(4)
"श्री मान जी !" युवक ने दयनीय स्वर में कहा "केवल इतनी सी अभिलाषा है कि आप अपनी कार में मुझे स्थान दे दें―"
"क्यों स्थान दे दूँ – यह मेरी अपनी गाड़ी है—टेक्सी नहीं है- समझे - चलो मरो―" हमीद ने कहा और उसे खींचता हुआ गाड़ी तक लाया-- फिर दरवाजा खोल कर उसे अगली ही सीट पर ढकेल दिया और खुद दूसरी ओर के दरवाजे से अन्दर दाखिल होकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट कर दी। साथ ही साथ वह बड़बड़ाता भी जा रहा था।
" जिसे देखिये उस पर आजकल नैतिक्ता का भूत सवार है। समाज निर्बल और धन हीन वर्ग की सहायता के लिये हर आदमी नारा गाता है मगर कोई यह नहीं देखता कि यह वर्ग करता क्या है | यही देखिये- क्या यह भी कोई नैतिक्ता है— बीच सडक पर खड़े गये कि हमको बैठाओ नहीं तो हम जान दे देंगे—क्यो जी ! तुम्हारा नाम क्या है ?"
"पंकज" युवक ने कहा ।
"शहर जा रहे हो ?" " जी हाँ "
"मरने पर क्यों आमादा थे ?" हमीद ने पूछा । "जाड़े से ठिठुर कर मर जाने से अच्छा यही था कि मैं आपकी गाड़ी से दब कर मर जाता। आप ही सोचिये कि अगर आप ने मुझे अपनी गाड़ी में न बैठा लिया होता तो क्या इस ठण्डी रात में ठिठुर कर मर न जाता ।"
"कया करते हो ?" हमीद ने पूछा ।
"लग भग दो महीने से बेकार हूँ।"
" कहां तक शिक्षा प्राप्त की है ?"
"ग्रेजुट हूँ श्रीमान - "
हमीद ने इस बार बड़े गौर से पंकज की ओर देखा और उसे यह स्वीकार कर लेने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ कि अगर पंकज को नहला घुला कर ढंग के कपड़े पहना दिये जायें तो वह विश्व विद्यालय का स्टुडेन्ट नजर आने लगेगा । चेहरा भी अच्छा खासा था और आयु त्रीय सत्ताईस वर्ष से अधिक नहीं थी ।
"इस बेकारी से पहले क्या करते थे ?" हमीद ने पूछा ।
"बैरा था-" पंकज ने कहा ।
"तब तो अच्छी खासी कमाई कर लेते रहे होगे !"
"जी हाँ―सात सौ रुपये मासिक वेतन मिलता था। नाश्ता और -दोनों समय का भोजन मिलता था । गर्मियों में डेकरान का सूट और बाड़े में सरज का सूट जो जाड़ा आरम्भ होने से पहले ही मिल जाता
"किस होटल में थे ?" हमीद ने विस्मय के साथ पूछा । "किसी होटल में नहीं था-"
"फिर ?"
"नीलम हाउस में था-"
"ओह -" हमीद ने होंठ सिकोड़े "अत्र नीलम हाउस की क्या दशा । तुमने नौकरी क्यों छोड़ दी -?"
