परम पूज्यनीय दादा जी ,
सादर प्रणाम आपको।
मैं कुछ दिनों से सोच रहा था कि एक पत्र आपको लिखुं पर कैसे लिखुं?समझ नहीं पा रहा था। दरअसल मैं आपको धन्यवाद देना चाहता था पर आत्म ग्लानि की वजह से वो कभी भी नहीं बोल पाया तो आज एक पत्र के माध्यम से मैं लिखने की कोशिश कर रहा था।
दादा जी आज मैं जो कुछ भी हुं वो सिर्फ और सिर्फ आपके वजह से हुं
मुझे अभी तक वो मेरे सपने, मेरे ख़्वाब सब याद आते हैं जिन्हें पुरे करने में आपने मेरे लिए क्या- क्या न किया, आज जब सोचता हूं तो मुझे बहुत ही दुःख होता है मैं क्यों पहले ये न कर पाया।
बचपन में जब हम यानि कि आप और मैं और मेरी मां, एक छोटी सी दुनिया में रहते थे आपको पेंशन मिलता था और फिर मां भी सिलाई करती थी बस रूखा सूखा खा कर हमारा चल जाता था।
मेरे स्कूल में न पढ़ पाना आपके लिए बहुत दुखदाई था। क्योंकि मैं भी उस समय कारखाने में काम करता था और फिर जब लौट कर आता तो आप कहा करते कि अंशु आज कितनी बोरिया उठाया बेटा।।
मैं कहता अरे दादू बस दो ।
पर पता नहीं आप कैसे समझ जाते मेरे पीठ का दर्द।। मात्र बारह साल का बच्चा।आप भी सरसों का तेल की मालिश कर देते थे और तब आपको शान्ति मिलती थी।
रात को सोते समय मैं अपनी कविताओं को लेकर लिखने बैठ जाता था और आप कहते थे देखना एक दिन तुम कामयाब होंगे।।
मैं हंस कर बोलता कि शायद हां।।
मैं कविता लिखा करता तो आप उन कविताओं में गलती बता दिया करते और फिर मैं उसको सुधार लेता।
हां आज मैं उस मुकाम पर पहुंच गया हुं जहां आप मुझे देखना चाहते थे पर मैं उसके लिए आपको कभी कुछ न दे सका एक धन्यवाद भी न दे सका।।
ओह ! दादाजी कितना गलत था मैं। आपको याद तो होगा मेरे कारखाने के सेट ने एक बार कहा था कि पुरी कविताएं लेकर आओ।
फिर आप भी मेरे साथ चले थे जागरण प्रेस में।
जहां पर मेरी कविताएं को बहुत सराहा गया था और फिर छपने की बात भी बोल दिए थे पर जब बात कुछ पैसों की आईं तो मैं पीछे हटा था पर आप डटे रहे और फिर अपने से पैसे देकर आपने मेरी कविताएं छापने को कहा।।
अब जब सबकुछ है तो आप ही नहीं हो जो मै मन से एक बार धन्यवाद कह पाता।।
और वो दिन मेरे लिए एक नया उम्मीद लेकर आया जब मनी आर्डर से जागरण प्रेस ने मुझे पांच हजार रुपए भेजे थे।
मैं तो खुशी के मारे उछल पड़ा था।
और फिर आपने इसी खुशी में मां से कह कर घर में पुजा भी रखवाया था और फिर आपने ही मां को खीर भी बनाने को कहा था।।
आपने कहा था अब और भी ज्यादा कविताएं लिखो देखना एक दिन कवि बन जाओगे।।
मैं उस समय हंसा था दादू, और आज रो रहा हूं।
सब कुछ तो है मेरे पास...........
दादा जी आज भी मै उस पल को याद करता हूं जब अन्धकार हो गया था मेरे जीवन में।
कारखाने से लौट रहा था और फिर एक बड़ी गाड़ी ने धक्का मारा था मुझे और फिर जो हुआ उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था।
पान वाले ने आपको खबर दी कि अंशु को अस्पताल ले जाया गया है आप लोग पहुंचे।
फिर जब मुझे होश आया तो मेरे आंखों के सामने अंधेरा छा गया था मैं रो रहा था, चिल्ला रहा था पर उस समय आपने मेरा हौसला बढ़ाया।
डाक्टर ने कहा कि गाड़ी का कांच घुसने की वजह से आंखों की रोशनी चली गई है।
फिर मैं तो बस घर पर पड़ा रोता रहता था उधर मां ने अपने सिलाई का काम और भी बढ़ा दिया था। क्योंकि मैं तो अंधा हो गया था तो कारखाने का काम भी हाथ से चला गया।।
दो महीने इसी तरह से बीत गए थे और मैं मेरे अंधेपन की वजह से अन्दर ही अन्दर टूट चुका था पर आप वो इन्सान थे जिन्होंने मुझे कभी मरने नहीं दिया दादाजी मुझे कभी मौका नहीं मिला कि मैं इस बात के लिए आपको धन्यवाद दे सकूं।।
क्योंकि आपने मुझे कहा था बेटा तुम कविता की पंक्तियां बोलो मैं लिखुगा।
मैं तो यही सुन कर रो पड़ा था और आपने मुझे गले से लगा कर कहा कि, "अब गिरना मत मैं तेरे साथ हूं "!
