(32)
बद्रीनाथ और उमा को विशाल की चिंता हो रही थी। उमा ने बद्रीनाथ से कहा,
"बेवजह ज़िद करके ऊपर चला गया। हमें उसकी बहुत फिक्र हो रही है। ऊपर अकेला है।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"हमें भी उसकी चिंता हो रही है। जाकर उसे नीचे लाने का प्रयास करते हैं।"
किशोरी ने भी इस बात का समर्थन किया। बद्रीनाथ उठे और छत की तरफ चल दिए। जब वह सबसे ऊपर की सीढ़ी पर पहुँचे तो उनकी नज़र विशाल पर पड़ी। वह सर्दी की रात में छत पर बैठा शून्य में जाने क्या देख रहा था। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। जब तक वह कुछ कहते उन्होंने देखा कि शून्य में ताकते हुआ विशाल अचानक अपने आप से कह रहा है,
"माया अब मेरा कुछ नहीं बिगाड़ेगी। अब उसका अस्तित्व मिटने वाला है। उसका खौफ खत्म होने वाला है।"
यह कहकर वह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। उसकी हंसी भयावह थी। बद्रीनाथ डर गए। फिर अपने आप को संभाल कर विशाल के पास गए। उन्होंने कहा,
"क्या बात है विशाल ?"
सामने अपने पापा को देखकर विशाल सकपका गया। उसने कहा,
"कुछ नहीं पापा। देखना चाहता था कि वह माया अब मेरा और क्या बिगड़ सकती है।"
यह बात बद्रीनाथ को बहुत अजीब लगी। उन्होंने कहा,
"बेटा कहा था कि हमारे साथ नीचे रहो। तुम माने नहीं। अब हमारे साथ चलो।"
यह कहकर उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और नीचे की तरफ चल दिए।
पौ फटने से कुछ देर पहले दरवाज़े पर दस्तक हुई। विशाल ने दरवाज़ा खोला। तांत्रिक अपने चेले के साथ अंदर आ गया। उसने कहा कि सबको उसके पास लेकर आए। उसे बैठक में बिठाकर विशाल ने सबको सूचना दी। सब बैठक में एकत्रित हो गए। तांत्रिक ने कहा,
"मैंने माया से संपर्क साधा था। उससे बात हुई मेरी। वह कह रही थी कि आप लोगों ने उसकी खुशियां छीनी थीं। उसने इस घर में आने का सपना देखा था। जो पूरा नहीं हो सका। वह इस घर को छोड़कर नहीं जाएगी। वह यहाँ रहकर देखेगी कि इस घर में कभी कोई खुशियां ना आएं।"
तांत्रिक की बात सुनकर उमा और किशोरी के चेहरे पर भय दिखाई पड़ा। बद्रीनाथ ने कहा,
"बाबा क्या उससे मुक्ति पाने का कोई उपाय नहीं है।"
"उसने मुझे ललकारा है। कह रही थी कि मैं उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता हूँ। लेकिन मैं उसे आप लोगों को परेशान नहीं करने दूँगा। इसलिए मैं तांत्रिक अनुष्ठान करके उसे हमेशा के लिए यहाँ से दूर भेज दूँगा।"
किशोरी ने कहा,
"तो बाबा आप वह अनुष्ठान कर दीजिए।"
तांत्रिक ने कुछ सोचकर कहा,
"माया जितना सोचा था उससे अधिक शक्तिशाली है। इसलिए विशेष अनुष्ठान करना पड़ेगा। इस अनुष्ठान में कुछ विशेष क्रियाएं होंगी। मेहनत और समय लगेगा। एक छोटी सी चूक मेरे लिए जान का खतरा पैदा कर सकती है। इसलिए यह अनुष्ठान करने से पहले मैं अपने गुरु के पास जाऊँगा। उनसे सही तरीके से सब सीखकर आऊँगा। तब यह अनुष्ठान करूँगा।"
