हादसा.. Saroj Verma द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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हादसा..

मुझे आज भी वो तूफानी सर्द रात याद है,मैं उस दिन एक गाँव के पास की जमीन के सर्वेक्षण के लिए गया था और लौटते वक्त बहुत अँधेरा हो गया फिर अचानक ही बादल छाएं ,बिजली कड़की और झमाझम बारिश होने लगी,कच्ची जमीन पर जब पानी पड़ा तो कीचड़ ही कीचड़ हो गया जिसके कारण मेरी साइकिल कीचड़ में खपने लगी,उस गाँव में कोई भी मेरी जान पहचान का नहीं था और एकाध लोंग थे भी पहचान के तो मैं उनका घर नहीं जानता था,ताकि उनके यहाँ जाकर मैं बारिश से बच सकूँ,मैं पूरी तरह भीग चुका था और मेरी साइकिल भी बार बार कीचड़ में खप रही थी जिसके कारण मुझे उसे घसीटकर लाना पड़ रहा था,अब चलते चलते मैं गाँव के बिल्कुल पास आ चुका था,गाँव के घरों से ढ़िबरी और लालटेनों का उजाला दिख रहा था इसलिए मैं जान गया कि अब मैं गाँव के पास ही हूँ,गाँव आते ही मैनें राहत की साँस ली,लेकिन बारिश अब भी अपना कहर बरपा रही थी और बारिश रूकने के भी कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे कि लौटकर मैं अपने इलाके की ओर चला जाता,इसलिए मैनें उसी गाँव में किसी के यहाँ शरण लेने का सोचा....
मैं अब ठण्ड से काँप रहा था और इस कश्मकश में था कि किसके घर के किवाड़ खटखटाऊँ,कोई मुझे अपने घर में घुसने भी देगा या नहीं,किसी औरत ने दरवाजा खोला और वो अकेली हुई अपने घर में तो मैं क्या कहूँगा उससे,कैसें उसके घर में आसरा लेने के लिए पूछूँगा? मैं यही सब सोच ही रहा था कि एकाएक मुझे एक घर से वायलिन की आवाज़ आती सुनाई दी,तब मैनें सोचा क्यों ना मैं उस घर के किवाड़ खटखटाऊँ शायद मुझे रात भर सिर छुपाने लिए वहाँ आसरा मिल जाएं और मैं डरते डरते उस घर की ओर बढ़ने लगा फिर मैनें उस घर के किवाड़ खटखटाएं,मेरे किवाड़ खटखटाते ही वायलिन की आवाज़ बंद हो गई और कुछ देर बाद एक बुजुर्ग ने दरवाजा खोलकर मुझसे पूछा....
"इस तूफानी रात में तुम बाहर क्या कर रहे हो",
"जी! मैं इसी गाँव के पास की जमीन का सर्वेक्षण करने गया था,लौटते वक्त शाम हो गई और फिर बारिश शुरु हो गई,क्या आपके यहाँ बारिश बंद होने तक सिर छुपाने की जगह मिलेगी?", मैनें पूछा...
"हाँ...हाँ...भीतर आ जाओ",बुजुर्ग बोलें...
मैं उनके कहने पर अपनी साइकिल बाहर ही खड़ी करके घर के भीतर गया,तब उन बुजुर्ग ने कहा...
"बेटा! अपना कोट उतारकर उस कुर्सी पर सूखने डाल दो और तुम उस अँगीठी के पास बैठ जाओ,तुम्हारी सर्दी कम हो जाएगी,मैं तुम्हें कुछ सूखे कपड़े देता हूँ तो तुम कपड़े बदल लो वरना सर्दी लग जाएगी,मैं तब तक तुम्हारे लिए चाय और कुछ खाने को लाता हूँ",
"इसकी कोई जरूरत नहीं है,आप इतनी तकलीफ़ मत उठाइए",मैनें उनसे कहा...
