Chirag ka Zahar - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

चिराग का ज़हर - 11

(11)

"अल्ला कसम मेरा भी यही हाल है मैं भी नाहीं बता सकता कि मुझे कित्ती खुशी हुई है" कासिम की बांछे खिली पड़ रही थीं । "मैंने आज तक आप जैसा तन्दुरुस्त जवान नहीं देखा था— मगर सच पूछिये तो आपकी खुराक ही मुझे आपके पास खींच लाई थी ।"

"ही ही ही आज मेरे जियादा भूख नाहीं थी— " कासिम ने कहा।

"ओह तो क्या आप इससे भी ज्यादा खाते हैं ?" रोमा ने अपना विसमय को छिपाते हुये कहा ।

"और किया" कासिम ने गर्व के साथ कहा । "मुझे ऐसे ही जवान पसन्द हैं जो तन्दुरुस्त हों और ज्यादा खाते हों।"

"अगर यह बात है तो कहिये मैं अभी दस मुर्गा और खा कर आपको दिखा दूँ ।"

"इसकी जरूरत नहीं है- रोमा ने कहा।

"नाहीं अब तो जरूर खाऊंगा ताकि आपको यकीन हो जाये" कासिम ने कहा । उसकी मानसिक धारा बहक गई थी।

"मुझे यकीन है-" रोमा ने कहा ।

"नाहीं — " कासिम ने कहा और रोमा के मना करने के बाद भी उसने बैरा को आवाज दे ही दी और जब बैरा आ गया तो उसने कहा "खाना लाओ ।"

"अच्छा साहब — मगर अभी अभी तो आप खाना खा चुके है-।"

"मैं कहता हूँ खाना लाओ - " कासिंम दहाड़ा "दस मुर्गा- मुसल्लम !"

बैरा दयनीय दृष्टि से रोमा की ओर देखने लगा ।

“देखो डियर !” रोमा ने कासिम से कहा "रात में ज्यादा खाना ठीक नहीं होता इसलिये अब टालो।"

" ठीख है जब आप कहती हैं तो नाहीं खाऊँगा" काजिम ने कहा, फिर बैरा की ओर देख कर बोला "जियाओ - आपना काम देखो ।"

काफी आ चुकी थी और रोमा हल्की हल्की चुस्कियां ले रही थी। वह अचानक कासिम से पूछ बैठी ।

"क्या आपकी शादी हो चुकी है ?"

"ज...ज जी हां अभी नाहीं-" कासिम एक दम से गड़बड़ा गया।

रोमा ने "जी हाँ" और "अभी नहीं" पर तर्क न करके अपने स्वार्थ वाली बात कही ।

"पता नहीं क्यों में आपकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ।"

"जरूर जरूर - " कासिम गड़बड़ा कर रह गया । उसकी समझ में नहीं आया था कि क्या कहे ।

"डियर कासिम ! मैं बहुत दिनों से तुम्हारे ही जैसे जवान का सपना देख रही हूँ ।"

"मैं भी देख रहा हूँ जी हां और किया - " कासिम कुछ न समझते हुये बोला।

"तुम भी देखते हो ना-" रोमा चहक कर बोली "मुझे यकीन है कि जो मैं देखती हूँ वही सब कुछ तुम भी देखते हो-मगर डियर कुछ कासिम ! मैंने तुम्हारे बारे में यह भी सुना था कि तुम बहुत हसमुख जवान हो — मगर देख यह रही हूँ कि तुम बुझे बुझे से नजर आ रहे हो- आखिर क्या बात है । कुछ हंसो बोलो।"

"हंस बोल तो रहा हूँ—-" कासिम ने थूक निगलते हुये कहा।"

"तुमको शादी से दिलचस्पी है ?" रोमा ने स्वप्निल स्वर में पूछा ।

"जी हो— कियूँ नहीं –"

"कोई शेर सुनाओ –?"

"शेर....काउन जङ्गल वाला शेर ?"

