Chamkila Baadal - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

चमकीला बादल - 2

(2)

"तो फिर अब तुम ही मेरे लिए कुछ सोचो। क्योंकि मुझे तटवर्ती भाषा नहीं आती और यहां किसी काले आदमी के बारे में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि उसे तटवर्ती भाषा न आती होगी।"

"हां यह बात तो है।" नीग्रो ने कहा फिर कुछ सोचता हुआ बोला, "एसा करो कि तुम अमरिकी नीग्रो बन जाना और केवल इंग्लिश बोलना। वैसे भी चेहरे से असली नीग्रो नहीं लगते। दोगले मालूम होते हो।"

"यह अच्छी बात तुमने सुझाई।"

"यह भी न सूझती तो गूंगे हर देश और हर जाति में पाए जाते है।"

"किन्तु गूंगे गालियां तो नहीं दे सकते।" जेम्सन दांत पीस कर बोला। "सुनो असली नीग्रो, मैं इतना गामड़ नहीं हूं जितना तुम लोग समझते हो। वह मिस्टर मुझे बेहोश किए बिना काला नहीं बना सकते थे। मर जाता या कौड़ी कौड़ी का मोहताज हो जाता मगर इस हुलिये में जीवन व्यतीत करने पर तत्पर न होता।"

नीग्रो का मुख आश्चर्य वश खुल गया फिर उसने भराई हुई आवाज़ में कहा।

"मैं नहीं समझा तुम क्या कहना चाहते हो।"

"अगर तुम लोगों के साथ जोली न होती तो कदाचित न पहचान सकता - क्या तुम नोबान मेकफ मगोन्डा नहीं हो?"

"ओह_" वह भराई हुई आवाज़ में बोला, "बास की धारणा नहीं थी कि जोली ही के कारण तुम हमें पहचान चुके हो किन्तु मैं उनकी धारणा से सहमत नहीं था।"

"कर्नल की बात कर रहे हो?"

"हां" मेकफ ने कहा।

"जोली न तो स्थाई रूप से अपनी आवाज बदले रख सकती है न अपनी चाल। केवल उसी के कारण पहचाने गए हो।"

"किन्तु यह सच है कि हम दोनों यहां अकेले रह गए है।"

"वह दोनों कहां है?" जेम्सन ने पूछा।

"मैं नहीं जानता मगर हमें उन्हीं आदेशों का पालन करना है जो बास की ओर से मिले हैं।"

"क्या करना है?" जेम्सन ने पूछा।

"चिंता न करो। क्रमशः बताउंगा। फिलहाल निकल चलो यहां से।"

"तुम लोग यहां कब आए थे?" जेम्सन ने पूछा।

"एक महिने पहले की बात है।"

"एक बात समझ में नहीं आ रही है।"

"क्या?" मेकफ ने पूछा।

"यही कि तुम तो कलूटे है ही। फिर तुम्हारे मेकअप की क्या आवश्यकता आ पड़ी?"

"केवल इसलिए कि पहचाना न जा सकूं।"

"यहां तुम्हें कौन पहचान सकता था?"

"बहकी बहकी बातें मत करो मिस्टर।" मेकफ ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा, "यह मेरा देश है। यही दारुस्सलाम में न जाने कितने परिचित मौजूद है।"

"रिफ्टवेली के जंगलों की क्या कहानी है?" जेम्सन ने पूछा।

"तुम समय नष्ट कर रहे हो। अब निकल चलो।"

"मेरे बास का कोई सुराग मिला या नहीं?"

"तुम्हारे बास के बारे में मैं कुछ नहीं जानता।"

"तुम तीनों के अतिरिक्त और कौन कौन यहां है?" जेम्सन ने पूछा।

"यह भी मैं नहीं जानता।" मेकफ ने कहा। "तुम्हें भी मसानी विलेज में ही देखा था। उससे पहले सोच भी नहीं सकता था कि तुम यहां होगे। बास बहुत सतर्क है।"

"मसानी विलेज कैसे जा पहुंचे थे?"

