The Author Anand Tripathi फॉलो Current Read प्रेम निबंध - भाग 9 By Anand Tripathi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books सर्विस पॉर्ट - 2 इंटरनेट वाला लव - 88 आह में कहा हु. और टाई क्या हो रहा है. हितेश सर आप क्या बोल र... सपनों की राख सपनों की राख एक ऐसी मार्मिक कहानी है, जो अंजलि की टूटे सपनों... बदलाव ज़िन्दगी एक अनन्य हस्ती है, कभी लोगों के लिए खुशियों का सृजन... तेरी मेरी यारी - 8 (8)अगले दिन कबीर इंस्पेक्टर आकाश से मिलने पुलिस स्ट... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Anand Tripathi द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 17 शेयर करे प्रेम निबंध - भाग 9 (1) 2.4k 8.2k अब समय वो नही था जब हमने साथ अपनी कहानी शुरू की थी। अब समय वो था की जब साथ मिलकर निभाना था एक दूसरे का साथ और एक दूसरे का वादा जिस पर दोनो ही कायम थे। की छोड़ेंगे न हम तेरा साथ ओ साथी मरते दम तक मरते दम तक अगले जन्म तक। ये गाना बहुत सुना हुआ लागत है। प्यार का जो रूट या नेचर होता है वो बड़ा ही इलास्टिक होता है जीवन भर साथ निबाऊंगी। आपकी होकर रहूंगी। आपके शिवा किसी की भी नही। जिंदगी में आपके विचार का पालन करूंगी अपनी भी बात रखूंगी। आपको सबकुछ मानूंगी। आप ही सर्वस्व है। दुनिया के हर मैदान में आप के साथ रहूंगी। ये सब प्रेम में ऑटोमेटिकली निकलता है वाक्य। जिसको हम और आप प्रेम कहते है। फिर भी मन नहीं भरता है तब शुरू होता की मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मुझे कही दूर ले चलो जहा कोई न हो तेरे और मेरे शिवा सिर्फ तुम ही तुम हो और मैं अपनी जिंदगी जीलूं। ये सब सुनकर रोम मे कुछ तो होता है। प्रेम को समझने वाले जब ज्यादा तरीके से समझते है। तब वही प्रेम दुख देता है। इसलिए उसको छिछला करके ही देखो ऊपर से स्वर्ण को देखो ज्यादा नहीं। मैं अपनी प्रेमिका को ये बात ही समझाता था। की तुम अकेली नहीं हो। मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम एक कदम आगे बढ़ो। थामे हुए मैं हाथ हू। जिंदगी की हर बात मैं उनको समझाता था। लेकिन अब एक बार नही दो बार नही। लाख बार समझाओ उनको समझ में ही नही आता था। कोई मुझको बताए की मैं क्या करू। प्रेम मई हो जिंदगी ऐसा कुछ। अतैव तो बहुत कुछ है। प्रेम को सम्मान से देखा जाए तो ही उसका यथार्थ भाव प्रकट होगा। जीवन है तो मनुष्य से प्रेम और मृत्यु है तो शून्य या ईश से प्रेम। प्रेम जीवन का मूल है आप को वह स्वीकारना ही होगा। इसलिए उसमे संदेह न करे। वो स्त्री में या पुरुष में। किसी की भी कामना हो सकती है। इसलिए संदेह नहीं। सत्य को स्वीकार कर ही प्रेम में रुचि आएगी। और युवा एक अवसर है। इसको जीने का और अनुभव करने का। मैं गांव से जब चला तो माहोल थोड़ा गमगीन था। लेकिन इनको याद कर रहा था। आंख गीली थी लेकिन आधे आंसू शायद इनके भी थे। इसलिए ही आज तक इनका मेरा साथ है। और एक बात इनसे ज्यादा कोई मेरी केयर भी नही करता था। और मैं भी उन्हें समझता था लेकिन कुछ तो बात थी जिस के लिए हम दोनो ही परेशान थे। मैं गांव में सब कुछ छोड़ आया था। लेकिन उनकी यादें अभी भी मेरे