चिराग का ज़हर - 8 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चिराग का ज़हर - 8

(8)

"जी नहीं-दिन में भी हो आया करती हैं-" फिरोजा ने कहा। हमीद ने विनोद की ओर देखा और विनोद अचानक उठ गया और शापूर में बोला ।

मेरे कारण अगर तुम लोगों को कोई कष्ट हुआ होता क्षमा करना और यदि तुम लोगों को कोई आवश्यकता पड़े तो मुझसे बिना यो झिझिक के सम्बन्ध स्थापित करना।”

शापुर किसी चिन्ता में डूबा हुआ था। न उसने कुछ कहा और न विनोद को विदा करने के लिये उठा- फिरोजा अवश्य उठ गई थी । हमीद ने जानबूझ कर अपनी गति सुस्त कर दी थी— इस प्रकार जब विनोद अपनी लिंकन तक पहुँचा था तो वह पर्दे से बाहर निकल रहा था। उसने फिरोजा की आवाज सुनी। वह कह रही थी ।

"आज संध्या को सात बजे आले वचन में मुझ से अवश्य मिलियेगा " यद्यपि फिरोजा ने यह बात मन्द स्वर में कही थी मगर उसकी मर्दाना आवाज कान के पर्दे फाड़ने वाली थी। हमीद ने पलट कर देखा ।

फिरोजा की नजरों में प्रार्थना थी— ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई महत्वपूर्ण बात करने वाली हो ।

"अवश्य आऊँगा" हमीद ने धीरे से कहा और तेजी से लिंकन की ओर बढ़ा ।

जब लिंकन वहाँ से रवाना हो गई तो हमीद ने विनोद से कहा।

"मुहतरमा फिरोजा अपने भाई के सामने कुछ बातें नहीं कर सकती थी--आज सन्ध्या को मुझे आर्लेक्चनू में बुलाया है।"

"फिर क्या पूछना―" विनोद ने कहा "लड़की सुन्दर भी है और तुम्हारी पसन्द के अनुसार भी है।" हमीद ने बेतहाशा अपने गालों पर कई थप्पड़ जमा डाले, फिर बोला ।

"आप मेरी पसन्द को इतना घटिया समझते हो?"

"तुम्हारी पसन्द को मैं अच्छी तरह समझता हूँ।" विनोद ने हंस कर कहा "मगर आज सन्ध्या को उससे अवश्य मिल लेना और हां- अब एक नया नाम सुनने में आया है – इसलिये मैं उसी की तलाश में जाऊँगा और तुम्हें नीलम हाउस के सामने उतार दूंगा।”

"खुदा आपका भला करे।" हमीद ने चहक कर कहा, "फिरोजा की शक्ल देखकर जो कोफ्त हुई है वह दूर हो जायेगी और अब मुझे इसका भी विश्वास हो गया है कि रात जो लड़की मुझे अपना नाम फिरोजा बता कर चक दे गई थी वह फिरोजा नहीं बल्कि नूरा ही थी -"

"अच्छे खासे अकलमन्द हो रहे हो।” विनोद ने हँस कर कहा "खैर तुम जानो और तुम्हारा काम मैं तो तुम्हें नीलम हाउस के सामने उतार कर चला जाऊँगा ।"

हमीद मौन होकर कुछ सोचने लगा-चौका उस समय जब विनोद ने कार रोक दी। उसने गर्दन घुमा कर देखा। लिंकन नीलम हाउस के फाटक के सामने रुकती थी ।

"मैं भी चाहता हूँ कि नीलम हाउस में तुम्हें कोई सुन्दर चेहरा नजर आ जाये—'' विनोद ने हँसते हुये कहा "हालांकि कुछ सुन्दर चेहरे बड़े जहरीले साबित होते हैं-"

"देखिये ! मुझे फलसफा न पढ़ाया कीजिये" हमीद ने उतरते हुये कहा, “अरे हाँ—बेचारे आसिफ चचा और अमर सिंह किस हालत में है।

