प्रेम निबंध - भाग 12 Anand Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम निबंध - भाग 12

जब आपकी किसी से बात सही ढंग से न हो तब आपको बड़ा अजीब महसूस होने लगता है। की इसके साथ क्या चल रहा है ?
मुझे कई दफा बहुत चिंता भी होती थी। लेकिन इनके अंदर मैने हिम्मत तो देखी थी। जो की सच में कमाल की थी। थोड़े सघन वनों की तरह इनका मन हमेशा उलझा पाया।
बस पहले जब यहां आई तो मम्मी की याद और अब मेरी याद। दोनो से रूबरू होना तो मुश्किल ही था लेकिन बहुत अनंत बार प्रयास करने पर हम कई दफा एक साथ हो जाते थे जहां कोई हमे परेशान करने वाला नही था।
समय तय हो जाता था जब मिलना होता था। संघर्ष रत जीवन में संघर्ष वाला प्रेम प्रथम बार देखने को मिला।
अद्भुत था वो पल जिसमे तुम थी। मुझे आज भी वो दिन याद है। जब तुम मेरे लिए कुछ न मिलने पर नमकपारे और रसगुले लेकर आई थी। और मुझे आधा खिलाकर खुद आधा खा गई थी। मैं आश्चर्य में तो था। की यह क्या पटकथा लिखी जा रही है। क्या यह सत्य है।
परंतु क्षण भर बाद जब उन्होंने मेरे गालों पर अपने अधर को छुआ कर भागी तो मुझे अहसास हुआ की यह प्रेम की प्रथम तल से शुरवात हो चुकी है। इस प्रथा के बाद मैने अपने को उस दिन से साधना शुरू किया क्योंकि प्रेम को अगर एक कामना में देखे तो वह जल्दी समाप्त होने वाली वस्तु निकेलगी। जैसे आज अमुक पुष्प गुच्छ और कल कोई और।
इसलिए आप को स्वयं को समर्पित करना जरूरी है।
जहां तक हो सके। वहां तक तो हो।
कई बार सीढ़ियों पर तो कई बार कोई न हो तब हम एक दूसरे से मिलते चाहे वह मिलना क्षण भर का ही क्यों न हो।
थोड़ी बाते होती और फिर हम दोनों एक दूसरे को किसी के आने के अंदेशे से अलविदा कह देते थे।
कभी इशारे में तो कभी किसी और प्रयोजन से।
एक दूसरे के रूठने और मनाने के क्रम को आगे बढ़ाते रहते थे।
वो चाहती तो अंबानी से कहकर एक आजीवन न खत्म होने वाला जियो का सिम बनवाकर मुझसे ढेरो बाते करती रहती।
लेकिन अंबानी का बिजनेस थल पे आ जाता ना।
मुझसे वो कितना भी बात कर ले उनको लगता था की अभी बात ही क्या हुई है
जैसे की अभी खाया ही क्या है। ,,
वो बाते करती और मैं सुनते जाता सुनते जाता ,,
उनकी सिर्फ बाते सुनने के लिए मैं कभी दूर गली के कोने में तो कभी मेट्रो करके किसी दूसरी जगह। कभी रात में तफरी करते हुए।
तो कभी किसी और बहाने से।
मुझे आज्ञा लेनी पड़ती थी रखने के लिए। फोन
परन्तु उनको जब कोई आता दिखे तो फोन अपने आप ही कट जाता था।
कभी जीवन में कोई ऐसा संग मिले तो इसको ईश्वर का प्रसाद माना जाना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की ऐसी अभिलाषा तो बहुत ही कम पूर्ण होती है।
सत्यता में वो एक बेहतरीन अदाकारा और एक बेहतरीन गायिका हो सकती थी अगर वो भरसक प्रयास करती तो।
वो काफी उस्ताद जैसी लड़की थी। जिसको मैं जी रहा हूं।
आज भी कभी कभी उनकी यादों के शाए में मुझे शुकूं और दुख दोनो ही मिल जाया करता है।
अगला भाग ...…......