मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२५) Saroj Verma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२५)

और बंदूक चलने की आवाज़ से ओजस्वी जोर से चीख पड़ी फिर बोली....
"आपने ये क्या किया बाबूजी?"
और फिर ठाकुर साहब कराहते हुए लरझती आवाज़ में बोलें...
"तूने मेरे लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा था बेटी! मैं अपने बनाएं नियम को खुद भी नहीं तोड़ सकता था,अच्छी लग रही है तू दुल्हन बनके,भगवान सदा तेरी जोड़ी बनाएँ रखें और इतना कहकर ठाकुर साहब ने अपने प्राण त्याग दिए..."
क्योंकि ठाकुर साहब ने किशोर को नहीं खुद को गोली मारी थी,अपने खानदान की इज्जत बचाने का उनके पास यही उपाय था,जब बेटी ने उनके मन की नहीं की तो उन्होंने इन सब झंझटों से खुद ही छुटकारा पा लिया....
और फिर डायरी का अगला पन्ना पलटते ही वो खाली निकला ,तब साध्वी जी कृष्णराय जी के पास आकर बोलीं...
"डायरी के पन्ने मत पलटिए,इसके आगें आपको कुछ नहीं मिलेगा,क्योंकि शायद किशोर जी अपनी डायरी में केवल इतना ही लिख पाए थे",
"तो इसके आगें क्या हुआ? किशोर की जान कैसें गई,क्या वो बहुत बिमार पड़ा था या उसका किसी ने खून कर दिया था",कृष्णराय जी ने साध्वी जी से पूछा...
"नहीं! ना तो वें बिमार पड़े थे और ना ही उनका किसी ने खून किया था",साध्वी जी बोलीं...
"तो फिर क्या हुआ था उसके साथ,कैसें हुई थी उसकी मौत?",कृष्णराय जी ने पूछा...
"उसके बाद की कहानी मैं आपको सुनाती हूँ",साध्वी जी बोलीं....
"तो सुनाइए ना! मुझे भी किशोर की मौत का राज जानना है,कम से कम उसकी छोटी बहन को ये तो बता सकूँगा कि क्या हुआ था उसके भाई के साथ",कृष्णराय जी बोले...
"तो सुनिए उसके बाद फिर क्या हुआ"?,साध्वी जी बोलीं....
और उन्होंने आगें की कहानी सुनानी शुरू की.....
ठाकुर साहब की मौत के बाद ओजस्वी की छोटी बहन तेजस्वी बहुत अकेली पड़ गई थी और अपने पिता की याद में दिनरात रोती रहती,यहाँ तक कि उसने खाना पीना भी छोड़ दिया था,उसकी हालत देखकर हवेली के सभी नौकर परेशान हो उठे और एक दिन हवेली का महाराज रामू शान्तिनिकेतन आया और ठाकुराइन से बोला.....
"मालकिन!छोटी बिटिया दिन दिन भर यूँ ही रोतीं रहतीं हैं और ना खातीं हैं और ना ही सोतीं हैं,आप ही उन्हें हवेली जाकर कुछ समझा दीजिए",
तब ठकुराइन बोलीं....
"मैं तो हवेली नहीं जा सकती रामू!मेरा वहाँ जाने का मन नहीं करता,हवेली छोड़े तो मुझे सालों हो गए हैं और अब ठाकुर साहब के जाने के बाद वो हवेली एकदम सूनी पड़ गई है,अब तो मैं वहाँ कदम भी नहीं रख पाऊँगीं,तेजस्वी से कहो कि वो ही शान्तिनिकेतन आ जाकर मुझसे मिल जाएं",
"हमने उनसे कहा था मालकिन,लेकिन वें यहाँ आने को तैयार नहीं,",रामू बोला....
"वो मुझसे नाराज़ है रामू!",ठाकुराइन बोली....
"लेकिन क्यों?मालकिन!",रामू ने पूछा...
"क्योंकि मैं सालों पहले ठाकुर साहब और उसे छोड़कर शान्तिनिकेतन आ गई थी इसलिए",ठाकुराइन बोली...
"तो अब मैं करूँ?,कैसें समझाऊँ छोटी बिटिया को",रामू बोला....
"अब मैं तो अपने गुरूजी के पास ऋषिकेश जा रही हूँ,अब इस दुनियादारी में मेरा जी नहीं लगता,ना जाने ऐसा क्यों लगता है कि मैं ठाकुर साहब की गुनाहगार हूँ,अगर मैं ओजस्वी की शादी किशोर से ना करवाती तो शायद ठाकुर साहब ऐसा ना करते",ठाकुराइन बोली...
तभी वहाँ पर ओजस्वी और किशोर आ पहुँचे और किशोर ठकुराइन से बोला...