"नहीं - वह शेर जो शायर लोग कहते हैं" रोमा ने अपनी हंसी दबाते हुये कहा ।

"वह तो इस बखत नाहीं याद है-" कासिम ने उदासीनता साथ कहा मगर दूसरे ही क्षण बढ़कर बोला "याद आ गया साला।"

"ता फिर सुनाओ।"

"यह दो दिन में साला किया माजरा हो गया कि बोतल पर हाथी खड़ा हो गया !!"

"वाह वाह क्या कहना" रोमा ने कहा, फिर बोली "कोई रूमानी पर सुनाओ"

"यह शेर किया होता है-?"

"जिसमें इश्क और मुहोब्बत की बात हो -"

"ठीक है सुनिये इश्क पर जोर नहीं है साली - यह वह आप है

गालिब कि सुनाये न बने और दिखाये न बने।"

"आपने कभी किसी से इश्क किया है ?"

"अगे बाप गे" कासिम ने कहा और बौखला कर इधर उधर देखने लगा । "क्या-क्या हुआ ?" रोमा मुस्कुराई ।

"अभी यह सुन लेंगी तो मर जायेगी" कासिम ने मुंह बना कर कहा ।

"कौन सुन लेंगी ?"

"अरे वही चपाती बेगम और गिलहरी जान, और काउन―"

"यह कौन है-."

"अरे हैं एक " कासिम ने कहा ।

"क्या वह आपसे मुहब्बत करती हैं ?"

"मुहबत किया करेंगी - बस हर बस्त दिल जलाया करती है।"

"मुझे भी उन्हें दिखाइये।'

"किया करेगी आप देख कर ?"

"देखूंगी कि वह किस तरह आपका दिल जलाती है ।"

"अरे छोड़िये – कोई दूसरी बात कीजिये- " कासिम ने कहा।

"अरे वाह ! भला यह कैसे हो सकता है कि कोई आपका दिल दुखाये और में खामोश रहूँ- " रोमा ने बनावटी क्रोध के साथ कहा, "नहीं कासिम साहब ! यह नहीं हो सकता मैं उसे जरूर देखूंगी- चलिये वह कहां रहती है ?"

"मेरे घर में..." कासिम ने कहा । "तो फिर उठिये मैं आपके घर चलूँगी -'

"म...मेरे घर?" कासिम हकला उठा आप मेरे घर पर चलेंगी -?"

"हाँ मुझे आपसे मुहब्बत हो गई है कासिम डियर..." रोमा ने कहा

"मुझे भी आपसे हो गई है— अल्ला कसम ।"

"क्या हो गई है ?" रोमा ने चंचलता के साथ पूछा ।

"महूवत--" कासिम ने कहा और फिर किसी अविवाहित लड़की के समान लजा कर दोनों हाथों से अपना मुँह छिपा लिया ।

"तुम कितने स्वीटी हो कासिम डियर।"

"ही ही ही" कासिम अब भी लजा रहा था ।

"चलो—अब तुम्हारे घर ही चलें । यहाँ लोग हमें घूर रहे हैं-" रोमा ने इधर उधर देखते हुये कहा।

"नाहीं— मेरे घर नाहीं-" कासिम फिर बौखला गया "कहीं और चलिये ।" "क्यों—तुम्हारे घर क्यों नहीं ?"

"वहाँ मेरा कोई नहीं है-" कासिम ने कहा । अचानक उसका कण्ठ रूंध गया था ।

"कोई नहीं है—” रोमा ने विस्मय के साथ कहा “क्या आपके वालिद आसिम साहब भी नहीं हैं ?"

"नाहीं — इस दुनिया में मेरा कोई नाहीं है—सब मुझसे नफरत करते हैं—” कासिम ने कहा और उसकी आँखों में आँसू तैरने लगे ।

“अरे अरे—यह क्या !” रोमा भी बौखला गई, फिर बोली, "अच्छातुम मेरे घर चलो-।

“हाँ—यह ठीख है—” कासिम ने कहा फिर फोरन ही बौखला कर बोला, “मगर वहाँ आप के वालिद साहब होंगे-?"

