वो माया है.... - 13 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 13



(13)

मनोहर नीलम को लेने आए थे। नीलम ने कल सुंदरकाण्ड का पाठ हेने से पहले फिर उन्हें फोन करके ले जाने के लिए कहा था। इसलिए मनोहर छुट्टी लेकर आ थे। दोपहर के खाने के बाद नीलम अपना सामान समेट रही थी। मनोहर ने कहा,
"इतनी जल्दी लौटना था तो उस दिन हमारे साथ ही चली होती। कल एकदम पीछे पड़ गई कि आकर ले जाओ।"
नीलम ने कहा,
"हमें क्या पता था कि यहाँ विदा होकर आई बहू अगले दिन ही बवाल कर देगी।"
यह बात सुनकर मनोहर ने अश्चर्य से कहा,
"क्यों क्या हो गया ?"
नीलम दरवाज़े तक गई‌। बाहर झांक कर देखा कि कोई सुन तो नहीं रहा है। उसके बाद मनोहर के पास बैठकर सारी बात बताई। मनोहर ने कहा,
"इतनी सी बात पर इतना हंगामा कर दिया उसने। बड़ी बेढब मालूम पड़ती है। भला ताबीज़ पहन लेने में क्या हेठी थी। वैसे पुष्कर भी कम नहीं है। बताओ मौसेरी बहन का ही सही पर बहनोई के साथ ऐसा करना चाहिए था।"
"लड़का अपने मन का है‌। वैसी ही बीवी ढूंढ़ ली है। दीदी के बारे में सोचकर दुख लगता है। बड़े बेटे का जीवन तो बर्बाद हो ही गया। छोटा ऐसी बहू लाया है जिससे किसी सुख की उम्मीद करना बेकार है।"
यह कहकर नीलम ने फिर सामान समेटना शुरू किया। अनुपमा कमरे में आई। उसने मनोहर से कहा,
"पापा क्या आज चलना ज़रूरी है। भाभी के साथ बहुत अच्छा लग रहा है।"
"बिल्कुल ज़रूरी है। तुम्हारा बाप नौकरी करता है। कोई सेठ नहीं है। रोज़ रोज़ छुट्टी थोड़ी ना मिलेगी।"
नीलम को अनुपमा का दिशा के साथ बात करना अच्छा नहीं लग रहा था। उसने कहा,
"जब से आई हो भाभी के साथ बहुत लबर लबर कर रही हो। अब बहुत हो गया। बस अब घर के लिए निकलना है।"
अनुपमा ने मुंह लटका लिया। मनोहर ने समझाया कि छुट्टी मिलना मुश्किल है। नीलम ने सारा सामान बांध लिया था। बस सुनंदा का इंतज़ार था। सुनंदा के साथ नीलम की अच्छी पटती थी। फोन करके सुनंदा को मिलने बुलाया था।
कुछ देर में सुनंदा अपनी दोनों बेटियों के साथ मिलने आईं। उनकी और नीलम की बातें हुईं। उसके बाद मनोहर अपने परिवार के साथ चले गए।

तांत्रिक वाली बात सुनकर दिशा और भी परेशान हो गई थी। वह सोच रही थी कि इन लोगों को सिर्फ भूत प्रेत से नहीं किसी खास से डर है। जिसके लिए तांत्रिक से पूजा करवा रहे हैं। इनका डर बहुत गहरा है। इसका मतलब है कि कुसुम और मोहित की मौत के पीछे कोई गहरी बात है। वह जानने को उत्सुक थी। साथ ही यह भी चाहती थी कि पुष्कर अपने पापा से बात करे। दोपहर को बात करने का वक्त नहीं मिला। शाम को जब सुनंदा भी अपनी बेटियों के साथ वापस चली गईं तो दिशा ने कहा,
"पुष्कर अब तुम पापा से बात करो। उनसे कहो कि हमें जाना है। हम दोनों का एक प्लान है। अगर इन लोगों के अनुसार चलेंगे तो सब चौपट हो जाएगा। तुम जाओ और साफ साफ बात करो।"
