वो माया है.... - 24 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 24



(24)

दिशा की आँखें खुलीं। अपने आसपास को समझने में उसे कुछ क्षण लगे। जैसे ही सबकुछ याद आया उसका दिल दर्द से तड़प उठा। उसने पुकार का नाम लिया और रोने लगी। मनीषा वॉशरूम में मुंह धो रही थीं। दिशा की आवाज़ सुनकर बाहर आईं। दिशा उठकर कमरे के दरवाज़े तक चली गई थी। मनीषा ने उसे पकड़ लिया। अपनी मम्मी को सामने देखकर दिशा उनके गले लगकर रोने लगी। तब तक नर्स आ गई थी। उसने दिशा को ले जाकर बिस्तर पर बैठाया। उसकी मम्मी उसके पास ही बैठ गईं। दिशा ने रोते हुए कहा,
"मम्मी....मेरा पुष्कर चला गया। अब मैं कैसे जिऊँगी। मैं उसके बिना नहीं रह सकती हूँ।"
दिशा के दुख से मनीषा का कलेजा भी फटा जा रहा था। उनके लिए अपने आप को काबू में रखना मुश्किल हो रहा था। पर उन्हें शांतनु की बात याद थी। कठिनाई जितनी बड़ी हो हमें उतना ही अधिक मज़बूत बनाना पड़ता है। उन्होंने अपने आप को संभाल कर कहा,
"बेटा तुम्हें अपने आप को संभालना होगा। पुष्कर अब इस दुनिया में नहीं है। यह सच है। पर तुम्हें अपनी ज़िंदगी जीना है। फिलहाल तो पुष्कर को अंतिम विदाई देनी है।"
"नहीं मम्मी....मै ऐसा नहीं कर पाऊँगी। मैं पुष्कर के बिना जी नहीं पाऊँगी।"
दिशा मनीषा के गले लगकर रोने लगी। मनीषा उसे शांत करा रही थीं। शांतनु कमरे में आए। दिशा के सामने स्टूल पर बैठ गए। उसके सर पर हाथ फेरकर बोले,
"डिम्पी...."
दिशा ने नज़र उठाकर देखा। सामने शांतनु को देखकर बोली,
"काकू....डिम्पी को उसका पुष्कर छोड़कर चला गया। आपने उससे कहा था ना कि अगर मेरी डिम्पी को परेशान किया तो कान पकड़ कर उठक बैठक करवाऊँगा। देखिए अभी उसने मुझे ज़िंदगी भर की परेशानी दे दी। बिना बताए चला गया।"
शांतनु उठकर खड़े हो गए। उन्होंने दिशा को गले लगाकर कहा,
"बेटा उसने तुम्हें ही नहीं हम सबको दुख दिया है। बहुत गलत किया उसने। मेरा बस चलता तो जाता और कान पकड़ कर ले आता। पर वह तो इतनी दूर चला गया है कि कुछ नहीं किया जा सकता है। अब तो इसे भगवान की मर्ज़ी मानकर सहना पड़ेगा।"
"काकू..... भगवान ने ऐसा क्यों किया ? मेरी खुशियां उन्होंने क्यों छीन लीं ?"
"इसका जवाब तुम्हारे काकू के पास नहीं है डिम्पी। इसका जवाब तो दुनिया में किसी के पास नहीं होता कि भगवान ने उसके साथ ऐसा क्यों किया। सबको बस सहना पड़ता है। हमें भी उसका दिया दुख सहना पड़ेगा।"
"नहीं हो पाएगा काकू....."
