वो माया है.... - 45 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 45


(45)

इंस्पेक्टर हरीश से हुई बहस के बाद अदीबा अब उसके पास नहीं जाना चाहती थी। लेकिन उसे दिशा के बारे में पता करना था। अखलाक उस पर ज़ोर डाल रहा था कि कोई और मीडिया वाला दिशा तक पहुँचे। उससे पहले वह उस तक पहुँच कर उसकी और पुष्कर की कहानी लोगों के सामने लाए। अदीबा खुद‌ भी चाहती थी कि ताबीज़ वाली बात सामने लाकर जो बातें उसने शुरू की हैं उन्हें सही रास्ते पर ले जाए। इसका एक ही तरीका हो सकता था। वह पुष्कर और दिशा की सही कहानी लोगों के सामने लाए। इंस्पेक्टर हरीश से तो मदद मिलनी नहीं थी। इसलिए उसने उस अस्पताल में जाने का निर्णय लिया जहाँ दिशा को भर्ती किया गया था।
दिशा को लीला हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। यह एक प्राइवेट अस्पताल था। अदीबा निहाल के साथ अस्पताल पहुँची। अंदर घुसते ही वह फ्रंट डेस्क की तरफ बढ़ गई। फ्रंट डेस्क पर पच्चीस छब्बीस साल की लड़की थी। उसने अदीबा से पूछा,
"गुड मॉर्निंग मैम..... मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ।"
अदीबा ने उसे अपना आईडी कार्ड दिखाया। उसने कहा,
"दो महीने पहले यहाँ दिशा गर्ग नाम की पेशेंट आई थी। ढाबे पर हुए मर्डर केस के बारे में सुना होगा ना। मारे गए पुष्कर सिन्हा की पत्नी थी। मुझे दिशा के बारे में कुछ जानकारी चाहिए थी।"
आईडी कार्ड में अदीबा का नाम और अखबार का नाम पढ़कर वह बोली,
"मैंने उस मर्डर केस के बारे में पढ़ा है। आपके अखबार खबर रोज़ाना में। वैसे मैम मैंने अभी दस दिन पहले ही यहाँ ज्वाइन किया है। पर आपको क्या जानकारी चाहिए थी ?"
"मुझे दिशा से मिलकर केस के बारे में जानकारी प्राप्त करनी है। मुझे उसका या उसके किसी परिजन का नंबर चाहिए। आपके रिकॉर्ड में होगा।"
"सॉरी मैम मुझे पेशेंट के बारे में इस तरह की सूचना देने का अधिकार नहीं है।"
अदीबा ने निहाल की तरफ देखा। निहाल ने कहा,
"आप नहीं दे सकती हैं तो कोई तो होगा जिससे मदद मिल सके।"
उस लड़की ने कहा,
"डॉ. सौरभ मलकानी इस अस्पताल के एमडी हैं। आप उनसे बात कर सकते हैं।"
अदीबा ने कहा,
"ठीक है उनसे मिल लेंगे। उनका केबिन कहाँ है ?"
"मैम सर दस बजे के बाद अस्पताल आते हैं। उसके बाद अस्पताल का मुआयना करके तब अपने केबिन में जाते हैं।"
अदीबा ने घड़ी देखी। अभी नौ बजकर पैंतीस मिनट हुए थे। उस लड़की ने एक कोने में पड़े सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा,
"आप लोग वहाँ बैठकर इंतज़ार कर सकते हैं।"
अदीबा सोफे की तरफ बढ़ने लगी तभी लॉबी में एक स्ट्रेचर पर एक शव आया। उसके साथ एक औरत थी जो रो रही थी। एक आदमी उसे संभालने की कोशिश कर रहा था। अदीबा को लिए शव देखना नई बात नहीं थी। पर रोने वाली औरत बहुत कम उम्र की थी। रोते हुए वह जो कह रही थी उससे स्पष्ट था कि स्ट्रेचर पर उसके पति का शव था। अदीबा का मन विचलित हो गया। उसने निहाल से कहा,
"अभी वक्त है। बाहर चलकर चाय पीते हैं।"
वह निहाल के साथ अस्पताल के बाहर चली गई।

