ओजस्वी हवेली के भीतर पहुँची तो वहाँ का सन्नाटा देखकर उसका मन भर आया,फिर वो तेजस्वी के कमरें की ओर गई ,जहाँ तेजस्वी उदास और मायूस सी अपने कमरें में लेटी थी, तेजस्वी के बिस्तर के पास पहुँचकर ओजस्वी ने उससे कहा...
"कैसीं हो तेजस्वी"?
ओजस्वी को सामने देखकर तेजस्वी गुस्से से बोली....
"दीदी! तुम! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की"?
"मैं तुम्हें लेने आई हूँ तेजस्वी!",ओजस्वी बोली...
"मुझे लेने आई हो,कहाँ लेकर जाओगी मुझे,वहीं जहाँ बाबूजी ने तुमसे तंग आकर आत्महत्या कर ली थी,मुझे भी बाबूजी की तरह मार डालने का इरादा है क्या तुम्हारा?", तेजस्वी ने ज़हर उगला...
"नहीं!तेजस्वी!ऐसा मत बोलो",ओजस्वी बोली...
"ऐसा ना बोलूँ तो फिर क्या बोलूँ कि तुमने उस दो कौड़ी के किशोर के साथ शादी करके बहुत अच्छा किया,उसी के प्यार में पागल होकर तुमने ये कदम उठाया था ना! जिसके कारण बाबूजी को आत्महत्या करनी पड़ी", तेजस्वी बोली...
"ऐसा मत बोलो,मैने कभी नहीं सोचा था कि बाबूजी ऐसा कर लेगें",ओजस्वी बोली...
"उन्होंने तुम्हें कितना समझाया था लेकिन तुम नहीं मानी,तुमने बाबूजी की जान लेकर ही दम लिया", ये कहकर तेजस्वी रोने लगी...
"मत रोओ तेजस्वी!बाबूजी के मरने का ग़म मुझे और माँ को भी उतना ही है जितना कि तुम्हें है", ओजस्वी बोली...
तब तेजस्वी बोली.....
"तुम्हें और ग़म,लगता तो नहीं है कि तुम्हें बाबूजी के जाने का कोई ग़म है,सब कुछ तुम्हारे मनमुताबिक ही तो हुआ,बाबूजी तुम्हारी और किशोर की शादी के खिलाफ़ थे ,लो वें खुदबखुद ही तुम्हारे रास्ते से हट गए,तुम्हारी जिन्दगी का सबसे बड़ा काँटा हट गया,अब जश्न मनाओ उनकी मौत का,तुम तो अपनी माँग में किशोर के नाम का सिन्दूर सजाकर मुझे तो बड़ी खुश दिख रही हो और रही माँ की बात तो वें तो बाबूजी को पन्द्रह साल पहले ही छोड़कर जा चुकीं थीं,उन्हें भी तो अब बाबूजी से मुक्ति मिल गई है,उनका और तुम्हारा दम घुटता था ना इस हवेली में, इसलिए तो तुम दोनों मुझे और बाबूजी को छोड़कर यहाँ से चली गईं थीं,अब यहाँ क्या लेने आई हो,अब कोई नहीं है तुम्हारा इस हवेली में",
"ऐसा जहर मत उगलो तेजस्वी! मैं खुद को बाबूजी का गुनाहगार मानती हूँ,मैं वें मेरे जन्मदाता थे,भला मैं उन्हें अपनी जिन्दगी का काँटा कैसें मान सकती हूँ",ओजस्वी बोली....
"अरे!जाओ दीदी! ऐसी बातें किसी और से करना,मेरे सामने बाबूजी के लिए दो चार घड़ियाली आँसू बहाकर और उनके लिए दो चार सान्त्वना के बोल बोलकर तुम मेरी हमदर्दी हासिल नहीं कर सकती", तेजस्वी बोली...
