एक थी नचनिया--भाग(१४) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(१४)

श्यामा अब अपनी माँ के घर में रहने लगी तो पास पड़ोस वाले उसके बारें में तरह तरह की बातें करने लगे,कहने लगे कि
" अभागन है जाने कहाँ की,देखो तो बेचारी के पूरे परिवार का नाश हो गया"
तो वहीं कुछ औरतें कहती...
" अभागन काहें की ,मनहूस और अपशगुनी है पूरे परिवार को लीलकर अब देखो राड़ बनकर अपनी माँ की छाती पर बैठी है,बाप को तो खा गई अब लगता है कि माँ को भी लीलकर दम लेगी..."
बेचारी सुखिया, श्यामा की माँ लोगों के बातें सुनकर खून का घूँट पीकर रह जाती,आखिर वो लोगों से कहती भी क्या?,किस किसको अपनी बेटी की सफाई देती फिरती,किस किस का मुँह बंद करती फिरती वो ,इसलिए वो चुप रहना ही ठीक समझती थी,जवान और विधवा बेटी का यूँ माँ के घर रहना लोगों को खटकता था,क्योंकि श्यामा सुन्दर थी और गाँव के पुरूषों की गंदी नजर थी उस पर,इसलिए गाँव की औरतें अपने अपने पति और अपने बेटों को श्यामा के पास फटकने नहीं देना चाहतीं थीं....
लेकिन जिन्दगी अगर इतनी ही आसान होती तो हर कोई हँसकर ना जी लेता,ये ही तो जिन्दगी है जब तक खून के आँसू ना रूला ले तो कहाँ दम लेती है,जैसे भी करके श्यामा ने खुद को और अपनी माँ को सम्भाला और जैसे तैसे जिन्दगी को नए सिरे से जीने की कोशिश करने लगी,अब माँ बेटी दोनों दिनभर खेतों में जी तोड़ मेहनत करतीं और रात को रुखा सूखा खाकर सो रहतीं,दोनों की जिन्दगी ऐसे ही चल रही थी कि एक रोज कुछ ऐसा हुआ जिसने श्यामा को डकैत बनने पर मजबूर कर दिया....
मोहल्ले में श्यामा के सामने एक पड़ोसी रहते थे जो हमेशा अपनी इकलौती बहू से मार पीट करते थे,हमेशा उसके साथ ज्यादती करते थे,श्यामा को गुस्सा आता था लेकिन वो शान्त रहती थी और एक दिन जब बहुत बात बढ़ गई तब श्यामा से रहा ना गया,चूँकि उनकी बहू पहले ही दो लड़कियों को जन्म दे चुकी थी और अब की बार उस बहू को फिर से लड़की हुई थी तो बहू का पति रामेश्वर अपनी पत्नी को तीनों बच्चियों के साथ घर से बाहर निकाल रहा था,बेचारी बहू के माँ बाप नहीं थे वो अनाथ थी,उसके चाचा चाची ने उसे पाला था और इस घर में ब्याह दिया था,अब वें चाचा चाची उस बहू की सुध लेने भी नहीं आते थे इसलिए ससुराल वाले उस पर मनमाना अत्याचार करते थे...
श्यामा से वो सब नहीं देखा जा रहा था और उसने रामेश्वर के पास जाकर कहा....
"ये सब क्या कर रहे हो रामेश्वर भइया"?
"तू कौन होती है हमारे परिवार के बीच में बोलने वाली",रामेश्वर बोला...
"तुम इतनी निर्दयता करोगे भाभी के साथ तो मैं भला कैसें चुप रह लूँगी",श्यामा बोली...
"तू पहले अपनी देख,फिर दूसरों की चिन्ता करना,अपने पूरे परिवार को लीलकर बैठी है और अब हमारे परिवार में आग लगाने आ गई ",रामेश्वर बोला...
अब रामेश्वर के वाक्य सुनकर श्यामा की बोलती बंद हो गई और वो उदास सी वहाँ से वापस चली आई,उधर रामेश्वर अपनी पत्नी की बराबर लात घूसों से पिटाई करता ,उसने अपनी पत्नी को इतना मारा कि कुछ देर बाद उसने प्राण त्याग दिए,अभी दो दिन पहले ही उसने बच्ची को जन्म दिया था ऊपर से वो पहले से ही शरीर से कमजोर थी,दिन दिनभर जीतोड़ मेहनत करती थी वो,पूरे घर का काम करती थी और खाने को वही रुखा सूखा मिलता था तो भला कैसें शरीर में जान रहती,रामेश्वर की इतनी मार वो झेल ना सकी और मर गई,
पड़ोसी भी यूँ ही उसे पिटते हुए देखते रहे,लेकिन बीच बचाव करने कोई नहीं आया,सब यूँ ही तमाशा देखते रहे और वो बेचारी तीन बच्चियों को छोड़कर मर गई और फिर रामेश्वर के परिवार वाले उसे चुपचाप जलाकर वापस भी आ गए और रामेश्वर ने अपनी तीनों बेटियों को ना जाने किसके हाथों में बेच दिया लेकिन तब भी किसी ने कोई आवाज़ नहीं उठाई,जुल्म की इन्तेहा देख और अपने समाज में औरतों की ऐसी दशा देखकर श्यामा का मन कराह उठा,अपने सोच लिया था कि वो अब इस समाज से औरतों पर जुल्म ढ़ाने वाले पापियों का नाश करके ही दम लेगी फिर उस रात उसने अपने पति की बंदूक उठाई, माथे पर पट्टी बाँधकर वो रामेश्वर के घर में घुसी और उसके सीने पर बंदूक तानते हुए बोली...
