गोरक्षा आन्दोलनभारतके स्वतंत्र होनेके बाद भी गोहत्या का कलंक न मिटनेसे भाईजी व्यथित थे। इसलिये जब कोई भी गोहत्या निरोधके लिये आन्दोलन करता तो भाईजी उसमें पूर्ण सहयोग देते। किन्तु सभी लोगोंका सामूहिक प्रयास न होनेसे सरकारपर विशेष दबाव नहीं पड़ता था। आषाढ़ सं० २०२३ (सन् १९६६) में जब भाईजी स्वर्गाश्रममें थे. दिल्लीके प्रमुख कार्यकर्ता भाईजीके पास आये एवं गोरक्षा के लिये सभी का एक साथ प्रयास हो इसके लिये भाईजीको चेष्टा करनेकी प्रार्थना की सभी धर्माचार्यों सम्प्रदायों एवं राजनीतिक दलोंका एक मंचसे कार्य करनेके लिये राजी करना एक असाधारण कार्य था। उन्हीं दिनों श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी अपनी बद्रीनाथ यात्रा से लौटकर भाईजीसे मिलने आये। भाईजीने सबसे पहले उन्हींसे सारी बातें करके इसके लिये राजी किया। संयोगवश श्रीकरपात्रीजी महाराज भी उस समय ऋषिकेशमें थे। भाईजी श्रीब्रह्मचारीजी एवं अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओंको साथ लेकर श्रीकरपात्रीजीके पास गये और उनसे सारी बातें निवेदन की। भाईजीकी बातोंसे वे भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके एवं संयुक्त प्रयासके लिये सहमत हो गये। उसी दिन शपथ-पत्रपर श्रीकरपात्रीजी, श्रीब्रह्मचारीजी एवं भाईजीने हस्ताक्षर कर दिये। यहींसे आन्दोलनके 'सर्वदलीय' रूपका बीजारोपण हुआ। उसी शपथ-पत्रपर बाद में प्रमुख धर्माचार्योंके, राजनीतिक-सामाजिक संस्थाओंके एवं गणमान्य व्यक्तियोंके हस्ताक्षर हो गये।
भाद्र कृष्ण १२ सं० २०२३ (१२ सितम्बर, १९६६) को करपात्रीजीके नेतृत्व में वाराणसी में एक बैठक हुई, जिसमे भाईजी एवं अन्य प्रमुख व्यक्तियोंने भाग लिया तथा सर्वदलीय गोरक्षा-महाभियान समिति के गठनका एवं अन्य मुख्य बातोंपर निर्णय हुआ। समय-समयपर गतिरोध आये पर भाईजीकी विनम्रता बुद्धिमत्ता एवं कार्यकुशलता आदिके फलस्वरूप उनका निवारण होता गया। श्रीकरपात्रीजीने कह दिया– भाई हनुमान, अर्थकी सारी व्यवस्थाका भार तुम पर है। भाईजीने लाखों रुपयेका सम्पूर्ण भार वहन करना स्वीकार कर लिया। इसीपर सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा, पंजाबके प्राण स्वामी श्रीगणेशानन्दजीने भाईजीको पत्र लिखा– यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपने इस महान् यज्ञका यजमान बनना स्वीकार कर लिया। यद्यपि अर्थव्यवस्थाके भारको कई लोगोंने सँभाला पर भाईजीने गुप्तरूपसे अर्थ-संग्रहका जो कार्य किया वह अधिक महत्त्वपूर्ण था। इसके साथ ही भाईजी 'कल्याण' के प्रत्येक अंकमें गोरक्षा सम्बन्धी सामग्री देने लगे। 'कल्याण' के ग्राहक ही लगभग डेढ़ लाख थे, पाठक कितने लाख होंगे पता नहीं। इससे भी आन्दोलनको बड़ा बल मिला।
कार्तिक कृष्ण ९ सं० २०२३ (७ नवम्बर, १९६६) को दिल्ली में विराट जुलूसका एक ऐतिहासिक आयोजन किया गया जिसमें भाईजी स्वयं सम्मिलित हुए। ऐसी ही आशंका थी कि शायद भाईजी दिल्ली में गिरफ्तार
कर लिये जायें। भाईजीके मनमें इसका किञ्चित् भी भय नहीं था। वे अपने परिकर मण्डलके साथ दिल्लीके उस जुलूसमें सम्मिलित हुए एवं जब पार्लियामेन्ट स्ट्रीटमें मंचके पास अश्रुगैस-गोलीकाण्ड हुआ तो भाईजी उस मंचपर उपस्थित थे। भगवान्ने सब रक्षा की। कार्तिक शुक्ल ८ सं० २०२३। (२० नवम्बर १९६६) से श्रीपुरीके शंकराचार्य एवं श्रीब्रह्मचारीजीने आमरण अनशन प्रारम्भ किये । ज्यों-ज्यों अनशन की अवधि अधिक होने लगी। भाईजी राष्ट्रपति, प्रधान मन्त्री, गृहमन्त्री तथा विभिन्न सरकारी अधिकारियों को प्रतिदिन तार या पत्र भेजते रहे। इसी तरह जगद्गुरु शंकराचार्य को श्रीविनोबाजी आदि महत्त्वपूर्ण व्यक्तियोंको तार, पत्र भेज-भेजकर प्रोत्साहित करते रहे। आनन्दमयी माँको भी कहलवाया कि वे इन्दिराजी को गोरक्षा लिये प्रेरणा दें। भाईजीने उस समय अथक और अकथ प्रयास किया। उनके प्रयाससे कोने-कोनेसे जपके, अनुष्ठानके, प्रार्थनाके समाचार आने लगे। लोग उत्साह पूर्वक जेल जाने लगे। भाईजी ने आन्दोलनके कार्यको सँभालनेके लिये अपने व्यक्तियोंको भेजा। सरकारी क्षेत्रमें लोगोंको सही ढंगसे सोचनेके लिये अनुरोध किया यद्यपि आन्दोलन सम्पूर्ण भारवर्षमें गोवंशकी हत्या बंद करानेमें सफल नहीं हो सका क्योंकि विधिका विधान ऐसा ही था, फिर भी भाईजीका गोरक्षाके लिये किया गया प्रयास चिरस्मरणीय रहेगा।