"तुम ऐसी तो कभी ना थी,भला तुम इतनी कठोर कैसें हो सकती हो तेजस्वी?",ओजस्वी बोली....
"दीदी! तुमने और माँ ने मुझे ऐसा बना दिया है और रही सही कसर बाबूजी की मौत ने पूरी कर दी",तेजस्वी बोली....
"जो हो चुका ,उसे भूल जाओ तेजस्वी! मेरे साथ शान्तिनिकेतन चलो,तुम यहाँ अकेली घुटती रहोगी,बाबूजी के बारें में ही सोचती रहोगी",ओजस्वी बोली....
"तुम्हें क्या फर्क पड़ता है दीदी! अगर मैं भी बाबूजी की तरह घुट घुटकर मर भी गई तो,फिर तो ये सारी जमीन जायदाद तुम्हें और तुम्हारे पति को मिल जाएगी,फिर तुम दोनों मेरी मौत के बाद ऐश करना इस हवेली में, इसी दौलत के लिए ही तो उस किशोर ने पहले तुम्हारे संग प्यार का नाटक किया और फिर तुमसे शादी कर ली,तुमने बाबूजी से ज्यादा उस फरेबी पर यकीन कर लिया",तेजस्वी बोली....
"तुम उन्हें गलत समझ रही हो तेजस्वी! वें वैसें बिल्कुल भी नहीं हैं जैसा कि तुम कह रही हो", ओजस्वी बोली...
"ये तो वक्त ही बताऐगा दीदी! कि तुम्हारा किशोर कैसा है"?,तेजस्वी बोली...
"तेजस्वी! हम लोगों के लिए तुम्हारे मन में जो कड़वाहट है उसे निकाल दो,नहीं तो इस पश्चाताप की आग में मैं जिन्दगी भर जलती रहूँगी,माँफ कर दो मुझे और किशोर को",ओजस्वी गिड़गिड़ाई....
"माँफ और तुम्हें,वो तो मैं तुम्हें मरते दम तक नहीं करूँगी,तुमने और किशोर दोनों ने मिलकर बाबूजी की जान ली है,ये मैं कभी नहीं भूलूँगीं और माँ तो मेरी सबसे बड़ी गुनाहगार है,मैं तो कभी उनका मुँह भी नहीं देखना चाहती,वें जब से ये हवेली छोड़कर गई तो कभी भी मुझसे मिलने नहीं आई, मेरी नजरों में वें भी तुम दोनों के बराबर ही गुनाहगार हैं,देखना तुम जिन्दगी भर इस पश्चाताप की आग में चलती रहोगी",तेजस्वी बोली...
"तो तुम मेरे साथ शान्तिनिकेतन नहीं चलोगी",ओजस्वी ने फिर से पूछा...
"नहीं! कभी नहीं"!,ओजस्वी बोली....
"तो ये तुम्हारा आखिरी फैसला है",ओजस्वी ने पूछा...
"हाँ! ये मेरा आखिरी फैसला है",तेजस्वी बोली....
"क्यों कर रही हो तुम ऐसा"?,ओजस्वी बोली...
"मैं ऐसा ही करूँगी और आइन्दा से कभी तुमने इस हवेली में अपने कदम रखे तो नौकरों से धक्के मारकर निकलवा दूँगीं,ये मेरा और मेरे बाबूजी का घर है और यहाँ गैरों का कोई काम नहीं",तेजस्वी बोली...
"तो क्या मैं तुम्हारे लिए इतनी गैर हो गई तेजस्वी!"ओजस्वी ने पूछा...
"हाँ! और निकल जाओ इसी वक्त यहाँ से और कभी अपनी ये मनहूस सूरत लेकर मेरे सामने मत आना", तेजस्वी बोली....