पुष्कर भी सोच रहा था कि अभी मौका है। जाकर बात कर लेता है। वह बात करने के लिहाज़ से नीचे गया। बद्रीनाथ बैठक में थे। विशाल कहीं बाहर गया था। किशोरी और उमा पूजाघर में थीं। पुष्कर बैठक में गया। उसने बद्रीनाथ से कहा,
"पापा मैं और दिशा अब शहर जाना चाहते हैं। दिशा कुछ दिन अपनी मम्मी के साथ रह लेगी। उसके बाद हम दोनों घूमने चले जाएंगे।"
अपनी बात कहकर पुष्कर बद्रीनाथ की तरफ देखने लगा। बद्रीनाथ कुछ देर सोचने के बाद बोले,
"तुम दोनों तो एक हफ्ता यहाँ रहने वाले थे। अब इतनी जल्दी जाने की बात कर रहे हो। बहू अपनी मम्मी से मिले उनके साथ रहे हमें परेशानी नहीं है। पर इस घर से भी नाता जोड़ना है उसे।"
पुष्कर कुछ क्षण चुप रहा उसके बाद बोला,
"वह भी चाहती थी कि इस घर से जुड़े। पर यहाँ आने के साथ ही जो माहौल मिला उसमें उसके लिए रह पाना मुश्किल हो रहा है।"
"क्या गलत माहौल मिला उसे यहाँ ?"
बद्रीनाथ ने गुस्से से यह सवाल पूछा। उसके बाद बोले,
"तुम्हारी मम्मी ने बताया कि सुबह तुमसे बात हुई थी। उमा से भी तुमने ऐसा ही कुछ कहा था। हमारी एक बात समझ नहीं आ रही है। दिशा तो कुछ नहीं जानती है पर तुम तो सब जानते हो‌। सब कुछ तुम्हारे इस घर में रहते समय हुआ था। फिर भी तुम समझ नहीं रहे हो। तुम्हारी शादी से पहले मंगला के साथ जो हुआ तुम्हें बताया था। वह क्या इस बात का इशारा नहीं था कि अभी उसका बदला पूरा नहीं हुआ है।"
पुष्कर कुछ कहने जा रहा था पर बद्रीनाथ ने उसे रोक दिया। उन्होंने कहा,
"बार बार बस एक ही बात कि मुझे यकीन नहीं है। पर जो समझ कर आँखें बंद कर ले वह मूर्ख होता है। पर तुम खुद को बहुत अक्लमंद समझते हो। हम सब बेवकूफ हैं।"
पुष्कर इस विषय में और बहस नहीं करना चाहता था। उसने कहा,
"मम्मी ने सुबह कहा था कि जब तक उस तांत्रिक की तरफ से सब ठीक है नहीं कहा जाएगा, तब तक मुझे और दिशा को यहीं रहना पड़ेगा। यह तो ठीक नहीं है। ना जाने कितना समय लगे। हम कब तक यहाँ रहेंगे।"
बद्रीनाथ ने चिढ़कर कहा,
"इस घर में रहने मे बड़ी तकलीफ है तुम्हें। भूल गए हो कि इसी घर में पले बढ़े हो।"
यह बात सुनकर पुष्कर भी चिढ़ गया। उसने कहा,
"माफ करिएगा पापा.... आप बात को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। आप जानते हैं कि मैं और दिशा दोनों नौकरी करते हैं। शादी के लिए हमने अपनी छुट्टियां बचाकर रखी थीं। तब कुछ दिनों की छुट्टी मिली है। हमने उसके हिसाब से प्लान बनाया था। अब अगर बेकार की बातों के लिए यहाँ रुकना पड़ा तो सब बर्बाद हो जाएगा।"
पुष्कर अपनी बात समझाना चाहता था। पर बद्रीनाथ ने समय बर्बाद होने वाली बात को गलत तरह से ले लिया। वह गुस्से चिल्लाते हुए बोले,
"यहाँ आना वक्त बर्बाद करना था तो आए क्यों थे ? वैसे भी तुम्हें हमारे दुख तकलीफों से कोई मतलब नहीं रहा है। अपने हिसाब से ज़िंदगी जी रहे थे‌। शादी का फैसला कर लिया था। तो हमें बताए बिना शादी भी कर लेते। जो होता देखा जाता।"
