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वजूद - 4

भाग 4

अगले दिन सुबह शंकर जल्दी उठकर गाय को चारा डालने से लेकर घर के बरामदे की सफाई का काम करता है। हरी खेत पर चला जाता है और कुसुम घर के अन्य कामों में व्यस्त हो जाती है। दिन में खाना बन जाता है और शंकर समय पर खाना लेकर खेत पर आ जाता है। हरी और शंकर दोनों साथ में खाना खाते हैं। शंकर खेत में हरी की कुछ मदद करता है और करीब 4 बजे घर के लिए निकल जाता है। घर जाते हुए वो सब्जी और घर को थोड़ा सामान खरीदता है और फिर घर पहुंच जाता है। घर पहुंचते ही एक बार वह गाय को चारा डालता है और फिर उसका दूध दोहकर घूमने के लिए निकल जाता है। गांव में शंकर की छवि एक बहुत ही सीधे-सादे लड़के थी। गांव का कोई भी व्यक्ति यदि उसे काम के लिए कहता था तो वो उसे मना नहीं करता था। इसके बदले गांव के लोग उसे कुछ रूपए भी दे देते थे, जो वो कुसुम को लाकर दे देता था। कुसुम और हरी की शादी को करीब पांच साल हो गए हैं और उनके अब तक कोई बच्चा नहीं है, इसलिए दोनों शंकर को ही एक बच्चे की तरह ही दुलार करते हैं। कुछ दिनों के बाद हरी फसल लेकर शहर की मंडी के लिए रवाना हो जाता है। मंडी में उसे फसल के अच्छे दाम मिलते हैं तो वो शंकर के लिए कपड़े, कुसुम के लिए साड़ी और अपने लिए एक कुर्ता खरीद लेता है। घर आता है कुसुम और शंकर फसल के अच्छे दाम मिलने के लिए कारण बहुत खुश होते हैं।

ऐसे ही एक दिन शंकर के घर के काम निपटा रहा था तभी गांव के पंचायत प्रधान का नौकर राजू शंकर को लेने के लिए आता है। वो उसे कहता है कि प्रधान जी ने उसे बुलाया है। शंकर कुसुम को कहकर राजू के साथ ही चला जाता है।

गांव के पंचायत प्रधान गोविंद राम की गांव में बहुत इज्जत है वे करीब 3 बार से लगातार गांव के प्रधान बनते चले आ रहे हैं। वे हर किसी के सुख दुख में आकर खड़े होते हैं और गांव के विकास पर भी उनका ध्यान रहता है। करीब 50 साल की उम्र होने के बाद भी वे हमेशा अपना काम खुद ही करते हैं। कुछ ही देर में शंकर और राजू प्रधान के घर पहुंच जाते हैं। राजू प्रधान के कमरे में जाता है और तब तक शंकर बाहर बरामदे में ही खड़ा रहता है। थोड़ी ही देर में गोविंद राम कमरे से बाहर आ जाते हैं। उनको देखते ही शंकर उनके पैर छूता है और फिर अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो जाता है।

और शंकर कैसा है तू, हरी के क्या हाल-चाल है ? बहू कुसुम तो ठीक है ना ? गोविंदराम ने शंकर ने पूछा।

जी प्रधान जी आपका आशीर्वाद है, घर में सब ठीक है।

कोई मदद चाहिए तो बेहिचक घर चले आना। गोविंद राम ने एक बार फिर शंकर से मुखातिब होते हुए कहा।

जी प्रधान जी। शंकर ने बस इतना ही कहा।

अच्छा सुन अपना पंचायत कार्यालय है उसकी छत थोड़ा टूट गई है उसकी मरम्मत करना है। बारिश आने वाली है तो फिर छत से पानी कार्यालय में आ जाएगा। इसलिए तू एक-दो दिन में उसकी मरम्मत कर देना।

ठीक है प्रधान जी कर दूंगा।

और सुन वहां हमारे मुनीम बंसीलाल जी होंगे उनसे रूपए ले लेना, जितना तेरा मेहनताना हो।

अरे अपने पंचायत कार्यालय की मरम्मत का कैसा पैसा प्रधान जी। शंकर ने कहा।

नहीं बेटा ये सरकारी काम है, इसका हिसाब देना पड़ेगा। इसलिए तू अपना पैसा ले ही लेना। मैं मुनीम को बोल दूंगा।

ठीक है प्रधान जी। अब मैं चलता हूं।

अरे कहां चलता हूं। घर आया है तो खीर खाकर जा। आज तेरी काकी ने खीर बनाई है।

शंकर वहीं बैठ जाता है और राजू उसे एक कटोरी में खीर लाकर देता है और शंकर वो खीर खाकर कटोरी राजू को देता है और प्रधान गोविंद राम के पैर छूकर फिर अपने घर की ओर चल देता है।

रास्ते में उसे सुखिया काकी नजर आती है, जो एक बड़ा सा थैला लेकर घर जा रही होती है। सुखिया से वो थैला उठा नहीं पा रहा था। शंकर उन्हें देखता है और दौड़कर उनके पास पहुंच जाता है।

काकी इतना बोझ नहीं उठ सकता है तो क्यों उठाती हो ? लाओ मुझे दो मैं घर पहुंचा देता हूं।

अरे शंकर बेटा बहुत लोगों से कहा पर कोई मदद के लिए आया ही नहीं। एक तू ही है जो हर किसी मदद के लिए पहुंच जाता है। सुखिया ने शंकर के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

काकी अब कोई भी काम हो तो मुझे बुला लिया करो मैं कर दिया करूंगा। अब आपकी उम्र हो गई है अब आप आराम किया करो। शंकर थैला हाथ में लेकर काकी का हाथ पकड़ कर चलते हुए बोला।

कहां आराम बेटा ? जब से कमल शहर गया है तब से सारे काम मुझे ही करना है। वो तो शहर गया तो एक बार भी पलटकर गांव नहीं आया। सुखिया ने अपनी बेबसी शंकर को बताई।

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