(5)
हमीद ने फिर कुछ नहीं कहा। वह विन्ड स्क्रीन की ओर देखने लगा। काफी दूर एक मोटेल की रोशनी दिखाई दे रही थी।
"यदि आप आज्ञा दे तो मैं अपनी एक इच्छा प्रकट करू?"
पंकज ने कहा । "आज्ञा है।"
"वह सामने जो प्रकाश दिखाई दे रहा है वह एक मोटेल का है- अगर आप वहीं गाड़ी रोक कर मुझे कुछ खिला पिला दें तो मैं प्रथम आप से वादा...."
"कुछ खाने पीने के लिये इतनी बड़ी भूमिका बाँधने की क्या आवश्यकता थी सीधे तौर पर भी यह बात कही जा सकती थी- " हमीद ने बात काट कर कहा और मोटेल के पास पहुँच कर गाड़ी रोक दी।
दोनों उतर गये और पंकज ने बड़ी जल्दी जल्दी अपने लिये उन की सारी वस्तुओं का आर्डर दें दिया जो वहाँ मिल सकती थी ।
हमीद ने केवल चाय पी और पाइप सुलगा कर हल्के हल्के कश लेने लगा । वह कनखियों से पंकज की ओर देखता जा रहा था जो प्लेटो पर लम्बे लम्बे हाथ मार रहा था। भोजन समाप्त करके पंकज ने डकार ली और हमीद से बोला ।
"मैंने दो दिन बाद इस समय भोजन किया है-"
"क्यों ?"
"पैसे नहीं थे— "
"दो ही महीने में फक्कड़ हो गये ।" हमीद ने कहा।
"हम लोगों ने अपना व्यक्तिगत सेविंग बैंक खोल रखा था और उसी में अपनी बचत जमा किया करते थे। नीलम हाउस की उस पूरी दुर्घटना में वह सेविंग बैंक भी मर गया।"
"क्या मतलब। मैं समझा नहीं" हमीद ने कहा।
"हमारा सेविंग बैंक था फरामुज जी" पंकज ने कहा "वह मर गया और आज तक यह पता न लग सका कि उसने रुपये कहाँ रखे थे-"
और इस प्रकार हम सब फक्कड़ हो गये-"
"तुम लोग फरामुज जी के पास क्यों पैसे जमा करते थे ?" हमीद ने पूछा। "वह हमें तीन प्रतिशत मासिक सूद देता था। इतना सूद तो कोई बैंक नहीं दे सकता- I"
"बस यही अन्तर होता है सरकारी बैंक और इस प्रकार के बैंक में" हमीद ने कहा "इस प्रकार के बैंक मर जाते हैं मगर सरकार बैंक नहीं मरते-।"
फिर हमीद ने पैसे अदा किये। पंकज के लिये एक पैकेट सिगरेट और एक माचिस ली फिर दोनों बाहर निकल कर गाड़ी में बैठे और गाड़ी चल पड़ी।
“अभी तक मैंने आपसे आपका नाम नहीं पूछा - " पंजज ने कहा।
"अपने खाने ही में रहो -" हमीद ने झल्ला कर कहा । "जी अच्छा - " पंकज ने शुष्क स्वर में कहा “मगर मेरी धृष्टता क्षमा कीजियेगा—किसी को भोजन कराने या किसी को किसी प्रकार की सहायता करने के बाद इस प्रकार का दुर्व्यवहार उचित नहीं हुआ करता-"
"क्या अब तुम मुझे नैतिक शास्त्र पढ़ायोगे ?"