"आपके इस प्रश्न से यह साबित हो रहा है कि आप विगत दो महीनों से इस शहर में नहीं थे-कब आये हैं ।"
"वाह दोस्त !" हमीद ने हसते हुये कहा "आदमी विवेकी मालूम होते हो। तुम्हारी धारणा बिल्कुल ठीक है। मैं दो महीने इस शहर से बाहर रह कर अब वापस आ रहा हूँ । नीलम हाउस के बार में समाचार पत्रों में पढ़ा था। बापसी में भी कुछ बातें मालूम हुई थीं-मगर अब मैं तुमसे विवरण सुनना चाहूँगा-"
पंकज ने पूरे विवरण के साथ वह बातें बतानी आरम्भ कर दीं जो नीलम हाउस के सम्बन्ध में प्रसिद्ध थीं। फिर उसने वह कहानियाँ भी छेड़ दीं जो फराज जी - नीलम - फिरोजा और शापुर इत्यादि के सिलसिले में प्रसिद्ध थी ।
हमीद बड़ी दिलचस्पी से पंकज की बातें सुनता रहा । प्रकट है कि वह पंकज से यह तो नहीं कह सकता था कि नीलम हाउस ही के सम्बन्ध में उसे और कर्नल विनोद को लन्दन और न्यूयार्क का चक्कर लगाना पड़ा था और न यही बता सकता था कि आज सवेरे राजधानी में कदम रखते ही अब तक नीलम हाउस ही के चक्कर में उसकी और कर्नल विनोद की भाग दौड़ होती रही थी ।
विनोद ने अपनी वापसी गुप्त रखी थी- और तीसरे पहर ही में हमीद को ले कर वह शिकार के बहाने तारा झील तक गया था— मगर वहां हमीद को अकेला छोड़कर खुद न जाने कहाँ गायब हो गया था। हमीद वहाँ अकेले पड़ा पड़ा बोर होता रहा था-फिर रात में ग्यारह बजे उसे ट्रान्समीटर पर विनोद का आदेश मिला था कि वह शहर के लिये रवाना हो जाये-यह भी एक कौतुक ही था कि विनोद खुद शहर पहुँच चुका था मगर हमीद ने अब इस प्रकार की बातों पर सोचना ही छोड़ दिया था कि आखिर तारा झील से किस प्रकार विनोद शहर पहुँचा होगा जब कि उसके पास गाड़ी भी नहीं थी ।
इसी प्रकार एक बार जब विनोद पहाड़ी इलाके से बिना गाड़ी के नगर पहुँच गया था और इस पर कुछ मित्रों ने आश्चर्य प्रकट किया था तो हमीद ने कहा था ।
"भला इसमें आश्चर्य की क्या बात है। जब आदमी चाँद तक पहुँच सकता है तो कर्नल विनोद शहर नहीं पहुँच सकते -"
पंकज मौत हो गया था। हमोद ने लम्बी सी "हूँ" की मगर जब से पंकज नहीं बोला तो हमीद ने कहा ।
"क्यों भाई ! मौन क्यों हो गये - "
"अब बताने के लिये कुछ नहीं रह गया- "
"इधर कहाँ से आ रहे थे ?" हमीद ने पूछा ।
" दिहात में अपने एक सम्बन्धी के यहाँ गया था। इस दुनिया में दूर के कुछ सम्बन्धियों के अतिरिक्त मेरा और कोई नहीं है श। न माँ बाप न भाई बहन न ओर कोई नौकरी मिलने पर मैं दो सौ रुपये मासिक वहाँ भेजा करता था जहाँ से आ रहा हूँ । बेकार हो जाने पर जब मैं वहाँ गया तो एक ही महीने में उन लोगों के लिये बोझ बन गया आज दो दिन से खाना भी नहीं खाया-सिगरेटें भी खत्म हो गई ।
"हूँ तो अब तुम्हें सिगरेट भी पिलाऊँ" हमीद ने फाड़ खाने वाले भाव में कहा ।
