अभावों के बीच पनपती खुशियाँ Ashish Dalal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अभावों के बीच पनपती खुशियाँ

शिवानी अब भी खुद पर यकीन नहीं कर पा रही थी कि आकाश उसके साथ नहीं है । आकाश को घर छोड़कर गए हुए दो महीने हो गए लेकिन शिवानी को लग रहा था जैसे आकाश के बिना एक लम्बा अरसा गुजर गया हो । आज रविवार की छुट्टी होने से बेटा अंश अभी भी नींद के आगोश में था । शिवानी तो अपनी रोज की आदत के मुताबिक साढ़े छह बजे ही उठ गई । खुद के लिए एक कप चाय बनाकर वो कप लेकर बाल्कनी में कुर्सी डालकर बैठ गई और अनायस ही आकाश से जुड़ी हुई दो महीने पहले की यादें उसके जेहन में तैरने लगी ।

 

“तो तुमने फैसला ले ही लिया है इस नौकरी को स्वीकार करने का ?” किसी से लम्बी बात करने के बाद आकाश ने जैसे ही मोबाइल टेबल पर रखा तो उसके पास बैठकर उसकी बातें सुन रही शिवानी के चेहरे पर चिंता की लकीरे उभरने लगी ।

 

“अब कुछ तो करना ही पड़ेगा न शिवानी । कब तक घर पर खाली बैठा रहूँगा ? लॉक डाउन में पिछली नौकरी छूटे हुए चार महीने हो गए और इन चार महीनों में ग्रेजुएटी का जो पैसा आया था वो भी अब तो खत्म हो गया । अब अगर हाथ में आई हुई यह नौकरी स्वीकार नहीं करूँगा हमारी अब तक की गई बचत भी टूटने लगेगी।” आकाश ने विस्तार से शिवानी को अपने मन की बात बताई ।

 

“एक तो वो लोग सैलरी भी तो तुम्हारी पिछली नौकरी से काफी कम दे रहे और दूसरा तुम्हें अपना घर छोड़कर दूसरे शहर में अनजान लोगों के बीच अकेला रहना पड़ेगा । कैसे मैनेज हो पाएगा आकाश ?” शिवानी को आकाश की चिंता हो रही थी । वो अपनी जिन्दगी में आज तक कभी भी परिवार से दूर नहीं रहा था ।

 

“ये समय ही ऐसा चल रहा है । मार्केट में जॉब ऑफर है नहीं । अब जो जॉब मिल रही है उससे कम से कम घर की ई. एम. आई. और घर खर्च तो निकल जाएगा । बाद की बाद में देखेंगे।” आकाश ने कुछ सोचकर जवाब दिया ।

 

“तुमने एक बार अपना शहर छोड़ दिया तो फिर से इधर आने में मुश्किल होगी । बी ४०४ वाले प्रकाश भाई ने अच्छी नौकरी की लालच में चार साल पहले घर छोड़ा था । अभी तक वो वहाँ अकेले रह रहे हैं और अलका भाभी यहाँ बच्चों के संग अकेले अपने दिन गुजार रही है।” शिवानी आकाश की कही बातें समझने की कोशिश नहीं कर रही थी ।

 

“पगली ! मैं अच्छी सैलरी की लालच में थोड़े ही शहर छोड़ रहा हूँ । ये तो अभी हमारी मजबूरी है । समय ठीक होने पर इधर नौकरी मिल जाएगी तो वापस आ जाऊँगा।” आकाश ने शिवानी को समझाने का प्रयत्न किया ।

 

“मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है । सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक तो तुम अपने सारे कामों के लिए मुझ पर निर्भर हो फिर वहाँ अनजान शहर में अकेले रहकर सबकुछ कैसे मैनेज कर पाओगे ?” शिवानी ने अब अपनी अलग ही चिंता व्यक्त की ।

 

