चमकीला बादल - 6 Ibne Safi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चमकीला बादल - 6

(6)

"क्या रखा है इस औरत में?" मसोमा ने धीरे से कहा।

"क्यों घूर रहे हो?"

"भ्रम है तुम्हारा। मैं तो नहीं घूर रहा।" कमल ने कहा।

उधर वह लंबा आदमी अपनी साथी से कह रहा था।

"तुम्हें बहुत जल्दी-जल्दी भूख लगती है। कहीं पाचन शक्ति न खराब कर बैठना।"

"टोका मत करो।" औरत भन्ना कर बोली

"तुम्हारे भले को कह रहा हूं।" लंबे आदमी ने हंसकर कहा।

"कंठ तक ठुस लेती हो। फिर कहती हो कि तबीयत ठीक नहीं है।"

"बकवास मत करो।" औरत ने चिनचिनाकर कहा। तुम्हारी मोटर कार नहीं बन सकती। न जाने किस बुरी घड़ी में तुमसे मुलाकात हुई थी।"

"अच्छा अच्छा_ क्या खाओगी?"

"स्टेक_" औरत ने कहा।

"कितनी दर्जन मंगवा लूं?"

"तुमने फिर मेरी खुशकुराकी पर व्यंग्य किया।" औरत जैसे चीख सी पड़ी।

मसोमा के ऑर्डर की वस्तुएं आ गई थी और दोनों ने काउंटर पर ही खाना आरंभ कर दिया था। और मसोमा भी बड़ी दिलचस्पी से उस विचित्र जोड़े की बातें सुन रहा था।

"क्या विचार है?" मसोमा ने पूछा।

"किस बारे में?" कमल ने भी प्रश्न हीं किया।

"यह आदमी कहां का निवासी हो सकता है?" "कुछ नहीं कह सकता।" कमल ने कहा। "नाक की बनावट तो चीनियों जैसी है मगर मूंछें_ उन बेचारों को ऐसी घनी मूछें कहां नसीब_?"

"मेरा ख्याल है कि उनकी गाड़ी हमारे पीछे ही पीछे आई है। मसोमा ने कहा।

"मैंने ध्यान नहीं दिया था।"

"फिर इसे देखते ही चौंके क्यों थे?"

"हां, यह क्रिया आतुरता से मुझसे अवश्य हुई थी, मगर क्यों? यही में भी इतनी देर से सोच रहा हूं।"

"बड़ी विचित्र बात है।" मसोमा सिर हिला कर बोला।

"क्या?"

"यही कि ऐसी क्रियाएं इस समय घटित होती है जब कोई आशा रहित बात सामने आ जाए।"

"कुछ कह नहीं सकता।" कमल ने चिंतित भाव में कहा।

"न जाने क्यों ऐसा महसूस हो रहा है जैसे इसे पहले भी कहीं देख चुका हूं।"

"शायद तुम यह कहना चाहते हो कि परिचित लग रहा है।"

"मेरे विचार से ऐसी कोई बात अवश्य है जिसमें परिचय की झलक मिलती है किंतु विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता।"

"ऐसा तो नहीं कि यह हमारा पीछा कर रहा हो?"

"कुछ कहा नहीं जा सकता।"

"अभी मालूम हो जाएगा।"

खाने के बाद कीमत अदा की गई और दोनों बाहर निकाल कर गाड़ी पर बैठ गए। यात्रा फिर आरंभ हो गई। इस बार भी मसोमा ही गाड़ी ड्राइव कर रहा था। थोड़ी देर बाद बैक ग्लास पर नज़रें डालकर मसोमा ने कमल से कहा।

"देख लो उसी की गाड़ी है। क्या तुम उसकी गाड़ी पहचानते हो जो इतने विश्वास के साथ कह रहे हो?"

"मैंने उस समय तक अपनी गाड़ी स्टार्ट नहीं की थी जब तक वह दोनों आकर अपनी गाड़ी में बैठ नहीं गए थे।"

"अगर वह सचमुच हमारा पीछा कर रहे हैं तो कौन हो सकते हैं?" कमल ने चिंताजनक स्वर में कहा।

"ओहो! इतने भोले ना बनो।"

"क्या मतलब?"