"हो पाएगा बेटा। भगवान अगर दुख देता है तो सहने की ताकत भी देता है। तुम्हारे अंदर भी वह ताकत है। अब तुम्हें उस ताकत के सहारे ही इस दुख को पार करना है।"
शांतनु बहुत देर तक दिशा को समझाते रहे। मनीषा सोच रही थीं कि एकबार फिर उनका सच्चा दोस्त और शुभचिंतक उनकी मुश्किल घड़ी में काम आ रहा है। इस समय उन्हें शांतनु की बहुत ज़रूरत थी। वह जानती थीं कि उनके लिए अकेले इस मुश्किल घड़ी को सह पाना मुश्किल होता। इसलिए उन्होंने मदद के लिए शांतनु को फोन किया था। जैसी उम्मीद थी शांतनु भी खबर मिलते ही मदद के लिए आ गए थे।
शांतनु हर तरह से दिशा को तसल्ली दे रहे थे। उससे कह रहे थे कि वह अकेली नहीं है। वह उसके साथ हैं। यह करते हुए वह उस पिता की तरह लग रहे थे जो अपनी बेटी पर आए दुख को बांटने की कोशिश कर रहा हो। उनका और दिशा का रिश्ता बाप बेटी की तरह ही था। बचपन से जब दिशा को किसी भी बात में ऐसी मदद या सलाह की ज़रूरत होती थी जो एक पिता दे सकता था, तब वह शांतनु के पास ही जाती थी। उन दोनों का कोई रिश्ता ना होते हुए भी एक ऐसा रिश्ता था जो प्यार और विश्वास की डोर से बंधा था। शांतनु उसे प्यार से डिम्पी कहते थे। दिशा के लिए शांतनु उसके काकू थे।
मनीषा और शांतनु का रिश्ता भी एक सुंदर सा रिश्ता था। यह रिश्ता दोस्ती की ज़मीन पर आपसी विश्वास और एक दूसरे के लिए सम्मान से पोषित होकर मज़बूत हुआ था। जब दिशा आठ साल की थी तब मनीषा का अपने पति के साथ तलाक हो गया था। उस वक्त उन्हें सहारे की ज़रूरत थी। तब शांतनु वह सहारा बनकर आए थे। उन्हें हर तरह से मदद की थी। इन सबके बदले में कभी किसी भी चीज़ की अपेक्षा नहीं की।
मनीषा एक ऐसे रिश्ते से बाहर निकल कर आई थीं जहाँ सबकुछ देने के बाद भी धोखा मिला था। उनका रिश्तों पर से विश्वास उठ गया था। उस स्थिति में शांतनु की स्वार्थ रहित दोस्ती ने उन्हें एक नई ताकत और उत्साह दिया। जिसके कारण वह अपनी बिखरी हुई ज़िंदगी को समेट पाई थीं। शांतनु की दोस्ती ने ना सिर्फ उन्हें हौसला और हिम्मत दिया था बल्की एक सुरक्षा का भाव भी दिया था।
दिशा को दुख तो था पर अब वह बहुत हद तक शांत हो गई थी। उसे देखकर डॉक्टर ने कहा था कि अब वह सदमे जैसी स्थिति से बाहर है।

बद्रीनाथ को माइल्ड हार्ट अटैक आया था। क्योंकी समय रहते इलाज मिल गया था इसलिए वह अब खतरे से बाहर थे। डॉक्टर ने कहा था कि उन्हें कुछ दिन अस्पताल में रुकना पड़ेगा। पुष्कर का पोस्टमार्टम हो गया था। पुलिस ने अगले दिन बॉडी देने की बात कही थी। विशाल के सामने समस्या आ गई थी। बद्रीनाथ को अस्पताल में रखना था। पुष्कर की बॉडी लेकर भवानीगंज जाना था। इन दोनों कामों को एकसाथ करना उसके लिए कठिन था। इसके अलावा समस्या यह भी थी कि घर से चलते समय मतलब भर के पैसे लेकर चले थे। अब बद्रीनाथ के इलाज का खर्च भी था। विशाल इसी परेशानी में था तभी केदारनाथ उसके पास आए। वह खाने के लिए कुछ लेकर आए थे। उन्होंने कहा,
"बेटा तुमने कुछ खाया पिया नहीं है। यहाँ बस समोसे मिले हैं। यही खा लो।"
इन सब परेशानी में भूख लगते हुए भी विशाल उसे टाल रहा था। पर वह जानता था कि अभी तो बहुत इम्तिहान है। बिना खाए काम नहीं चलेगा। उसने समोसे का पैकेट हाथ में लिया और खाने लगा। एक समोसा खाने के बाद उसे कुछ बेहतर महसूस हुआ। अब उसे अपने चाचा का खयाल आया। उसने कहा,
"आपने भी तो कुछ खाया पिया नहीं है।"
"हमने भी समोसे खा लिए। तुम खाओ, फिर चाय ले आएंगे, पी लेना।"
विशाल पैकेट में बचा एक और समोसा निकाल कर खाने लगा। केदारनाथ ने कहा,
"कुछ देर पहले सुनंदा का फोन आया था। यहाँ का हालचाल पूछ रही थी। पर मैंने भइया के बारे में नहीं बताया। सिर्फ इतना कहा कि बॉडी लेकर कल ही आ पाएंगे।"
"अच्छा किया चाचा जी। वहाँ मम्मी और बुआ पुष्कर के सदमे से बेहाल हैं। पापा की तबीयत के बारे में सुनकर और परेशान हो जाएंगी।"
केदारनाथ ने कुछ सोचकर कहा,
"कैसे होगा विशाल ? भइया को तो अभी अस्पताल में रहना पड़ेगा। पुष्कर की बॉडी लेकर कैसे जाएंगे ?"