"नहीं- मैं अकेली रहती हूँ। मेरा भी इस दुनिया में कोई नहीं है-"

"तब ठीख है— चालो―" कासिम हर्षित हो कर बोला । दोनों उठकर काउन्टर पर आये । कासिम ने बिल पेमेन्ट किया और फिर सदर दरवाजे की ओर बढ़े ।

रोमा के तीनों साथी अब तक खामोशी के साथ दोनों को देखते रहे थे—फिर जैसे ही वह दोनों सदर दरवाजे की ओर बढ़े थे— एक विदेशी ने कहा ।

"रोमा अपने ध्येय में सफल हो गई।”

"हाँ—हमारा काम बन गया―" देशी ने कहा "अब हमें भी उठ जाना चाहिये। पहले का सिम से फोन करवा कर हमीद को बुलवायेंगे और फिर हमीद से फोन करवा कर विनोद को बुलवायेंगे--।"

"सवाल यह है कि अगर इस प्रकार विनोद और हमोद हमारे अधिकार में आ भी गये तो हमें क्या लाभ पहुँचेगा-" दूसरे विदेशी ने कहा "हम जो जानना चाहते हैं वह न हमें विनोद बता सकेगा और न हमीद -।"

"यह किस आधार पर कह रहे हो ?" देशी ने पूछा ।

"इस आधार पर कि दोनों ही जिम्मेदार आफिसर हैं- जान दे -देंगे मगर मुंह नहीं खोलेंगे —दूसरे यह कि हम जो मालूम करना चाहते । हैं वह यदि उनको मालूम होता तो अब तक वही अपने ध्येय में सफल हो गये होते ।"

शेष दोनों ने यह बात पूरी संलग्नता के साथ सुनी थी मगर इस बात से वह सहमत नजर नहीं आ रहे थे —— इसलिये कि उसके मौन होते ही देशी ने कहा था ।

“तुम विनोद को नहीं जानते —अगर वह हमारे अधिकार में आ गया तो हम जो कुछ जानना चाहते हैं उससे भी कहीं बहुत अधिक नाम विनोद और हमीद को अधिकार में करने से प्राप्त हो जायेगा ।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर उठो । आठ बज चुके हैं-" दूसरे विदेशी ने कहा ।

तीनों बड़ी तेजी से बाहर निकले । कम्पाउन्ड में खड़ी कासिम की गाड़ी में रोमा और कासिम बैठ रहे थे। वह तीनों भी जल्दी से एक- कर लम्बी गाड़ी में बैठ गये।

फिर जैसे ही उनकी गाड़ी गति में आई उन्होंने कम्पाउन्ड में एक देशी गाड़ी रुकती हुई देखी जिससे फिरोजा उतर रही थी—और दूसरे ही क्षण एक मोटर सायकिल भी आकर रुकी थी जिससे हमीद उतरा था ।

"यह बड़ा अच्छा हुआ कि हमीद यहां आ गया । कुछ देर यहां अवश्य ठहरेगा। हम कासिम से हमीद के लिये यहीं फोन करायेंगे।" देशी ने कहा ।

फिर कासिम की गाड़ी के बाद उनकी गाड़ी भी कम्पाउन्ड से निकल गई।

******

हमीद सात बजे से पहले ही फिरोजा के अर्जुनपूरा वाले मकान पर पहुँच गया था। उसे इस बात का विश्वास था कि फिरोजा ने उसे च देने की कोशिश की है । वह नहीं चाहती कि सात बजे से पहले कोई उप अर्जुन पूरा वाले मकान में चेक करे—इसी लिये हमीद सात न बजे से पहले हो पहुँच गया था जब कि फिरोजा ने उसे सात बजे नू में मिलने के लिये कहा था और हमोद को अर्जुन पूरा बाने के बजाय आ जाना चाहिये था मगर वह फिरोजा को चेक करने की के लिये सात बजे से पहले ही अर्जुन पूरा पहुँच गया सा। वह मोटर सायकिल से गया था और रेडी मेड मेक अप में था । ऐसी जगह खड़ा था जहाँ से फिरोजा का मकान साफ दिखाई दे रहा था ।

