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वजूद - 2

भाग 2

शंकर ने कुसुम की बात का जवाब देते हुए कहा- भाभी आप हमें अपना बेटा मानती हो ना, तो फिर हमको इस सब झमेले में मत फंसाओ। हम तो अपनी भाभी मां और बड़े भैया की सेवा में बहुत खुश है। आप दोनों हो तो फिर हमें काहे की चिंता है।

हरी ने कहा और अगर हम नहीं हुए तो ?

शंकर गुस्सा होते हुए- ऐस कभी मत कहना भैया। वरना हम आपसे कभी बात नहीं करेंगे। आप कहां जाएंगे ? आप जहां जाएंगे हम भी आपके साथ आएंगे। हम आपको और भाभी को कभी भी नहीं छोड़ेगें।

अच्छा, अच्छा गुस्सा मत हो चल अब खाना खा ले जल्दी से, हरी ने शंकर को दुलार करते हुए कहा।

तीनों ने खाना खाया और फिर कुसुस अंदर रसोई में चली गई और शंकर ने खाट से झूठे बर्तन उठाए, बरामदे में भरे पानी में उन्हें साफ किया और फिर रसोई में रख आया। इस बीच कुसुम ने भी रसोई की सफाई कर ली थी। हरी बाहर की खाट पर लेट गया था।

शंकर ने कुसुम से कहा- भाभी हम थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहे हैं। सुखराम काका को कुछ काम था। देख लेते हैं क्या काम है। कह रहे थे कुछ पैसे भी दे देंगे।

कुसुम ने शंकर की बात का जवाब देते हुए कहा- ठीक है पर जल्दी आ जाना।

शंकर बरामदे से बाहर निकलते हुए- ठीक है भाभी, जल्दी आते हैं।

जल्द ही शंकर सुखराम काका के घर पहुंच जाता है। कमर में गमछे को बांधते हुए- सुखराम काका ओ सुखराम काका। हम आ गए हैं बताओ का काम करना है आपका।

सुखराम काका अपने कमरे बाहर आते हैं। शंकर आ गया तू ? मैं कब से तेरा ही इंतजार कर रहा था। एक तू ही है पूरे गांव में जो कभी भी काम का मना नहीं करता है। बाकि से कहो तो कहते हैं कि हां काका शाम को कर दूंगा और फिर उनकी शाम कभी होती ही नहीं है।

शंकर ने कहा- काका काम तो करना है अभी करो या शाम को या कल। इससे अच्छा है कि काम खत्म कर दो और फिर जो करना है वो करते रहो।

सुखराम काका ने कहा- हां बेटा पर बाकि को कौन समझाए। चल अब तू आ गया है तो पहले तुझे काम बता देता हूं।

शंकर ने कहा- हां काका बता दो। हम अभी किए देते हैं।

सुखराम काका ने कहा देख शंकर ये तीन सौ बोरी अनाज है। इन बोरियो का यहां से उठाकर वो सामने वाले खेत के बने कमरे में रखना है। यहां से वहां तक की दूरी थोड़ी सी ज्यादा है, पर तू ये काम कर लेगा मुझे ये पता है।

शंकर ने कहा- काका आपका काम हो जाएगा।

सुखराम काका ने कहा अच्छा अब ये बता कि पैसा कितना लेगा।

काका आज तक हमने आपसे कभी रूपए पैसे की बात की है, आपको जो ठीक लगे वो दे देना, हम रख लेंगे।

नहीं बेटा रूपए पैसे की बात पहले से नक्की कर लेना चाहिए। ताकि बाद में कोई मनमुटाव ना हो। सुखराम काका ने कहा।

शंकर ने फिर कहा- काका आपको जो देना हो दे देना। फिर आप हमारे काका हो हम आपसे रूपए पैसे के लिए थोड़े ही लड़ेगे। हम भी तो इस घर में खेले हैं, काकी के हाथ ही रोटी खाई है, हम वो सब नहीं भूलें हैं, यह तो हमारा दूसरा घर है। और घर में काम करने का कोई पैसा लेता है क्या ?

अरे तू तो बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है। चल एक काम करते हैं तुझे एक बोरी का 20 रूपए दूंगा। 300 बोरी के हिसाब से तेरे 600 रूपए हो जाएंगे। ठीक है ?

शंकर ने कहा- हां ठीक है काका। अब हम काम शुरू कर देते हैं।

करीब तीन घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शंकर गमछे से अपना पसीना पोछते हुए सुखराम काका के बरामदे में आ खड़ा होता है। सुखराम काका, सुखराम काका। शंकर ने काका को आवाज लगाई।

शंकर की आवाज सुनकर सुखराम काका कमरे से बाहर आते हैं। हो गया काम खत्म ? सुखराम काका ने पूछा।

शंकर ने कहा- हां काका, गिन लो पूरी तीन सौ बोरी रख दी है, एक भी कम नही है।

अरे बेटा अब तेरे काम के बाद भी मुझे गिनना पड़ेगा क्या। मैं जानता हूं तू अपना काम पूरी ईमानदारी से करता है। यह ले तेरे छह सौ रूपए। सुखराम काका ने जेब से रूपए निकालते हुए शंकर के हाथ में रख दिए।

ठीक है काका तो अब हम चलते हैं फिर कोई काम हो तो याद कर लेना। शंकर ने गमले में रूपए बांधते हुए चलते हुए सुखराम काका से कहा और अपने घर की ओर चल दिया।

शंकर जब घर पहुंचा तो हरी गाय को चारा खिला रहा था और कुसुम बाहर बरामदे में बैठकर सब्जी साफ कर रही थी। हरी को गाय को चारा डालते देख शंकर ने तुंरत कहा- अरे भैया आप काहे कर रहे हैं इतना सा काम तो हम कर देते।

हरी ने कहा- मैंने कर दिया तो क्या हुआ। तेरी भाभी बता रही थी कि सुखराम काका ने तुझे किसी काम के लिए बुलाया है तो मैं समझ गया कि उनको अनाज की बोरी इधर से उधर कराना होगी। वो काम करके तू थक गया होगा इसलिए मैंने कर लिया। आज घर पर हूं तो थोड़ा यहां का भी काम कर लेता हूं।

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