यह बात सुनकर सब गंभीर हो गए। तांत्रिक ने कहा,
"जैसा मैंने बताया कि यह एक विशेष अनुष्ठान होगा। इसके लिए विशेष तैयारियां करनी होंगी। इस अनुष्ठान पर बड़ा खर्च आएगा।"
बद्रीनाथ सोच में पड़ गए थे। उन्होंने किशोरी की तरफ देखा। किशोरी ने कहा,
"पैसा तो आता जाता रहता है। ज़रूरी है माया जैसी विपदा से खुद को मुक्त कराने की।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"ठीक है बाबा.....अब जो भी खर्च है करेंगे। आप बस उस माया से मुक्ति दिला दीजिए।"
तांत्रिक ने कहा,
"वह हो जाएगा। मैं खर्च का हिसाब बनाकर आपको बता दूँगा। आप पैसों का इंतज़ाम कर लीजिएगा।"
उमा ने कहा,
"बाबा जब तक माया से मुक्ति नहीं मिलती है तब तक तो उससे खतरा है। आप अपने गुरु के पास चले जाएंगे। इस बीच उसने कुछ किया तो।"
"आपकी चिंता समझकर मैंने पहले ही उसका उपाय कर दिया है। फिलहाल अपने मंत्रों से घर के चारों तरफ एक कवच बना दिया है। इस कवच को कोई नुक्सान नहीं पहुँचा सकता है। आप लोगों के लिए मैंने ताबीज़ बना दिए हैं। उन्हें धारण करके रखिएगा।"
तांत्रिक ने अपने चेले की तरफ इशारा किया। उसने चार ताबीज़ निकाल कर दिए। तांत्रिक ने कहा,
"सब लोग अभी मेरे सामने एक एक ताबीज़ पहन लीजिए। किसी भी कीमत पर इसे उतारना नहीं है।"
उन चारों लोगों ने ताबीज़ पहन लिया। एकबार फिर माया से मुक्ति दिलाने का वादा करके तांत्रिक अपने चेले के साथ चला गया।
दिशा घर में अकेली थी। उसकी मम्मी अपने ऑफिस गई हुई थीं। वह सोफे पर बैठी अपने फोन की गैलरी में मौजूद तस्वीरें देख रही थी। अधिकतर तस्वीरें पुष्कर की ही थीं। यह तस्वीरें दिशा ने उस समय खींची थीं जब दोनों साथ घूमने गए थे। एकसाथ एक ही कमरे में रहे थे। जो तस्वीरें वह देख रही थी वह उस कमरे में ही ली गई थीं। उनमें पुष्कर अलग अलग मुद्राओं में दिखाई पड़ रहा था। किसी में सोफे पर लेटा हुआ था तो किसी में कमरे की बालकनी में खड़ा था। एक तस्वीर में खाना खा रहा था तो दूसरी में बिस्तर पर सो रहा था। एक तस्वीर में पुष्कर सिर्फ टॉवेल में था। उस तस्वीर को देखकर दिशा के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसे याद आया कि इस तस्वीर को खींचने के बाद उसने पुष्कर को दिखाया था। तस्वीर देखकर पुष्कर बहुत नाराज़ हुआ था। उसने कहा था कि यह तस्वीर फौरन डिलीट करे। दिशा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा था कि इस तस्वीर को वह अपने सोशल अकाउंट पर पोस्ट करेगी। साथ में हैशटैग देगी मेरा सोना बाबू। यह सुनकर पुष्कर उसका फोन छीनने के लिए भागा था। उस चक्कर में टॉवेल गिर गई थी। दिशा खूब हंसी थी।
इस समय भी वह उस लम्हे को याद करके हंस रही थी। हंसते हंसते अचानक वह रोने लगी। मोबाइल की उस तस्वीर को चूम कर बोली,
"मुझे इस तरह छोड़कर क्यों चले गए पुष्कर ?"