“समय आने पर आदतें बदली जा सकती है । तुम मेरी चिंता मत करो । मुझे तो तुम्हें और अंश को यहाँ अकेले छोड़ने का जी नहीं चल रहा है पर अभी दो चार महीने पहले खुद वहाँ रहकर देख लूँ कि वो शहर और नौकरी रास आती है या नहीं।” शिवानी की बात सुनकर आकाश ने उसे अपनी तरफ से आश्वस्त करते हुए अपनी चिंता जताई ।

 

“तुम हमारी चिंता बिल्कुल भी मत करो । मैं यहाँ सब सम्हाल लूँगी । चिंता केवल तुम्हारी ही है मुझे।” शिवानी ने भी उसे अपनी तरफ से आश्वस्त करते हुए जवाब दिया ।

 

“इंसान के पास अगर कोई विकल्प ही न हो तो जीने के लिए जो राह मिले उस पर चलना ही पड़ता है शिवानी।” आकाश का स्वर अब गंभीर हो गया था ।

 

“कब जाना होगा ?” आकाश की बात सुनकर शिवानी ने जानना चाहा ।

 

“पहले वे लोग अगले महीने की पन्द्रह से ज्वाइन होने को कह रहे थे पर अब पहली तारीख से ही ज्वाइन कर लेने को कह रहे है । सोचता हूँ चला जाऊँ। कम से कम पन्द्रह दिन पहले तो सैलेरी शुरू हो जाएगी।” आकाश ने फैसला लेते हुए शिवानी के चेहरे पर नजर डालकर उसका मंतव्य जानना चाहा ।

 

“आज २६ तो हो गई है । इतनी जल्दी कैसे हो पाएगा सबकुछ ?” शिवानी ने दिन गिनते हुए कहा ।

 

“सब हो जाएगा । एक बैग ही तो तैयार करनी है।” आकाश ने पूरी निश्चिंतता से जवाब दिया ।

 

“और तुम्हारे रहने – खाने का बंदोबस्त ?” शिवानी के चेहरे पर चिंता झलक रही थी ।

 

“एक दो दिन होटल में रह लूँगा और फिर ऑफिस के लोकल कलीग्स की मदद से किराये का एक कमरा देख लूँगा । खाने के लिए टिफिन लगवा लूँगा।” आकाश ने कुछ सोचते हुए सुझाया ।

 

“तुम खाने के मामले में बड़े ही चूजी हो । कैसे एडजस्ट हो पाएगा आकाश ? मुझे तो तुम्हारे खाने की चिंता भी हो रही है।” शिवानी आकाश के फैसले से अब भी आश्वस्त नहीं थी ।

 

“कुछ महीनों की ही तो बात है शिवानी । मैंने कहा तो सही कि अपनी आदतें बदल लूँगा । मैं सब एडजस्ट कर लूँगा।” आकाश ने हँसते हुए शिवानी का हाथ थाम लिया ।

 

“तुम्हारी सुबह चाय पिए बिना तो होती नहीं । वहाँ बिस्तर पर कौन चाय देगा तुम्हें ?” शिवानी ने अपनी एक और चिंता व्यक्त की ।

 

“इतनी चिंता मत करो मेरी । कहा न कि मैं खुद को बदल लूँगा । रोज बाहर की चाय पीना महँगा पड़ेगा । देर से ही सही पर सुबह की चाय तो ऑफिस में मिल ही जाएगी।” कहते हुए आकाश एक फीकी सी हँसी हँस दिया ।

 

आकाश को बदली हुई आज की परिस्थितियों में खुद को अनुकूल करने के तमाम प्रयासों की तैयारी देखकर शिवानी आगे कुछ न  बोल सकी ।आकाश के जाने तक अगले कुछ दिनों तक उसने रोज आकाश की पसंद का ही खाना बनाया और उसकी छोटी से छोटी जरूरत का ध्यान रखकर भीगी पलकों से उसे विदा किया ।

 

आकाश के बारें में सोचते हुए उसकी आँखें गीली हो रही थी कि तभी उसके मोबाइल में रिंग बजी । उसने अन्दर जाकर अपना मोबाइल उठाया तो आकाश का फोन था ।

