The Author Anand Tripathi फॉलो Current Read प्रेम निबंध - भाग 7 By Anand Tripathi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books सर्विस पॉर्ट - 2 इंटरनेट वाला लव - 88 आह में कहा हु. और टाई क्या हो रहा है. हितेश सर आप क्या बोल र... सपनों की राख सपनों की राख एक ऐसी मार्मिक कहानी है, जो अंजलि की टूटे सपनों... बदलाव ज़िन्दगी एक अनन्य हस्ती है, कभी लोगों के लिए खुशियों का सृजन... तेरी मेरी यारी - 8 (8)अगले दिन कबीर इंस्पेक्टर आकाश से मिलने पुलिस स्ट... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Anand Tripathi द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 17 शेयर करे प्रेम निबंध - भाग 7 (1) 2.6k 7.1k एक दिन की बात थी ये और मैं अकेले पड़ गए। और मै अपने कमरे में और ये अपने कमरे में। यह बात मुझे पता थी की ये उस वक्त अकेली है। खबर थी की नीचे का में गेट किसी ने बंद नहीं किया है। मैं सोचा की मौका अच्छा है। बहाने से उनसे मिलने का। मैं झट उठकर और बहाने से उनसे मिलने के लिए गेट को बंद करने के लिए गया। गेट बंद करके मैं वापस आ रहा था। की पीछे से कोई कहता है। की हेलो मैने मौके की तलाश को समझा और कहा जी बोलिए उन्होंने कहा आइए ना। मैने कहा नही ,ठीक है। उन्होंने फिर भी मुझे अंदर बुलाकर कहा की कुछ नही दीदी कही गई है। तो आप यही बैठिए। मैने कहा ठीक है। बैठ गया और हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्की मारते थे। मैने बोला और बताओ तुम अभी तो पढ़ाई चल रही होगी। वो बोली हां अभी तो पढ़ाई ही चल रही है। मैने कहा की आगे की करने का विचार है। बोली की अभी नही पता है। और मेरे गोद में अपना सिर रख दिया। मैने कहा ठीक है अब मैं चलता हूं नही तो कोई आ जायेगा। अचानक बेल बजती है। और दीदी बोली खोलो गेट। इन्होंने मुझे जोर का धक्का दिया और बोली जल्दी जाओ अभी दीदी आ गई है। मैं चला गया। लेकिन वो गोद में रखा सिर आज भी तड़पाता है। तुम्हारी याद में वो दिन बहुत सुनहरा था। उन्होंने फटा फट पूरे घर का बिस्तर समेत कर झट से गेट बंद कर सो गई। ऐसा लगा की कुछ था। ही। नही। मैं भी अपनी जगह पर सतर्क। लेकिन संभवतः वो दिन नही भूल सका मैं। पता नही क्यों जब उनके अंग ने मुझे छुआ तो लगा की तार पकड़ लिया हो। और फिर मैंने भी उनको सिर पर हाथ फेरा था। खुदा का शुक्र है। की उस दिन कुछ अधिक न हुआ। इसलिए बचे रहे। उनके करीब होने की दास्तान मुझे कहा से कहा खीच लाई। जिसका मुझे आभास भी नही था। अब कुछ दिन ही वो यहां और रुकने वाली थी। इसलिए जब भी मुझे देखती वो सहसा दुखी हो जाती। ऐसा इसलिए नही की वो जा रही है। ऐसा इसलिए की हम अलग हो रहे है। इतने दिन साथ रहने का रिजल्ट अब मुझे और उनको भी भुगतना होगा। ना जाने फिर कब मिले। क्योंकि जिंदगी मौका देती है। बस इसलिए आश थी। और तो कुछ भी नही। धीरे धीरे वो मेरे पास आई और बोली कि अगर मैं आपको छोड़ कर चली जाऊं तो क्या करोगे। मैने कहा तुम्हारे बिना रहना असंभव होगा कुसुम लेकिन फिर भी रह लेंगे। उस पूरे साल हमने साथ कई वक्त गुजारे। ना जाने