"ये भी बास ही जाने। मैं बिल्कुल अनभिज्ञ हूं। चलो उठो।"

"भूख लग रही है।" जेम्सन ने कहा।

"कहीं खा लेंगे। यहां से तो निकलो।"

"मैं तुम्हें अत्यंत चाक व चौबंद देख रहा हूं।"

"अपने जलवायु में पहुंच गया हूं ना।" मेकफ ने कहा। "मुझे तो ऐसा लगता है जैसे इतने वर्षों तक सोता रहा हूं। अब आंख खुली है।"

"और तुम्हारी इस नींद के मध्य वह सब बूढ़ी हो गई होगी।"

"कौन सब?" मेकफ ने विस्मय के साथ पूछा।

"जिन से आंख मिचौलिया होती थी जवानी में।"

मेकफ ने दांत को निकाल दिए थे मगर नेत्रों में विचित्र सी उदासी नज़र आने लगी थी। फिर उसने भराई हुई आवाज़ में कहा।

"तुम सचमुच बातों में समय नष्ट कर रहे हो।"

"ओह! मेरा कैमरा कहां गया?" जेम्सन चौंक कर बोला।

"मौजूद है मगर अब तुम उसे कंधे पर नहीं लटकाओगे। थैले में डालें रखोगे।"

"यह क्यों?" जेम्सन ने पूछा।

"जिस हैसियत में अब रहना है उसके लिए उचित न होगा।"

थोड़ी देर बाद वह दोनों अपने अपने थैले कंधो पर लादे बाहर निकल रहें थे।

"कहां जाना है?" जेम्सन ने पूछा।

"क्या बताऊं? तुम यहां के स्थानों के नाम तो जानते नहीं। फिर क्या समझोगे? बस चलते रहो। सड़क पर पहुंच कर बस मिलेगी और हमें जाना है वहां पहुंचा देंगी।"

"और मुझे किसी गूंगे का रोल अदा करना है। क्यों?" जेम्सन ने पूछा।

"हां_"

"हिन्दी में गालियां तो चलेगी ही। केवल तुम समझ सकोगे।"

"इस भ्रम में न रहना।" मेकफ ने कहा। "यहां हिन्दुस्तानी भी है और आपस में हिन्दी में ही बातें करते है।"

जेम्सन मुंह बनाकर रह गया। फिर दोनों खामोशी से चलते रहे। सड़क पर आकर एक बस में बैठे थे और थोड़ी देर बाद एक जगह पर उतर गए थे।

पतली पतली गलियों से होते हुए एक मकान के द्वार पर रुके और मेकफ ने आगे बढ़कर कुण्डी खटखटाई। थोड़ी देर बाद द्वार खुला था। एक पीतवर्ण आदमी सामने खड़ा नजर आया। मेकफ ने तटवर्ती भाषा में कुछ कहा। वह उन्हें वहीं छोड़कर अंदर चला गया। फिर कुछ देर बाद पल्टा और उन्हें अपने साथ अंदर ले गया।

अंदर पहुंच कर जेम्सन की आंखें खुल गई। वह तो समझा था कि शायद अब वह किसी निर्धन आदमी के मकान में प्रविष्ट होने वाला है किन्तु यहां तो ऐसा साज और सामान नजर आया कि प्राचीन काल के राजभवनो का चित्र आंखों में फिर गया। गली में खड़े होकर इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि इस जीर्ण दरवाज़े के पीछे शान व शौकत के ऐसे दृश्य होंगे।"

पीतवर्ण आदमी उन्हें एक बहुत बड़े कमरे में ले आया। इसे हाल ही कहना अधिक उचित था और यहां आसनों में कुछ ऐसी व्यवस्था नजर आई जैसे इस हाल को दर्बार खास की हैसियत प्राप्त हों।

सामने स्टेज़ पर स्वर्णिम कुर्सी पर जो व्यक्ति बैठा हुआ नजर आया उसने तो जेम्सन के होश ही उड़ा दिए। यह काला आदमी जादूगर मवाकाजी के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता था। उसके सामने मेकफ को झुकते देख कर जेम्सन को भी झुकना पड़ा।

फिर मवाकाजी ने तटवर्ती भाषा में कुछ कहा था। मेकफ ने उत्तर दिया मगर उसका लेहजा जेम्सन को ऐसा ही लगा था जैसे वह बहुत अधिक आतंकित होकर विनयपूर्ण बातें कर रहा हो।