"बोल! कर दें तेरा खेल खतम,लेकिन तुझ जैसे वहशी को हम ऐसे नहीं मारेगे,तुझे तो हम वो मौत देगें की तेरी सात पुश्तें याद रखेगीं रामेश्वर!",
और फिर श्यामा ने रामेश्वर के एक हाथ में गोली मारी तो वो दर्द से चीख उठा,तब श्यामा बोली....
"क्यों? दर्द हो रहा है ना रामेश्वर! वो भी ऐसे ही चीख रही थी,जब तू उसके पेट में लातें मार रहा था",
"मुझे माँफ कर दे श्यामा.....मुझे माँफ कर दे",रामेश्वर गिड़गिड़या....
"तुझे और माँफी,तुझ जैसे शैतान को हम माँफी दे दे,ये तूने सोच भी कैसें लिया",श्यामा बोली....
और तभी रामेश्वर अपने घरवालों के सामने चीखा.....
"तुम लोग मेरी मौत का तमाशा देख रहे हो,जाओ कोई पुलिस को बुलाकर लाओ"
"खबरदार!जो किसी ने भी अपने कदम घर से बाहर निकाले,उसका भी यही अन्जाम होगा,इसके तो हाथ में गोली लगी है,तुम लोगों के तो सीने में गोली लगेगी",श्यामा बोली...
और फिर श्यामा की धमकी से डरकर परिवार का कोई भी सदस्य बाहर ना गया और फिर श्यामा ने ब्लेड से रामेश्वर की कलाइयों की नसें काट दी, जिससे उसकी कलाइयों से खून रिसने लगा और वो वहीं लालटेन की रोशनी में उसके पास बैठकर उसके मरने का इन्तज़ार करने लगी,वो तब तक वहाँ बैठी रही जब तक कि रामेश्वर के शरीर से पूरी तरह खून बह ना गया,जिस कच्ची धरती पर रामेश्वर का खून गिरा था उतनी कच्ची धरती ने रामेश्वर के खून को सोख लिया था,जब श्यामा को तसल्ली हो गई कि रामेश्वर मर गया है तो फिर वो वहाँ से अपने घर वापस आई और अपनी माँ से बोली....
"माँ! हमें भवानी माँ की कसम अब हम अपने परिवार के खून का बदला लेकर रहेगें"
"लेकिन बिटिया! तुम ये सब कैसें करोगी? हमारे खानदान में पहले कभी ऐसा किसी ने नहीं किया ", सुखिया बोली...
"जो पहले नहीं हुआ है वो अब होगा माँ!",श्यामा बोली...
"ऐसा मत बोल बेटी! पुलिस तुझे ढूढ़कर फाँसी पर चढ़ा देगी तो हम अकेले जीकर क्या करेगें?",सुखिया बोली....
"अब हमारे इरादे को कोई नहीं रोक सकता माँ,अब हम पूरी तरह से बागी बन चुके हैं,इतना अत्याचार अब हम सहन नहीं कर पाऐगें माँ!,एक ही जिन्दगी मिलती है सबको चाहे तो उसे डरकर गुजार दो ,चाहे तो वो कर लो जो तुम असल में करना चाहते हो,अब हम और गरीब बेसहारा लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते, अब हम लोगों की मदद करते हुए मर भी जाऐगें तो कम से कम हमें ये अफसोस तो नहीं रहेगा कि हमने अपनी जिन्दगी यूँ ही जाया कर दी",श्यामा बोली....
"बिटिया!एक बार और सोच ले",सुखिया बोली...
"सोच लिया माँ! सब सोच लिया,हम ने बहुत सोच समझकर ही ये फैसला लिया है",श्यामा बोली...
"अब जब तूने अपने मन में ठान ही ली है तो फिर तो हमारी बात कहाँ सुनेगी",सुखिया बोली....
"माँ! अब कछु कहने ,सुनने और समझाने का बखत ना रह गया है,अब तुम हमें जाने की इजाजत दो ताकि हम अपने काम में सफल हो सकें",
और फिर ऐसा कहकर श्यामा अपने माँ के गले लगकर घर से ना जाने कहाँ निकल गई.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....