"हो सकता है कि यह भी उन्हीं में से हो जिन्होंने तुम्हारे साथी को गायब किया है।"

"ओह! मैं कितना बुद्धिमान हो गया हूं।"

"अतः सावधान रहो। यदि वह किसी प्रकार हमारे हाथ आ जाए तो_" मसोमा वाक्य पूरा किए बिना ही मौन हो गया।

"क्या यह आवश्यक है कि केवल दो ही हो?"

"मैं नहीं समझा। क्या कहना चाहते हो?" मसोमा बोला।

"मैं यह कह रहा था कि हो सकता है और भी हो।"

"किस आधार पर ऐसा सोच रहे हो उसकी गाड़ी के पीछे और कहीं गाड़ियां है।"

"कुछ भी हो।" मसोमा ने कहा। "हमें उन पर हाथ डालने की कोशिश करनी चाहिए।"

"जैसी तुम्हारी इच्छा_" कमल ने कहा। "तुम किसी प्रकार मुझे पीछे न पाओगे।"

"कोई उपाय सोचो कि किस प्रकार घेरा जाएं?"

"किसी स्थान पर रुको।" कमल ने कहा। "अगर वह लोग भी रुकेंगे तो इसकी तस्दीक भी हो जाएगी कि हमारा पीछा ही कर रहे हैं। बस फिर वही घेर लिया जाएगा।"

"इसके लिए किसी उचित स्थान का चयन करना पड़ेगा। मसोमा ने कहा।

"मुझे तो नहीं लगता कि कहीं कोई ऐसा स्थान मिल सके।" कमल ने कहा। "यह सड़क भी इतनी अच्छी नहीं है की दूसरी गाड़ियों को रोके बिना हम किस स्थान पर रुक सके?"

"हां_ कदाचित अब मवानजा तक कोई ऐसा स्थान न मिल सके।"

"तो फिर सीधे मवानजा ही चलो।" कमल ने कहा। "यदि वह पीछा करते ही रहे तो फिर वही निपट लेंगे।"

"ठीक है। ऐसा ही करते हैं।" मसोमा ने लंबी सांस खींच कर कहा। कमल मौन रहा। वह उलझन में पड़ गया था। सोच रहा था कि आखिर यह लंबा आदमी कौन हो सकता है? उसने उस आदमी में परिचय की झलकियां क्यों महसूस की थी? जब वह अपने साथ वाली औरत से बातें कर रहा था तो उसकी आवाज भी कुछ जानी पहचानी सी लगी थी। "क्या सोचने लगे?" मसोमा ने कुछ देर बाद पूछा।

"उलझन में हूं।" कमल ने उत्तर दिया।

"कैसी उलझन?"

"आखिर यह लंबा आदमी किसी हद तक जाना पहचाना सा क्यों लग रहा है? जबकि मैं यह नहीं जानता कि किन लोगों के हाथों सताया गया हूं_।"

"ओह! एक बात_ क्या यह तुम्हारे साथियों में से भी कोई हो सकता है? मतलब यह कि मेकअप में हो और तुमने उसकी चाल ढाल के आधार पर_।"

"इसका सवाल ही नहीं पैदा होता।" कमल ने बात काटते हुए कहा। "मेरे साथियों में ना तो कोई इतना दुबला पतला है ना इतना लंबा

"आवश्यक तो नहीं है कि अपने विभाग के सारे ही आदमियों को जानते हो?"

"प्रश्न जानने का नहीं है बल्कि परिचय महसूस करने का है।"

"ठीक कह रहे हो।"

फिर दोनों ही मौन हो गये। लैंड रोवर सड़क पर दौड़ती रही। अचानक कमल को याद आ गया कि अनजाने तौर पर उसका जेहन किस और भाग रहा है। क्या यह प्रसिद्ध चीनी अपराध सील संगही हो सकता है? ओह! कदाचित नाक और ललाट की बनावट के आधार पर उसे परिचय महसूस हुआ था। घनी मूंछों ने किसी हद तक अदल चेहरे को बदल तो दिया है किंतु ललाट और नाक तथा आंखों की बनावट_ वही छोटी-छोटी चमकीली आंखें_ वह सोचता रहा। मगर इस सिलसिले में मसोमा से कोई बात नहीं करना चाहता था। पता नहीं क्या चक्कर है? अंत में वह मवानजा जा पहुंचे।

