वजूद - 9 prashant sharma ashk द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वजूद - 9

भाग 9

तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। उसने पलटकर देखा तो सेना का एक जवान था। बोल ना पाने की स्थिति में शंकर की आंखों से सिर्फ आंसू बह रहे थे उसने हाथों से इशारा कर अपने घर के बारे में उससे पूछा। सेना के जवान ने उसे कहा कि यह इलाका नदी के सबसे पास था। यहां जो कुछ भी था वो पानी में बह चुका है। हम दो दिन से यहां है यहां बहुत तलाशी लेने के बाद भी हमें यहां कुछ नहीं मिला है। उस जवान की बात सुनने के बाद शंकर लगभग बेहोश हो चुका था। सेना का जवान उसे उठाकर उस कैंप तक ले आया, जहां गांव के बाकि बचे हुए लोग थे। सुखराम काका भी वहां आ चुके थे। कुछ देर बार शंकर होशा में आता है तो देखता है कि उसके गांव के कुछ लोग उसके आसपास बैठे हुए हैं। प्रधान गोविंद राम उसके सिर पर हाथ फिरा रहे थे। वह उठा और उसका पहला प्रश्न था प्रधान जी भैया, भाभी ?

प्रधान जी ने सिर्फ अपने नजरें झुका ली थी। वो तुरंत उठाता है और फिर दौड़ पड़ता है अपने भैया और भाभी की तलाश में। करीब दो घंटे के बाद वो थका हुआ फिर कैंप की ओर लौट आता है। उसकी आंखों से आंसू नहीं रूक रहे थे। उसे अपने भैया और भाभी की हर बात याद आ रही थी। सेना के जवान जब खाना लेकर आए तो उसे याद आ रहा था कि कैसे वो अपने भैया और भाभी के साथ खाना खाता था। वो खाट बिछाता था, भाभी खाना लेकर आती थी, वो खाने से मना करता था तो भैया और भाभी जबरदस्ती उसकी थाली में रोटी रखा करते थे और फिर भाभी उसे प्यार खाना खिलाया करती थी। इन बातों को याद करते हुए वो फफक पड़ा था। सेना के जवान द्वारा दी गई थाली अब भी ऐसे ही रखी हुई थी।

कुछ देर बाद प्रधान गोविंदराम उसके पास आते हैं और उसे समझाते हुए कहते हैं-

शंकर अब जो होना था वो हो गया है। भगवान की मर्जी पर हम इंसानों की मर्जी नहीं चलती है। जो हुआ है उसे तुझे सहना होगा और आगे बढ़ना होगा।

प्रधान जी सिर्फ दो दिन दो दिन में तो मेरी पूरी दुनिया ही बदल गई। सुखराम काका के साथ जब शहर गया था तो भैया खेत पर थे, भाभी घर पर थी। वो मुझे कह रही थी कि मैं अपना ख्याल रखना, मैंने तो उनका कहना मान लिया पर उन्होंने मेरा कहना नहीं माना। मैंने तो भैया से भी कहा था कि भाभी का ख्याल रखना, उन्होंने भी मेरी बात नहीं मानी। अब मैं किससे शिकायत करूं।

शंकर बेटा इस बाढ़ सिर्फ तेरा ही नहीं ना जाने कितनों के घर उजड़ गए हैं प्रधान जी ने शंकर को दिलासा देते हुए कहा।

लोगों घर उजड़े हैं प्रधान जी और मेरी दुनिया। भैया और भाभी के अलावा मेरा कौन था? अब कौन मुझे बेटा कहेगा, कौन मुझे जबरदस्ती रोटी खिलाएगा। अब में किसके लिए खेत पर रोटी लेकर जाउंगा। शंकर अपने आंसूओं को पोछते हुए बोला।

मैं मानता हूं बेटा कि इस समय यह दुख सहन नहीं होगा, पर वक्त सब घाव भर देता है। अब खुद को संभाल और ये रोटी खा। फिलहाल तो इसी से काम चलाना पड़ेगा। फिर तू खुद को अकेला क्यों समझता है हम सब भी तो तेर ही साथ ही है। देख यहां हर कोई इस बाढ़ में तबाह हुआ है। किसी का घर, किसी का कोई अपना इस तबाही में खोया है। यहां सब दुखी है, पर सब आगे बढ़ने की सोच रखते हैं, तू भी खुद को संभाल और आगे बढ़। तुझे ऐसे देखकर तेरे भैया और भाभी क्या खुश हो रहें होंगे। हमारे लिए ना सही पर उनके लिए इन आंसूओं को पोंछ दे और उनकी यादों के सहारे अपनी जिंदगी फिर से शुरू कर प्रधान गोविंद राम ने शंकर को फिर से समझाया।

शंकर ने खुद को कुछ संभाला और फिर भारी कदमों के साथ बाहर की ओर निकल गया। एक बड़े पत्थर पर जाकर बैठ गया। प्रधान गोविंदराम ने भी उसे जाने दिया और फिर खुद अपने कैंप में लौट गए। कहते हैं कि जिसका सब कुछ लूट जाता है वह खामोश हो जाता है। शंकर भी खामोश हो गया था, पर उसका मन खामोश नहीं था। उसके मन में उस बाढ़ से भी ज्यादा तबाही मची हुई थी। वो खुद को अंदर से टूटा महसूस कर रहा था। उसे लग रहा था कि अब उसकी जिंदगी का कोई मतलब ही नहीं है। उसकी दुनिया उसके भैया और भाभी ही थे, जब वे ही नहीं है तो उसके होने का क्या मतलब रह जाता है। कभी उसकी आंखों हरी और कुसुम को याद कर भीग जाती थी तो कभी वो शून्य को निहारने लग जाता था। वो जगह जहां उसका घर था वो उसे उस पत्थर से साफ नजर आ रही थी। जगह तो थी पर जिसे शंकर तलाश कर रहा था वो वहां नहीं था यानि कि उसका घर। उस घर में उसकी भाभी, उसका भाई हरी।

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