"जी नहीं एक बात थी जो कह दी" पंकज ने कहा "अगर आप अपना नाम बता देते या अपने बारे में कुछ बता देते तो कदाचित मैं दुबारा भी कभी आपसे मिल सकता कदाचित आपके किसी काम आ सकता-
"मेरा नाम हमीद है" हमीद ने कोमल स्वर में कहा "अगर कभी मिलना हो तो सी० आई० डी० आफिस चले आना ।" पंकज ने फिर कुछ नहीं कहा और हमीद ने कार की गति कम कर दो—इसलिये कि पंकज को नीलम हाउस उतरना था और नीलम हाउस अब अंधेरे में भी डूवा हुआ नजर आने लगा था। हमीद ने घड़ी पर नजर डाली। ढाई बज चुके थे ।
"आश्चर्य है-" पंकज बड़बड़ाया 'प्रसिद्ध तो यह है कि नीलम हाउस में कभी अन्धेरा नहीं रहता — मगर मैं अन्धेरा ही देख रहा था।
"अच्छा-अब उतरो -" हमीद ने नीलम हाउस के फाटक के सामने कार रोकते हुये कहा ।
उसी समय वातावरण में कई चीखे गूंजी जिनमें एक चीख हमीद को जानी पहचानी सी मालूम हुई थी। वह गाड़ी का दरवाजा खोल खुद भी नीचे उतर आया और खुले फाटक से कम्पाउन्ड में देखने लगा।
कई चीखें फिर उभरी और ऐसा लगा जैसे कम्पाउन्ड में कुछ लोग ईधर से उधर भाग दौड़ रहे हों । पंकज ने जल्दी जल्दी अत्यन्त संक्षेप में नीलम हाउस के बारे में उसे बताया। हमीद ने टार्च जला कर प्रकाश कम्पाउन्ड के अन्दर डाला । पुलिस वाले कम्पाउन्ड में इधर से उधर दौड़ते फिर रहे थे। नीलम हाउस में घुसने का साहस किसी को नहीं हो रहा था।
इसके बाद फिर कई चीखे उभरी और हमीद ने पंकज से कहा। "यह वही ड्रामा तो नहीं हो रहा है जो अभी तुमने मुझे बताया है?"
"लगता तो ऐसा ही है- " पंकज ने कहा ।
"तो फिर चलो मैं भी जरा उन मुर्दा आत्माओं का डान्स देखना चाहता हूँ-" हमीद ने कहा और कार लॉक करके पंकज के साथ देव कम्पाउन्ड में दाखिल हो गया। वह बहुत तेज चल रहा था। पंकज उसके पीछे था। उसके बाद कोई चीख नहीं उभरी थी और सारे सिपाही इमारत में दाखिल हो गये। अचानक हमीद को कम्पाउन्ड के अन्दर दूसरी ओर एक ऐसी परछाई नजर आई जो उसकी समझ में रहस्य पूर्ण थी। उसने परछाई की और टार्च का प्रकाश फेंका। यद्यपि प्रकाश उस परछाई पर नहीं पड़ता मगर हमीद को इतना अनुमान हो गया कि वह कोई औरत है। वह चार दिवारी की ओर भागा जा रहा था। हमीद पंकज को छोड़ कर उसी ओर दौड़ा—और प्रथम इसके कि वह औरत दीवार फांदती हमीद ने उसकी कलाई पर हाथ डाल दिया और गरज कर बोला ।
"खबर्दार ! चीखना नही "मुझे छोड़ दो -" औरत ने हाँफते हुये कहा ।
हमीद ने उसके चेहरे पर टार्च का प्रकाश डाला । वह कमसिन थी और चेहरे पर भोलापन था - ऐसा भोलापन कि हमोद प्रभावित हुये बिना न रह सका ।
"तुम कौन हो वह कह रही थी "मुझे छोड़ दो- तुम नहीं जानते - अगर मैं यहाँ देख ली गई तो मेरी बहुत' 'बड़ी बदनामी होगा -"
"तुम हो कौन ?" हमीद ने पूछा ।
"तुम पता नोट कर लो मेरे घर पर आकर मुझ से मिल लेना । जो मांगोगे वह मैं तुम्हें दूंगी - मगर इस समय मुझे जाने दो।"