"क्या यहां कुछ समय व्यतीत करने का इरादा है?" कमल ने पूछा।

"हां, विक्टोरिया के तट की शीतल वायु रोज-रोज कहां नसीब होती है? मसोमा ने कहा। काम हो या न हो। दो एक दिन तो यहां व्यतीत करने ही होंगे।"

"इसी गाड़ी में?" मसोमा एकदम से हंस पड़ा। फिर बोला।

"नहीं। किसी होटल में ठहरा जाएगा।" कमल कुछ नहीं बोला। दूसरी गाड़ी अभी पीछे लगी हुई थी।

"तुम देख लेना।" मसोमा ने कहा। "जहां हम दोनों ठहरेंगे वहीं यह दोनों भी निवास करेंगे।"

"यदि ऐसा हुआ तो हमारे लिए अच्छा ही होगा।" कमल ने कहा।

"क्या मतलब? क्यों?"

"हमें उन पर नजर रखने में सरलता होगी।"

मसोमा ने अट्टहास लगाया फिर बोला।

"कितने मजे की बात है। हम उन पर नजर रखेंगे और वह हम पर। लेकिन एक बात है।"

"वह क्या?"

"उसके साथ वाली औरत मुझे फिल्ड वर्कर नहीं मालूम होती।"

"फिर क्या मालूम होती है?"

"कोई सड़ी हुई तवायफ।"

कमल कुछ नहीं बोला। मसोमा भी मौन ही रहा।

गाड़ी एक होटल के सामने रुकी। बड़ी कठिनाई से एक कमरा मिल सका।

"यह तो अच्छा नहीं हुआ।" कमल ने मुंह बनाकर कहा। "मगर एक ही कमरे में कैसे गुजर हो सकती है?"

"यह बहुत बड़े भाग्य की बात है।" मसोमा ने कहा। "कि कमरा मिल गया। एक ही सही। वर्ना बिना रिजर्वेशन कराये इन होटलों में स्थान नहीं मिलता।"

"मगर वह दोनों क्या करेंगे?" कमल ने कहा। "मेरा विचार है कि बाहर ही रुके हुए है। अभी तक अंदर नहीं आए।"

"उन्हें यहां स्थान न मिले तब भी वह ठहर सकेंगे।" मसोमा ने कहा।

"कहां? कैसे?"

"क्या तुमने थोड़ी ही दूरी पर वह रंग-बिरंगे खेमें नहीं देखें?"

"तो क्या वह खेमें भी?"

"हां, जब अंदर स्थान नहीं होता तो वह खेमें ही  काम आते है।" मसोमा ने कहा। "यदि हमें कमरा न मिलता तो हम भी किसी खेमें ही में ठहरते।"

"यदि वह सचमुच हमारा पीछा कर रहे है तो दुबारा अवश्य मुलाकात होगी।" कमल ने लापरवाही से कंधे सिकोड़ कर कहा। उन्हें उस कमरे में पहुंचा दिया गया जिसमें उन्हें निवास करना था।

मसोमा तो घोड़े बेचकर सोया किंतु नींद कमल की आंखों से कोसों दूर थी। कभी जेम्सन का ख्याल आता और कभी उस लंबे आदमी का। जिसमें उसने संगही की झलकियां पाई थी। क्या वह केवल संयोग था या सचमुच वह उन दोनों का पीछा कर रहा था। यदि वह पीछा ही कर रहा था तो फिर ध्येय क्या हो सकता था? क्या यह उन्हीं लोगों का चक्कर है? किंतु यहां तंजानिया में यदि वह लोग कुछ कर रहे थे तो उससे पवन को क्या सरोकार हो सकता था?

उसने अभी तक मसोमा पर अपना संदेह प्रकट नहीं किया था। कारण इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं था कि वह अभी तक मसोमा की ओर से संतुष्ट नहीं हुआ था।

संध्या हुई। उसने कपड़े बदले और मसोमा को सोता छोड़कर बाहर निकल गया। यहां संध्या होते ही अच्छी खासी ठण्ड हो गई थी। दारुस्सलाम में गर्मी थी।

एक छायादार वृक्ष के नीचे लंबी आदमी की गाड़ी खड़ी नजर आई और वह दोनों गाड़ी ही में मौजूद थे। मसोमा के विचार अनुसार उन्होंने कोई खेमा भी प्राप्त करने की कोशिश नहीं की थी। वरना गाड़ी में बैठे रहने का है कोई तुक नहीं हो सकता था। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता था कि वह यहां ठहरने का इरादा नहीं रखते थे।