"आज सवेरे ही दोनों हास्पिटल से डिस्चार्ज कर दिये गये थे " विनोद ने कहा ।

फिर हंसता हुआ बोला, "अमर सिंह तो भीगी बिल्ली बन कर रह गया है, मगर आसिफ के बारे में यह मालूम हुआ कि वह आज रात फिर नीलम हाउस जाने वाला है।"

"इसका मतलब यह हुआ कि मौत हो गई है- " हमीद ने कहा और फाटक की ओर मुड़ गया। लिंकन तैरती हुई आगे बढ़ती चली गई।

इस समय भी नूरा के क्वार्टर के सामने दो सिपाही बैठे हुये थे मगर यह रात की डयुटी वाले नहीं थे और हमीद के लिये अपरिचित भी थे और कदाचित वह दोनों हमीद को नहीं पहचानते थे । इसलिये कि वरा में दाखिल होने के बाद जैसे ही हमीद ने नूरा के क्वार्टर की ओर बढ़ना चाहा वैसे ही एक ने उसे टोक दिया और पूछा ।

"क्या बात है ?"

"मुझे मिस नूरा से मिलता है।"

"आपका नाम?"

"कैप्टन हमीद फाम इन्टेलिजेन्स -"

प्रकट है कि यह नाम नगर के कम से कम किसी सिपाही के लिये तो अपरिचित नहीं हो सकता था वह दोनों उठ कर खड़े हो गये- मगर उनके चेहरे यह बता रहे थे कि उन्हें हमीद की बात पर विश्वास वहीं हुआ है— इसलिये हमीद ने जेब से अपना आइडेन्टीटी कार्ड निकाल कर उन्हें दिखाया ।

"क्षमा कीजियेगा — " दोनों सिपाहियों ने क्षमा याचना किया— फिर एक ने कहा "वास्तव में हमें इस प्रकार के आदेश मिले हैं—और चूंकि हम आपको पहचानते नहीं थे इसलिये यह अशिष्टता हो गई। आप को रोकने का प्रश्न ही नहीं था।"

"किसने आदेश मिले हैं?" हमोद ने पूछा ।

" एस० पं० साहब से ―"

हमीद ने फिर कुछ प्रश्न पूछना उचित नहीं समझा और पर्दा हटा कर अन्दर दाखिल हो गया ।

नूरा कम्बल ओढ़े सो रही थी। कल रात इस कमरे का जो हुलिया था वही हुलिया इस समय भी था बस अन्तर केवल इतना था कि रात इस कमरे में बल्ब जल रहा था और इस समय बल्ब बुझा हुआ था। रात खिड़की बन्द थी और इस समय खुली हुई थी जिससे धूप अन्दर आ  रही थी।

हमीद की नजर में इस समय सोने का कोई तुक नहीं था । उसने दो तीन बार खखार कर नूरा को जगाने की कोशिश की। जोर जोर से मेज खटखटाई और उसके बाद दो तीन बार आवाजें दी- मगर जब नूरा नहीं जागी तो उसने निश्चय किया कि अब फंफोड़ कर जगाना चाहिये।

वह बिस्तर के निकट आया। एक क्षण रूक कर देखा। नूरा के सुनहरे बाल तकिये के ऊपर नजर आ रहे थे। चेहरा साहित पूरा शरीर कम्बल में किया हुआ था ।

कुछ क्षण तक तो वह एक प्रकार की झिझक का शिकार रहा- फिर उसने कम्बल पर हाथ रख कर नूरा को जगाने की कोशिश की- मगर हाथ रखते ही वह बौखलाहट का शिकार हो गया था-फिर उसने झल्लाकर कम्बल हटा दिया और साथ ही खिलखिला कर हंस पड़ा।

बिस्तर पर प्लास्टिक की एक बहुत बड़ी गुड़िया लेटी हुई थी- जिसके सर में सुनहरे बालों का विग लगा हुआ था और उसी विंग के कारण कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि सोने वाली औरत के बजाय कोई गुड़िया हो सकती हैं।

वह मूर्ति के समान खड़ा सोचता रहा-अब उसे यह याद आ रहा था कि जब विनोद ने उससे यह कहा था कि "मैं भी चाहता हूँ कि तुम्हें नीलम हाउस में कोई सुन्दर चेहरा नजर आ जाये तो.... उसने विनोद के स्वर में छिपे हुये व्यंग को क्यों महेसूस नहीं किया था?-- तो क्या विनोद को यह मालूम था कि नूरा अपने क्वाटर में नहीं मिलेगी? — और यदि मालूम था तो फिर उसने उसे नीलम हाउस भेजा ही क्यों ?