हमीद को वह पहले ही रहस्य पूर्ण मालूम हुई थी और अब उसकी यह बातें - हमीद की दिलचस्पी और बढ़ गई—उसने कहा ।
"ठीक है—अपना नाम और पता बताओ।"
'मेरा नाम फिरोजा है। मैं फरामुज जी की लड़की हूँ । तुम मुझ से तेरह अर्जुन पूरा में मिल सकते हो।"
हमीद ने यह नाम पहले ही से सुन रखा था – इसलिये नाम वालो को इस स्थिति में देख कर वह एक क्षण के लिये बौखला उठा और फिर प्रथम इसके कि वह कुछ सोचता या कहता फिजा ने फटके के साथ अपनी कलाई छुड़ाई और बार दवारों पर हाथ रख कर दूसरी और कूद गई ।
अगर हमीद चाहता तो उसे फिर पकड़ सकता था मगर उसने जानबूझ कर उसे जाने दिया था फिर वह कोठो की ओर बढ़ा पंकज अब नजर नहीं आ रहा था— अन्धेरा भी इतना गहरा था कि उसके दिखाई देने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता था हो वह यह अवस्य देख रहा था कि पुलिस वाले कोठी के अन्दर से निकल रहे हैं और उन्होंने दो आदमियों को कन्धों पर लाद रखा है।
अचानक सारी रोशनियां जल उठीं और हमीद ने देखा कि सिपाहियों ने जिन दो बेहोश आदमियो को कन्धों पर लाद रखा है वह इन्स्पेक्टर आसिफ और अमर सिंह हैं। "अरे — कैप्टन – आप –" सुरेश ने कहा "आप यहां कैसे कब आये ? "
"इमारत के अन्दर कोई है?" हमीद ने पूछा । "कोई नहीं — या फिर बहुत सारे लोग" वर्मा ने अर्थ पूर्ण ढंग से कहा ।
"इन दोनों को क्या हुआ है " हमीद ने पूछा ।
"बेहोश हो गये हैं—हालत ठीक नहीं है। हम इन्हें हास्पिटल ले जा रहे हैं । विवरण फिर सुनना..." वर्मा ने कहा और सब के साथ फाटक की ओर बढ़ गया ।
हमीद ने भी उसे रोक कर विवरण पूछना इसलिये उचित नही समझा कि विवरण तो फिर मालूम हो सकता था, मगर कोठी का यह वातावरण तो फिर नहीं मिल सकता था— इसलिये वह कोठी के अन्दर दाखिल हो गया । सरसरी तौर पर हर कमरे को देखता हुआ डाइनिंग हाल की ओर बढ़ा जिसके सामने वह मनहूस कमरा था । उसे यह नहीं मालूम था कि यह वही कमरा है जहां से सारी विपत्तिय आरम्भ होती हैं । उसने तो जिस प्रकार दूसरे कमरे देखे थे उसी प्रकार उस मनहूस कमरे को भी देखना चाहा था मगर जैसे ही उस कमरे के दरवाजे के निकट पहुँचा उसे एक आवाज सुनाई दी ।
"खबर्दार हमीद । कमरे में मत जाना।" आवाज़ ऐसी ही थी कि हमीद के पांव अपने आप रुक गये । उस मुड़कर देखा डाइनिंग हाल में कर्नल विनोद खड़ा मुस्कुरा रहा था ।
***
"अरे ! आप यहां भी मौजूद हैं- आश्चर्य है-" हमीद ने कहा ।
"मेरा यहां मौजूद होना उतना आश्चर्य जनक नहीं है जितना तुम्हारा यहां पाया जाना...” विनोद ने हसते हुये कहा...."मैं तो यह समझ रहा था कि तुम अपने कमरे में लम्बी तान कर सो रहे होगे।'
"शामत कह कर नहीं आती..." हमीद ने कहा फिर विनोद के पूछने पर पंकज की कहानी सुना डाली ।
"तो वह गया कहाँ ?” विनोद ने पूछा।
