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जीवन @ शटडाऊन - 7

एपीसोड----2

घर पर प्रतीक्षा करती पत्नी, मुसकरा कर स्वागत करती पत्नी उन के लिये सपना था । रोज़ रोज़ वह दोस्तों के घर, पार्क में या लाइब्रेरी के कोने में कब तक बैठें ? जब ज़िंदगी उजाड़ लगती है तो ऐसे में कोई किताब भी तो मन को नहीं बांध पाती ।

पहले घर में अकसर उन के मित्र राहुल का परिवार या चाचा की लड़की कांता का परिवार आ जाता था । घर जैसे गुलज़ार हो उठता था । उर्मिला तब भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थी । मीता और नरेन ही उनके चायनाश्ते की व्यवस्था करते थे । मेहमान भी उर्मिला की आदत के अभ्यस्त हो गये थे । वे स्वयं उन के कमरे में जा कर उन से नमस्ते कर के बाहर के कमरे में बैठे जाते थे ।

एक दिन तो अचानक ही दोनों परिवार एक साथ आ गये थे । राहुल तो कालिज के जमाने से बिलकुल बदला नहीं था । वह मजे लेले कर, चुटकुले सुना रहा था । गहरी नीली शिफान में सजी, गहरी लाल लिपस्टिक लगाये उस की पत्नी जबतब खिलिला कर हंसती तो उस की हीरे की लौंग की किरणें, उन की आंखों को छू जातीं । वह भी सब के साथ हंस रहे थे लेकिन दिल जैसे कसक रहा था कि इतनी संजी संवरी, खिलखिलाती बीवी उन्हें क्यों नहीं मिली ? उर्मिला को कभी उन्होंने ज़ोर से हंसते नहीं देखा था । यदि कभी मुसकराती थी तो ऐसा लगता था मानो उन का दिल रख रही हो ।

मीता व मनु राहुल की कुर्सी के हत्थे पर बैठे हुए उन्हें और उत्साहित कर रहे थे, “चाचाजी !बस एक चुटकुला और ...”

कांता भी इसरार करने लगी, “राहुलजी! एक और चुटकुला सुनाइये न ।”

एक चुटकुले के सुनते ही इतने ज़ोर की हंसी छूटी कि दीवारें भी हिलती प्रतीत हुईं।

“बंद करो यह जंगलीपन.” तभी अचानक उर्मिला कमरे में प्रकट हुई ।

उस की दहाड़ से सब की घिग्घी बंध गई । हंसी से थरथराती दीवारें तक सहम गईं ।

नरेन ने ही हिम्मत कर के कहा, “कॉफी बनाने के झंझट से .....तुम अपने बेडरूम में ....मिला?”

“आप लोग 1 घंटे से जंगलियों की तरह ठहाके लगा रहे हैं । बहुत देर से सह रही हूँ । ये लोग तो पराये हैं लेकिन क्या आप को नहीं पता, आठ बजे का समय मेरे जाप का समय है ? बच्चे भी अपना होमवर्क नहीं कर रहे हैं । वे भी इन जंगलियों के साथ जंगली बने जा रहे हैं ।”

“उर्मि! ये हमारे मेहमान हैं । इन का अपमान करने का तुम्हें कोई हक नहीं है ।”

“इन मेहमानों को अपने घर कोई काम नहीं है जो जबतब हमारे घर में जमे रहते हैं ?”

कांता व राहुल के परिवार का मुंह लटक गया था ।

नरेन क्रोधित हो गरज पड़े, “उर्मिला! बस भी करो । राहुल ने ही मजाकिया लहजे में बात संभाली, “जाने भी दो यार ! भाभीजी ठीक ही तो कह रही हैं । हमारे कारण उन का कितना हर्ज होता है ।” फिर वह उन की तरफ मुड़ कर बोला, “भाभीजी! क्षमा चाहता हूँ । आगे से ऐसी गलती नहीं होगी ।”

सभी उठ कर घर से निकल लिये थे, अपमानित से । उर्मिला विजयी मुसकान से मुसकरा रही थी । उस दिन के बाद दोनों परिवारों ने कभी उन के घर का रुख नहीं किया था । कभी बैंक से उन के मातहत आते तो वह भी उर्मिला को अच्छा नहीं लगता था । नरेन कड़ी मेहनत के बाद सहायक प्रबंधक बने थे । उन के व्यवहार से बैंक में सभी उन्हें पसंद करते थे । इस पर भी उर्मिला ताना मारती, “कोई सीधे अफ़सर तो बने नहीं हो । क्लर्क से अफ़सर बने हो तो क्लर्क वाली आदतें कहाँ जायेंगी ?”

वह अपमान से तिलमिला गये, “तुम इतना पूजापाठ करती हो, कभी तो अच्छी बात किया करो । नहीं तो ऐसे पूजापाठ का क्या अर्थ है?”

