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बद्रीनाथ ने नीचे से आवाज़ लगाकर विशाल को बैठक में आने के लिए कहा। उसे लगा कि तिवारी के सामने उसने जो कुछ कहा था उसके लिए ही बुला रहे होंगे। कुछ देर बाद वह नीचे उतर कर बैठक में आया। बैठक में बद्रीनाथ के साथ साथ उमा और किशोरी भी थीं। बद्रीनाथ ने बिना कुछ कहे अखबार उसकी तरफ बढ़ा दिया। विशाल अपनी परेशानी में अखबार के बारे में भूल गया था। सब लोग जैसे उसकी तरफ देख रहे थे उससे उसे समझ आ रहा था कि अखबार की खबर के बारे में उन्हें पता है। बद्रीनाथ ने पूछा,
"यह अखबार कहाँ से मिला तुम्हें ?"
विशाल ने कमरे में मौजूद तीनों लोगों पर नज़र डाली। उसके बाद बोला,
"हमारे एक दोस्त ने बताया था कि खबर रोज़ाना नाम के अखबार में पुष्कर की हत्या के बारे में रिपोर्ट छप रही है। लोगों में इस केस की बहुत चर्चा है। हमने अखबार और किताबों की स्टॉल लगाने वाले पप्पू से कहा था कि हमारे लिए खबर रोज़ाना का वह अंक ले आए जिसमें पुष्कर वाली खबर हो। उसने हमें यह लाकर दिया। इसमें किसी चेतन की हत्या के बारे में लिखा है। कहा गया है कि उसकी और पुष्कर की हत्या का तरीका एक जैसा है।"
उमा ने कहा,
"अखबार में लिखा है कि पुष्कर का ताबीज़ खो गया था। उसने और दिशा ने टैक्सी में तलाश किया पर मिला नहीं।"
जबसे किशोरी ने यह बात सुनी थी वह इस सबके लिए दिशा को दोष दे रही थीं। उन्होंने कहा,
"हम कह रहे हैं सब दिशा का किया हुआ होगा। उसने ही पुष्कर के गले से ताबीज़ निकाल लिया होगा। सोचने वाली बात है। हम लोग भी ताबीज़ पहन रहे हैं। हमारा ताबीज़ तो नहीं गिरा।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"जिज्जी अगर दिशा ने ताबीज़ निकाला होता तो ढूंढ़ती क्यों ?"
"ढूंढ़ नहीं रही थी नाटक कर रही थी। वही हमे लग रहा था कि ताबीज़ गले में होते हुए भी पुष्कर पर वह विपदा आई कैसे। उस जिद्दी लड़की की वजह से हमारे बच्चे की मौत हुई है।"
उमा को भी किशोरी की बात सही लग रही थी। उन्होंने कहा,
"हम लोग बात कर रहे थे ना कि तांत्रिक बाबा के ताबीज़ ने काम क्यों नहीं किया। अब समझ आया। दिशा ने ताबीज़ खोलकर फेंक दिया होगा। जब पुष्कर को ताबीज़ का होश आया होगा तो खोजने का नाटक करने लगी। हम कह रहे हैं कि उसका अब इस घर से कोई संबंध नहीं है।"
बद्रीनाथ को यह सारी बातें पसंद नहीं आ रही थीं। इस बात का आश्चर्य उन्हें भी था कि गले में सॅ ताबीज़ निकल कैसे गया। लेकिन दिशा ने जानबूझकर निकाला था इस बात पर उन्हें यकीन नहीं था। उन्होंने कहा,
"ताबीज़ गले से कैसे निकल गया यह सोचने वाली बात है। लेकिन यह भी सोचो कि अगर दिशा ने खोलकर निकाला होता तो क्या पुष्कर को पता ना चलता।"
उनके इस तर्क का उमा और किशोरी पर कोई असर नहीं हुआ। दोनों इसी बात पर अड़ी रहीं कि दिशा ने ताबीज़ गले से निकाला था। इसी बहस के बीच में दरवाज़े पर दस्तक हुई। विशाल उठकर दरवाज़ा खोलने गया। केदारनाथ आए थे। उन्होंने विशाल से कहा,
"तुम्हारा फोन क्यों नहीं लग रहा है ?"