वह ज़ोर ज़ोर से रो रही थी। बार बार एक ही सवाल कर रही थी कि मुझे छोड़कर क्यों चले गए। रोते रोते अचानक उसके मन में खयाल आया कि पुष्कर की मौत का कारण क्या था ? इतने दिनों में वह कई बार पुष्कर को याद करके रोई थी। पर उसका ध्यान इस तरफ नहीं गया था। वह बस अपने दुख में डूबी थी। आज पुष्कर को याद करते हुए उसके मन में यह सवाल उठा था।
पहला खयाल उसके मन में आया कि पुष्कर का ताबीज़ उसके गले में नहीं था। वह कहीं खो गया था। वह सोचने लगी कि क्या सचमुच पुष्कर की मौत माया के श्राप के कारण हुई थी ? अपने मन में आए इस सवाल को खारिज करने में उसने ज़रा भी वक्त नहीं लगाया। वह उस दिन के बारे में याद करने का प्रयास करने लगी। वह उस पल को याद कर रही थी जब वह उस आदमी के शोर पर उस तरफ भागी थी जहाँ पुष्कर की लाश पड़ी थी। खून से लथपथ पुष्कर को देखकर वह बदहवास हो गई थी। यह सुनते ही कि यह मर गया है वह बेहोश हो गई थी। फिर भी वह कह सकती थी कि पुष्कर के साथ जो हुआ उसका माया से कोई लेना देना नहीं था।
अब वह सोच रही थी कि उस जगह जहाँ उसे और पुष्कर को पहचानने वाला कोई नहीं था, ऐसा कौन था जो पुष्कर को इतनी बेरहमी से मार गया ? उसकी पुष्कर के साथ क्या दुश्मनी थी जो उसने ऐसा किया ? दिशा याद करने लगी कि उस दिन ढाबे पर उसने कुछ अजीब महसूस किया हो। उसे एक बात याद आई। वह और पुष्कर जिस टेबल पर थे उससे कुछ दूर पर एक आदमी खड़ा था। वह चाय पी रहा था। दिशा ने महसूस किया था कि वह बार बार उनकी टेबल की तरफ देख रहा था। पहले उसने सोचा कि उस आदमी से पूछे कि इस तरह देखने का क्या मतलब है। पर उसे लगा कि पुष्कर भी साथ है। कहीं वह उस आदमी पर नाराज़ ना हो जाए। झगड़ा ना बढ़ जाए। वैसे भी उन्हें चाय नाश्ता खत्म करके जाना ही है। उसने कुछ नहीं कहा। बाद में अपनी मम्मी से बात करते हुए उसने जब उस आदमी की तरफ नज़र डाली तो वह जा चुका था।
पुलिस ने पूछताछ में कुछ सवाल उससे किए थे। पर अपनी परेशानी के चलते तब उसने यह बात पुलिस को नहीं बताई थी। उसे लगा कि यह बात शायद पुलिस के काम आ सके। उसने सोचा कि वह इंस्पेक्टर हरीश यादव से बात करेगी। उनसे यह भी पूछेगी कि पुष्कर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या सामने आया था।
डोरबेल बजी। उसने जाकर दरवाज़ा खोला। सामने शांतनु थे। उन्हें देखकर उसे खुशी हुई। वह काकू कहकर उनके सीने से लग गई। शांतनु ने उसके सर पर हाथ फेरकर कहा,
"कैसी है मेरी डिम्पी ?"
दिशा की आँखें नम हो गईं। शांतनु ने अंदर आते हुए कहा,
"अब खुद को संभालना होगा बेटा। रोने से सच्चाई नहीं बदल जाती है।"
"कोशिश कर रही हूँ काकू। लेकिन ज़ख्म ताज़ा हो तो रह रहकर रिसता है।"
उसने दरवाज़ा बंद कर दिया। शांतनु के पास सोफे पर जाकर बैठ गई। शांतनु ने कहा,
"जानता हूँ कि ज़ख्म जल्दी नहीं भरते हैं। खासकर दिल पर लगे ज़ख्म। पर कोशिश करती रहो। सबसे सही तरीका है कि अब खाली ना बैठो।"
"मम्मी से आज सुबह भी इस विषय में बात हुई। उनका कहना है कि यहीं कोई नौकरी ढूंढ़ लो। काकू मैं चाहती हूँ कि पहले की तरह अपनी ज़िंदगी की डोर अपने हाथ में थाम लूँ। तभी सबकुछ भूल पाऊँगी।"
शांतनु ने कहा कि वह मनीषा को समझाएंगे। दिशा और शांतनु उसकी आगे की ज़िंदगी के बारे में बात करने लगे।