“तुम्हारे साथ मेरी शादी क्या हुई है मेरा एकएक सपना कांच की तरह टूट गया है । यदि पूजापाठ में समय न बिताऊँ तो अपने दुखों से पागल हो जाऊं ।”

“तुम्हें शादी के बाद सुख नहीं दे पाया न सही, लेकिन कुछ वर्षों बाद ही तुम्हारा सपना पूरा कर दिया है और तुम घर व बच्चों की देखभाल छोड़ कर पूजा में लगी रहती हो । यह तुम्हारा पागलपन नहीं तो क्या है?”

“तुम ने मुझे पागल कहा, मेरी पूजापाठ को गाली दी है ? ” वह वहीं फर्श पर बैठ कर रोने लगी ।

नरेन सोच रहे थे कि भोलीभाली इशिता को क्या क्या बताएं जिस ने कि अभी थोड़ी सी ज़िंदगी देखी है। उस ने अभी यह जाना ही कहाँ है कि ज़िंदगी के कड़वे सच क्या होते हैं?

एक दिन फिर इशिता ही पीछे पड़ गई । “सर ! आज हम लोग एक साथ लंच करेंगे ।”

वह समझ गये थे कि यह जिद्दी लड़की उन से कुछ उगलवाना चाहती है और वाकई खाना खाते समय अपनी मीठी मीठी बातों से उस ने उन की एकएक समस्या जान ली । वह भी उस की इस चतुराई पर हैरान थे ।

“सर !यह तो बहुत गंभीर समस्या है ।”

“हां, बीच में मैं ने तलाक लेने की भी सोची थी लेकिन सफ़ल नहीं हो पाया । उस के भाई धमका कर चले गये । बच्चों के भविष्य का सोच कर चुप लगा गया हूँ ।”

“ओह, तो इस समस्या का हल ढूँढ़ना ही पड़ेगा ।”

“मैं ने व मेरे घर वालों ने उसे प्यार व डांट फटकार कर के देख लिया है लेकिन वह चिकनी मिट्टी बन गई है । उस पर कि बात का असर ही नहीं होता ।”

“मैं अपनी दादी मां से बात करूंगी । वह अधिक पढ़ी लिखी तो नहीं हैं लेकिन दुनियाँदारी के मामले में बहुत तेज़ हैं । समस्या का कुछ न कुछ हल बता ही दैंगी ।”

चौथे दिन फिर इशिता उन्हें जबरदस्ती लंच पर ले गई । वह मन ही मन मुसकरा रहे थे कि किस तरह यह भोली लड़की दुःसाहस करना चाहती है ।

खाते समय इधर उधर की बात करने के बाद इशिता थोड़ा सकुचाते हुए बोली, “सर ! आप को वह पुरानी कहावत पता है कि औरत आटे की सौत भी सहन नहीं कर सकती ।”

वह ज़ोर से ठहाका मार कर हंसे, “अरे! यह बाबा आदम के ज़माने की कहावत तुम्हें कहाँ से याद आ गई?”

“मेरी दादी ने मुझे सुनाई थी । उन के ही आदेश पर मैं आप की पत्नी की सौत बनना चाहती हूँ ।” उस ने कुछ झिझकते हुए सीधे उन की आंखों में झांका ।

वह अचकचा गये “तुम तो मुझ से बहुत छोटी हो....तुम्हें तो मैं एक बच्ची समझता हूँ....”

“सर !मैं भी आप का बहुत आदर करती हूँ । एक बड़े भाई की तरह, लेकिन मैं आप की पत्नी की सौत बनने का नाटक करना चाहती हूं । मेरी दादी ने ही यह रास्ता सुझाया है,” कह कर वह अपनी दादी की बनाई पूरी योजना उन्हें समझाने लगी ।

योजनानुसार घर पहुँचते ही उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई “मीता ।”

“जी.” वह सामने आ खड़ी हुई ।

उन्होंने अपने जूते के फीते खोलते हुए कहा, “हमारे ऑफिस में एक बहुत सुंदर लड़की आई है ।”

“उस का नाम क्या है ?”

“इशिता ।”

“अरे !नाम भी बहुत सुंदर है ।”

“और सब से बड़ी बात तो यह है कि सुंदरता के साथ साथ वह बुद्धिमान भी हैं जबकि औरत या तो सुंदर होती है या बुद्धिमान । पर कुछ स्त्रियां तो दोनों चीजों से ही वंचित रहती हैं ।”

“इस का मतलब वह बैंक के काम में भी होशियार होंगी ?”

“हां, बहुत,” फिर वह हाथमुंह धो कर चाय पीने लगे । आज के लिये इतना ही काफी था ।

दूसरे दिन नरेन घर में घुसते ही अपनी बेटी से ज़ोर से कहने लगे, “मीता! आज एक गजब का समाचार है ।”

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