Prem Nibandh - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम निबंध - भाग 15

अब सब बताया है तो ये भी बता ही दो कब कर रही हो निकाह कुबूल उससे। जिसके जिस्म से अमीरियत की बू सूंघ कर उसके पास चली गई। और इल्जाम मां बाप पर लगा रही हो। की सब उनकी मर्जी के हिसाब से है।
एक आवाज़ आई : की जब भी हो तुमसे आखिर मतलब ही क्या है ?
जो होना था वो तो हो ही गया न ,
हिचके से स्वर में बोली : एक बात कहूं मैं आप को बहुत चाहती हूं। लेकिन आप मुझसे न जाने कितना दूर जाते जा रहे हो। क्या मुझसे कोई दुर्गंध आती है। तो पहले ही बता देते। सज़ा तो मुकरर न होती।
इतने शब्द बाण सुनते ही मुझे लगा की शायद यहां कुछ न बोला जाए नही तो बात को सिर्फ बढ़ावा ही मिलेगा। जो की एक अच्छी बात नही है। सच को मन ही जाने तो बेहतर है। ,
मैं: नही ऐसा नहीं है , बस आज कल तुम्हारी व्यस्तता बढ़ गई। नही तो मैंने तुम्हे कभी ऐसा नहीं कहा जैसे तुम कह रही हो।
और वैसे भी तुम्हे ये सब आज याद आ रहा है। वर्षो के बाद कहा थी बीच में दिनों दिन , कहा था तुम्हारा प्रेम, जाओ
अपना काम करो
हम कोई फालतू बहस नहीं करनी चाहिए ज्यादा बेहतर रहेगा।
उन्होंने कहा, की मेरी बाते तुम्हे शुरू से एक बहस ही लगी है। हा ये सच है ,
इसको तुम झुटला नही सकते।
ये तो आज न जाने क्यों तुमने कॉल रिसीव कर लिया।
बड़ी मेहरबानी।
जब तक मैं कुछ कहता तब तक फोन कट जाता है। और स्विच ऑफ भी। हो जाता है।
एक अजनबी के संग कुछ दिन बिताने के बाद एक अपनापन सा महसूस हो जाता है। और वही प्रेम बन जाता है।
इतना सोचकर मैं वापस लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए चला जाता हूं।
एक दिन मैं घर पर होता हूं। और मुझे किसी से पता चलता है। की इनका आना हुआ है। मुझे न जाने क्यूं अनवश्यक क्रोध आता है। और मैं वहा से कही और चला जाता हूं।
कुछ दिन इनको यह सोचकर नजर अंदाज करता हूं। की अब इनका मेरा क्या संबंध ?
फिर एक दिन कोई मुझे आकर कहता है की आप को वो याद कर रही थी। आप उन्हें देखते भी नही और न ही उन्हें निहारते हैं।
ऐसा क्या हुआ की आप इतने बुरे हो गए।
मैने कहा : की ऐसा कुछ नही है मुझे समय नही लग पा रहा है।
बस और क्या ?
इतना कहा ही था , की उनका फोन एक नए नम्बर से मुझे आता है।
जैसे मैं फोन उठाता हूं। तो वो कहती है। की आज
पता चला की कोई इतना बुरा भी होता है।
मैं चुप होकर सुनता रहा।
उन्होंने कहा आज रात तुम छत पर आना मुझे तुमसे मिलना है।
पहले तो मैंने मना किया लेकिन उनके जिद्द के आगे मेरी एक न चली।
और मुझे जाना ही पड़ा। लेकिन मैं उनके पास न जाकर एक निश्चित दूरी पर ही खड़ा रहा।
क्योंकि मेरे नियम में अब उनके प्रति प्रेम भाव नहीं था। मैने कुछ देर उनकी ओर देखा उन्होंने मुझे अपनी ओर आने को कहा लेकिन मैं नहीं गया। और धीरे से नीचे चला गया।

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