चिल्लाने की आवाज़ पूजाघर में पहुँची तो किशोरी और उमा भागकर बैठक में आईं। उसी समय विशाल भी घर में दाखिल हुआ वह भी बैठक में चला गया। बद्रीनाथ गुस्से में हांफते हुए कह रहे थे,
"खुद को बहुत काबिल समझते हो‌। देख ली तुम्हारी काबिलियत। शादी का रिश्ता जोड़ने से पहले दस बातें देखी जाती हैं। तुमने क्या देखा सबके सामने है। बड़ों का ना लिहाज़ है और ना बात करने का सलीका।"
बद्रीनाथ ने दिशा के बारे में कहा था। पुष्कर को बात चुभ गई। उसने कहा,
"पापा मैंने भी बहुत सोच समझकर दिशा को चुना है। मुझे ऐसी पत्नी चाहिए थी जो मेरे साथ बराबरी से चल ‌सके। मुझे ऐसी पत्नी नहीं चाहिए थी जो सर झुकाए खड़ी रहे।"
पुष्कर की इस बात से कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा छा गया। उमा आंगन में चली गईं। बद्रीनाथ अविश्वास से पुष्कर की तरफ देख रहे थे। विशाल को यह सुनकर गुस्सा आया था। उसने कहा,
"अपनी पत्नी का साथ देना अच्छी बात है पर तुम मर्यादा भूल गए हो।"
गुस्से में पुष्कर के मुंह से बात निकल गई थी पर वह भी पछता रहा था। बद्रीनाथ बहुत गुस्से में थे। उन्होंने विशाल से कहा,
"इससे कह दो कि अपनी बीवी को लेकर जहाँ चाहे चला जाए। इससे और इसकी पत्नी से कोई रिश्ता नहीं रखना है। हम इस घर में दो और लोगों का श्राद्ध कर लेंगे।"
अब तक चुप खड़ी किशोरी यह सुनकर बोलीं,
"पगला गए हो क्या बद्री। पुष्कर तो नासमझ है। तुम समझदार होकर ऐसी बातें कर रहे हो।"
उन्होंने पुष्कर की तरफ देखकर कहा,
"जाओ अपनी पत्नी के पास बैठो।"
पुष्कर उठा और बाहर निकल गया। जब वह आंगन में आया तो उसने उमा को एक कोने में खड़े रोते हुए देखा। वह उनकी तरफ बढ़ा पर उसके कदम रुक गए। उसकी हिम्मत नहीं पड़ी। वह जानता था कि उसने अपनी मम्मी का दिल दुखाया है। वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। जब वह ऊपर पहुँचा तो दिशा सीढ़ियों के पास ही खड़ी थी। झगड़े की आवाज़ें ऊपर तक गई थीं। वह जानती थी कि पुष्कर की मनःस्थिति ठीक नहीं है। उसने कुछ नहीं कहा। पुष्कर कमरे में जाकर बैठ गया।
बद्रीनाथ भी रोने लगे थे। विशाल उनके बगल में बैठकर चुप कराने लगा। किशोरी आंगन में उमा के पास आईं। उन्हें गले से लगाकर बोलीं,
"पुष्कर की बात को दिल से मत लगाना। नासमझ है वह। नहीं जानता है कि गृहस्ती चलाने के लिए क्या क्या करना पड़ता है। अब अपने सर पर पड़ेगी तो सब समझ आ जाएगा।"
किशोरी उमा को तसल्ली दे रही थीं। उधर विशाल बद्रीनाथ को शांत करा रहा था। ऊपर दिशा कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थी। पुष्कर बिस्तर पर सर झुकाए बैठा था। दिशा परेशान थी। उसने सोचा था कि आज का दिन ठीक बीत रहा है। पर शाम को फिर हंगामा हो गया। उसे विदा होकर आए दो दिन हुए थे और इतना सबकुछ हो गया था। वह सोच रही थी कि पुष्कर को कैसे शांत करे। तभी उसका फोन बजा। वह अंदर से अपना फोन लेकर आई। उसकी मम्मी का फोन था। छत पर टहलते हुए वह उनसे बात करने लगी।