वो माया है.... - 20 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 20



(20)

पुष्कर उस दिन माया के रूप को याद कर कुछ परेशान हो गया था। जिस तरह से उसने सारी बात बताई थी उसे सुनकर दिशा भी उस दिन माया के रूप के बारे में सोचने लगी थी। पुष्कर ने कहा,
"दिशा माया का वह रूप दहलाने वाला था। माया ने जो किया उससे सब स्तब्ध थे। इसी बात से अंदाजा लगा लो कि सबके जाने के बाद भी पूरा परिवार कुछ देर तक चुपचाप आंगन में खड़ा रहा था। उसके बाद बिना कुछ बोले सब अपने अपने कमरे में चले गए।"
"मैं भी माया के उस रूप की कल्पना कर रही हूँ तो डर सा लग रहा है। पर इतना होने के बाद भी तुम्हारे घरवालों ने भइया की शादी दूसरी जगह करा दी।"
पुष्कर ने आगे बताया....

चार दिन बाद बरीक्षा होनी थी। पर घर में तनाव और डर का माहौल था। उस घटना के बाद उमा ने किशोरी और बद्रीनाथ से कहा कि माया के श्राप से वह डर गई हैं।‌ उन्हें लगता है कि उन लोगों को अपने निर्णय पर दोबारा विचार करना चाहिए। किशोरी और बद्रीनाथ भी कुछ डर गए थे। बद्रीनाथ ने शंकरलाल से कहा कि बरीक्षा के लिए कुछ और दिन ठहर जाएं। वह मान गए।
इस बीच सर्वेश मनोरमा और माया को लेकर उस मोहल्ले से चले गए। लोगों से सुनने को मिला कि माया का रिश्ता कहीं तय हो गया है। कुछ समय रुकने के बाद शंकरलाल ने उनसे कहा कि क्या उन्हें रिश्ते से कोई ऐतराज़ है जो बरीक्षा नहीं कर रहे हैं। ऐसा है तो साफ साफ कह दें। बद्रीनाथ अब सामान्य हो चुके थे। उन्होंने किशोरी से बात की। किशोरी ने कहा कि अब टालना ठीक नहीं है। शंकरलाल को बरीक्षा करने के लिए बुला लें। उन दोनों ने उमा को समझाया कि माया की शादी तय हो चुकी है। अब उसके साथ शादी संभव नहीं है। विशाल को कुआंरा तो बैठाए नहीं रखेंगे। वह मन का वहम निकाल दें। उमा मान गईं। उनकी तसल्ली के लिए बरीक्षा से पहले घर में पूजा हवन कराया गया। उसके कुछ ही दिनों के बाद शादी भी हो गई।
विशाल की शादी के कुछ दिनों बाद पता चला कि माया ने अपनी शादी तय होने के कुछ समय बाद आत्महत्या कर ली थी। कुसुम के बहू बनकर आने के बाद सिन्हा परिवार की उन्नति हुई। विशाल अपने ससुर के बिज़नेस को देखने के साथ साथ ठेकेदारी करने लगा। घर में पैसे आने लगे। मोहित के आने के बाद तो खुशियां और अधिक पड़ गईं। सब माया के श्राप को भूल गए थे। लेकिन कुसुम और मोहित की रहस्यमई मौत ने सबके मन में डर पैदा कर दिया था। विशाल ने अपने सपने की बात बताकर एकबार फिर माया के श्राप की याद सबको दिला दी थी।
किशोरी ने एक तांत्रिक से बात की। उसने बताया कि कुसुम और मोहित की मौत का कारण माया है। पर वह अपना बदला ले चुकी है। अब और नुकसान नहीं पहुँचाएगी। उसके बाद एक लंबे समय तक सिन्हा परिवार में ना कोई बड़ी खुशी आई और ना कोई हादसा हुआ। पुष्कर की शादी तय हो जाने के बाद एक बार फिर मंगला गाय की मौत से माया के श्राप का डर शुरू हो गया।

