एक थी नचनिया--भाग(१९) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(१९)

खुराना साहब जब वापस सबके पास लौटे तो सभी जुझार सिंह का जवाब सुनने के लिए उत्सुक थे,फिर खुराना साहब सबसे बोले....
"वो तो मालकिन से मिलना चाहता है,अब तो मालती को मेरी मालकिन बनकर जाना ही पड़ेगा"
"तो मुझे कब जाना है जुझार सिंह के पास आपकी मालकिन बनकर"?,मालती ने पूछा....
"उसने दो चार दिनों की मोहलत माँगी है,उसने कहा है कि दो चार दिन के बाद मैं उसे फोन करूँ तब वो मुझे अपना फैसला सुनाएगा",खुराना साहब बोले...
"तो फिर तब तक क्या करें"?,माधुरी ने पूछा...
"तब तक मालती को मालकिन बनने के तरीके सिखाओ,उसे सिखाओ की किसी रईस औरत की तरह कैसें सलूक किया जाता है,अमीर औरत का रूआब कैसा होता है,वो सामने वाले से कैसें बात करती है", खुराना साहब बोलें....
"लेकिन मैं ये सब कैसें सीख पाऊँगीं"?,मालती बोली...
"सब सीख जाओगी,बस मन में चाह होनी चाहिए",खुराना साहब बोलें....
"तो फिर कब से ये काम शुरू करना है? मतलब मालती को कब से रईस औरतों वाली बातें सिखानी है"?, रामखिलावन ने पूछा...
"आज से,मैं तो कहता हूँ कि अभी से तुम लोग इसे सब सिखाना शुरु कर दो",खुराना साहब बोले....
"तो पहले तो मालती भाभी के लिए एक सफेद बालों की विग का इन्तजाम करना होगा,उसके बाद महँगी रेशमी साड़ी और मोती वाला रानीहार भी तो चाहिए होगा,एक चश्मा और एक खूबसूरत सी छड़ी भी चाहिए होगी",माधुरी बोली...
तब कलकत्ता के थियेटर के मालिक अरिन्दम चटोपाध्याय बोले....
"तुम इसकी चिन्ता मत करो,इन सभी का इन्तजाम तो मैं कर दूँगा,बस तुम लोग मालती जी को अमीर औरत का व्यवहार करना सिखाओ",
और फिर सब इस काम भी पूरी एकाग्रता से जुट पड़े और दो चार दिनों में मालती ने सबकुछ सीख लिया और फिर इसके बाद खुराना साहब ने जुझार सिंह को टेलीफोन किया कि वो उससे मिलना चाहते हैं और इस बात के लिए जुझार सिंह राजी भी हो गया और फिर खुराना साहब ने एक रेस्तराँ में ये मीटिंग रखी...
बड़े रौब के साथ जुझार सिंह वहाँ पहुँचा और महँगी किराए की मोटर जिसका इन्तजाम अरिन्दम साहब ने करवाया था,उसमें मालती खुराना साहब के साथ पहुँची,मालती की वेषभूषा देखने लायक थी,वो सच में बूढ़ी रईस औरत लग रही थी,कमर झुकाकर छड़ी के सहारे वो धीरे धीरे आगें बढ़ रही थी और फिर रेस्तराँ की उस टेबल पर जा पहुँची जहाँ जुझार सिंह उन दोनों का इन्तजार कर रहा था.....
मालती वहाँ पहुँची तो खुराना साहब ने मालती का नकली परिचय देते हुए जुझार सिंह से कहा....
" ये हैं रुपतारा रायजादा,वैसें तो ये जोधपुर में रहतीं हैं लेकिन इन दिनों ये कलकत्ता आईं हुई थीं,यहाँ इनकी कुछ जमीनें हैं उसी का तकादा करने और मुझसे तो आप मिल ही चुके हैं",
"जी! नमस्कार !आप का नाम तो मुझे पता है आप इनके मैनेजर हैं खूबचन्द निगम जी,आपने उस दिन मुझे बताया था",जुझार सिंह बोला...
"तो फिर क्या सोचा आपने मेरे प्रस्ताव के बारें में",खूबचन्द निगम बने खुराना साहब ने पूछा...
"जी! आपका प्रस्ताव तो बहुत अच्छा है,लेकिन एक अड़चन है",जुझार सिंह बोला...
"जी! कैसीं अड़चन"?,खूबचन्द निगम साहब न पूछा....
"जी! मैं चाहता हूँ कि उस सिनेमाहॉल पर मेरा पचहत्तर प्रतिशत का अधिकार हो और मैं उसमें पचहत्तर प्रतिशत रकम भी लगाने के लिए तैयार हूँ,बोलिए अगर आपको मंजूर है तो बात आगें बढ़ाई जाएं",जुझार सिंह बोला....
ये सुनकर खुराना साहब खुश हो गए क्योंकि उन सभी के पास इतनी रकम थी भी नहीं कि वो उस सिनेमाहॉल में लगा पाएँ,तब रुपतारा रायजादा ने खूबचन्द से पूछा....
