प्रेम निबंध - भाग 11 Anand Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम निबंध - भाग 11

तुम बता क्यों नही देते की तुम्हे मुझसे प्यार तो था ही नही बस कह दो ना और चले जाओ मेरा पीछा छुड़ा के मेरे पास से यार तुम
मैं क्या कहूं तुम्हे। मतलब तुम किस मिट्टी के बने तुम्हे मेरी बात समझ नही आती क्या कुछ बोलो अब बोलते क्यों नही। मैं न सच्ची बता रही हूं। दुखी हों गई हूं।
सारा दिन ऐसा क्या करते हो जो मुझसे बात नही कर पाते हो।
शिवू यार तुम से दिन में तीन से चार बार तो बात करता हूं। अब इससे ज्यादा टाइम कहा से लाऊं। जो तुम्हे खुश कर सकू तुम्हे समझ ही नहीं आता है। जब भी मौका मिलता है बस चिल्लाना शुरू।
मतलब अजनबी है हम आपके लिए ऐसा कहना चाहती हो। और पीछा तो तुम छुड़ाना चाहती हो yr
कितनी चालाक लड़की हो तुम
अरे फोन काट दिया।
घंटी जाती है पर फोन नही उठाया जाता है। मैने दुबारा मिलाया और उन्होंने कहना शुरू किया की सारा दिन बेज्जती मारते हो और कुछ नही एक दिन पता चलेगा जब नही मिलूंगी न तब।
अभी तो कदर नही। मोहब्बत है हो गई तो अब निभाओ न।
क्यों नहीं मानते अपनी गलती और भी बहुत कुछ। मेरी गलती
है सब,नही गलत तो मैं थी ने जो तुम्हारे गले पड़ी जनाब सीनियर अधिकारी।
लेकिन तुम्हे तो फुरसत ही नही है। अपनी सादी में तुम न फेरे किसी और से करवा लेना और सुहागरात चलो छोड़ो तुम्हे तो फर्क नहीं पड़ता है। आज सुनो लो आज के बाद फोन मत करना
पार्क के एक साइड सब भाई और दोस्त लोग खेल रहे थे और मैं किसी ग्रसित पति की तरह इधर सब सुन रहा था। जैसे कोई टीचर ने मुझे डटने का ठेका ले रखा है।
मैने फोन रख और खेलने चला गया। और इनको शाम को फोन करने का मैसेज डाल दिया। शाम को जैसे तैसे तैयार हो मैं मेडिकल से दवाई लेने के बहाने निकला और दूर किसी गली के कोने में गया और कोने पर छीचोरो की तरह खड़ा हो इनके फोन का इंतजार करने लगा।
फोन आने के बाद फिर वही शुरू हो गया। जो पहले से ही शुरू हो रखा था। मैने बहुत समझाया तब जाके कुछ मन शांत हुआ। वही कुछ झूठी कसमें भी खाई गई दिन में जब फोन करूंगी उठाओगे मुझे नहीं पता कहा हो क्या कर रहे हो नही उठाया न तो फिर देख लेना।
नही मैं पक्का उठाऊंगा ऐसा कहकर मैंने अक्रोशित मन को परमगति प्रदान करवाई। और घर आ गया। लेकिन अब घर की डांट खाओ आधी जिंदगी तो डांट खाने में जा रही थी। ऐसा कई बार लगता था। की अभी मेरा बचपन शुरू हुआ है। जैसे कोई मछली बिना पानी के तड़पती थी। वैसे ही मैं। जिंदगी के दिन ऐसे कट रहे थे। कभी गली में तो सुनसान जगह। वैसे मैने अपने लोकल एरिया और दिल्ली कई जगहों पर इसलिए ताकि इनसे बात कर सकू कम से कम नहीं तो दिन के 5 घंटे तक। वो भी लगातार। लेकिन सच कहूं तो अब वो लाइफ जो की शिवू के रहने पर थी।
अगले दिन फोन नही आता है लेकिन खबर आती है। कि ,,,,,,