कमल उनकी ओर से अनजान बनकर टहलने के से भाव में उन्हीं की ओर जा निकला। गाड़ी के निकट से गुजर ही रहा था कि उसे हिंदुस्तानी में संबोधित किया गया।

"राजकुमार! जरा सुनीयेगा।" कमल एक झटके के साथ रुक गया और गाड़ी की और देखने लगा। आवाज गाड़ी की अंदर से ही आ रही थी। लंबा आदमी गाड़ी से उतर रहा था। उसने कहा।

"ऐसी भी क्या जल्दी राजकुमारजी? जरा रुकिए।"

"जी कहिए!" कमल ने शिष्टता के साथ कहा

"शिष्टाचार की आवश्यकता नहीं।" लंबे आदमी ने निकट पहुंचकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। "मुझे विश्वास है कि तुमने मुझे पहचान लिया होगा। मूंछों से क्या होता है?"

"न_ न_ नहीं तो_ भला मैं आपको क्या जानूं? इससे पहले मैंने आपको कभी नहीं देखा था।" लंबा आदमी हंस पड़ा फिर बोला।

"मुझे चराने की कोशिश न करो। तुम्हारा गुरु भी मुझे चचा कहता है।"

"मुझे अत्यंत दुख है कि इस हवाले के बाद भी मैं आपको पहचान न सका।" कमल ने कहा और उसे ध्यानपूर्वक देखने लगा।

"क्या तुम कमल कांत नहीं हो?" लंबे आदमी ने पूछा।

"आपने ठीक कहा। यही मेरा नाम है।"

"राजेश के लिए काम करते हो?"

"मैं किसी के लिए काम नहीं करता। आजाद आदमी हूं।" कमल ने कहा।

"फिर राजेश से तुम्हारा क्या संबंध है?"

"वह मेरे मित्र है।" कमल ने कहा।

"क्या तुम अकेले हो?"

"फिलहाल अकेला ही समझिए।" कमल ने ठंडी सांस लेकर कहा।

"क्या मतलब?"

"मेरा साथी अचानक कहीं गायब हो गया है।" "जेम्सन की बात कर रहे हो?"

"जी हां।" कमल ने आश्चर्य से कहा। "कमाल है आप सब जानते हैं।

"यहां आने का तात्पर्य?" लंबे आदमी ने पूछा

"मनोरंजन।"

"कारे खास विभाग के एक डिप्टी डायरेक्टर के साथ।" मसोमा ने उसकी आंखों में देखते हुए मुस्कुरा कर कहा।

"मैं समझा नहीं।"

"मिस्टर कोयलो मसोमा की बात कर रहा हूं।" लंबे आदमी ने कहा।

"कुछ दिनों पहले तुम्हारा साथी जेम्सन भी उसके साथ दिखाई दिया था।"

"मैं उसके बारे में केवल इतना ही जानता हूं कि उसका नाम मसोमा है।"

"पहली मुलाकात कहां हुई थी?"

"क्लीमनजारो होटल में।" कमल ने कहा।

"और फिर दोस्ती हो गई?"

"हां।"

"मेरा भतीजा कहां है?"

"कौन भतीजा?" कमल ने फिर आश्चर्य प्रदर्शन किया।

"राजेश।"

"देश ही में होंगे।" कमल ने कहा।

"मैं विश्वास नहीं कर सकता।"

"आपकी मर्जी।"

लंबा आदमी उसे ध्यानपूर्वक देखता रहा फिर बोला।

"हो सकता है तुम्हें उसकी मौजूदगी का ज्ञान ही न हो।"

"संभव है। लेकिन आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया।"

"तुम मुझे अच्छी तरह जानते हो। अकारण बनने की कोशिश न करो।"

अचानक काली औरत ने जो नशें में मालूम हो रही थी गाड़ी के अंदर से पूछा।

"यह तुम किस भाषा में बातें कर रहे हो डार्लिंग?"

"देवताओं की भाषा में।" लंबे आदमी ने कहा।

कमल बड़ी कठिनाई से अपनी हंसी रोक पाया था।

"यह नीग्रेस कमाल की औरत है।" लंबे आदमी ने हंसते हुए कहा।

कमल कुछ नहीं बोला। लंबे आदमी ने फिर कहा।