"मैनेजर साहब ! ये क्या कह रहे हैं,मुझे कुछ समझ नहीं आया",
तब खूबचन्द निगम साहब जुझार सिंह से बोलें....
"माँफ कीजिए! मालकिन जरा कान की कच्ची हैं,ऊँचा सुनती हैं,अब उम्र का तकाज़ा है साहब! नहीं तो एक जमाने में पूरी हवेली की जानकारी रखतीं थीं,क्या करें बुढ़ापे ने बेचारी को मजबूर कर दिया है",
"तो आप इन्हें समझा दीजिए कि मैं क्या कहना चाहता हूँ",जुझार सिंह खूबचन्द निगम साहब से बोला...
"हाँ! लीजिए! साहब! अभी समझाएँ देता हूँ",
और ऐसा कहकर निगम साहब रुपतारा रायजादा को जुझार सिंह की बात समझाने लगे तो रुपतारा रायजादा बिगड़ते हुए बोलीं....
"हमें गरीब समझ रखा है क्या? जो हम टुच्चे से सिनेमाहॉल में अपना रूपया नहीं लगा सकते,इसे बड़ा गुमान है अपने रुपयों का,बड़ा धन्ना सेठ बनता है",
" निगम साहब! ये आपकी मालकिन क्या कह रहीं हैं,मुझसे कैसें बात कर रहीं हैं"?
"जी! आप जरा ठण्डक रखें,मैं अभी इन्हें समझाए देता हूँ,बूढ़ी हो गई हैं ना ये इसलिए शायद ऐसी बातें कर रहीं हैं,आप जरा शान्त रहें,मैं इनसे बात करता हूँ",खूबचन्द निगम बने खुराना साहब बोले...
और फिर निगम साहब ने रुपतारा रायजादा बनी मालती से बात की तो वो बोलीं....
"ठीक है,इन्हें लगा देने तो सिनेमाहॉल में रुपया,लेकिन याद रहें सिनेमाहॉल का नाम तो रायजादा टाँकीज ही होगा",
"हाँ! मुझे मंजूर है,मैं भी नहीं चाहता कि उस टाकीज़ पर मेरा नाम हो,क्योंकि उस इलाके में डाकूओं का बड़ा आतंक है,किसी ने मुझे वहाँ गोली मारकर ढ़ेर कर दिया तो",जुझार सिंह बोला....
"तो फिर मैं ये प्रस्ताव पक्का समझूँ",खूबचन्द निगम साहब बोलें....
"आपको बड़ी जल्दी है इस काम के लिए",जुझार सिंह बोला...
"ऐसी कोई बात नहीं है साहब! मालकिन अक्सर बिमार रहतीं हैं,उनके जीते जी ये काम हो जाए तो ही अच्छा",खूबचन्द निगम साहब बोले...
"लेकिन पहले मैं इनके पोते से मिलना चाहूँगा,तभी बात आगें बढ़ेगी",जुझार सिंह बोला...
"जी! मैंने कहा ना कि वो विलायत में रहता है,उसका यहाँ आना जरा मुश्किल है",खूबचन्द निगम साहब बोलें...
"लेकिन उसकी रजामंदी भी जरूरी है क्योंकि इनके बाद वो ही इनकी मिल्कियत का मालिक है,अगर सिनेमाहॉल बन जाने के बाद मिसेज रायजादा स्वर्ग सिधार गई और उसने सिनेमाहॉल को भी अपने कब्जे में लिया तो फिर मैं क्या करूँगा,क्योंकि सिनेमाहॉल पर तो रायजादा टाँकीज लिखा होगा",जुझार सिंह बोला...
"जी! आपकी बात भी सही है तो फिर मैं कोशिश करता हूँ उसे विलायत से बुलवाने की",खूबचन्द निगम साहब बोले...
"हाँ! ये काम जरा जल्दी हो जाए तो ही अच्छा क्योंकि उधर मैं इनके पोते से मिला और इधर मैं सिनेमाहॉल का काम शुरू करवा दूँगा",जुझार सिंह बोला....
"जी! बहुत अच्छी बात है,मैं आपकी बात जल्द पूरी करने की कोशिश करूँगा",खूबचन्द निगम साहब बोले...
"जी! बहुत अच्छा! आपने कुछ लिया ही नहीं,चलिए कुछ आर्डर करते हैं,मुझे तो बहुत जोरों की भूख लग रही है",जुझार सिंह बोला....
तब मन ही मन खुराना साहब बुदबुदाए ...
"हमारा इतना खून तो पी चुका है,अब खाना भी खाएगा",
"जी! कुछ कहा आपने",जुझार सिंह ने पूछा....
"जी! नहीं!",खुराना साहब बोलें....
और फिर सभी ने अपनी पसंद का खाना आर्डर किया गया .....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....