अदीबा और निहाल डॉ. सौरभ मलकानी के केबिन में बैठे थे। अदीबा ने डॉ. सौरभ को सारी बात बता दी थी। डॉ. सौरभ ने बताया कि उनके पास दिशा की मम्मी का नंबर है। अदीबा ने उनसे नंबर देने की गुज़ारिश की। कुछ सोचकर डॉ. सौरभ ने कहा,
"मिस अदीबा हम अपने मरीज़ों की व्यक्तिगत जानकारी किसी को नहीं देते हैं।"
"मैं समझती हूँ डॉ. सौरभ। लेकिन मैंने आपको बताया है कि मुझे नंबर क्यों चाहिए ?"
"आप पुलिस से भी नंबर ले सकती हैं।"
"बिल्कुल....पर पुलिस इन दिनों दो मर्डर केस के दबाव में है। इसलिए मैंने पुलिस को परेशान करना ठीक नहीं समझा। आप निश्चिंत रहिए। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिससे बात बिगड़ जाए।"
डॉ. सौरभ सोच में थे। अदीबा ने कहा,
"आप चाहें तो दिशा की मम्मी से मेरी बात करा दीजिए। मैं उन्हें समझा दूँगी।"
अदीबा की बात सुनकर डॉ. सौरभ ने कहा,
"आप पत्रकार हैं। आपकी बात पर यकीन करके मैं नंबर दे रहा हूँ। आप भी उस बात का खयाल रखिएगा जो आपने कही है।"
"डॉ. सौरभ आप भरोसा रखिए। जैसा आपने कहा कि मैं पत्रकार हूँ। मुझे अपनी ज़िम्मेदारी पता है।"
डॉ. सौरभ ने फोन करके फ्रंट डेस्क वाली लड़की को नंबर देने को कहा। एक चिट पर दिशा की मम्मी का नाम और नंबर लिखकर दे दिया।‌

अदीबा ने मनीषा से फोन पर बात की। उसकी बात सुनकर मनीषा ने कहा कि उनकी बेटी पहले ही इतने बड़े दुख से गुज़र रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही उसने अपनी नौकरी दोबारा शुरू की है। वह अपने आप को ज़िंदगी में वापस लाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में अदीबा उससे पुष्कर और उसके बारे में पूछेगी तो दिशा के लिए मुश्किल हो जाएगी। उन्होंने ना सिर्फ दिशा का नंबर देने से मना कर दिया बल्कि यह भी कहा कि वह किसी भी तरह से दिशा से संपर्क करने का इरादा छोड़ दे। अदीबा की उन्हें मनाने की सारी कोशिशें बेकार हो गईं।