फिर वह सोचने लगा कि वह खुद भी इस नतीजे पर पहुँच चुका था कि नूरा कभी कभी अपने क्वार्टर से गायब रहती है और फिरोजा के बयान से इसको तस्दीक भी हो चुकी थी कि कभी कभी सन्ध्या को और कभी कभी दिन में भी नूरा अपने कार्टर से गायब रहती है। तो फिर उसे क्या हक पहुँचता है कि वह विनोद को किसी प्रकार का दोष दे ।

वह इसी उलझन में था कि उसे खिड़की की दूसरी ओर कुछ आहट प्रतीत हुई और वह जल्दी से एक ओर हट गया और खिड़को की ओर देखने लगा । एक औरत खिड़की के मार्ग से अन्दर दाखिल हो रही थी । यद्यपि चेहरा अपरिचित ही था —– फिर भी न जाने क्यों जाना पहचाना भी लग रहा था।

अन्दर आते ही उसने बड़ी सहृदयता से हमीद से हाथ मिलाया और बोली। " मुझे इस बात का दुख है कि कैप्टन हमीद को इतनी देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ी ।"

"मैं कदाचित् मिस नूरा श्रोड से..."

'जी हाँ -" उसने नत मस्तक होते हुये अत्यन्त मीठे स्वर में कहा, 'मैं सवेरे से ही आप की प्रतीक्षा कर रही थी। मुझे दो बातों का पूरा पूरा विश्वास था ।

एक तो इसका कि कर्नल विनोद खुद नहीं आयेंगे। दूसरे इसका कि मुझसे आवश्यक बातें मालूम करने के लिये वह अवश्य किसी को भेजेंग - आप आये तो अवश्य मगर बहुत देर में आये -1"

मैं आपने यह नहीं पूछूगा कि आपको मेरा नाम कैसे मालूम हुआ या यह कि आप को मेरा इन्तजार क्यों था. मगर कुछ बातें अवश्य छू।" "पहले यह बताइये कि क्या आप मेरे हाथों की बनी काफी पीना पसन्द करेंगे ?"

"क्यों नहीं— " हमीद ने कहा "काफी का तो मैं आदी हूँ। फिर जब हसीन हाथों से काफी बनती है तो उसमें ऐसी लज्जत पैदा हो जाती है कि बयान नहीं किया जा सकता। वैसे भी बहुत दिनों से सरपरी अंगुलियों ने काफी का प्याला मुझे नहीं दिया।"

नूरा ने कुछ नहीं कहा—उसके चेहरे पर हर्ष या क्रोध के लक्षण उत्पन्न नहीं हुये थे-  या तो वह इस प्रकार की बातें सुनने की आदी थी या फिर हमीद की उर्दू उसकी समझ में नहीं आई थी— बहर हाल उसने खामोशी के साथ हीटर का प्लग लगाया और केतली में पानी भर कर हीटर पर रखा और हमीद को बैठने का संकेत करके खुद भी एक कुर्सी पर बैठती हुई बोली ।

"हाँ — अब बताइये ! मैं तो लोगों के प्रश्नों के उत्तर देते देते उतर चुकी हूँ।"

"यह तस्वीर किस की है?" हमीद ने मेज पर रखी हुई तस्वीर की और अंगुली उठा कर पूछा जो उसी लड़की की तस्वीर मालूम होती थी जो रात उसे मिली थी और जिसने अपना नाम फिरोज बताया था।

'मेरी एक सहेली की है जिसका नाम रोमा है । कभी कभी दिल बहलाने के लिये आ जाती है-"

"अपनी उप सहेली रोमा का पता आप मुझे बता सकती हैं ?"