"माँ!आपको ऐसा क्यों लगता है? इन सब की गुनाहगार आप नहीं,मैं हूँ,अगर मैं ओजस्वी से दूर चला जाता तो शायद ठाकुर साहब ऐसा ना करते",
"नहीं! किशोर जी! आप और माँ इन सबके गुनाहगार नहीं हैं,बाबूजी की असली गुनाहगार तो मैं हूँ,ना मैं उनसे बदजुबानी करती और ना वें ऐसा कोई कदम उठाते",ओजस्वी बोली....
"बेटी! तू ये सब मत सोच ,ये तो नियति का खेल था जो होना था सो हो चुका,किशोर के साथ अपनी जिन्दगी की नई शुरुआत कर,इसलिए सोचती हूँ कि अब मैं हमेशा के लिए ऋषिकेश चली जाऊँ अपने गुरूजी के पास,लेकिन मुझे ओजस्वी की चिन्ता सता रही है,तेरे साथ तो यहाँ किशोर है लेकिन वो बेचारी तेजस्वी वहाँ हवेली में बिलकुल अकेली है,ना जाने कैसें सम्भाल रही होगी अपने आप को",ठाकुराइन बोली...
"तो मालकिन हमारे लिए क्या आदेश है",रामू ने पूछा...
"रामू काका!आप जाइए!माँ के ऋषिकेश जाने के बाद मैं खुद हवेली आकर तेजस्वी को मनाकर यहाँ ले आऊँगीं",ओजस्वी बोली...
"ठीक है बिटिया! हम छोटी बिटिया से कह देगें",रामू बोला....
"नहीं काका! आप उससे कुछ मत कहिएगा,नहीं तो वो मुझे हवेली में कभी घुसने नहीं देगी,बहुत नाराज़ है ना वो मुझसे,मैं उसे बिना खबर दिए ही वहाँ पहुँचूँगी",ओजस्वी बोली....
"ठीक है बिटिया!जैसा आप कहें",
और ऐसा कहकर रामू वहाँ से चला गया,तब ठाकुराइन कौशकी बोलीं....
"बेटी! मुझे लगता है कि वो तेरे मनाने से भी नहीं मानेगी,वो ठाकुर साहब को बहुत चाहती थी,वो उनकी लाड़ली थी ना इसलिए,वो तुझसे बहुत नाराज़ है,"
"माँ! मेरी छोटी बहन को कैसें मनाना है,ये मैं अच्छी तरह जानती हूँ",ओजस्वी बोली...
"हाँ! बेटी! कैसें भी करके उसे मनाकर यहाँ ले आ,तुम तीनों यहीं शान्तिनिकेतन में साथ में रहना,ताकि मैं निश्चिन्त हो जाऊँ",ठाकुराइन कौशकी बोलीं...
"हाँ!माँ! आप चिन्ता ना करें,मैं उसे मनाकर जरूर यहाँ ले आऊँगी",ओजस्वी बोली...
और फिर ठाकुराइन एक दो रोज के बाद अपने गुरुजी के पास ऋषिकेश चलीं गईं और उनके जाते ही ओजस्वी किशोर से बोली....
"मैं हवेली जा रही हूँ तेजस्वी से मिलने और आज उसे साथ लेकर ही लौटूँगी",
"हाँ! मैं भी चाहता हूँ कि तुम दोनों बहनों के बीच का मनमुटाव खतम हो जाए",किशोर बोला...
"हाँ! मैं पूरी कोशिश करूँगी कि उसके मन में जो मेरे प्रति कड़वाहट भरी है वो दूर हो जाएं",ओजस्वी बोली....
"हाँ! मुझे पूरा भरोसा है कि तुम ये कर सकती हो",किशोर बोला...
"इतना भरोसा है आपको मुझ पर",ओजस्वी ने पूछा...
"हाँ! भरोसा है ,तुम पर और तुम्हारे प्यार पर ,लेकिन मुझे ये नहीं पता कि तुम मुझ पर भरोसा करती हो या नहीं",किशोर बोला....
"भरोसा ना होता तो सारी दुनिया से लड़कर आपसे शादी क्यों करती",ओजस्वी रूठते हुए बोली....
"और ये भरोसा हमेशा ऐसे ही कायम रखना ओजस्वी!",किशोर बोला....
"और आप भी मेरे भरोसे को कभी मत तोड़िएगा,नहीं तो कसम खाकर कहती हूँ कि मैं साध्वी बन जाऊँगीं", ओजस्वी बोली...
"ओजस्वी! उसकी नौबत कभी नहीं आएगी",किशोर ओजस्वी को अपने सीने से लगाते हुए बोला....
"तो अब मैं चलूँ",ओजस्वी बोली...
"हाँ! जाओ और जल्दी ही लौट आना,यहाँ तुम्हारे बिना मेरा जी नहीं लगता",किशोर बोला...
"आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि मेरा जी लग जाता है आपके बिना",ओजस्वी बोली....
"अच्छा! बाबा! अब जाओ,ज्यादा देर मत करो",
"ठीक है तो मैं चलती हूँ"
और ऐसा कहकर ओजस्वी ताँगें में बैठकर हवेली की ओर चल पड़ी...

क्रमशः...
सरोज वर्मा....