अभी तक ऐसी कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली थी कि केस क्राइम ब्रांच को सौंपा जा रहा है। इंस्पेक्टर हरीश चाहता था कि केस क्राइम ब्रांच को सौंपा जाए उससे पहले वह केस में कुछ नया खोज ले। उसने सब इंस्पेक्टर कमाल से इस विषय में बात की। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"कमाल अभी तक उस आदमी के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है। बड़ी अजीब सी बात है। हमारे पास तस्वीर भी है। फिर भी कोई सफलता नहीं मिल पा रही है।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"सर मैं भी इस बात से बहुत परेशान हूँ। मैंने शाहखुर्द और उसके आसपास के सारे इलाके में उस आदमी का पता लगाने की कोशिश की। लेकिन कोई उसे पहचान नहीं पा रहा है। लगता है कि वह किसी और इलाके का था।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कुछ सोचकर कहा,
"बिल्कुल कमाल.....वह आदमी किसी और इलाके का ही होगा। उसने फोन पर किसी से कहा था कि ताबीज़ खो गया और वह अपना काम कर गई। इसलिए वह कातिल नहीं हो सकता। हो सकता है कि उसे कत्ल करने के लिए भेजा गया हो।"
"हाँ सर..... लेकिन उसे किसने भेजा था यह तो उसके पकड़े जाने पर ही पता चलेगा। अब हमें उसकी तलाश का दायरा बढ़ाना होगा।"
इंस्पेक्टर हरीश चाहता था कि ताबीज़ के पीछे की जो कहानी है उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करे। दिशा ने उसे विशाल की पत्नी और बच्चे की मौत के बारे में भी बताया था। यह बात इंस्पेक्टर हरीश को परेशान कर रही थी कि उनकी अचानक हुई मौत की कोई पड़ताल नहीं की गई। उन दोनों की मौत के सच को भी इंस्पेक्टर हरीश समझना चाहता था। उसके दिमाग में आया कि कहीं उस आदमी को भेजने वाला सिन्हा परिवार का ही तो नहीं था। उसने सब इंस्पेक्टर कमाल से कहा,
"कमाल मैंने तुम्हें ताबीज़ के बारे में वह बात बताई थी जो दिशा से पता चली थी।‌"
"हाँ सर आपने बताया था कि पुष्कर के बड़े भाई विशाल की कोई प्रेमिका थी। शादी ना हो पाने के कारण उसने कोई श्राप दिया था। सिन्हा परिवार के अनुसार वही बदला ले रही है। बड़ी बेतुकी बात है।"
"बात तो बेतुकी है पर हमारे काम की हो सकती है।"
सब इंस्पेक्टर कमाल कुछ समझ नहीं पाया।‌ उसने पूछा,
"कैसे सर ?"
"कमाल सिर्फ पुष्कर की ही नहीं बल्कि विशाल की पत्नी और बच्चे की मौत का ज़िम्मेदार भी सिन्हा परिवार ने विशाल की प्रेमिका माया पर लगाया था जो अब इस दुनिया में नहीं है। उनके हिसाब से वह भूत बनकर बदला ले रही है। सिन्हा परिवार ने विशाल की पत्नी और बच्चे की आश्चर्यजनक तरीके से मौत की कोई जांच भी नहीं कराई थी। अब सोचने वाली बात है कि उन लोगों को इस बात पर इतना भरोसा क्यों है कि जो भी बुरा उनके घर में हो रहा है उसके पीछे माया है।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने इस बात पर विचार करने के बाद कहा,
"सर इसके लिए तो उनसे मिलना होगा। अच्छा यह होगा कि विशाल को या उसके पिता को यहाँ बुलाने की जगह हम खुद भवानीगंज चलें। वहाँ हम और लोगों से भी बातचीत कर सकते हैं।"
यह सुझाव इंस्पेक्टर हरीश को पसंद आया। उसने कहा,
"ऐसा ही करते हैं। कल सुबह भवानीगंज के लिए निकलते हैं। पहले लोकल पुलिस स्टेशन जाएंगे। फिर किसी को साथ लेकर बद्रीनाथ सिन्हा के घर चलेंगे।"
इंस्पेक्टर हरीश को विश्वास था कि वहाँ पहुँच कर सफलता अवश्य मिलेगी।

तांत्रिक तखत पर बैठा था। बद्रीनाथ ने अपने बैग से उसके द्वारा मांगी गई रकम निकाल कर दी। तांत्रिक ने अपने चेले को देकर गिनने को कहा। रकम गिन लेने के बाद चेले ने सब ठीक है का इशारा किया। तांत्रिक ने पैसे लेकर अपनी झोली में रख लिए। उसके बाद बोला,
"मैंने सामग्री पहले ही मंगा ली थी। आज आधी रात के बाद अनुष्ठान शुरू होगा।‌ मैंने पहले ही कहा था कि अनुष्ठान बहुत कठिन है। इसमें कोई भी गलती या विघ्न होने पर उसका उल्टा असर होगा। ना सिर्फ मुझ पर बल्कि आप लोगों पर भी मुसीबत आ सकती है। इसलिए मैंने एक स्थान तलाश कर लिया है जहाँ बिना किसी बाधा के यह अनुष्ठान कर सकूँ।"
किशोरी बड़े ध्यान से उनकी बात सुन रही थीं। उन्होंने कहा,
"कहाँ है वह जगह ?"
"उसका पता मैं किसी को नहीं बता सकता हूँ। अनुष्ठान पूरा होने के बाद कुछ दिनों तक मैं उसी जगह पर रहूँगा। मेरा शिष्य आकर आप लोगों को अनुष्ठान की सफलता की सूचना दे जाएगा। तब आप लोग अपने ताबीज़ निकाल कर उन्हें अग्नि में जला दीजिएगा। तब तक आप लोग अनुष्ठान के सफल होने की प्रार्थना कीजिए।"
तांत्रिक यह कहकर उठ गया। बिना कुछ बोले वह अपने चेले के साथ चला गया। सिन्हा परिवार को उम्मीद थी कि अब माया के श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।