फिर तभी से मैं कितनी कविताएं बोलता रहता था और आप लिखा करते थे और इसी तरह रात जागकर ही बिता देते थे।
इस तरह से एक साल बीत गए और फिर मेरी कविताएं छापने भी लगी थी ।
अब धीरे, धीरे सब कुछ ठीक हो रहा था पर आपकी तबियत बिगड़ी हुई थी पर आप ने मेरे लिए खुद को तकलीफ़ दिया मैं तो अंधा था पर मन की आंख से समझता था दादू।।
इस तरह से एक दिन सुबह आपकी तबियत इतनी खराब हो गई थी कि आपको अस्पताल भर्ती करवाना पड़ गया।
डाक्टर ने तो जबाव दे दिया और "आप ने जाते-जाते भी मेरे लिए ही सोच कर गए। आपने अपनी दोनों आंखें मुझे दे कर सदा के लिए आंख बंद कर दिया"
और फिर मैं उस आखिरी समय में भी आपको धन्यवाद नहीं दे सका ।।
"आपको खो कर आपकी आंखों के सहारे जिन्दा रहा मैं",आप तो मेरे लिए जो कुछ भी किया उसके लिए धन्यवाद बहुत ही छोटा है ।।
आपने मुझे जो,जो संस्कार दिए थे उनका मैंने मान रख है दादाजी,आज मैं सच में बहुत बड़ा कवि बन गया हुं। देश और विदेश में मेरी कविताएं की चर्चा होती है मुझे तीन बार अपनी योग्यता के लिए विदेश में भी बुलाया गया था और तीन बार गोल्ड मेडल भी मिला आज जो कुछ भी हुं सिर्फ आपकी वजह से हुं।
मैं और मेरी मां आपकी दी हुई उन सारी अच्छी बातें हमेशा याद करते हैं दादू।।
आपकी आंखों से ये दुनिया देख रहा हूं और कविताएं भी लिख रहा हुं।
मैं खुद को कभी माफ नहीं कर सकता हूं मेरी वजह से आपकी सेहत गिरने लगी थी और फिर हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए।और मैं तो आपके बिना जी रहा हु।
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि अगले जन्म में मुझे आपका साथ मिलें।।
मैं आप को तहेदिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।।
अब जहां पर भी है खुश रहिए।।
आपका लाडला आज एक इन्टरवियू भी देने वाला है।
आप दादाजी आप जहां भी हो, मेरे तकलीफ़ को समझ रहे होंगे।।दादु कुछ देर बाद ही मां आकर पहले की तरह ही बोलेंगी। ये कि ……………..
कुछ देर बाद मां आकर बोली कि बेटा चलो जागरण प्रेस संवाद सहयोगी आए हैं तुम्हारे इन्टरव्यू के लिए।। पता है दादाजी मेरा इंटरव्यू लेने पांच लोग आएं थे और सब यह पुछ रहें थे कि मेरे सफलता का राज क्या है?
मैंने भी गर्व से कहा मेरे दादू ही है आज तो मैं जो कुछ भी हुं आपके वजह से हुं। दादाजी मेरा इन्टरवियू बहुत ही अच्छा सा ठीक-ठाक सा हो गया।
आपकी की कहीं बातें ही मैं बोल कर शुकून सा मिल जाता था लगता था कि आप मेरे आस पास ही कहीं तो हो?
मेरे दिल में आप हमेशा रहेंगे दादाजी।
जो अल्फाज़ मैं कभी भी नहीं कह सका वो आज कहता हूं कि आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏।
आपका अंशु।
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फिर उस चिट्ठी को एक लिफाफे में बन्द करके अंशु अपने दादाजी के कमरे में जाकर उसकी फोटो के सामने रखी हुई टेबल पर वो धन्यवाद चिठ्ठी रख दिया और फिर बोला।
दादाजी मुझे माफ़ कर दिजियेगा क्योंकि मैं कभी आपके लिए कुछ भी न कर सका एक छोटा सा धन्यवाद तक नहीं बोल पाया। इसके लिए ही इस पत्र के माध्यम से मैं ये कर पाया आप जहां कहीं भी हो मेरा सन्देश जरूर आप को मिल जाए ये मै भगवान से प्रार्थना करता हूं।
दोस्तों आप लोग भी अगर किसी को धन्यवाद देना चाहतें हैं जो जल्दी से ये कर दिजियेगा क्योंकि मेरी तरह देर मत किजिएगा
क्योंकि यह एक छोटा सा धन्यवाद ही तो बोलना है क्या पता उसकी बहुत सारी दुआएं आपको लग जाएं।
क्योंकि धन्यवाद कह देने से कोई पैसा नहीं लगता है सिर्फ आपको आपकी मन की भावना प्रकट करनी है कि आप तहेदिल से शुक्रिया अदा करना चाहते हैं।
कि अगर भी कोई अनजान आदमी और या जाना पहचाना हो आपका मदद करें तो आपको तुरंत चाहिए कि उन्हें धन्यवाद जरूर बोलें।
समाप्त।
रचना राय।