साथ थी। निस्संदेह मैने उन्हे अलविदा कहा और ट्रेन की रफ्तार बढ़ी और कुछ दूर चलकर वो सब कुछ अंतर ध्यान हो गया। जो अभी तक सामने था। लेकिन वो अभी भी साथ में ही थी। जीवन की सच्चाई शायद यही है कि जिसको आप चाहते हो उसके लिए सच में कुछ भी हो सकता है लेकिन अड़चन बनेगी और हम और आप फसेंगे भी। और भी बहुत कुछ होगा। और उसे समझने वाला भी कोई नही होगा। सच्ची मोहब्बत की बाते और उनकी सच्चाई भी काफी अलग होती है। ना। जिंदगी में प्रेम की अमर गाथा अगर किसी की सत्य है तो वो कृष्ण और राधा की ही है। रात में ट्रेन में खाना खाकर हम सब सोने के लिए अपनी जगह पर गए और और मैं कुछ गाना वाना लगाकर सोने लगा अचानक फोन की रिंग आती है और उनकी कॉल सामने होती है। मन काफी उदास होता है लेकिन उनकी कॉल देखा तो फिर मैं थोड़ा मुस्कराया और साल को ओढ़कर उनसे बात करने लगा। उनका ऐसा होता था। अगर मैं उनसे बात करू तो बस बात करू। और कुछ भी न करू। समय 10 बाज रहे थे। ठंड का मौसम था। खिड़की को धीरे से नीचे उतार कर और उनकी बातो में खो गया। चांद इधर से उधर हुआ और सुबह अपनी आकार में तब्दील होने लगी। करीब उनसे 12 बजे के बाद बात करके मैं फिर सो गया था। और ठंड भी जाड़ा में कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक चाय ली और सुबह होनेका इंतजार करने लगा। फिर ट्रेन गंतव्य पर पहुंची। और टीटी आकर सामने खड़ा होता है। और टिकट मांगता है। अचानक मुझे कुछ दिखाई दे गया। कूड़ा और सिर्फ कूड़ा जो की गांव की तरफ बिलकुल भी नहीं दिखा था हमने इसलिए ऐसा प्रतीत हुआ हमको। कुछ देर के बाद में रिक्शा को बुलाया और उसमे बैठ कर वहा से घर का रास्ता तय किया। घर पहुंचने के बाद दादी की याद उनकी याद गांव की याद बहुत कुछ समझ आ रहा था। लाइफ पर एक बोझ था ऐसा लागत था। लेकिन समय के परिवर्तन ने बताया कि सब कुछ बदल रहा है। नियम में कुछ इजाफा हुआ और इनका कॉल गुस्से में मेरे पास ही नहीं आया। खैर कुछ दिन बा इनकी कॉल आती है। और फिर हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए गले लगाने के लिए बहे फैलाकर फोन पर बात कर लेते है। और दौर ऐसे ही चलता है। जैसे आप कुछ घड़ी इंतजार खाने का और वो ना आए तो आप बेहद परेशान हो जाते हो और संभव लड़ भी जाते हो। तो बस प्रेम की परिभाषा भी कुछ ऐसी ही है। अगर अच्छा लगता है। तो आप खाना खाओगे। नही तो मन नही करेगा। और भी चीज है। जो जन्म के उपरांत महत्व रखती हैं। किंतु प्रेम की बात अलग है। संभवतः व्यक्ति सोच भी नही हो सकता है। की प्रेम क्या है क्योंकि अगर वह प्रेम की भाषा को मान्यता देता तो फिर हिंदू और मुसलमान दोनों को एक साथ मिलकर काम करें ऐसी सलाह देता। लेकिन नही मन से प्रेम और दिमाग से नियम लगाते है। बस प्रेम कुछ तो ऐसा ही है। जिसको लोग पाना चाहते है। लेकिन दिमाग़ आ जाता है। बस बात वही रुकती है। जहा प्रेम में दिमाग होता है। प्रेम के निबंध की कहानी थोड़ी लंबी है लेकिन फिर भी एक कहानी का प्रयास है। की वक्त आवाज लगाए तो चले जाना दिखाकर राम का एक प्रेम तू चले जाना। ‹ पिछला प्रकरणप्रेम निबंध - भाग 8 › अगला प्रकरण प्रेम निबंध - भाग 10 Download Our App