भारतीय रंगमंच का इतिहास - 6 शैलेंद्र् बुधौलिया द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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भारतीय रंगमंच का इतिहास - 6

रंगमंच ड्रामा का इतिहास लोकतंत्र का उदय 6

 पाश्चात्य रंगमंच

 

ड्रामा  कथोपकथन के माध्यम से कहानी प्रस्तुत करने की एक कला है ।अतः कथानक ड्रामा का मूल आधार तत्व है किंतु ड्रामा का व्यावहारिक संबंध थिएटर और मंच से है, मंच एक ऐसा स्थान है जिसका सीधा संबंध दर्शकों से है

 

भाव और शिल्प का समन्वय।

 रंगमंच के इतिहास में आधुनिक युग से पूर्व प्रदर्शन की अनेक समस्याओं को विभिन्न ढंग से हल किया गया है। जैसे मध्ययुगीन रंगमंच में विशाल मंच विधान तथा तथ्य पूर्ण रंग शिल्प के लिए पूरा का पूरा एक संगठन, इसके दायित्व को बहन करता था ।उस काल के ग्लोब थियेटर का यह उदाहरण काफी पर्याप्त है कि अभिनेता और नाटककार ही उस युग में निर्देशक का कार्य संभालते थे ।

मोलियर  ने स्वयं 17 वी शताब्दी में अपनी मंडली के साथ 12 वर्षों तक नाट्य प्रदर्शन का सारा कार्य संचालित किया है ।18वीं और 19वीं शताब्दी में ‘डेबिट गैरिक’ और ‘विलियम मेंकरेड़ी ‘ जैसे महान अभिनेताओं ने नाट्य प्रदर्शन को संगठित रूप देने का प्रयत्न किया। फिर भी आधुनिक युग से पूर्व जब तक कि निर्देशक के व्यक्तित्व का उदय नहीं हुआ, नाट्य प्रदर्शन का कार्य परंपरा के ही सहारे अधिक चलता था ।

रंगमंच का जीवंत माध्यम और शक्ति अभिनेता है जो अपनी अभिनय कला से नाटक के आधार पर दर्शक समाज को बांध लेता है। अभिनयात्मक वृति  जो रंगमंच को जीवंत रूप देती है। रंगमंच की अनन्य शक्ति है इसका मूल यही अभिनेता है ।

एलिजाबेथ बीथान रंगमंच पर स्त्री पुरुष दोनों की भूमिकाएं अदा करता था।

 रंगमंच में लोकतंत्र का जन्म –

कुछ ही वर्षों पहले मुझसे एक कलाकार ने जिसे मैं रंगमंच का अच्छा कलाकार मानता हूं अपने विरोध को इन शब्दों में प्रकट किया “प्राचीन रंगमंच की मौत हो गई पर नए रंगमंच का जन्म नहीं हुआ रंगमंच इस समय व्यापारियों तथा रईसों के हाथ में हैं।“

 यह लिखते हुए हर्ष होता है कि लोकतंत्र की भावना का उदय होते ही रंगमंच की गौरवशाली सक्रियता बढ़ी और अंत में फिर से मनुष्य की पुनर्जागरण आत्मा का वाहन बन गई ।

फ्रांसीसी क्रांति के ठीक पहले फ्रांस जर्मनी और स्पेन के दरबारों में रंगमंच के सक्रियता के प्रोज्जालन्त  उदाहरण प्रमाण मिल जाते थे। क्रांति के दिनों का विश्लेषण करने के पूर्व कुछ आवश्यक तत्व ध्यान देने योग्य हैं- जैसे उन दिनों में रंगमंच को राज दरबारों में ही प्राश्रय मिलता था उसे जन समाज में जो समर्थन मिलता था वह अपर्याप्त था ।

तब उसमें नाटकीयता अधिक थी उसकी अपनी जिंदगी थी, उससे जनसाधारण के जीवन का वर्णन अथवा चित्रण नहीं था ।परंतु अब इस बात के स्पष्ट चिन्ह मिलने लगे हैं कि व्यापक दृष्टि से चाहे नाटक रुक रुक कर ही सही अधिकाधिक मात्रा में परिचित होता जा रहा है ।

प्राचीन निरपेक्षता और दूरी का स्थान अब जीवन की सामान्य घटनाओं से निकटता के कारण व्यक्तिगत संवेदना लेना शुरू कर दिया है ।

दरबारों को रंगमंच के प्रति किंचित भी आस्था नहीं थी।  हां शाही दरबार का पुरुष वर्ग रंगमंच पर प्रस्तुत होने वाले स्त्री वर्ग के प्रति थोड़ी बहुत आसक्ति अवश्य प्रकट करता था। अभिनेत्री प्रेमिका की परंपरा यथा रीति चली आई थी। जनता यह आशा करती थी कि जो कोई महत्वपूर्ण अभिनेत्री होगी उसका कोई ना कोई सामंत प्रेमी अवश्य होगा , हो सकता है उसके एक से अधिक प्रेमी भी हो और इसी माध्यम से अनेक सभाओं , राजाओं अथवा सामंतों का संबंध इतिहास रंगमंच के इतिहास में अभिनेताओं के साथ अभिनेत्रियों के साथ स्थापित हो जाता था।

 तेजतर्रार शोख तथा लोकप्रिय ‘लौंडी डोरोथी जार्डन ’ ने उस व्यक्ति के साथ विवाह जैसे संबंध बना लिए थे, जिससे उसे 10 बच्चे पैदा हुए और जो बाद में ‘विलियम चतुर्थ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ‘एलिजाबेथ फेरन’ एक कुशल अभिनेत्री थी उसने ‘ अर्ल ऑव डर्बी ‘ से विवाह करने के लिए अपना रंगमंच जीवन समाप्त कर दिया था। कुशाग्र बुद्धि ‘ गैरिक ‘ ने  ‘ डूरी लेंन’  से काफी धन कमाया साथ ही उसने नाटकों को रंगमंच पर प्रस्तुत करने में भी अत्यंत उच्च स्तर कायम किया था, मगर जब उसने रंगमंच छोड़ा तो रंगमंच के जीवन में बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव आए। बाद में शेरी डन ने डूरी लेंन’  की व्यवस्था जब अपने हाथ में ली तो इंग्लैंड की सर्वश्रेष्ठ अभिनय करने वाली कंपनी उन्हें उत्तराधिकार में मिली।

 जब धीरे-धीरे और अनेक प्रकार का तोड़फोड़ करने वाला लोकतंत्र यूरोप के रंगमंच पर प्रवेश कर रहा था अमेरिका में जहां 1776 इसवी से लोकतंत्र का आविर्भाव हुआ , तब एक प्रकार के स्वतंत्र जीवन का विकास हुआ और रंगमंच पर लोकतंत्र की शुरुआत गईं।

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