प्रश्नोत्तर होते रहे। फिर मवाकाजी उठा और बाईं ओर वाला द्वार खोलकर अंदर दाखिल हो गया। पीतवर्ण आदमी जो हाल के द्वार पर ही ठहरा हुआ था आगे बढ़ा और मेकफ से कुछ कहकर फिर द्वार ही की ओर मुड़ गया।

अब यह दोनों उसके पीछे चल रहे थे। अंत में एक दूसरे कमरे में पहुंचे। पीतवर्ण आदमी इन्हें वहीं छोड़कर चला गया।

मेकफ कुछ क्षणों तक मौन खड़ा रहा। फिर मुड़ा और द्वार बंद करके बोल्ट कर दिया। जेम्सन ने कुछ कहना चाहा मगर मेकफ ने अधरो पर अंगुली रख कर मौन रहने का संकेत किया उसके बाद थैले से कागज़ और कलम निकाल कर लिखने लगा।

"सावधान रहो। तुम यहां एक गूंगे की हैसियत से निवास करोगे। किसी भी क्षण यह प्रकट न होने पाएं कि तुम गूंगे नहीं हो वरना जान से मारे जाओगे। यह बास की आज्ञा है।"

जेम्सन ने पढ़ा फिर उसके हाथ से कलम लेकर उसी के नीचे लिखा।

"मैं इस आदमी को अच्छी तरह पहचानता हूं। यही जादूगर मवाकाजी है।"

उत्तर में मेकफ उसी के नीचे लिखने लगा।

"कोई भी हो। मुझे इससे सरोकार नहीं है। तुमसे जो कहा गया है उसका ध्यान रखना। मैं थोड़ी देर बाद यहां से चला जाउंगा। यदि आगे तुम्हारे लिए कोई आदेश होगा तो वह किसी न किसी प्रकार तुम तक पहुंच जाएगा।"

जेम्सन ने लंबी सांस ली और मेकफ ने वह कागज टुकड़े टुकड़े करके अपने थैले में डाल दिये।

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कमल कान्त ने एक प्रकार से एकांत वास धारण कर रखा था। कमरें से निकलना ही नहीं था। दर्जनों बार फोन पर जेम्सन से उसके कमरे में संबंध स्थापित करने की चेष्टा कर डाली थी। मगर एक बार भी उत्तर न मिला था। बार बार काउंटर क्लर्क से संबंध स्थापित करके पूछता। किन्तु वहां से एक ही उत्तर मिलता।

"कुंजी अब भी काउंटर पर ही है। जेम्सन वापस नहीं आया।"

मसोमा से बातें होने के बाद से उलझन और बढ़ गई थी। समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए? आखिर उसे यहां भेजने का ध्येय क्या था। जब कि उसे मामले के बारे में कुछ बताया ही नहीं गया था। आवश्यक नहीं था कि वह बच्चों के समान अंगुली पकड़कर चलता। मगर कम से कम उसे यह तो मालूम होना ही चाहिए था कि उसे करना क्या है। अचानक फोन की घंटी बजी और उसने झपटकर रिसीवर उठा लिया।

"आपरेटर_" दूसरी ओर से आवाज़ आई।

"क्या बात है?"

"आपके लिए मवानजा से काल हो रही है। होल्ड ओन किजिए।"

"अच्छा।" कमल ने कहा और सोच में पड़ गया।

मवानजा से कौन काल कर रहा है? मवानजा विक्टोरिया झील का एक तटवर्ती नगर था। थोड़ी देर बाद एक नारी की आवाज सुनाई दी।

"हलो_ कमल कान्त_"

"हां, कमल कान्त ही है।"

"मैं पोरशिया सिंगिल्टन बोल रही हूं।" आवाज आई।

*ओह_ यह तुमने क्या किया? आखिर इसका ध्येय?"