"नहीं!बेटा! सर्दी लग जाएगी,मैं कपड़े लाता हूँ तो तुम कपड़े बदल लो" वें बोलें...
और फिर उनके दिए सूखे कपड़े मैनें पहन लिए और अपने गीले कपड़ो को कुर्सी पर ही अँगीठी के सामने सुखाने को डाल दिया,फिर उन्होंने मुझे चाय और डबलरोटी दी,जिसे खाकर मेरी भूख शान्त हुई और फिर उन्होंने सिगार पीते हुए मुझसे कहा....
" अभी पिछली बारिश में एक हादसा हो गया था,दो लोगों पर बड़ी जोर की बिजली गिरी और वें वहीं दफन हो गए,बेचारे दोनों बाप बेटे थे",
"हाँ! बिजली कड़क रही थी इसलिए तो मैनें यहाँ रुकने का सोचा",मै बोला...
"बहुत सही किया बेटा! क्योंकि हादसों का कोई ठिकाना नहीं की कब ,कहाँ, किसके साथ क्या हो जाएं,हादसा कभी भी किसी के साथ कहीं भी हो सकता है और ये मैं अपने तजुर्बे से कह रहा हूँ",बुजुर्ग बोले...
"हादसे का तजुर्बा....वो भला कैसें"?,मैनें उनसे पूछा....
"हाँ! बेटा! मैं और एक और शख्स बड़ी मुश्किल से बचे थे और फिर हम दोनों ने कई और लोगों को बचाया था उस हादसे से",वें बुजुर्ग बोलें...
"तो क्या आप मुझे भी बता सकते हैं उस हादसे के बारें में"?,मैनें पूछा...
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,मेरे इस तजुर्बे के बारें में तुम्हें जरूर जानना चाहिए",वें बुजुर्ग बोले...
"तो फिर सुनाइए उस हादसे की कहानी",मैं बोला...
"तो फिर सुनो"
और ऐसा कहकर उन्होंने अपना तजुर्बा मुझसे साँझा करना शुरू किया और वें बोले....
दुनिया में कोई भी इन्सान कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो,उसे जिन्दा रहने के लिए भोजन की जरूरत तो पड़ती ही है,कई बार इन्सान को अपनी जिन्दगी बचाने के लिए कड़े संघर्ष करने पड़ते हैं और ये मेरे बहत्तर दिनों के संघर्ष की कहानी है,बात उन दिनों की है जब मैं सेना में नया नया भर्ती हुआ था,तभी युद्ध छिड़ा और हमारी टुकड़ी को एक हवाई जहाज में उस स्थान की ओर भेजा गया,हम चालीस लोग थे और इसके अलावा पाँच क्रू मेम्बर और थे हवाई जहाज में,फिर हमारे हवाई जहाज ने उड़ान भरी,फिर हमारे हवाईजहाज के उड़ान भरने के बाद अचानक ही मौसम खराब हो गया....
उस हवाईजहाज के पायलट को ग्लेशियर से उन्तीस बार गुजरने का अनुभव था,लेकिन उस दिन उनकी जगह को-पायलट हवाईजहाज उड़ा रहा था,उस समय मौसम और भी ज्यादा खराब हो गया,उस को-पायलट को इतना ज्यादा अनुभव नहीं था हवाई जहाज उड़ाने का और हमारा हवाई जहाज एक पर्वतमाला की ऊँची चोटी से जा टकराया, जिससे उसका पिछला हिस्सा टूट गया....