विशाल ने उनके पैर छुए। उसने कहा,
"रीचार्ज खत्म हो गया था। करवाया नहीं। अब करा लेंगे।"
केदारनाथ बैठक में गए। उन्होंने किशोरी के साथ भाई और भाभी के पैर छुए। कुर्सी पर बैठकर बोले,
"इंस्पेक्टर हरीश यादव का फोन आया था।"
विशाल ने कहा,
"पुष्कर के केस में कोई खुलासा हुआ है क्या ?"
केदारनाथ की नज़र अखबार पर पड़ी। उन्होंने उठाकर पढ़ा। फिर बोले,
"आप लोगों ने पढ़ ली यह खबर। इसी के बारे में इंस्पेक्टर हरीश पूछ रहा था। कह रहा था कि उसे जानना है कि ताबीज़ का क्या चक्कर है।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"तो तुमने क्या जवाब दिया ?"
"भइया हमें लगा कि आप लोगों से बात किए बिना हम क्या जवाब दें। हमने यह कहकर टाल दिया कि हमें ताबीज़ के बारे में कुछ नहीं पता है। वह तो विशाल को फोन कर रहा था। पर इसके फोन की इनकमिंग बंद है। इसलिए मुझे फोन किया। पहली बार में तो हम स्कूल में थे इसलिए उठाया नहीं। जब घर आए तो उसने दोबारा फोन किया। तब बात हुई।"
विशाल ने कहा,
"उसे आपकी बात पर यकीन हो गया ?"
"लगता तो नहीं है। कह रहा था कि टैक्सी वाले ने पुष्कर और दिशा का सामान थाने में जमा करा दिया था। उसका कहना है कि तुम या भाइया में से कोई आए और ले जाए। तब इस विषय में भी बात कर लेगा।"
बद्रीनाथ और विशाल दोनों सोच में पड़ गए। कुछ देर बाद विशाल ने कहा,
"पापा बताइए क्या किया जाए ?"
बद्रीनाथ कुछ समझ नहीं पा रहे थे। उन्होंने कहा,
"हमें तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। सामान तो आगे पीछे मंगा लेंगे। पर इंस्पेक्टर हरीश को ताबीज़ के बारे में जानना है। क्या बताएंगे उसे ?"
किशोरी ने कहा,
"जो सच है वह बता दो।"
उनकी बात केदारनाथ को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कहा,
"जिज्जी सच बताने का मतलब है सारी कहानी बताना। अपने घर की बात बाहर क्यों बताई जाए।"
किशोरी ने चिढ़कर कहा,
"तो फिर जो समझ आए बता दो। वैसे भी पुलिस हमारी क्या मदद करेगी। पुष्कर को वापस ला नहीं सकती है। उसके कातिल को पकड़ना उनके बस का नहीं है।"
यह कहकर वह उठकर चली गईं। उमा भी चाय बनाने के लिए चली गईं। बद्रीनाथ ने कहा,
"केदार जिज्जी की बात भी ठीक है। पर पुलिस को कुछ तो बताना होगा।"
एकबार फिर कमरे में मौजूद तीनों लोग सोच में डूब गए। सब अपने अपने तरीके से सोच रहे थे कि पुलिस को क्या बताया जाए। कुछ सोचने के बाद विशाल ने कहा,
"हम कह देंगे कि एक खानदानी रस्म है। उसके अनुसार नए जोड़े की रक्षा के लिए उन्हें ताबीज़ पहनाया जाता है। पुष्कर और दिशा को भी पहनाया गया था। किसी कारण से पुष्कर का ताबीज़ खो गया।"
केदारनाथ ने कहा,
"तुम्हारे सुझाव में एक कमी है। हमने पुलिस से कहा है कि हमें ताबीज़ के बारे में कुछ नहीं पता है। हम चाचा हैं। इंस्पेक्टर हरीश पूछेगा कि एक ही खानदान के होकर हम खानदानी रस्म के बारे में क्यों नहीं जानते थे।"
केदारनाथ ने सही बिंदु उठाया था। एकबार फिर सब सोचने लगे। इस बार बद्रीनाथ ने कहा,
"थोड़ा सा बदल देते हैं। कह देंगे कि कुंडली के हिसाब से पुष्कर के ग्रह सही नहीं चल रहे थे। इसलिए हमारी जिज्जी यानि की पुष्कर की बुआ ने पुष्कर और दिशा की हिफाज़त के लिए ताबीज़ बनवा कर पहना दिया।"
यह विचार विशाल और केदारनाथ दोनों को ठीक लगा। बद्रीनाथ ने कहा,
"रही केदार की बात कह देंगे कि वह अलग रहता है इसलिए उसे पता नहीं चल पाया।"
विशाल ने कुछ सोचकर कहा,
"तो फिर आप हमारे साथ चलेंगे ?"
