एक थी नचनिया--भाग(२०) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(२०)

जब सभी का मनपसंद खाना आ गया तो सभी खाने लगें,रुपतारा रायजादा बनी मालती ने खूब मसालों वाला खाना आर्डर किया था,जैसें की भरवाँ शिमला मिर्च,मिर्च के पकौड़े,चटपटी दाल और तीखी चटनी,जो वो आराम से खा भी रही थी,उसका खाना देखकर जुझार सिंह खूबचन्द निगम बने खुराना साहब से बोला....
"ये उम्र और ऐसा खाना,इन्हें हज़म कैसें हो जाता है?",
तब रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली...
"क्या कहा,मुझे सुनाई नहीं दिया"
तब खूबचन्द निगम साहब रुपतारा रायजादा से बोलें....
"मालकिन! ये फरमा रहें हैं कि इस उम्र में आप ऐसा मसालेदार खाना कैसें खा लेतीं हैं"?,
"नामुराद! नज़र लगाता है मेरे खाने को,होटल का बिल तो मैं चुका रही हूँ ना! तो फिर तू क्यों चिन्ता से मरा जा रहा है", रुपतारा रायजादा बोलीं....
"ऐसी कोई बात नहीं है,मैं तो बस यूँ ही कह रहा था",जुझार सिंह बोला....
तब खूबचन्द निगम साहब बोलें....
"हमारी मालकिन राजस्थानी से हैं ना तो राजस्थान में बहुत तीखा और मिर्च मसालोंदार खाना खाते हैं, इसलिए शायद इन्हें ऐसा खाना खाने की आदत है",
"ओह...तो ये बात है",जुझार सिंह बोला...
"जी! ऐसी ही बात है",खूबचन्द निगम साहब बोलें....
और फिर सभी ने खाना खतम किया तो बैरा बिल लेकर टेबल पर आ गया तो रुपतारा रायजादा ने बिल अदा किया और बैरा को अच्छी खासी टिप भी दी,जिससे जुझार सिंह को यकीन हो गया कि वो सच में अमीर औरत है,बिल अदा करने के बाद रुपतारा रायजादा जुझार सिंह से बोली....
"अब आगें से कभी भी मेरे साथ खाना खाना तो तुमने अगर मेरे खाना खाते वक्त रोक टोक की तो मुझसे बुरा कोई ना होगा,मैं बूढ़ी जरूर हो गई हूँ लेकिन मेरा हाजमा अभी भी बिल्कुल दुरूस्त है",
"माँफ कीजिए! मिसेज रायजादा ! आइन्दा से ये गलती फिर कभी नहीं होगी",जुझार सिंह बोला....
"ठीक है! चलिए! निगम साहब! अब चलते हैं,अब जब मेरा पोता विलायत से आ जाऐगा तो तभी इनसे मिलने आऐगें",रुपतारा रायजादा बोलीं...
"जी! अब तभी मुलाकात होगी",निगम साहब बोलें...
और फिर निगम साहब ने जुझार सिंह से हाथ मिलाकर जाने की इजाज़त ली और फिर रूपतारा रायजादा और निगम साहब मोटर में बैठकर चले गए,इधर जुझार सिंह भी अपनी मोटर में बैठकर अपने घर चल आया....
मालती और खुराना साहब जब सभी के पास पहुँचे और मालती की एक्टिंग का पूरा हाल सुनाया तो सभी हँस हँसकर लोटपोट हो गए और जब उन सबके बीच रेस्तरांँ में बीती सारी बातें पूरी हो चुकीं तो खुराना साहब बोलें....
" अब हम रुपतारा रायजादा के पोते को कहाँ से लाएँ"?
"हाँ! ये तो विकट समस्या खड़ी हो गई,पोता देखने में भी ऐसा होना चाहिए जो खूबसूरत भी हो और पढ़ा लिखा भी,जिसे अंग्रेजी भी आती हो",रामखिलावन बोला...
"अब ऐसे इन्सान को कहाँ से ढूढ़कर लाएं",दुर्गेश बोला...
"अगर मैं इस काम के लिए एक नाम सुझाऊँ तो",माधुरी बोली....
"कौन है वो ,कुछ बताएगीं भी"?रामखिलावन बोला....
"अपने डाक्टर बाबू!",माधुरी बोली...
"तुम कहीं मोरमुकुट सिंह की बात तो नहीं कर रही हो",रामखिलावन बोला...
"हाँ! वही! वें पढ़े लिखें भी हैं और उन्हें सारी बात भी पता है,इसलिए वें फौरन ही रुपतारा रायजादा के पोता बनने को तैयार हो जाऐगें",माधुरी बोली...
"हाँ! और वो लगते भी तो राजकुमारों की तरह हैं",रामखिलावन बोला....
"तो फिर हम उनसे बात करके देखें",माधुरी बोली...
"मुझे लगता है कि हम दोनों को एक दो दिनों के लिए उनके पास जाना चाहिए,तब हम उन से पूरी बात कहकर पूछते हैं कि क्या वो हमारा साथ देने के तैयार हैं और इसी बहाने कस्तूरी का हाल भी पता कर आऐगें",रामखिलावन बोला...
"हाँ! यही ठीक रहेगा",मालती बोली...
"तो तब तक मेरे बिना यहाँ का मामला कैसें सम्भालेगा,मेरा यहाँ रहना तो बहुत जरूरी है",?,माधुरी ने कहा...
"तब मैं और मालती जाते हैं वहाँ,तुम और दुर्गेश खुराना जी के साथ यहीं रहो",रामखिलावन ने माधुरी से कहा...
"हाँ! क्योंकि अगर मैं वहाँ गई तो मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा,मैंने बड़ी मुश्किल से शुभांकर को अपने चंगुल में ले पाया है,अभी मेरा उससे मिलते रहना बहुत जरूरी है",माधुरी बोली.....
"तो फिर ये तय हो गया कि मैं और मालती ही जाऐगें डाक्टर बाबू के पास",रामखिलावन बोला....
और उसी रात रामखिलावन और मालती मोरमुकुट सिंह से मिलने के लिए निकल पड़े और इधर माधुरी शुभांकर को रिझाने में लगी रही,आज शाम शुभांकर ने माधुरी को मिलने के लिए एक बगीचे में बुलाया था और माधुरी पीले रंग के सलवार कमीज में शुभांकर से मिलने पहुँची,उसने हाथों में पीली चूड़ियाँ और पैरों में पायल पहन रखी थी,रह रहकर कभी उसकी चूडियांँ खनक जातीं तो कभी पायल झनक जाती,माधुरी शुभांकर के पास जाकर खड़ी हुई तो वो उसे एकटक देखता ही रह गया,उसने एक पल के लिए भी अपने पलकें नहीं झपकाई तो माधुरी ने शुभांकर से पूछा....
"शुभांकर बाबू! ऐसे क्या देख रहे हैं"?,
"जी! आपको देख रहा हूँ",शुभांकर बोला...
"भला! मुझ में ऐसा क्या है देखने लायक"?,माधुरी ने पूछा....
"अजी! ये पूछिए कि क्या नहीं है आप में? आपकी आँखों की झील सी गहराई,चेहरे पर गुलाबों सी रंगत,काली घटाओं सी रेशमी जुल्फें और आवाज़ में कोयल की मिठास है",शुभांकर बोला...
"और मेरे थप्पड़ में बिजली सी कड़क भी है",माधुरी बोली....
"आप मुझे थप्पड़ मारेगीं,ऐसा क्या गुनाह किया है मैंने",?शुभांकर ने पूछा...
"किसी लड़की की यूँ सरेआम तारीफ़ करना गुनाह ही तो है",माधुरी बोली....
"अगर ये गुनाह है तो ऐसा गुनाह हर रोज करने को जी चाहता है",शुभांकर बोला....
"अच्छा! याद रहे,गुनाहगार को सजा भी भुगतनी पड़ती है",माधुरी बोली....
"अजी! इस गुनाह के लिए तो हम हर सजा भुगतने को तैयार हैं,सजा मुकर्रर तो कीजिए,सजा के डर से पीछे हटना हमारी आदत में शुमार नहीं है मोहतरमा!",शुभांकर बोला...
"जनाब तो सच्चे आशिक़ मालूम होते हैं",माधुरी बोली....
"जी! बिल्कुल! क्योंकि हमें झूठा आशिक बनने का कोई शौक़ नहीं",शुभांकर बोला...
"ये आज आप कैसीं बातें कर रहे हैं शुभांकर बाबू!",माधुरी ने शरमाते हुए पूछा....
"जैसी एक आशिक को करनी चाहिए वैसी ही",शुभांकर बोला...
ये सुनते ही माधुरी फिर से शरमा गई और बोली...
"एक बार फिर से सोच लीजिए"
तब शुभांकर बोला...
"अजी! सोच लिया,बहुत सोच समझकर ही मैनें ये फैसला लिया है,अगर आपको एतराज़ ना हो तो क्या मैं
एक शेर अर्ज कर सकता हूँ....
शुभांकर की बात सुनकर माधुरी ने हाँ में सिर हिलाया,तब शुभांकर ने अपना शेर अर्ज करते हुए कहा...