विशाल ने आधा खाया हुआ समोसा पैकेट में रख दिया। उसने कहा,
"यही सोचकर तो हम भी परेशान हैं चाचा जी। पापा को पता चलेगा तो वह मानेंगे नहीं। हमने डॉक्टर से पूछा था। डॉक्टर ने कहा कि अभी उन्हें ले जाना ठीक नहीं होगा। मान लेते हैं कि पापा को मना भी लें तो उन्हें यहाँ किसके भरोसे छोड़ेंगे ? दूसरी समस्या पैसों की भी है। घर से तो मतलब भर के पैसे लेकर चले थे। तब क्या जानते थे कि सारी मुसीबतें एकसाथ घेर लेंगी।"
अपना सर पकड़ कर विशाल रोने लगा। केदारनाथ ने कहा,
"अब जो विपदा आई है उससे तो निपटना ही है। तुम बचा हुआ समोसा खा लो। ना जाने दोबारा कब कुछ पेट में जाए। हम तुम्हारे लिए चाय लेकर आते हैं।"
विशाल बचा हुआ समोसा खाने लगा। समोसा खाते हुए उसे दिशा का खयाल आया। वह सोच रहा था कि दिशा ना जाने किस हालत में होगी। उसकी मम्मी उसके पास होंगी या नहीं। कहीं वह अकेली ना हो। ऐसे में उसके लिए सबकुछ बर्दाश्त कर पाना मुश्किल होगा। समोसा खत्म करके उसने दिशा को कॉल करने के लिए अपना फोन निकाला। वह दिशा को कॉल लगाने जा रहा था तभी नर्स ने आकर कहा,
"पेशेंट आपको बुला रहे हैं।"
विशाल ने फोन वापस रख दिया। वह बद्रीनाथ के पास चला गया। बद्रीनाथ अभी तक सो रहे थे। जब जागे तो उन्हें पुष्कर का खयाल आया। उन्होंने विशाल को बुलवाया। विशाल अंदर गया तो उन्होंने कहा,
"पुष्कर को लेकर कब चलेंगे ? कम से कम हमारे बेटे को सही तरह से अंतिम संस्कार नसीब हो जाए।"
"कल सुबह बॉडी मिलेगी। उसके बाद भवानीगंज ले जाएंगे।"
बद्रीनाथ ने भगवान से शिकायत करते हुए कहा,
"एक तो उसे असमय हमसे छीन लिया। अब उसके शरीर की दुर्दशा करा रहे हो।"
यह कहकर वह रोने लगे। विशाल उन्हें चुप कराने लगा। वह सोच रहा था कि इस स्थिति में बद्रीनाथ को भवानीगंज भी नहीं ले जाया जा सकता है। उनसे यदि कहा गया कि पुष्कर के अंतिम संस्कार में वह शामिल नहीं हो सकते हैं तो उन्हें और अधिक दुख होगा। वह सोच रहा था कि उन्हें कैसे मनाया जाए। उसी समय केदारनाथ चाय लेकर अंदर आए। उन्होंने अपने भाई से हालचाल पूछा। उन्हें देखकर बद्रीनाथ और रोने लगे। नर्स ने उन्हें शांत रहने के लिए कहा और डॉक्टर को बुलाने चली गई।
डॉक्टर ने बद्रीनाथ को कुछ दवाएं दीं। नर्स को हिदायत दी कि उन्हें डिस्टर्ब ना किया जाए। बाहर आकर विशाल से कहा कि बद्रीनाथ के कुछ टेस्ट करने होंगे। उसके लिए पैसों की व्यवस्था करे।