मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 1 राज कुमार कांदु द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 1

क्रमांक :1
एक थे रामलाल काका
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पूरे गाँव में रामलाल काका की ही चर्चा थी। जब से उस विशाल घर परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी, उन्होंने कई क्रांतिकारी फैसले लिए जिनके खिलाफ उनके पुरखे सदैव ही रहे।
साहूकार के हाथों खेत खलिहान गिरवी रखकर पुश्तों से बेरंग पड़ी हवेली के मरम्मत व रंग रोगन का कार्य जोरों से चल रहा था।
इस रंग रोगन व मरम्मत के चक्कर में कई बार घर की रसोई ठंडी रह जाती लेकिन घर के भूखे सदस्य घर के बदलते रूप को देखकर अभिभूत थे व रामलाल काका की शान में कसीदे पढ़ना नहीं भूलते।

एक दिन किसी बात को लेकर उनके दो पुत्रों में बेहद गंभीर विवाद शुरू हो गया। नौबत मारपीट तक पहुँच गई लेकिन रामलाल काका सब कुछ देखते सुनते हुए भी खामोश रहे। घर के अन्य सदस्य चाहते थे कि रामलाल काका उनके झगड़े में हस्तक्षेप करें व घर में शांति लाएँ लेकिन वह फिर भी मौन रहे।

रंग रोगन के ठेकेदार ने रामलाल काका के सम्मान में अपने घर पर एक समारोह का आयोजन किया।

तय समय पर उसके घर जाने से पहले पड़ोसियों से उन्हें सूचना मिली कि उनके दोनों पुत्रों में बेहद हिंसक झड़प भी हो सकती है, लेकिन इस महत्वपूर्ण सूचना को दरकिनार कर रामलाल काका समारोह में शामिल होने के लिए ठेकेदार के घर रवाना हो गए।

दोनों पुत्रों में वैमनस्य की आग ऐसी बढ़ी कि उनके एक पुत्र ने अपने दबंग पुत्रों की सहायता से अपने भाई के परिजनों पर हमला कर दिया। लहूलुहान परिजनों को देखकर भी उनके प्रतिशोध की आग नहीं बुझी। उन्होंने घर की युवतियों को निर्वस्त्र कर पूरे गाँव में घुमाया।

इधर समारोह में सम्मानित किए जा रहे रामलाल काका अपनी दूरदृष्टि पर गर्वित हो भाषण दे रहे थे।

ठेकेदार के परिचितों द्वारा लगाए जा रहे जयकारे से उत्साहित रामलाल के कुछ पुत्र बेहद गर्वित महसूस कर रहे थे जबकि कुछ पुत्रों ने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली थी क्यूँकि उसी समय उनके घर की इज्जत बेपर्दा होकर अपना आबरू बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी और उन्हें बेपर्दा करनेवाला कोई और नहीं, उनका अपना ही था।
रामलाल काका अब भी खामोश हैं।
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क्रमांक :2

खामोशी
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दूर कहीं अंतरिक्ष से पृथ्वी की तरफ ध्यान से देख रहा दुःशासन अचानक जोरों से चीख पड़ा। बगल में ही बैठा दुर्योधन हड़बड़ाकर बोला, "क्या हुआ छोटे ? ऐसा क्या देख लिया तुमने जो इतनी जोर से चीख पड़े ?"
दुःशासन अपनी तर्जनी से एक तरफ इशारा करते हुए बोला, "वो देखो भैया ! हमारे प्यारे भारत देश में ये क्या हो रहा है ? ऐसी तो हमने भी कभी नहीं किया।"
दुर्योधन ने उसकी उँगली की सीध में देखा और हक्काबक्का रह गया। कुछ युवकों का समूह दो पूर्ण नग्न युवतियों को किसी भेंड़ की तरह हाँकते ठहाके लगाते उनपर अश्लील फब्तियाँ कस रहे थे, उसे प्रताड़ित कर रहे थे।
महाभारत युद्ध का भयानक व वीभत्स दृश्य देख चुका वह प्रत्यक्षदर्शी भी यह दृश्य देखकर द्रवित हो उठा।
अपनी आँखें बंद कर ईश्वर का स्मरण करते हुए वह बोला, "उधर ध्यान मत दो छोटे। बस ईश्वर का स्मरण करो और उनका आभार मानो कि यह दिन देखने से पहले ही उन्होंने हमें धरती पर से अपने पास बुला लिया है।"
उद्विग्नता से दुःशासन बोला, "लेकिन धरती पर रह रहे अन्य जीवों की क्या गलती है भैया जो उन्हें ये सब देखना पड़ रहा है ?"
स्मित हास्य के साथ दुर्योधन बोला, "छोटे ! अन्याय व अधर्म के खिलाफ लोगों का खामोश रहना ही उनकी गलती है। आज जो हो रहा है...वह तो होना ही था।"