एक थी नचनिया--भाग(१३) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(१३)

श्यामा कुछ ही देर में उस गाँव पहुँच गई और वो खेत ढूढ़ने लगी जहाँ उसका होने वाला पति खेतों की रखवाली करता था लेकिन वो उसका खेत ढूढ़ पाती कि इससे पहले ही वहाँ एक सियार आ पहुँचा और वो श्यामा पर झपट पड़ा,सियार श्यामा पर झपटा तो उसके हाथ से लालटेन छूटकर दूर जा गिरी और फिर वो जोर से चीखी,वो खुद को उससे बचाने की कोशिश कर ही रही थी कि किसी ने अपनी दोनाली बन्दूक से हवाई फायर किया और बन्दूक की आवाज़ से वो सियार वहाँ से भाग खड़ा हुआ,फिर फायर करने वाला व्यक्ति श्यामा के पास आकर बोला...
"तुम को हो और इत्ती रात के इते का कर रई"?( तुम कौन हो और इतनी रात को इधर क्या कर रही हो)
तब श्यामा बोली...
"कछु काम हतो सो आए ते इते",(कुछ काम था इसलिए आए थे यहाँ)",श्यामा बोली...
"का काम हतो इतनी रात के तुम्हें,"(क्या काम था इतनी रात को तुम्हें )"उस व्यक्ति ने पूछा...
अभी दोनों के बीच अँधेरे में ही बातें हो रहीं थीं,क्योंकि लालटेन तो बुझ चुकी थी....
"हम तुम्हें काहें बताएं"?(मैं तुम्हें क्यों बताऊँ),श्यामा बोली...
"अच्छा!चलो हम तुम्हें तुमाय घर छोड़ आऐ",(अच्छा चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आता हूँ),वो व्यक्ति बोला..
"नहीं! हम जीहा देखन आए तो सो देख के ही जेहे",(मैं जिसे देखने आई थी तो उसको देखकर ही जाऊँगी", श्यामा बोली....
"अरी! माता! तुम हमे ऊको नाम तो बता दो,शायद हम उहाँ चीन्हत होए"( माता! उसका नाम तो बता दो,शायद मैं उसे पहचानता हूँ), वो व्यक्ति बोला...
"उनको नाम सुन्दरलाल है और हमाओ उनसे ब्याव पक्को हो गओ है"(उसका नाम सुन्दरलाल है और उनसे हमारी शादी पक्की हो गई है"),श्यामा बोली...
"ब्याव से पहला तुम ऊको नाव ले रई"(शादी से पहले तुम उसका नाम ले रही हो",वो व्यक्ति बोला...
"नाव ना ले सो का कहके बुलाय उनको"(नाम ना ले तो का कहके बुलाए उनको),श्यामा ने पूछा....
"अब हमसे का पूछ रई तुम,वो तो तुम जानो कि ब्याव के बाद तुम हमें का कहके बुलाहो"(मुझसे क्या पूछ रहो हो,वो तो तुम जानो कि शादी के बाद तुम मुझे क्या कहकर पुकारोगी),वो व्यक्ति बोला....
अब जब श्यामा ने ये सुना तो वो बोल पड़ी....
"हाय! दइया! तुमही हो"(हाय दइया तुम ही हो),
"हाँ! हमही है सुन्दर लाल"(हाँ! मैं ही हूँ सुन्दर लाल)
और फिर उस मुलाकात के बाद सुन्दर लाल को श्यामा ने पसंद कर लिया,फिर कुछ दिनों बाद दोनों की शादी भी हो गई,दोनों की जिन्दगी बहुत अच्छे से बीत रही थी,सुन्दर श्यामा को बहुत चाहता था और श्यामा भी सुन्दर के साथ बहुत खुश थी,श्यामा कुछ ही दिनों में अपने सास और ससुर की चहेती बन गई,श्यामा के दो देवर और एक ननद भी थी,वें तीनों भी श्यामा के साथ बहुत अच्छे से पेश आते थे,बड़ा देवर अभी सोलह साल का था ,छोटा देवर चौदह साल और ननद अभी बारह साल की ही थी.....