उस समय जब हवाई जहाज ने उड़ान भरी थी तो हम सब पैतालीस लोग थे लेकिन हादसे के बाद पैतीस लोग जिन्दा बचे,हम सब उस बर्फ के पहाड़ पर अपने जीने की जद्दोजहद कर रहे थे और फिर अगले दिन पाँच लोग और मर गए,क्योंकि उन्हें गहरी चोटें आई थी,जिनका इलाज सम्भव ना था और वें दर्द के मारे कराह-कराह कर मर गए,हम सभी उस बर्फीले पहाड़ पर फँसे थे जहाँ तापमान शून्य से नीचे था,सर्द हवाओं से बचने के लिए हम बचे हुए लोगों ने हवाईजहाज के टूटे हुए हिस्सों को इकट्ठा कर उन्हें सील करने की कोशिश की,लेकिन हम नाकाम रहे,हमारे पास जो खाना था वो धीरे धीरे खतम हो गया था,इसलिए भूख के मारे हमने टूथपेस्ट और हवाई जहाज की सीटों में लगे लेदर को चबाना शुरू कर दिया और उससे हम लोगों की तबियत बिगड़ने लगी,
वहाँ मरने वाले लोगों की लाशें खराब नहीं हुई थी क्योंकि वहाँ का तापमान शून्य से नीचे था,इसलिए हम सभी ने हवाई जहाज की खिड़कियों में लगे शीशे निकाले उन्हें नुकीला किया और उनसे उन लाशों को काटकर खाने लगे,फिर हम सभी में समझौता हुआ कि जो भी मरेगा तो उसकी लाश को खाकर हम जिन्दा रहेगें,उस समय हम सभी मर रहे थे और "जब आपके सामने दो ही चींजें हों कि या तो आप मर जाओ या तो इन्सानियत दिखाओ,तो फिर आप इन दोनों में से अपने जीवन को चुनते हैं"
फिर हादसे के बाद सरकार ने सक्रियता दिखाई और बचाव अभियान शुरू हुआ,लेकिन हवाई जहाज का रंग सफेद होने के कारण उस सफेद बर्फ से ढ़की पर्वतमाला पर ढूढ़ना बहुत ही कठिन था वो काम ऐसा था जैसे की भूसे के ढ़ेर में सुई ढूढ़ने के बराबर,लगातार दस दिनों तक असफलता हाथ लगने पर ग्याहरवें दिन बचाव अभियान बंद कर दिया गया और सबने मान लिया कि इतने दिनों तक उस पर्वतमाला पर इतने खराब मौसम और बिना भोजन के कोई भी जीवित नहीं बचा होगा,
हादसे के साठ दिन बीत चुके थे और मदद की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी,तब दो लोगों ने सोचा कि यहाँ पड़े रहने से तो अच्छा है कि मदद की तलाश में निकला जाएं,मरना तो वैसें भी है तो फिर कोशिश करके ही क्यों ना मरा जाएंँ,साठ दिनों में दोनों बहुत कमजोर हो चुके थे,बर्फ पर ट्रैकिंग का उनके पास कोई साधन नहीं था,लेकिन दोनों ने हार नहीं मानी,जैसे तैसे पैदल चलकर वें आबादी वाले क्षेत्र पहुँच गए ,जहाँ से उन्होंने सेना से सम्पर्क किया और फिर रेस्कयू टीम आई और उन्होंने उन्हें उन सभी बचे हुए लोगों की लोकेशन बताई और फिर वो टीम पाँच लोगों को और बचा लाई ,उस हादसे में केवल सात लोग बचे थे और उन सात लोगों में मैं भी एक हूँ,मैं और वो शख्स हम दोनों ही उस बर्फ भरी पर्वतमाला से उतरकर नीचे आए थे और उस गाँव में जाकर सबको सूचना दी थी.....
तो ये थी उन बुजुर्ग की कहानी,उस रात मैं उनके पास ही ठहरा,जब सुबह बारिश बंद हुई तब मैं अपने घर गया,जब मैनें उनकी वो कहानी सुनी तो उस हादसे को सुनकर मैं दंग रह गया और सबसे ज्यादा हैरानी तो मुझे उन्हें जीवित देखकर हो रही थी कि वो इतना भयानक हादसा था और उन्होंने वहाँ सर्वाइव कैसें किया और आज भी जब मैं उनके बारें में सोचता हूँ तो हैरत में पड़ जाता हूँ....

समाप्त....
सरोज वर्मा...