मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 6 राज कुमार कांदु द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 6


लघुकथा क्रमांक 15

रोटी
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रज्जो का पति कल्लू शहर में दिहाड़ी मजदूरी का काम करता था। बेरोजगारी की मार झेल रहे कल्लू ने बहुत दिन हुए शहर से कुछ नहीं भेजा था।

आज लगातार तीसरा दिन था जब घर में चूल्हा नहीं जला था। बड़ी बेटी ग्यारह वर्षीया निशा का भूख के मारे बुरा हाल था। वह अपनी परवाह न कर भूख की वजह से बिलख रही सात वर्षीया मुनिया को चुप कराने का प्रयास करते हुए खुद भी रोये जा रही थी।

दोनों बच्चों को रोता बिलखता देखकर रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया। घर में बर्तन के नाम पर कुछ टिन के डिब्बे थे जिन्हें खंगालने पर उसे एक डिब्बे के नीचे पड़ा हुआ दस रुपये का एक सिक्का मिल गया।

सिक्का मिलते ही उसने फूस की छत में खोंसा हुआ राशन कार्ड निकाल लिया। बड़े जतन से सिक्के को मुट्ठी में पकड़े हुए निशा से बोली, "बेटा ! थोड़ी देर और मुनिया को संभाल। मैं अभी कुछ खाने को ले आती हूँ।"

रज्जो जैसे ही चलने को हुई मुनिया उसके पैरों से लिपट गई। रोती बिलखती मुनिया के मुख से "अम्मा रोटी....! अम्मा रोटी ....!" यही दो शब्द निकल रहे थे।

अपने जज्बातों पर काबू रखते हुए रज्जो किसी तरह दोनों को समझा बुझाकर घर से बाहर निकली। कड़ी धूप में दो किलोमीटर चलकर पसीने से लथपथ रज्जो सरकारी गल्ले की दुकान पर पहुँची।

राशनकार्ड पुस्तिका के पन्ने पलटते हुए दुकानदार ने रज्जो से उसका आधार कार्ड माँगा। अपनी मजबूरी बताते हुए रज्जो रो पड़ी, " लाला, अभी राशन दे दो। बच्चे भूखे हैं। मैं बाद में आधार कार्ड दे जाऊँगी। मेहरबानी कर दो लाला.....!"

"हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। आदेशानुसार हम जिनका राशन कार्ड आधारकार्ड से लिंक नहीं है उन्हें राशन नहीं दे सकते।"

"इतना राशन तो भरा हुआ है लाला ! थोड़ी सी दे देगा तो क्या बिगड़ जाएगा ?"

" सीधी बात तेरी समझ में नहीं आती ? इन अनाजों का एक एक दाना अब हिसाब किताब के दायरे में है और अब यह उनको ही मिलेगा जिसने अपना आधार कार्ड राशन कार्ड के साथ जोड़ रखा है।" दुकानदार ने उसे लगभग झिडकते हुए कहा।

अपना सा मुँह लिए दुखी मन से खाली हाथ रज्जो अपने घर पहुँची। झोंपड़े में घुसते ही रज्जो ने देखा 'निशा जमीन पर बैठी हुई थी और अपनी ओढ़नी उसने मुनिया को ओढ़ा रखा था।
रज्जो ने बैठकर मुनिया के ठंढे पड़ चुके अधरों को छूकर देखा जो शायद 'रोटी' के इंतजार में खुले रह गए थे।

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लघुकथा क्रमांक 16

शराबबंदी
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शराबबंदी
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सुखिया रोज की तरह शराब के नशे में झूमते हुए अपनी झुग्गी के समीप पहुँचा। व्यग्रता से उसका इंतजार कर रही ललिया ने उसे सहारा दिया और झुग्गी में नीचे बिछे बिछौने पर उसे सुला दिया।
कमीज की जेब टटोलकर हाथ में आए सौ सौ के दो नोट अपनी अंटी में खोंसते हुए वह बड़बड़ाई, "ये मुई शराबबंदी तो महँगाई की भी अम्मा निकली। शराबबंदी से पहले यही मरद बीस रुपये की शराब पीकर टुन्न हो जाता था, लेकिन आज उतनी ही शराब के लिए दो सौ रुपये खर्च कर आता है। शराब बंदी में शराब महँगी ही हुई है बस, काश, ये सचमुच बंद हुई होती।"


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लघुकथा क्रमांक -17

माँ - सबसे प्यारी
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पड़ोस के घर से दस वर्षीय बालक रोहन के जोर जोर से रोने की आवाज सुनकर निशा उसके घर जा पहुँची । बरामदे का दृश्य देखकर वह हतप्रभ रह गई । रोहन की माँ उसे बेतहाशा पिटती जा रही थी और रोहन रोते और हाथ जोड़ते हुए उसकी गोद में समाने की कोशिश कर रहा था । निशा ने बीच बचाव करते हुए रोहन को पुचकारा और उसे अपनी तरफ खिंचना चाहा लेकिन सिसकते हुए रोहन ने एक नजर निशा पर डाली और फिर बढ़ गया अपनी माँ की तरफ, उसकी गोद में समाने के लिए !