अब ओजस्वी अपना इससे ज्यादा अपमान सहन नहीं कर सकती थी,इसलिए रोते हुए वो हवेली से बाहर निकली और आकर ताँगें में बैठ गई,फिर पूरे रास्ते भर वो यूँ ही रोती ही रही,ये सब बातें नारायन ने सुन ली थीं जो कि उस वक्त हवेली में ही मौजूद था और अभी भी वहीं रह रहा था,क्योंकि ये ओजस्वी का हुकुम था उसके लिए कि वो हवेली में रहकर ही वहाँ की जीप चलाए और तेजस्वी का ख्याल रखें,इसलिए वो हवेली छोड़कर शान्तिनिकेतन नहीं गया,वो ओजस्वी को चाहता था इसलिए उसकी हर बात मानता था....
फिर ओजस्वी रोते रोते शान्तिनिकेतन पहुँची और भीतर जाकर किशोर के सीने से लगकर बहुत रोई,किशोर ने उससे पूछा कि वहाँ क्या हुआ तो वो बोली....
"तेजस्वी मेरे साथ नहीं आई और मुझे उसने बेइज्जत करके हवेली से निकाल दिया",
"वो अभी नादान है,शायद इसलिए उसने ऐसा किया है",किशोर बोला....
"किशोर जी! शायद हमलोगों से उसकी नाराज़गी कभी दूर नहीं होगी,उसने ऐसी ऐसी बातें बोली,जो मैं कभी भी सहन नहीं कर सकती थी,लेकिन वो मेरी छोटी बहन है इसलिए उसकी जहर भरी बातें सुनती रही",ओजस्वी बोली...
"कोई बात नहीं ओजस्वी! सब वक्त पर छोड़ दो ,वक्त ऐसा मरहम होता है जो धीरे धीरे गहरे से गहरे जख्म को भी भर देता है",किशोर बोला....
"लेकिन किशोर जी! वो मेरी छोटी बहन है और इतनी बड़ी हवेली में वो अकेली रह रही है,इस वक्त उसके पास कोई अपना होना चाहिए",ओजस्वी बोली...
"अगर तुम कहो तो मैं उसे समझाने जाऊँ",किशोर बोला...
"नहीं किशोर जी! अगर उसने आपको भी कुछ उल्टा सीधा बोला तो मैं ये सब सहन कर पाऊँगी", ओजस्वी बोली....
"कोई बात नहीं ओजस्वी! ये उसका हक़ बनता है,आखिर मैं जीजा हूँ उसका,अपनी साली की ऐसी छोटी मोटी नादानियों को माँफ करना तो बनता है",किशोर बोला...
"आप बहुत अच्छे हैं किशोर जी!,तभी ऐसा कह रहे हैं",ओजस्वी बोली...
"ओजस्वी!माँफ करने की भावना तो इन्सान के अन्दर होनी ही चाहिए,नहीं तो वो इन्सान किस बात का",किशोर बोला...
"अच्छा! ये सब छोड़िए! पहले ये बताइए,आपके घर में कौन कौन हैं,मुझे भी सबसे मिलना है",ओजस्वी बोली....
"मेरे परिवार में मेरी माँ और मेरी छोटी बहन हैं और एक बहुत ही प्यारा दोस्त है कृष्ण! लेकिन वो विदेश में रहता है,अगर भारत में होता तो जरूर मुझसे मिलने यहाँ आता",किशोर बोला....
"शायद आपके दोस्त का आपसे बहुत ज्यादा लगाव है",ओजस्वी ने पूछा....
"हाँ! बहुत अच्छे दोस्त हैं हम दोनों",किशोर बोला...
"तो मैं कब मिलूँगी आपके दोस्त कृष्ण से",ओजस्वी ने पूछा....
"उसका पूरा नाम कृष्णराय निगम है और वो इन्जीनियर है",किशोर बोला....
"ओह....तब तो मैं उनसे जरूर मिलना चाहूँगी",ओजस्वी बोली....
"किस्मत में लिखा होगा तो जरुर उससे तुम्हारी मुलाकात होगी",किशोर बोला....
और दोनों ऐसे ही बातें करते रहे....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....