। "आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?" "विलक्ष प्रकार की अनुभव शालाए,  अंतरिक्ष स्टेशन और उड़ने वाली विचित्र प्रकार की मशीनें_" "वह स्थान यहां से कितनी दूर है? और किसी और है?" राजेश ने पूछा।

"यह बताना तो असंभव ही है।"

"वह क्यों?"

"इसलिए कि शरीर का रंग बदल जाने के बाद मुझे फिर बेहोश कर दिया गया था। जब होश आया था तो अपने को इसी गुफा में पड़ा हुआ था।"

"उस समय क्या इस गुफा में कोई नहीं था?" राजेश ने पूछा।

"नहीं। मैं अकेली थी।"

राजेश कुछ सोचने लगा फिर पूछा।

"तुम यहां क्या करती हो?"

"मुझे उन लोगों की निगरानी पर लगाया गया है।" औरत बताने लगी। "मैं उनकी हर गतिविधि पर नजर रखती हूं और किसी अज्ञात आदमी को ट्रांसमीटर द्वारा सूचित करती रहती हूं।"

"तुम उस आदमी को भी नहीं जानती कि वह कौन है?"

"नहीं।" औरत ने कहा।

"मुझे वह ट्रांसमीटर दिखा सकती हो?"

"क्यों नहीं?" औरत ने कहा और किसी कोने से वैसा ही फाउंटेन पेन उठा लाई जैसा उसने खुद कैप्टन बगासी से प्राप्त किया था।

राजेश केवल सिर हिला कर रह गया। ट्रांसमीटर को हाथ नहीं लगाया।

"आश्चर्य है।" औरत ने कहा।

"किस बात पर?"

"तुमने इसे हाथ में लेकर देखा नहीं।"

"इससे पहले एक बार देख चुका हूं।" राजेश ने कहा फिर बोला। "अब मुझे उस धारीदार आदमी के बारे में बताओ।"

"मैं बस इतना जानती हूं कि वह सर्वांग आतंक और आशिरोपाद शक्ति है। बड़े बड़े शक्तिशाली वृक्ष जड़ से उखाड़ फेंकता है। बड़ी बड़ी चट्टाने ढकेल देता है। उसके डर से प्राचीन जंगली यहां से निकल भागे है। उनका स्थान इन कृत्रिम जंगलियों को दे दिया गया है।"

"ध्येय?" राजेश ने उसे ध्यानपूर्वक देखते हुए प्रश्न किया।

"ध्येय से अनभिज्ञ हूं।" औरत ने कहा फिर पक्षी की ओर संकेत करके बोली। "इसे भी खाओ _ बड़ी तगड़ी काज है।"

राजेश खामोशी से मांस के टुकड़े काटने लगा। औरत खामोशी से उसे देखती रही फिर उसे संबोधित करके बोली।

"तुम चीनी तो नहीं हो?"

"हां मैं चीनी नहीं हूं।" राजेश ने कहा।

"तुम्हारी राष्ट्रीयता क्या है?"

"मैं स्पेन का निवासी हूं।" राजेश ने कहा। "तंजानिया आया था। एक रात अपने होटल के कमरे में सोया फिर यहां इस हाल में आंख खुली।"

"ओह!" औरत ने लंबी सांस खींच कर कहा। "तो इसका यह मतलब हुआ कि हम तंजानिया में ही है।"

अचानक फाउंटेन पेन से ऐसी आवाजें आने लगी जैसे किसी झींगुर ने झांय झांय आरंभ कर दी हो। औरत ने जल्दी से उसका कैप अलग करके कान से लगाया और नीब वाला भाग होंठो के निकट लाकर बोली।

"हलो सी सी फोर स्पीकिंग।"

थोड़ी देर तक कुछ सुनती रही फिर बोली।

"वह मेरी ही तरह हाथी का मांस नहीं खाता इसलिए उनकी टोली में सम्मिलित नहीं हुआ। मैंने उसे खाना खिलाया है। हां, वह इस समय मेरे ही साथ है। ओह_ कहां _ अच्छा।"

वार्ता समाप्त हो गई। उसने जहां से ट्रांसमीटर उठाया था वहीं रख दिया और राजेश से बोली।

"मुझे आज्ञा दी गई है कि तुम्हें एक दूसरे स्थान पर पहुंचा दिया जाए।"

"चलो। मैं तैयार हूं।" राजेश उठता हुआ बोला।

"मुझे आश्चर्य है।" औरत ने कहा।

"किस बात पर?" राजेश ने पूछा।

"इसी बात पर कि तुम तनिक भी भयभीत नहीं हो। वरना मैंने तो यह देखा है कि तुम जैसे लोग अपनी दशा का ज्ञान होते ही पागलों के समान चीखने लगते है और कभी कभी पागल हो जाते है। स्वयं मुझ पर कई दिनों तक पागलपन आच्छादित था।"

"लेकिन मेरे लिए यह परिवर्तन अत्यंत सुखदायी है।" राजेश ने कहा। "और मेरा एक कान उखाड़ कर नाक के स्थान पर और नाक उखाड़ कर कान की जगह लगा दी होती तो मैं उन लोगों का अधिक आभारी होता।"