उफ्फ! तेरी पायलों की छुनछुन
गज़ब तेरी चूड़ियों की खनखन
चारों ओर केवल शोर ही शोर...
समझ में नहीं आता कि दिल
सम्भालूं या होश....!!

शेर सुनकर माधुरी बोली...
"अब तो आप शायरी भी करने लगे",
"जी! सब आपकी मौहब्बत का असर है",शुभांकर बोला....
"मौहब्बत! और मुझसे",माधुरी बोली....
"क्या आपको मुझ पर और मेरी मौहब्बत पर भरोसा नहीं "?,शुभांकर ने पूछा...
"भरोसा तो है शुभांकर बाबू! लेकिन मैं आपके लायक नहीं हूँ",माधुरी बोली...
"आप ऐसा क्यों सोचतीं हैं माधुरी जी!",शुभांकर ने पूछा...
"वो इसलिए कि मैं अनाथ हूँ और एक गरीब घर से ताल्लुक़ रखती हूँ,मैं आपके आगें किसी बात में रत्ती भर भी नहीं ठहरती",माधुरी बोली....
"आपको नहीं मालूम कि आप मेरे लिए क्या हैं? एक बार मुझे अपनी जिन्दगी में शामिल करके तो देखिए,जान भी दे सकता हूँ आपके लिए",शुभांकर बोला....
"सच कहते हैं आप",माधुरी ने पूछा...
"हाँ! बिलकुल सच",शुभांकर बोला...
"कभी साथ तो ना छोड़ेगें",माधुरी ने पूछा...
"कभी नहीं! बस एक बार मेरा हाथ थाम लीजिए,वादा करता हूँ कभी भी आपका साथ ना छोड़ूगा", शुभांकर बोला...
और फिर माधुरी ने अपना हाथ शुभांकर के हाथ में दे दिया और शुभांकर ने माधुरी के हाथ को बड़े प्यार से चूम लिया.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....