पुष्कर ने सारी कहानी बता दी थी। दिशा समझ गई थी कि घरवाले क्यों तांत्रिक के चक्कर में पड़े हैं। उन लोगों को ताबीज़ क्यों पहनाना चाहते हैं। वह सोच रही थी कि माया के साथ इन लोगों ने गलत किया। अब उसके मरने के बाद भी उस पर इस तरह का लांछन लगा रहे हैं। उसने पुष्कर से कहा,
"कमाल हैं तुम्हारे घरवाले भी। माया के साथ इतना गलत किया। उसके बाद कुसुम भाभी और मोहित की मौत की बात को माया के श्राप के नीचे आसानी से दबा दिया। उस समय माया अकेली पड़ गई थी। गुस्से में उसने कुछ कह दिया था। इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि वह मरने के बाद बदला ले रही है।"
"दिशा मुझे खुद यह सारी बातें अच्छी नहीं लगी थीं। मैं कुछ कहता था तो अभी छोटे हो। कुछ नहीं समझते कहकर टाल देते थे। उस समय मुझे बस यही लग रहा था कि किसी तरह इस माहौल से निकलूँ। बारहवीं के बाद मैं पढ़ाई के लिए बाहर चला गया। इसके लिए भी मुझे बहुत समझाना पड़ा था। मैंने कहा था कि वक्त बदल गया है। भवानीगंज में बैठे रहने से कुछ हासिल नहीं होगा। कुछ बनना है तो बाहर जाना होगा। बहुत मुश्किल से पापा माने थे।"
सब साफ हो गया था। पर एक बात अभी भी माया को परेशान कर रही थी। उसने कहा,
"सब समझ आ गया पर एक बात समझ नहीं आई।"
पुष्कर ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"अब क्या बचा है ?"
"तुम्हारे घरवालों ने तो इतनी बड़ी बात को माया के श्राप के नीचे दबा दिया। पर कुसुम भाभी के घरवालों ने सारी बात चुपचाप कैसे सह ली ? उनके मम्मी पापा ने कुछ भी नहीं किया।"
पुष्कर ने कुछ सोचकर कहा,
"कुसुम भाभी और मोहित के मरने की खबर सुनकर उनके मम्मी पापा फौरन घर आए थे। उस वक्त दोनों ही अपनी इकलौती बेटी और नाती के ना रहने पर बहुत दुखी थे। पर उन्होंने उस समय तो कुछ नहीं कहा। जैसा तय हुआ था भाभी और मोहित का अंतिम संस्कार कर दिया गया। बाद में उन्होंने कुछ कहा हो याद नहीं।"
"तुमको यह कुछ अजीब नहीं लगा।"
"उस समय तो सबकुछ अजीब ही हो रहा था। मुझे कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था पर कुछ कर नहीं पाया। भाभी के मम्मी पापा भी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहे। भाभी के जाने के साल भर के अंदर पहले उनकी मम्मी चली गईं। उसके कुछ महीनों बाद उनके पापा।"
कुसुम के मम्मी पापा के उस समय चुप रहने वाली बात दिशा को अजीब लग रही थी। पर अब वह पुष्कर को और परेशान नहीं करना चाहती थी। बहुत रात हो गई थी। पुष्कर और दिशा सो गए।