"अब हमारा स्वास्थ कहाँ बहुत अच्छा रहता है। हम नहीं जाएंगे। हम तो कहते हैं कि तुम भी मत जाओ। अपने फोन में रीचार्ज डलवाओ और फोन करके सब बता दो।"
अंततः तय हुआ कि विशाल फोन पर जो निश्चित हुआ है बता देगा। सामान के संबंध में कह देगा कि दिशा से पूछकर उसका सामान उसके घर पहुँचा दें। पुष्कर का सामान वह अपनी सुविधा से आकर ले जाएगा।
इंस्पेक्टर हरीश सोच में था। विशाल ने ताबीज़ के बारे में जो बताया था वह विश्वसनीय लग तो रहा था पर उसे पूरा यकीन नहीं हो रहा था। उसके मन में बार बार आ रहा था कि बात कुछ और ही है। वह सोच रहा था कि विशाल को फोन करे और कहे कि वहाँ आए और बात करे। पर वह इस बात के लिए भी आश्वस्त नहीं हो पा रहा था। वह अजीब सी उलझन में था।
अब एक नहीं दो हत्याएं हो चुकी थीं। मीडिया में दोनों हत्याओं को जोड़कर देखा जा रहा था। उस पर दबाव था कि जल्दी ही केस सॉल्व करे। पर अभी तक कुछ भी हाथ नहीं आया था। इस बात से उन अफवाहों को बल मिल गया था जिनमें हत्या के पीछे किसी शैतानी शक्ति या अतृप्त आत्मा का हाथ बताया जा रहा था।
इंस्पेक्टर हरीश परेशान बैठा था। उसका फोन बजा। उसके सीनियर का फोन था। उन्होंने बताया कि पुष्कर और चेतन की हत्या को लेकर तरह तरह की बातें हो रही हैं। अभी तक पुलिस को कोई सफलता हाथ नहीं लगी है। इसलिए इन दोनों केस की ज़िम्मेदारी क्राइम ब्रांच को सौंपने का फैसला हुआ है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्राइम ब्रांच की तरफ से यह केस किसके सुपुर्द किया जाएगा। जल्दी ही इस विषय में सूचना मिल जाएगी।
केस क्राइम ब्रांच को सौंपा जाने वाला है यह सुनकर इंस्पेक्टर हरीश और परेशान हो गया। उसे लग रहा था कि केस क्राइम ब्रांच को सौंपा जाना उसकी काबिलियत पर सवाल खड़े कर रहा है। लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था। यह भी सच था कि केस में अब तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी थी। ताबीज़ वाली बात ने एक उलझन और पैदा कर दी थी।
इंस्पेक्टर हरीश ने अपना फोन उठाया। उसने दिशा को कॉल लगाया। दिशा से सामान के बारे में बात की। दिशा ने बताया कि वह दिल्ली में है। उसने अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली है। उसके लिए सामान लेने आना संभव नहीं है। ना वह किसी को भेज सकती है। उसने सामान कुरियर करने के लिए कहा।
दिशा से सारी डीटेल लेने के बाद इंस्पेक्टर हरीश फोन काटने जा रहा था तभी उसके मन में ताबीज़ वाली बात आई। उसने दिशा से ताबीज़ के बारे में पूछा।
दिशा ने जो बताया सुनकर इंस्पेक्टर हरीश को लगा कि विशाल और उसके घरवालों से मिलना बहुत ज़रूरी है।