मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 5 राज कुमार कांदु द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 5

लघुकथा क्रमांक 12

रणचंडी
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रजनी आज बहुत खुश थी। शारदा विद्यालय के प्राचार्य ने आज सुबह ही उसे फोन करके सूचित किया था कि अध्यापिका की नौकरी के लिए उसके आवेदन को स्कूल के प्रबंधकों ने मंजूर कर लिया है।

अपना नियुक्ति पत्र लेने वह प्रधानाचार्य के दफ्तर में पहुँची। बड़ी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाते हुए प्रधानाचार्य ने उसे सिर से लेकर पैर तक चश्मे के पीछे से ऐसा घूरा कि रजनी भीतर ही भीतर सिहर गई।

नियुक्ति पत्र उसके हाथों में थमाते हुए प्रधानाचार्य चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए बोला, "बधाई हो ! तुम्हारा चयन हमारे इस प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापिका के तौर पर कर लिया गया है। वेतन किसी भी समकक्ष विद्यालय से दुगुना दिया जाएगा लेकिन ....!" कुछ कहते हुए वह अचानक ही रुक गया।

"लेकिन क्या ?"

"कुछ खास नहीं ! आपको कभी कभी हमें खुश करना पड़ेगा मतलब ........!"
वाक्य पूरा होने से पहले ही चटाक की तेज आवाज से कमरा गूँज उठा।

प्रधानाचार्य अपना गाल सहला रहे थे और रजनी रणचंडी बनी नियुक्ति पत्र के टुकड़े करती हुई शान से कमरे से बाहर निकल गई।

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लघुकथा क्रमांक 13

हाथी के दाँत
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सना, नाम था उसका। एक उभरती हुई लेखिका। उसकी लिखी कहानियाँ पाठकों को झकझोर देतीं। नैतिकता, आदर्श व्यवहार अपनाने को प्रेरित करती उसकी रचनाओं में सामाजिक बुराइयों पर जम कर प्रहार किया जाता। पाठकों की खूब तारीफ भी उसे मिलती।

आज उसने बुजुर्गों का सम्मान किये जाने का संदेश देते हुए एक बहुत ही बढ़िया कहानी पोस्ट की थी।

पैदल ही अपने घर की तरफ बढ़ती हुई सना मोबाइल पर पाठकों की तारीफ भरी प्रतिक्रियाएं पढ़कर गदगद थी। उसका पूरा ध्यान मोबाइल पर ही था कि अचानक कोई जोर से उससे टकराया और मोबाइल उसके हाथों से गिरते गिरते बचा।
गुस्से से बिफरते हुए वह चीखी, "बुड्ढे ! खूसट ! देख कर नहीं चल सकता क्या ? अंधा है क्या ?"

उसकी टक्कर से गिरा हुआ वह वृद्ध अपने हाथों को जमीन पर फैलाकर अपनी छड़ी ढूंढने की कोशिश करते हुए बोला, " हाँ बेटी ! मैं अंधा ही हूँ !"

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लघुकथा क्रमांक 14

भूख का सम्मान
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सारी बीमारियाँ आज एक जगह इकट्ठा हुए थीं।
उनका विशेष अधिवेशन शुरू था जिसमें सदी की सबसे खतरनाक बीमारी का ताज किसी एक बीमारी के सिर पर सजना था।
हैजा , चेचक , मलेरिया तथा पोलियो के बाद एड्स जैसी आधुनिक बीमारियों ने भी बढचढकर अपना पक्ष रखा और सबसे खतरनाक बीमारी का ताज हासिल करने के लिए अपना दावा प्रस्तुत किया।
इन्हीं बीमारियों के बीच एक कोने में गुमसुम सी 'भूख' भी बैठी हुई थी। उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था, क्योंकि सभी की नजरें अभी अभी अधिवेशन में शामिल हुई कोरोना पर टिकी हुई थीं।
अकड़ से तनी कोरोना की गर्दन से अहंकार साफ झलक रहा था। उसे पक्का यकीन था कि आज इस सबसे प्रतिष्ठित ताज पर उसका कब्जा पक्का है।
सभागृह में चल रही टीवी पर दिखाई जा रही खबरों में भी पूरे विश्व में कोरोना के बढ़ते आतंक की ही चर्चा थी कि तभी टीवी में दृश्य बदला।
लॉक डाउन के अगले ही दिन से पूरे भारत में महानगरों से गाँवों की तरफ पैदल पलायन करते हजारों मजदूरों की भीड़ और उसकी वजह जानकर व्यासपीठ पर मौजूद पंचों ने दो मिनट के लिए आपस में कुछ खुसरफुसर की और सभापति ने कहना शुरू किया, "पिछली एक सदी में पैदा हुई सभी बीमारियों और महामारियों का पक्ष सुनने के बाद हम पंच एक नतीजे पर पहुँचे हैं जिसे बताते हुए भी हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कार रही है। सभी बीमारियाँ इतनी घातक होने व इतनी तबाही मचाने के बावजूद, हमें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हममें से कोई भी आज सदी के इस प्रतिष्ठित ताज का हकदार नहीं बन पाया है। यहाँ तक कि आज सबसे ताकतवर व लाइलाज समझी जानेवाली बीमारी कोरोना भी उससे हार गई है।" कहने के बाद सभापति कुछ पल के लिए रुका।
सभा में खामोशी का साम्राज्य था।

कुछ पल बाद सभापति ने अपनी बात आगे बढ़ाई, "..तो भाइयों, अब और देर न करते हुए आपको सूचित किया जा रहा है कि आज के इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से सदी की सबसे बड़ी और खतरनाक बीमारी का प्रतिष्ठित ताज 'भूख ' को प्रदान किया जा रहा है। आँकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में भूख से मरनेवालों की तादाद आज भी सबसे अधिक है।" गर्व से तनी कोरोना की गर्दन भूख के सम्मान में झुक गई।

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