सात बजे के लगभग फिरोजा अपने मकान से अकेली निकली थी और उस स्थान तक पैदल हो गई थी जहां एक नवजवान कार लिये उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसके पहुँचते ही नवजवान कार से उत्तर गया था और फिरोजा ने ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट कर दी थी ।

हमीद ने मोटर सायकिल पर उसका पीछा करना आरम्भ कर दिया था।

पहले फिरोजा नीलम हाउस गई थी। वहाँ कार से उतर कर नूरा के क्वार्टर की ओर कदम बढ़ाया था--मगर क्वार्टर के अन्दर उसने जाने के बजाय वो बरामदे से ही लौट आई थी—फिर वह नगर के गुजान आबादी वाले एक ऐसे मुहल्ले में गई थी जहां कम हैसियत वालों की आबादी अधिक थी। एक जगह कार रोक कर वह उतरी थी और पैदल चलती हुई एक मकान के सामने रुकी थी और उसकी कुन्डी खटखटाई थी। दरवाजा फौरन ही खुला था और एक बहुत ही शान्दार और वैभव शाली पुरुष दरवाजे पर नजर आया था। वह उसी के साथ मकान के अन्दर दाखिल हो गई थी और दरवाजा बन्द हो गया था।

हमीद ने भी अपनी मोटर सायकिल रोक दी थी मगर नीचे नहीं उतरा था। ठण्ड काफी बढ़ गई थी। हमीद ने बैठे ही बैठे जैकेट उलट कर पहन ली थी और टोपी का तस्मा ठुड्डी पर कस लिया था— फिर जब फिरोजा उस मकान में दाखिल हो गई थी तो वह मोटर सायकिल से उतर कर एक निकटवर्ती दुकान पर चला गया था और उस मकान के बारे में पूछा था जिसमें फिरोजा दाखिल हुई थी।

केवल इतना ही मालूम हो सका था कि उम्र मकान में अभी हाल ही में नीलम हाउस के मालिक का एक ऐसा रिश्तेदार आकर रहने लगा है जो पहले नीलम हाउस में रहता था- -मगर उस रिश्तेदार का नाम नहीं मालूम हो सका था।

- फिरोजा पन्द्रह मिनिट के बाद उस मकान से बाहर निकली थी और अपनी कार में बैठ कर चल पड़ी थी। हमीद ने अपनी मोटर सायकिल फिर उसकी कार के पीछे लगा दी थी। वहां से सीधे आर्लेक्चनू आई थी— और जब कार से उतर कर डाइनिंग हाल में दाखिल हो गई थी तो हमीद अपनी मोटर सायकिल से नीचे उत्तरा था। उसने फिर जैकेट उलट कर पहनी थी और दोनो उतार कर जेब में रख ली थी । रेडीमेड मेकअप उसी समय उतार कर जेब में रख लिया था जब उसने फिरोजा की गाड़ी को आर्लेक्वनू के कम्पाउन्ड में मुड़ते देखा था— फिर वह भी डाइनिंग हाल की ओर बढ़ गया था ।

जब वह डाइनिंग हाल में पहुँचा था तो फिरोजा एक मेज पर अकेली बैठी काफी की चुस्कियां ले रही थी। कदाचित काउन्टर पर काफी का आर्डर देती हुई वह मेज पर आई थी।

हमीद सीधा उसी की मेज पर आया और कुर्सी घसीट कर बैठता हुआ बोला । "तुमने सात बजे का समय दिया था और अब आठ बज चुके है।"

"आप खुद देर से आये हैं-" फिरोजा ने मुस्कुरा कर कहा ।

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