 

“कैसे हो तुम ? बड़ी जल्दी उठ गए आज रविवार के दिन ?” शिवानी ने आकाश का हालचाल पूछा ।

 

“इतनी जल्दी भूल गई । यहाँ अब रविवार की सुबह को भी आराम कहाँ नसीब होता है । रोज सुबह जल्दी उठकर नहा धो लेना पड़ता है  वरना ताजा पानी चले जाने के बाद स्टोरेज टैंक के पानी से नहाना मेरे लिए मुश्किल होता है । यहाँ ठण्डी बहुत ज्यादा गिरती है तो वो पानी बहुत ज्यादा ही ठंडा होता है नहाने के लिए।” आकाश ने मुस्कुराकर जवाब दिया ।

 

“तुम अभी तक ठंडे पानी से नहाते हो ? तुमने पानी गर्म करने के लिए इमर्सन रोड अभी तक नहीं ली ? तुम्हें तो ठंडे पानी से नहाने की जरा भी आदत नहीं है।” आकाश का जवाब सुनकर चिंता व्यक्त करते हुए शिवानी ने एक साथ कई सवाल पूछ डाले ।

 

“तुम्हें पता तो है बहुत पहले एक बार करंट लगने से मुझे बहुत डर लगता है पानी गर्म करने की रोड से।” आकाश ने बहुत पुरानी बात को लेकर अपने मन में समाये डर को अनुभव करते हुए जवाब दिया ।

 

“तो इन्डक्शन ले लो पानी गर्म करने के लिए । सुबह अपनी इच्छा के मुताबिक उससे चाय कॉफ़ी भी बना सकोगे।” शिवानी ने कहा तो आकाश ने जवाब देते हुए बात बदलते हुए कहा, “हाँ, ले लूँगा । अच्छा ये बताओं तुम और अंश कैसे हो ?”

 

“हमें घर पर रहकर क्या तकलीफ हो सकती है ।अंश अभी सो रहा है । अच्छा सुनो ! आज ऑफिस को छुट्टी है तो बाहर चाय पीने जाओ तो मास्क पहनना भूलना मत और जेब में छोटी वाली सेनीटाईजर की बोतल लेकर जाना।” आकाश की बात का जवाब देते हुए शिवानी ने उसे हिदायत देते हुए कहा ।

 

“तुम बहुत ध्यान रखती हो मेरा । सच कहूँ शिवानी तो अब चाय के बिना भी रहने की आदत हो गई है । हर रविवार दो कप चाय पर बीस रूपये खर्च करूँ तो महीने का अस्सी रूपया हो जाता है । पहले तो अस्सी –सौ रूपये बहुत बड़ी रकम नहीं लगती थी पर अब तंगी के दिनों में अहसास होता है कि यह भी सच में बहुत बड़ी रकम है । सौ रूपये बचाकर यहाँ मेरा एक दिन के खाने का जुगाड़ हो जाता है।” आकाश ने हँसते हुए शिवानी को अपने मन में चल रही गिनती से वाकिफ कराते हुए कहा ।

 

“मतलब तुमने छुट्टी के दिन चाय पीना छोड़ दिया ? इतनी कर कसर मत करो वहाँ ... जो जरूरी है वो जरूरी है।” शिवानी ने चौंककर कहा तो आकाश ने उसका मन रखने के लिए अपने चेहरे पर झूठ का नकाब लगाते हुए कह दिया, “मजाक कर रहा था । सौ रूपये कौन सी बड़ी चीज है।”

 

“मैं तो घबरा ही गई थी । अच्छा, सुनो ! तुम आज अपने रूम पर हो तो कामवाली से आज चादर धुलवा लेना और उससे कमरे की खिड़की भी साफ करवा लेना । खिड़की पर जमी धूल से भी कमरा गन्दा होता है। उसे हजार रूपया महिना देते हो तो वसूल भी तो होना चाहिए ।” शिवानी फिर से आकाश को सलाह सूचन देने लगी ।

 