"हाँ क्यों नहीं तेरह अर्जुन पूरा-।" "सुनिये — मुझसे उड़ने की कोशिश न कीजिये । मेरा नाम केप्टर हमीद है।"

"मैंने कब कहा कि आप कैप्टन हमोद नहीं बल्कि डाक्टर जैटु हैं-" उसने मुस्कुरा कर कहा, फिर गम्भीरता धारण करती हुई "आप यही कहना चाहते है ना कि वह अर्जुन पूरा में फिरोजा और शापूर रहते हैं-"

"हाँ-हमीद ने कहा । "क्या आप ने फिरोजा से इस लड़की के बारे में पूछा था?" नूरा ने चुभते हुये स्वर में पूछा।

हमीद निरुत्तर होकर रह गया— मगर दूसरे ही क्षण ढिटाई से कहा।

"हाँ—पूछा था—मगर फिरोजा और शापूर दोनों ही ने अनभिग्नता प्रकट की थी।"

"मैं वहीं मान सकती कि आप ने पूछा होगा।" नूरा हँस पडी।

"इसलिये नहीं मान सकती कि जब इस लड़की का नाम ही नहीं जानते थे फिर पूछा कैसे होगा -?"

"नाम की आवश्यकता ही क्या थी "हमीद ने फिर ढिटाई से काम लिया। “मैंने उन दोनों से यही पूछा था कि तुम लोगों के अतिरिक्त और कौन रहता है—उन्होंने उत्तर दिया था कि कोई नहीं ।"

"तो फिर दोनों बहन भाई आप से झूठ बोले थे। उन दोनों के साथ रोमा भी रहती है और कार्टर भी रहता है।" हमीद ने दिल ही दिल में नारा लगाया "वह मारा "मगर चेहरे पर किसी प्रकार का लक्षण उत्पन्न नहीं होने दिया था। उसने उत्पन्न शान्त स्वर में पूछा ।

"रात आपकी सहेली यहाँ आई थी?"

"जी... हाँ।"

"आप जाग रही थीं?"

"पिनिक रही थी— उसके आने का एहसास तो हुआ था— मगर वह कब चली गई— यह मुझे नहीं मालूम हो सका इसलिये कि फिर मैं गहरी नींद सो गई थी। वह इसी प्रकार जब उसका मन चाहता है आ जाती है और जब दिल चाहता है चली जाती है ।"

"पंकज कहाँ है?" हमीद ने पूछा ।

"रात वह आप ही के साथ आया था-"और सवेरा होते हो यहां से चला गया। रात वह अपने ही क्वार्टर में सोया था। मुझसे सुबह मुलाकात हुई थी। उसने मुझसे कुछ रुपये वसूले और चला गया। वैसे आप के लिये यही अच्छा होगा आप उसे तलाश करें -।"

"इस ड्रामे का ध्येय क्या है ?" हमीद ने चार पाई पर पड़ी हुई गुड़िया की ओर संकेत कर के पूछा ।

"यह ड्रामा नहीं बल्कि तथ्य है-" नूरा ने कहा और उठकर पहले स्वीच बोर्ड से प्लग निकाला- फिर दो प्यालियाँ  में काफी तैयार कर के एक हमीद की ओर बढ़ाई दूसरी से खुद चुस्कियां लेने लगी ।

हमीद को आशा थी कि वह कुछ और कहेगी, मगर जब उसने देखा कि उसने बिल्कुल ही मौन व्रत धारणा कर लिया है तो उसने फिर उस गुड़िया के बारे में पूछा ।

'मैंने जो बात पहले कही थी वही फिर दुहरा रही है कि ड्रामा नहीं बल्कि तथ्य है - और यह तथ्य थोड़ी ही देर बाद आप पर प्रकट हो जायेगा--- तब तक आप यदि और कुछ पूछना चाहते हों तो पूछते रहिये।"