कितनी बात हुई। और प्रेम कब हुआ। यह भी पता नहीं चला। और कितने बहाने भी बनाए एक दूसरे के लिए। लेकिन सच कहूं तो मुझे उनके आने के बाद कितना सुधार आया। यह मुझे भी पता नहीं। वक्त आया उनसे विदा लेने का। उस दिन कितना उदास मौसम बाग बगीचे और सब कुछ जहा वो बैठती थी। जहा वो उठती थी। जहा वो हस्ती थी जहां वो छुप कर रोती थी,जीवन का एक हिस्सा जहा बीता उसको भूलना इतना आसान नहीं था। और मुझे अपनी बांहों से अलग देखना भी उनको मुनासिब नहीं था। जल चढ़ाने के बहाने हम सुबह जल्दी उठा करते थे। उनकी दीदी की मोबाइल पर देर तक मैसेज भेज कर एक दूसरे को मोहित करना यह सब एक अतुलित आनंद था। जिसको कैसे भूला जा सकता था। सब की आंखों में आसूं थे। उन्होंने मुझे कहा की मैं जा रही हूं। मुझे छोड़ने नही आओगे। मैने कहा वादा करो फिर आओगे। उन्होंने कुछ नही कहा और मैने भी मुंह मोड़ कर ऊपर छत की ओर चला गया। मुझसे उनका जाते हुए न देखा गया। प्रेम की इतनी विवशता थी की क्या बताऊं। जिनको मैने कभी अपने से अलग ना किया हो। आज वो इतनी दूर। और कुछ पल के बाद वो चली गई। सब खत्म हो गया था। जैसे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त। लेकिन एक वादा करोड़ों में एक था। जो वो करके गई थी। जिसका सब इंतजार। कर रहे थे। की मैं वापस आऊंगी। बस एक ही बात यह थी मेरी जान में जान डाल दी। अब उसके बाद से कुछ दिन कटे। अब जब भी समय मिलता तो वो मुझे याद करके अपनी भाभी की मोबाइल से अपनी दीदी की मोबाइल पर स्टेटस लगती थी और कहती थी की देख लिया करना। लेकिन मैं कैसे भी करके किसी बहाने से उनको बात करता था। और ऐसे ही दिन बीते। कुछ दिन बाद में जब मैं अपने घर से बाहर गांव गया तो वहां मुझे चाची से पता चला कि उनकी ये बात उन्हे पता है। मैने जैसे ये सुना मैं हैरान मैने कहा चाची जी आपको ये बात किसने बताई। उन्होंने कहा। की बस पता है। मैने सोचा की बड़ी अजीब बात है। जब किसी ने नहीं बताई तो फिर पता। कैसे है। तब उन्होंने बताया कि उनको क्या सबको पता है। किसको क्या आप जानते हैं तो आप भी अपने से चिपका कर रहे थे। फिर उन्होंने ही बताए। की मेरे और तुम्हारे बीच में एक संबंध है। लेकिन मैं हैरान हूं की उन्होंने मुझसे पूछा भी नही। इसलिए। फिर मैने सोचा। चलो कोई नही। मैं बोला ठीक है लेकिन इस तरह से प्रेम करना चाहिए। और हंसने लगा। उनको कहा की किसी को अभी मत बताना की ऐसा कुछ है। और फिर एक दिन जब मैं अपने कमरे मे कुछ कर रहा था। तब अचानक से चाची के फोन पर फोन आता है। और मैने देखा कि किसका फोन है। अचानक मुझे एक नाम दिखाई। दिया। की कुसुम लिखा है। मैने सोचा की क्या करू। मैने फोन न देने की बजाए फोन उठा लिया। और बोला हेलो दोस्त उधर से निकली हुई आवाज ने मुझे हैरान किया। उन्होंने कहा कौन,मैने कहा की ऐसा क्यों बोलती हो उन्होंने फोन रख दिया। फिर मैने चाची से कहा की आप का फोन आया था। उन्होंने कहा की कौन है। मैने कहा की है कोई जो की बहुत खास है। इतना कहकर क्रमशः ‹ पिछला प्रकरणप्रेम निबंध - भाग 6 › अगला प्रकरण प्रेम निबंध - भाग 8 Download Our App