प्रेम निबंध - भाग 16 Anand Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम निबंध - भाग 16

उस रात को मुझे भी कहीं न कहीं नींद नहीं आ रही थी। जिस कारण देर रात पढ़ाई करता रहा। लेकिन पढ़ाई के इलावा सब कुछ करता रहा। कुर्सी पर बैठे बैठे करवट लेना और उबासियां लेना। सोच रहा था। बीती बातें जो की कभी लोगों से सुना करता था। *प्रेम नगर मत जाना मुसाफिर प्रेम नगर मत जाना।*
और कब सुबह हो गई कुछ पता ही न चला। मेरे हिस्से में फिर वही नियमवाली आई। और रोज की तरह मुझे लाइब्रेरी जाना हुआ।जो की कोई नई बात नही थी।
जब मैं लाइब्रेरी पहुंचा तो फिर तय शुदा समय पर उनका फ़ोन आया। जिस देख मैं थोड़ा परेशान हुआ क्युकी प्रेम तो हाथ से चला गया अब एक और प्रेम जो की पढ़ाई थी उसे खोना नही था। इसलिए मैं एक बार को फोन कट कर दिया। लेकिन वही कॉल फिर आई। अबकी बार मैंने फोन उठाया। और बोला की क्या बात है ? इतना सता के मन नही भरा। उधर से एक जवाब आता है : नही।
तुम्हारा मन भर गया है मुझसे साफ़ कह दो न,
मैने कहा: मेरे कहने से क्या तुम सुधर जाओगी? अगर हां तो मैं कह दूंगा।
मैं : देखो अब से तुम मुझे अवॉइड किया करो। क्युकी अब तुम मेरी रही नही। और जिस कारण से मैं तुम्हे अब अपना भी नही कह सकता। बाकी तुम समझदार हो। आज तक जब भी तुमने मुझे कॉल किया तब तुम्हारे लिए कोई न कोई बीच में आ ही गया। लेकिन अब तुम्हारे मेरे रास्ते साफ़ हैं।
इसलिए अब मुझे तुमसे किसी फेवर की जरूरत नही है। अब तुम वैसे सम्पूर्ण स्वतंत्र हो। इसलिए तुम जो चाहो सो करो। लेकिन अब हम और आप एक नही हो सकते।
शायद इस प्रेम की पटकथा लिखते लिखते तुम और हम दोनो बहुत आहत हुए हैं। जिस कारण इतना बिलखना पड़ रहा है। अन्यथा तो कोई बात न थी।
वस्तुतः मेरी सुभेक्षा है तुम्हारे साथ।
धन्यवाद अब आप कॉल रख दीजिए।
आपका हमारा सफर यही तक था। जो की संभवत आगे न चल सका।
इतना बोलकर मैं उनके जवाब का इंतजार करता हूं। कुछ जवाब न आने पर मैं फोन कट कर देता हूं।
जैसे फोन रखता हूं। की दुबारा एक घंटी बजती हैं। और अब जवाब आता है। : की तुम कितने बदल गए। तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।
मैने भी भरे स्वर में कहा की सब तुमसे ही सीखा है।
आज के बाद फोन मत करना।
रखिए।
उसके बाद मेरा वापस क्लास में जाना और दिनचर्या के हिसाब से काम करना।
एक शाम जिसके अगले दिन उन्हें जाना था। उन्होंने मुझे छत पर आने को कहा। परंतु अब मैं विवश था। बड़ी आग्रह के बाद मैं एक 5 मिनट के लिए छत पर गया। कुछ देर रुक कर वहा से चला आया। फिर जिस दिन उन्हें निकलना था। उस दिन वो मेरे लाइब्रेरी तक आ पहुंची और मुझे विवश्तः मिलना ही पड़ा।
आश्चर्य की बात ये की पूरे पटकथा में हम उनसे पहली बार ऐसे बाहर मिले थे।
मगर उसके बाद से तो जैसे सब सूखा पड़े और जल की एक बूंद भी न मिले सिंचन को। उसी प्रकार से यह कथा विराम की तरफ इशारा करने लगी थी।