“हाँ ठीक है लेकिन अभी ये सब बातें छोड़ो और थोड़ी प्यार वाली बातें भी तो करो।” आकाश की आवाज में प्यार का की कसक समायी हुई थी ।

 

“अब क्या प्यार वाली बात करूँ ? तुम्हारे बिना तो जिन्दगी जीने जैसी नहीं रह गई।” आकाश की बात सुनकर शिवानी अचानक से उदास हो गई ।

 

“ऐसा मत बोलो शिवानी । ये दिन भी गुजर जाएँगे और हमारा अच्छा समय फिर से आएगा।” आकाश ने उदास हो रही शिवानी को सांत्वना देते हुए कहा तो शिवानी जवाब में कुछ नहीं बोली ।

 

शिवानी को चुप जानकर आकाश ने आगे कहा, “सुनो ! मैंने फोन खास तुम्हें यह बताने के लिए किया था कि कल रात मैंने तुम्हारे अकाउंट में दो हजार रूपये ट्रांसफर किये है।” 

 

“अभी पन्द्रह दिन पहले ही तो सैलरी होने पर तुमने दस हजार ट्रांसफर किए थे । फिर ये दो हजार फिर से क्यों ?” शिवानी ने पूछा ।

 

“ये दो हजार रूपये खास तुम्हारे लिए बचाकर रखे थे । अगले रविवार तुम्हारा जन्मदिन है तो तुम अपनी पसंद का एक सुन्दर सा ड्रेस खरीद लेना और उसे पहनकर जन्मदिन के दिन वीडियो कॉल करना । हम वर्चुअल बर्थडे पार्टी करेंगे।” आकाश ने बड़े ही उत्साह से जवाब दिया ।

 

“सो नाईस ऑफ यू आकाश ! पर अभी तंगी के समय में ये खर्च करने की जरूरत नहीं है । वैसे भी मेरे पास बहुत से पुराने ड्रेस है जो अब भी नए से है । उनमें से ही कोई पहन लूँगी।” शिवानी ने खुश होकर जवाब दिया तो आकाश ने उसे टोक दिया, “तुम आज तक अपने जन्मदिन पर नया खरीदा हुआ ड्रेस ही पहनती आई हो । तुम्हारी यह परम्परा और शौक यूँ ही टूटने थोड़े ही दे सकता हूँ । पैसे अपनी खुशी से महँगे थोड़े ही है। तुम नया ड्रेस ही पहनोगी वरना मैं नाराज हो जाऊँगा ।”

 

“बड़े जिद्दी हो । ठीक है, अब नहाने जाओ नहीं तो पानी चला जाएगा । और हाँ काम वाली को चद्दर धोने देने के लिए देना मत भूलना।” शिवानी ने हँसते हुए कहा तो आकाश ने बड़े ही प्यार से कहा, “लव यू ! ठीक है । बाद में कॉल करता हूँ।”

 

शिवानी ने फोन पर बात पूरी कर आकाश ने अलसाते हुए हाथ में झाड़ू पकड़ ली और कमरे की सफाई करने के बाद पलंग पर बिछी हुई चादर निकालकर पानी में भिगों दी ताकि नहाने के बाद खुद ही कपड़ों के साथ चादर धो सके । हर महीने हजार रूपये कामवाली के पीछे खर्च न कर अपनी शिवानी के जन्मदिन पर नए कपड़ों की रौनक के साथ उसके चेहरे की खुशी देखने के लिए खुद ही झाड़ू-कपड़ा –पोंछा करना उसे दिक्कत वाला काम नहीं लग रहा था । यहाँ आने के बाद ये सब करने की अपनी आदत बना ली थी उसने ।

 

आकाश से फोन पर बात करने के बाद कुछ सोचते हुए शिवानी ने बेडरूम में जाकर वोर्डरोब खोला और इस दफा राखी पर भैया ने गिफ्ट किया हुआ उसने अब तक न पहना हुआ ड्रेस अपने जन्मदिन के दिन पहनने के लिए निकालकर अलग से रख लिया ।