The Author Anand Tripathi फॉलो Current Read प्रेम निबंध - भाग 10 By Anand Tripathi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books दरिंदा - भाग - 9 प्रिया जब अगले दिन अल्पा से मिलने गई तब उसने एक बार फिर से प... दादीमा की कहानियाँ - 2 दादीना की कहानियाँ, पढ़ने जे बाद मुझे comments अवसता चाहिए...... सर्विस पॉर्ट - 2 . पार्ट 2 प्रियंका &#... इंटरनेट वाला लव - 88 आह में कहा हु. और टाई क्या हो रहा है. हितेश सर आप क्या बोल र... सपनों की राख सपनों की राख एक ऐसी मार्मिक कहानी है, जो अंजलि की टूटे सपनों... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Anand Tripathi द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 17 शेयर करे प्रेम निबंध - भाग 10 (1) 2.2k 4.5k उनकी कॉल का इंतजार करके थक जाने के बाद मैं जाकर सो जाता हूं। और सोचता हूं। की क्या सही है और क्या गलत हे इसका निर्णय कौन कर सकता है। फिर कुछ दिन उनकी कॉल का इंतजार और जैसे तैसे फिर दिन बीते। एक दिन मैंने कॉल किया। लेकिन उन्होंने उठाया ही नही। मैसेज उसका भी कोई उत्तर नही। कभी कभी उनका रूठना और हमारा मनाना भी रहना चाहिए नही तो कली को सूखने में देर नहीं लगेगा। इसलिए उनका ख्याल रखो जो कभी आपको देखकर मुस्कुराते हो। बस यही प्यार है। आज कल वक्त कुछ देर से अपनी चाल चल रहा था लेकिन मुझे पता था की उनका गुस्सा कुछ घड़ी बाद शांत हो जायेगा। इसलिए। फिर दिन बीते और कुछ शिलशिले वार क्रम से वो अपना गुस्सा शांत करने में लग गई। उनको एक बात की शिकायत थी की तुम दिन भर फ्री क्यों नहीं रहते हो। मैं कहता था। की मैं कैसे फ्री रहूं जब मुझे समय लगता है तब मैं तुमसे ही बात करता हूं। ऐसा नहीं है। की तुम गैर हो। मुझे मालूम था कि मैं समय का थोड़ा पाबंद हूं। फिर भी वक्त निकलता था। इसलिए ताकि इनको थोड़ा वक्त दूं। और दो चार बाते शेयर करूं। लेकिन इनका मन कुछ अलग ही फुसफुसाहट में था। जैसे की कोई अड़चन ही हो। हमेशा की तरह उस रात को भी फोन की घंटी बजती है। और मुझे कमरे से उठकर बाहर जाना पड़ता है ताकि मैं इन्हें कुछ अपनी और कुछ उनकी बता और सुन सकूं। अगली सुबह मैं जैसे उठा तो सिरहाने से सटे मोबाइल में इनका मैसेज पाया लेकिन उसमे लिखा होता है। बस अब मुझे कभी तुम कॉल मत करना दुश्मन कही के। और जोर से सांस भर कर चुप हो गई। मैने कहा अरे कैसा दुश्मन कहा की दुश्मनी क्या कह रही हो कुछ समझ नहीं आ रहा है। कुछ बताओ तो समझूं। इतना सुनकर उन्होंने अपना फोन काट कर और स्विचऑफ भी कर दिया। वो जब भी ऐसा करती तो मुझे अचरज होता था की कही कुछ अनर्गल न हो। ऐसा इसलिए क्योंकि वो बड़ी जज्बाती थी। बस ये जज्बात ही था जो की एक दूरी का मुख्य कारण बन गया था। जो कुछ भी था बस अब तो समय कट रहा था। उनके और मेरे बीच ऐसा धीरे धीरे क्यू हो रहा था। कुछ पता नहीं चल पा रहा था। लेकिन चलो चलाना तो था ही। उनका यूं अक्सर गुमसुम सा होना किसी चीज को लेकर परेशान करता था। मैं और वो दोनो एक दूसरे को समझते तो थे लेकिन विवशता वश ऐसा लगता था। उनके लिए मैने ना जाने। कितने पापड़ बेले न जाने कितने लोग को चोट भी सहनी पड़ी बदनाम भी होना पड़ा उनके सामने जो मुझे कभी एक निखरा हुआ व्यक्तित्व मानते थे। पार्कों में सब खेलते थे मैं बाते करता था। सब खाना खाते थे मैं बाते करता था। मैं आज तक कही कभी भी फालतु नही बैठा लेकिन सिर्फ बात करने के लिए ही मैं न जाने कैसी और कितनी गलियों के कोने पकड़ कर बैठा था। केवल इनकी ही वजह से मैं कोचिंग जाने लगा पढ़ाने लगा। और तो और दिन में दो बार इनकी गली से भी गुजरता था। सिर्फ इनको देखने के लिए। मेडिकल सीखने के लिए जाने का बहाना बस इनसे बात करना था। ऑफिस के काम के साथ इनके मैसेज कॉल रिप्लाई न जाने क्या क्या। जीने पर मिलना चुपके से और हाथ पकड़े खड़े रहना कोई भी छोटी से बड़ी चीज पर उनके घर जाना उन्हें विश करना होता था नही तो वो गुस्सा हो जाती थी। उनका मत जानना बड़ी बात थी। जब भी मैं उनसे अपने करियर पढ़ाई और भविष्य की बात तो उनको चिढ़ मचती थी। वो कहती थी। यही बात करना है तो फोन रख दो ना। इसलिए फोन किए हो न ।.. ‹ पिछला प्रकरणप्रेम निबंध - भाग 9 › अगला प्रकरण प्रेम निबंध - भाग 11 Download Our App