श्यामा सुन्दर के साथ अच्छे से जीवन बिता रही थी कि तभी पता चला कि उनके ही परिवार के कुछ सदस्य जेल से छूटकर आएं हैं,वें सुन्दर लाल के ताऊ के बेटे थे,जो कि काफी अय्याश किस्म के थे,सुन्दर लाल के ताऊ के मरने के बाद उनके तीनों बेटों ने अपने हिस्से की जमीन बेचकर अय्याशी के भेंट चढ़ा दी थी और जब सबकुछ बिक गया तो उनके बीवी-बच्चे भूखो मरने लगें,इसलिए उन सभी की बीवियाँ भी अपने बच्चों सहित उन्हें छोड़कर भाग गई और जब उनके पास कुछ ना रह गया तो उन्होंने दूसरों के यहाँ चोरियाँ करना शुरू कर दिया और चोरी करते हुए वें एक बार पकड़े गए तो पकड़ने वाले का उन्होंने खून कर दिया और वहाँ से भाग निकले लेकिन पुलिस उन सबको सूँघते हुए वहाँ पहुँच गई और उन्हें धर दबोचा,खून के जुर्म में उन सभी को सजा हो गई और अब इतने सालों बाद वें जेल से छूटे हैं और सुन्दर लाल के पिता की जमीन को अपना बताने का दावा कर रहे हैं,इस बात से सुन्दर लाल बहुत गुस्सा हुआ और उसने उन सभी को वहाँ से चले जाने को कहा लेकिन वें सुन्दर लाल को ये धमकी देकर गए कि देख लेगें तुझे....
उनकी धमकी से सुन्दर लाल तो नहीं डरा लेकिन उसके बूढ़े माँ बाप डर गए और उसके पिता ने सुन्दर लाल को समझाते हुए कहा...
"बेटा! जो तुमने अच्छो नई करो,उनकी नियत अच्छी नइया,अब ना जाने वें औरें का कर हैं"(बेटा ये तुमने ठीक नहीं किया,उनकी नियत अच्छी नहीं है अब ना जाने वें सब क्या करेगें)
"दद्दा!तुम चिन्ता ना करो,कछु ना कर हैं वें औरें",(दद्दा तुम चिन्ता मत करो वें लोग कुछ नहीं कर पाऐगें)
और एक दिन दोपहर के समय ऐसा कुछ हुआ जिसका सुन्दरलाल के माँ बाप को डर था,सुन्दर लाल के ताऊ के बेटे अपने जेल के साथियों के साथ मिलकर सुन्दरलाल के घर आए,उस समय श्यामा पनघट पर पानी भरने गई थी और उन सभी ने घर में घुसकर उन सभी को एक तरफ से गोली मार दी,श्यामा की बारह साल की ननद की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया,कुछ ही पलों में सब कुछ खतम हो गया और पड़ोसी अपने कानों में हाथ धरे अपने अपने घर के भीतर डर के मारे घुसे रहें,श्यामा जब पनघट से पानी भरकर घर लौटी तो वहाँ का मंजर देखकर उसका दिल दहल गया,सबकी लाशे खून से सनी पड़ी थीं और सबके शरीर पर कम से कम चार गोलियाँ तो लगीं ही थीं,श्यामा ने सबको देखा फिर उसे अपनी ननद का ख्याल आया तो वो उसे ढूढ़ने लगी और वो उसे भूसे वाली कोठरी में खून से लथपथ मिली,बारह साल की बच्ची के साथ ऐसा कुकर्म देखकर उसका तो दिल ही दहल गया,उसने बच्ची का सिर अपनी गोद में रखा और उससे पूछा....
"कला बिन्नो! बोल बिन्नो! किन ने करो जो सबकछु",(बिन्नो बोल ये सब किसने किया)
और फिर कला बिन्नो ने एक हिचकी लेकर अपने प्राण त्याग दिए और कला के मरने पर श्यामा चीख पड़ी लेकिन उसकी चीख सुनकर भी वहाँ कोई ना आया,वो थाने भागी लेकिन वहाँ मोटी रकम देकर पुलिस वालों का मुँह बंद कर दिया गया था,किसी पुलिस वाले ने उसकी रपट ना लिखी ऊपर से उसके साथ बतमीजी करने लगे इसलिए श्यामा वहाँ से लौट आई,ना कोई पड़ोसी हाल पूछने आया और ना ही कोई रिश्तेदार,इतनी लाशों को श्यामा कैसें अकेले श्मसान घाट तक ले जाकर उनका दाहसंस्कार करती ,इसलिए उसने सबकी लाशों को एक साथ एक कोठरी में घसीटकर रख दिया और घर में ईधन की जितनी भी लकड़ियाँ और कण्डे थे उनको उन सबके पास रखकर घर में ही आग लगा दी और अपने पति की दोनाली बन्दूक लेकर वो अपने मायके चली गई,बाप ने ये खबर सुनी तो उससे जवान बेटी का दुख देखा ना गया और कुछ दिनों बाद वो भी मर गया.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....