पुष्कर और दिशा जाने के लिए तैयार खड़े थे। किशोरी ने निर्देश देते हुए कहा,
"संभल कर रहना। पूरा ध्यान रखना कि किसी भी चीज़ के लिए यह ताबीज़ ना उतारो‌।"
पुष्कर ने आश्वासन दिया कि ऐसा ही होगा। उसने किशोरी के पैर छुए। उसके बाद उमा के पास गया। उनके पैर छूकर बोला,
"मम्मी मुझे माफ कर दीजिएगा। मुझसे कल बहुत बड़ी गलती हो गई थी।"
उमा ने उसे गले लगाकर कहा,
"बेटा माफ तो हमने तुम्हें उसी समय कर दिया था। तुम पढ़े लिखे हो। समझदार हो कुछ सोचकर ही वह बात कही होगी। अब बस तुमसे इतना कहना है कि तुम और दिशा समझदारी से काम लेना। जब तक खतरा है हो सके तो बहुत इधर उधर मत जाना। घूमने फिरने के लिए तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है। पहले सुरक्षा ज़रूरी है।"
पुष्कर ने उन्हें गले लगा लिया। दिशा ने भी उमा के पैर छुए। उमा ने उसे गले लगाकर आशीर्वाद दिया। बद्रीनाथ से मिलकर दोनों लोग निकलने लगे तो विशाल ने कहा,
"तुम्हारी टैक्सी तो चौराहे तक आएगी। चलो तुम दोनों को वहाँ तक छोड़ आते हैं।"
विशाल उन दोनों को छोड़ने चौराहे तक आया था। टैक्सी वाले ने पुष्कर को फोन किया था कि वह पाँच मिनट में पहुँच रहा है। पुष्कर और दिशा टैक्सी का इंतज़ार कर रहे थे। पुष्कर ने कहा,
"टैक्सी आने वाली होगी‌। आप जाइए। हम लोग चले जाएंगे।"
"कोई बात नहीं है। तुम लोगों को भेजकर ही जाऊँगा।"
पुष्कर ने महसूस किया था कि विशाल बहुत उदास रहता है। उसने कहा,
"भइया जो हुआ वह अच्छा नहीं हुआ था। बड़ा दुखद था। पर क्या दोबारा खुशियों का दामन नहीं थामा जा सकता था ?"
उसका सवाल सुनकर विशाल मुस्कुराया। पर उस मुस्कान के पीछे दर्द था। उसने कहा,
"खुशियां मेरे नसीब में नहीं हैं।"
"ऐसी बात नहीं है भइया। आपने कोशिश ही नहीं की।"
"कोशिश करने का क्या फायदा होता। माया के साथ जो हुआ उसके बाद वह मुझे चैन से नहीं रहने देना चाहती है। पहले मेरी खुशियां छीनीं। अब तुम्हारी खुशियों पर ग्रहण लगाना चाहती है।"
यह बात दिशा को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"जो हुआ उसकी ज़िम्मेदारी माया पर क्यों डाल रहे हैं ? कुसुम भाभी और मोहित के साथ एक हादसा हुआ था जिसकी जांच होनी चाहिए थी।"
विशाल ने पुष्कर की तरफ देखा। दिशा ने कहा,
"मुझे सब पता है। पुष्कर ने बताया। मुझे नहीं लगता है कि आप लोग माया को दोष देकर सही कर रहे हैं।"
विशाल कुछ कहने जा रहा था तभी टैक्सी आ गई। वह चुप हो गया। उसने विशाल को गले से लगाकर कहा,
"हमें तो खुशियां नहीं मिलीं पर ईश्वर तुम दोनों को ढेर सारी खुशियां दे। अपना और दिशा का खयाल रखना।"
पुष्कर और दिशा टैक्सी में बैठ गए। टैक्सी आगे बढ़ गई। विशाल खड़ा टैक्सी को जाता देखता रहा। उसकी आँखों में नमी थी। उसके फोन की घंटी बजी। उसने कुछ देर वहीं खड़े होकर बात की। उसके बाद वहाँ से चला गया। जिस जगह पुष्कर खड़ा था वहाँ ज़मीन पर उसका ताबीज़ गिरा हुआ था।
विशाल का मन बहुत उदास था। वह अभी घर नहीं जाना चाहता था। एक ही जगह थी जहाँ जाकर वह अपने मन को शांत करता था। वह तालाब की तरफ बढ़ गया।
इतने दिनों में तालाब तो पट गया था। वहाँ कुछ मकान और एक मंदिर बन गया था। उसे तालाब वाला मंदिर कहते थे। विशाल उसी के चबूतरे में जाकर बैठ जाता था। पुराने दिनों को याद करता था।