"फिलहाल ध्येय बताना मेरे वश से बाहर है। बस इतना समझ लो कि मैं पवन की एक एजेंट हूं। मसोमा नाम का एक आदमी तुम्हें मिलेगा। उसे सहयोग दो। वह अपना ही आदमी है।"

"वह तो मिल भी चुका। मैंने उसे फ्राड समझकर भगा दिया।"

"वह फ्राड नहीं है। अपना ही आदमी है। तुम्हें उसके साथ मिलकर काम करना है।"

"मगर मेरा विचार है कि मेरे सेक्रेटरी जेम्सन के गायब हो जाने में उसी का हाथ है।"

"तुम्हारा विचार गलत है।"

"जेम्सन का पता चला?"

"नहीं। उसकी और उसके साथ वाली औरत की तलाश जारी है।"

"मैं नहीं जानता कि मसोमा अब कहां मिलेगा?"

"नोट करो। जंजबार गेस्ट हाउस। जानाकी स्ट्रीट। कमरा नंबर ग्यारह। डायरेक्टरी में फोन नंबर देख लो।"

"अच्छी बात है।"

"मैं फोन पर ही तुमसे मिलूंगी।"

"और यदि मुझे आवश्यकता वश तुम्हें काल करनी पड़े तो क्या करूंगा?"

"मसोमा ही से यह भी मालूम हो जाएगा। अतिशीघ्र उससे संबंध स्थापित करो।"

"अच्छा।"

दूसरी ओर से संबंध कटने की आवाज आई। कमल ने रिसीवर रख दिया और डायरेक्टरी उठा कर उसके पन्ने उलटने पलटने लगा। जंजबार गेस्ट हाउस का नंबर तलाश कर के मसोमा से संबंध स्थापित करने की कोशिश करने लगा।

संबंध शीघ्र ही स्थापित हो गया और दूसरी ओर से मसोमा की आवाज सुनाई दी।

"हलो_ कौन है?"

"कमल कान्त_ ।" उसने माउथपीस में कहा।

"ओह_ तुम? क्या बात है?"

"भ्रम दूर हो गया।" कमल ने कहा। "अपने व्यवहार पर लज्जित हूं।"

"कोई बात नहीं।" दूसरी ओर से आवाज़ आई। हर मामले में इसी प्रकार सतर्क रहना चाहिए। तुम्हारा व्यवहार कुछ अनुचित नहीं था।"

"तो फिर अब क्या कहते हो?"

"थोड़ी देर बाद पहुंच रहा हूं। प्रतीक्षा करो।"

"ठीक  है।" कहकर कमल ने रिसीवर रख दिया और सोचने लगा कि शायद उसने जल्दबाजी से काम लिया है। पोरशिया से बात होने के बाद फौरन ही उसे मसोमा से संबंध स्थापित नहीं करना चाहिए था। यह पोरशिया सिंगिल्टन - आखिर उसने आक्सफोर्ड वाली हवाई छोड़ने के बजाय उसी समय खुलकर बात क्यों नहीं की थी?

वह एक बार अपनी स्मरण शक्ति पर जोर देने लगा।  लिस्ली कारडोबा के कमरे में उस पर आक्रमण हुआ और उसके बाद ब्लेक आउट - होश में आया तो वह एक वीराने में पड़ा हुआ था।  वहां पोरशिया सिंगिल्टन के हत्थे चढ़ा। दोपहर का भोजन किया और फिर गायब। फिर वही ब्लेक आउट- नींद खुली तो दारुस्सलाम के एक अस्पताल में पड़ा था। आखिर चक्कर क्या है? वह स्वयं एक वर्कर है। खेल के मैदान का गेंद नहीं है कि इधर से उधर उड़ रहा है। आखिर पवन ने किस प्रकार के रोल की अदायगी उसके सिर मढ़ दी है। कहीं न कहीं कोई फेर अवश्य है। मसोमा - पोरशिया सिंगिल्टन। खैर देखा जाएगा।

फिर उसने घड़ी देखी और उठकर कपड़े बदलने लगा। पंद्रह बीस मिनट के बाद बाहर से दरवाजा खटखटाया गया था।

"येस_ कम इन।" कमल ने ऊंची आवाज़ में कहा।

द्वार खुला और मसोमा अंदर दाखिल हुआ। कमल ने सुहृदयता से उसका स्वागत किया। इस पर मसोमा ने आश्चर्य प्रकट नहीं किया था। इसका अर्थ यही हो सकता था कि सब कुछ उसके विचारानुसार हो रहा था।

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