"सन्ध्या को एक उपाय दिमाग में आया । गाँव से पैदल चल खड़ा हुआ। इस रूट पर एक ही बस चलती है और वह छः बजे चली जाती मैं सात बजे पहुँचा था। मैं टीन के सायबान में पड़ा रहा था । फिर ख्याल आया कि रात भर यहां पड़े रहने से तो अच्छा यह है कि पैदल ही चलूं-चलता रहूँ-सम्भव है कोई दयालु आदमी लिफ्ट दे दे । इस विचार से उठकर चल दिया था मगर यह मेरी अभाग्यता ही थी कि कोई गाड़ी ही नहीं गुजरी। दो ट्रक अवश्य गुजरे थे मगर वह मेरे हाथ उठाने और चीखने चिल्लाने के बाद भी नहीं रुके थे ठण्डक और थकावट से चूर हो गया था। मैंने निश्चय कर निया कि अब जो गाडी जायेगी उसके ठीक सामने खड़ा हो जाऊंगा या तो वह मुझे कुचलती हुई निकल जायेगी या फिर मुझे बैठा लेगी–इस निश्चय के बाद सब से पहले जो गाड़ी दिखाई दी वह आप ही की थी।"
"कहां जाओगे ?" हमीद ने पूछा ।
"नीलम हाउस - " युवक ने कहा ।
"इतनी रात को " हमीद ने चौंक कर पूछा ।
"जी हाँ - अब मेरे मन से भय दूर हो गया है ।"
"बड़ी अच्छी बात है— मगर नीलम हाउस तो वीरान पड़ा हुआ है।
उसमें अब कोई नहीं रहता ।"
"जी नहीं-नूरा नाम की एक लड़की अब भी वहाँ रहती है।"
"तो नीलम हाउस में उसी से मिलने जा रहे हो ?" हमीद ने पूछा ।
"जी हाँ―"
"क्या कुछ ऐसा वैसा - मतलब प्रेम वैम का चक्कर है ?" "जी नहीं— मुझे उससे केवल यह पूछना है कि वह मेरी सहायता कर सकती है या नहीं-- "
"एक बात समझ में नहीं आ रही है दोस्त" हमीद ने कहा फीलम हाउस को भूत ग्रस्त समझ कर सब छोड़ भागे - फिर तुम्हारी यह नूरा वहाँ क्यों पड़ी हुई है ?"
"यह बात भी मैं उससे पूछूगा -" पंकज ने कहा “मगर सच्ची बात यह है श्रीमान जी कि उसके नीलम हाउस न छोड़ने पर मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं है—।"
"क्यों ?" हमीद ने पूछा।
"इसलिये कि नीलम हाउस में हम जितने लोग भी काम कर रहे थे उनमें नूरा ही एक ऐसी लड़की थी जिसे अपने ऊपर असाधारण तौर से भरोसा था और जिसके अन्दर भय नाम की किसी वस्तु का दूर दूर तक कहीं पता नहीं था इसके अतिरिक्त वह अत्यन्त सिद्धान्त प्रिय और धर्मिक लड़की है-अब आप ही सोचिये कि जो धर्म का भी पक्का हो – जिसका जीवन एक विद्धान्त के अन्तगर्त व्यतीत हो रहा हो और जिसके अन्दर आत्म विश्वास भी पूर्ण रूप से मौजूद हो—वह किसी भी वस्तु से कैसे डर सकता है ।" हमीद बड़ी दिलचस्पी से सुन रहा था। पंकज कहता जा रहा था ।
"जी फराज जी की मौत के बाद जब हम लोग नीलम हाउस छोड़ रहे थे तो मेरे और नूरा के मध्य इस प्रकार की बातें हुई थी। मैंने कहा था।
"नूरा- तुम मेरे साथ चलो - "
"दिल तो मेरा भी यही चाहता है पंकज" उसने कहा था "सब लोग चले जायेगे तो अकेले मेरा दिन यह बहुत घबरायेगा ।" "इसीलिये तो कह रहा हूँ कि मेरे साथ चलो - " मैं ने कहा था।
"कठिनाई तो यही है कि मैं नीलम हाउस छोड़ कर नहीं जा सकती" उसने कहा था ।
"कठिनाई !" मैं ने विस्मय के साथ कहा था "कैसी कठिनाई ?"
