तमाचा - 42 (मिलन) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

तमाचा - 42 (मिलन)

"अगर तुम नहीं आओगी तो कोई नहीं जाएगा।"
"तुम समझा करो मेरे बहुत जरूरी काम आ गया है। पापा ने स्पष्ट बोला है कि मुझे किसी भी हालत में यहाँ रुकना होगा।"
"पर तुम्हारे बिना ये यात्रा किस काम की।"
"तुम जाओ ना प्लीज ! अब ऐसा ना कहो । सब तैयारियां हो गयी है। सभी स्टूडेंट्स भी आ गए है। अब अगर प्लान कैंसिल करते है तो यह गलत होगा। मैं भी एकदम तैयार थी पर अचानक से पापा ने बोल दिया कि हमें इस समारोह में जाना अत्यंत आवश्यक है। तुम जाओ आराम से और सभी को अच्छे से घुमाने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी।"
"क्या यार! " राकेश का मूड ऑफ हो जाता है जब दिव्या किसी काम की वजह से जैसलमेर चलने से मना कर देती है।
राकेश कॉलेज के दो लेक्चरर और विद्यार्थियों के साथ चल पड़ता है जैसलमेर की ओर। वो शनिवार शाम को रवाना होते है और रविवार की प्रातः स्वर्णिम वेला में पहुंच जाते है जैसलमेर।

बस जैसलमेर सिटी में प्रवेश कर रही थी। जैसलमेर का सोनार किला प्रातः की सुनहरी किरणों के प्रताप से स्वयं भी अपनी चमक बिखेर रहा था वैसे ही जैसे चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से चमक कर सारे जग को शीतल कर देता है। अपनी विशेष आकृति के कारण ऐसा लग रहा था मानो कोई विशाल जहाज प्राचीन काल में जब यहाँ समुद्र हुआ करता था तब यहाँ आकर रुक गया हो। और अब रेगिस्तान के मध्य यह किला अपनी सुंदरता से अनायास ही सैलानियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। बस में मौजूद विद्यार्थी इसके अनुपम सौंदर्य से प्रभावित होकर इसको निहार रहे थे और कैमरे में यह पल कैद किए जा रहे थे। कुछ ही देर में उनकी बस निर्धारित हॉटेल में आकर रुक जाती है।

सभी विद्यार्थी अपनी प्रातः काल की दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर नाश्ता करते है। प्रातः की स्वर्णिम आभा अब अपना रूप बदल कर तेज हो गयी थी। कुछ ही समय में सभी विद्यार्थी आगे के सफ़र के लिए तैयार हो गए। तभी हॉटेल का एक व्यक्ति उनके पास आता है और बोलता है,"आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है हमारी स्वर्णनगरी में । आपका गाइड कुछ ही देर में आपके समक्ष होगा। आपकी इच्छा के अनुसार सबसे पहले आपको तनोट माता के मंदिर दर्शन करवाने ले जाया जाएगा फिर वहीं से आपको भारत-पाक बॉर्डर पर घुमाने ले लाएँगे । वहाँ से हम सीधे 'सम' स्थान पर जाएँगे , जहाँ हम सनसेट का मनोहर दृश्य देखेंगे। आते टाइम कुलधरा और फिर वापस हॉटेल आकर रात्रि विश्राम । कल दिन में सिटी में घूमने के बाद शाम को आपकी योजना के अनुसार आपको वापस जयपुर के लिए प्रस्थान करना है। मुझे विश्वास है, आपका यह सफ़र आनंददायक होगा। "
"ओके थैंक यू।" ग्रुप लीडर राकेश और साथ में आये दोनों प्रोफेसर एक साथ में बोलते है।

सभी विद्यार्थी बस में जाकर अपनी-अपनी सीट पर बैठ जाते है। राकेश और दोनों प्रोफेसर बस के बाहर खड़े कुछ चर्चा कर रहे थे तभी उनका गाइड विक्रम वहाँ पहुँच जाता है।
"हैलो सर्.. आई एम विक्रम कुमार । योर गाइड एंड सॉरी फ़ॉर अ लिटिल लेट।" विक्रम प्रोफेसर राकेश से हाथ मिलाकर फिर प्रोफेसर के पास बात करने लग जाता है। पर राकेश की नज़र विक्रम के पीछे आ रही अप्सरा पर जाकर अटक जाती है। विक्रम के साथ ही उसकी बेटी बिंदु भी आई थी। अनारकली स्टाइल कुर्ता सूट पहन , माथे पर छोटी सी बिंदिया और कपोल को छूती उसके बालों की लटे ऐसा कहर ढा रही थी कि राकेश तो उसको देखकर अपनी आँखें झपकाना ही भूल गया। बिंदु राकेश द्वारा इस प्रकार देखे जाने पर अपनी आँखें नीचे झुका लेती है। यह राकेश और बिंदु का पहला मिलन था......

क्रमशः.....