"मालूम नहीं-" हमीद ने कहा, "वैसे उसे नूरा के क्वार्टर में होना चाहिये।"
"मुझे विश्वास नहीं कि वह वहाँ होगा—वैसे चलो देख लें।”
"इस कमरे की तलाशी नहीं लीजियेगा-" हमीद ने पूछा ।
"इस समय नहीं कल सवेरे देखा जायेगा – आओ चलें। विनोद कहता हुआ डाइनिंग हाल से बाहर निकल आया और हमीद को लिये हुये सर्वेन्ट क्वार्टर्स की ओर बढ़ा ।
"तुम्हें पंकज को नहीं छोड़ना चाहिये था" विनोद ने कहा । "आप ठीक कह रहे हैं— मगर हुआ यह था कि।"
"एक लड़की मिल गई, इसलिये पंकज की ओर से तुम्हारा ध्यान हट गया था-" विनोद ने बात काट कर कहा ।
“कमाल है— आज मालूम हुआ कि लड़कियों के मामिले में आप परोक्षज्ञानी हैं-" हमीद ने लहक कर कहा "क्या मुझसे पहले वह आप से मिल चुकी थी ?" विनोद रुक गया और बोला ।
"बदर ! मैंने तो यह बात तुम्हें खुश करने के लिये कही थी ताकि इस कड़कड़ाती सर्दी में तुम्हारी खोपड़ी जमने न पाये बल्कि पिघली रहे- मगर तुम्हारी बातों से यह साबित हो गया कि कोई लड़की तुम्हें अवश्य मिली थी— अब जल्दी से उसके बारे में बता डालो "
हमीद ने पूरी कहानी सुना डाली । विनोद कुछ क्षण तक सोचता रहा फिर बोला ।
'मुझे यह कहते हुये अफसोस हो रहा है कि औरतों को पहचानने का दावा करने वाले हमीद साहब को उस लड़की के चेहरे पर भोला पन नजर आया था -।"
"क्या मतलब ?” हमीद ने चौंक कर पूछा ।
"वह फिरोजा नहीं थी हमीद साहब... ” विनोद ने कहा "कोई दूसरी लड़की थी जो तुम्हें चरका दे गई।"
"आप तो इसी प्रकार उड़ाया करते है-" हमीद ने बुरा मान कर कहा ।
“हाथ कंगन को आरसी क्या कप्तान साहब ! कल तेरह अर्जुन पूरा में चल कर देख लेना....” विनोद ने कहा मुझे खुद इस बात का दुख है कि मैंने थापुर को तो चेक कर लिया था— मगर फिरोजा को न्यूयार्क में न देख सका था । "
"ठीक है – आप से बहस कौन करे यह बताइये कि नूरा को देखियेगा या नहीं ?"
"अवश्य देखूंगा—आओ विनोद ने कहा और फिर सर्वोन्ट द क्वार्टर्स को ओर बढ़ने लगा ।
नूरा के कमरे के सामने बरामदे में बल्ब जल रहा था और दो सिपाही उसके क्वार्टर के अगल बगल खड़े थे वह चौकन्ने नजर आ रहे थे। इन दोनों को देखते ही एक ने कहा ।
"कौन है-?"
मगर यह दोनों मौन ही रहे—और जब बरामदे में पहुँचे तो एक ने बौखला कर इन दोनों को लूट दिया। यह देख कर दूसरे ने भी लूट झाड़ दिया । कदाचित दूसरा वाला इन दोनों को नहीं पहचानता था ।
'मिस नूरा है?” विनोद ने पहले वाले से पूछा ।
"जी हाँ श्रीमान जी―सो रही हैं-।'
"अभी जो उत्पात हुआ था उस समय भी उनकी आँख नहीं खुली थी ?"
"जी नहीं वह सिद्धान्त प्रिय है । सन्ध्या को ईश उपासना करने के बाद से जाती हैं और ठीक पांच बजे उठ जाती हैं।"
"तुम्हें यह कैसे मालूम?” विनोद ने पूछा । "पिछले दस दिनों से हम लोगों की डयुटी यहीं लग रही है।"
"सिने ब्युटी लगाई है?"
"एस० पी० साहब ने ।"
"तुम लोग यहां कब आ जाते हो ?"