"मुझे मिस्टर फराज जी ने नोकर रखा था —जब तक वह खुद मुझे अलग नहीं करेंगे तब तक मैं कैसे नौकरी छोड़ सकती हूँ" नूरा ने कहा था।
"मिस्टर फराज जी तो दूसरे संसार में पहुँच चुके हैं और यह तो तुम जानती हो हो कि इस संसार से दूसरे संसार की यात्रा करने वाला- पलट कर इस संसार में नहीं आ सकता-फिर वह तुम्हें नौकरी से अलग कैसे करेंगे - " मैंने कहा था ।
"तो फिर नीलम हाउस छोड़ कर मेरा जाना भी असम्भव है।"
नूरा ने कहा था । "त्याग पत्र दे दो-" मैंने कहा था।
"किसे त्याग पत्र दूँ –?" उसने पूछा था । "शापुर को मैंने कहा था- इस पर नूरा ने कहा था ।
"प्रथम तो मैं बापू को जानती नहीं-दूसरे यह कि शापूर मिस्टर फराज की जायदाद का मालिक तो हो सकता है-मगर क्या मिस्टर रामु ने शापूर को इसका भी अधिकार दिया था कि वह नौकरों के स्वान पत्र भी स्वीकार कर सकता है।
"उसके इस तर्क पर मैं ना उठा था और फिर उस से कोई बात नहीं की थी मगर जब जब सोचता हूँ तो यह एहसास होता है कि नूरा विचित्र...."
"बूढी और अनुभवी औरते इसी प्रकार की बातें करती हैं-" हमीद ने बात काट कर कहा ।
"आप भूल रहे हैं श्रीमान जी" पंकज ने कहा "मैं पहले ही कह चुका हूँ कि वह लड़की है। देखने में वह सोलह सतरह वर्ष से अधिक की नहीं मालूम होती मगर एक दिन उसने खुद मुझ से कहा था कि उनकी आयु पचीस वर्ष की है।"
"कुरुपता के कारण औरत जब आत्महीनता का शिकार हो जाती है तो इसी प्रकार की विवेक पूर्ण बातें करने लगती है। मेरा विचार है कि नूरा भी...।"
"नहीं श्रीमान जी !" पंकज ने बात काट कर कहा 'आप की यह धारणा भी गलत है। फराज की कुरूप भिखारी तो सहन नहीं कर सकते थे फिर भला वह कुरुप नौकर कैसे रखते । नीलम हाउस की हर नौकरानी और नौकर सुन्दर थे और यदि नीलम हाउस में कभी नौकरों के मध्य सौन्दर्य का मुकाबिला होता तो नूरा ही को प्रथम घोषित किया जाता।"
हमीद ने सोचा चलो यह समस्या भी हल हो गई। विनोद ने उससे नूरा के बारे में अवश्य बताया यद्यपि विनोद की कही हुई बातों में ऐसी कोई बात नहीं थी जिसके आधार पर वह नूरा को देखने के लिये लालायित हो उठता-मगर फिर भी वह नूरा को देखना चाहता था और अब जब कि पंकज ने नूरा की इतनी प्रशंसा की वह सचमुच नूरा को देखने के लिये बेताब हो उठा - इसके अतिरिक्त वह का इसलिये आभारी भी हो गया था कि उसी के कारण नुरा के मामले में उसे इतनो सारी बातें मालूम हुई थीं। उसने पंकज से पूछा ।
"क्या फराज जी की कृपा दृष्टि नूरा पर विशेष रूप से थी ?"
"यह निर्णय करना अत्यन्त दुष्कर है कि उनकी विशेष कृपा दृष्टि किस पर थी। हम नौकरों तथा उनके परिवार वालों पर ही यह बात निर्भर नहीं करती थी बल्कि उनका हर मित्र भी यही महसूस करता था कि फरामुज जी जितना उसे चाहते हैं उतना किसी दूसरे को नहीं ।" "फरामुज जी की आयु क्या थी ?" हमीद ने पूछा। "देखने में तो वह किसी भी प्रकार पैंतालीस से अधिक के नहीं मालूम होते थे मगर लोगों का कहना यह था कि वह अपने जीवन का साठवां साल पूरा कर रहे हैं— केवल वही नहीं बल्कि उनके वंश का हर व्यक्ति अपनी वास्तविक आयु से दस-पन्द्रह और बीस वर्ष कम ही मालूम होता था और इसका एक ही कारण था-उत्तम जाती स्वास्थ्य ।"