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तमाचा - 5 (सपनों की दुनियाँ)

एक अच्छे पढ़े - लिखे, सुशिक्षित व्यक्ति का जीवन में जो सबसे बेहतरीन टाइम पीरियड होता है उसमें से एक है ,कॉलेज लाइफ। आज अधिकतर व्यक्ति यही मानते है कि कॉलेज लाइफ बेस्ट लाइफ होती है और काश वो किसी तरफ वापस आ जाए।
राकेश पापा के स्कूटर पर आने से बचने के लिए उनसे मिले बिना ही बस के द्वारा अपनी कॉलेज पहुँच गया।
नई दुनियाँ , नए लोग, नई खुशियाँ, नई समस्याएँ ; राकेश घर से निकलते ही अपनी कॉलेज लाइफ के बारे में सोच रहा था। मेरा पहला दिन कैसा होगा, मेरे दोस्त कौन बनेंगे, मेरी गर्ल फ्रेंड कब बनेगी। यहाँ तक कि बस में जो लड़कियाँ बैठी हुई थी ,उनके बारे में भी यही सोच रहा था कि शायद इनमें भी कोई मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती होगी।

जयपुर की सबसे बड़ी रोड़ के किनारे बना महर्षि कॉलेज, बड़ा केम्पस और अंदर प्रवेश करते ही पेड़ो की कतारें। कॉलेज के शिक्षक अपनी-अपनी गाड़ियों में आ रहे थे और कई युवक-युवतियों की टोलिया बनी हुई थी ।
राकेश कॉलेज के अंदर पहुंचकर इस रंग-बिरंगी दुनियाँ को देख रहा था तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला "राकेश !"
राकेश ने मुड़कर देखा तो वह मनोज था जो दसवीं क्लास तक उसका साथी रहा था बाद में वह अलग स्कूल में चला गया था।
"अरे ! मनोज तुम! क्या तुम भी यहीं पढ़ते हो ?"
"हाँ! बी एस सी कर रहा हूँ और तुम?"
" मैं तो बी ए कर रहा हूँ, ये साइंस तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ती।"
"अच्छा! वैसे हमारे क्लासमेट में से ओर भी कोई है यहाँ ?"
"पता नहीं, आज मेरा पहला दिन है कॉलेज में, और चंदन और रोहन तो कोटा चले गए है बाकी का पता नहीं। "
"चलो तुम मिल गए यही काफी है , कोई तो दोस्त मिला।"
राकेश और मनोज दोनों अपनी-अपनी क्लास की तरफ जाने लगे ।

एक कमरा जिसमें कई कलियाँ और उन पर मँडराते भवरें बैठे थे। राकेश भी उनके बीच पहुंच जाता है और पीछे की कुर्सी पर जाकर बैठ गया। तभी कमरे में एक व्यक्ति जिसने गोल छज्जे वाली टोपी पहनी हुई थी और नीचे सूट।
"गुड मॉर्निंग , एवरीवन"
वह राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर विजय सिन्हा थे। आते ही सबसे पहले अपना परिचय दिया एवं फिर सबसे अपना परिचय देने को कहा। एक- एक कर सभी अपना परिचय दे रहे थे कि तभी एक नवयौवना जिसने हल्की गुलाबी रंग की टॉप और नीचे काले रंग की प्लाजो पहनी हुई थी । गोरे रंग और उसकी चाल-ढाल से वह कोई अमीर घर की लड़की लग रही थी। उसके परफ्यूम की खुश्बू ने पूरे कमरे को सुगंधित कर दिया और सभी का ध्यान अपनी और आकृष्ट कर लिया । सभी भंवरों की नजर उस कली की और ही थी कि वो कहाँ बैठती है तभी वो राकेश के पास जाकर बैठ जाती है क्योंकि क्लास में केवल वही एक कुर्सी खाली थी।
राकेश का दिल अपनी पूरी स्पीड से धड़कने लगा । उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि कोई इतनी खूबसूरत लड़की उसके इतने पास बैठी है। वह अपनी सुध-बुध खोकर एकटक उसे ही निहारने लगा। तभी उस लड़की ने उसके दिवास्वप्न को तोड़कर उसको जगाया।
"ऐ!, हेलो मिस्टर! "
राकेश का दिल और जोर से धड़कने लगा कि इसने मुझे बुलाया। राकेश घबराते हुए बोला " ज्ज्ज् जी हाँ ,बोलिए"
"मेरी तरफ नहीं उधर सामने देखिए सर बुला रहे है।"
राकेश उसको देखते-देखते भूल ही गया कि परिचय के सत्र में उसका नंबर आ गया था। वह अपनी जगह से खड़ा हुआ तो देखा कि सभी उसकी इस हरकत पे हँस रहे थे।
"मेरा नाम राकेश है, पापा का नाम मोहनचंद है और मैं जयपुर का ही रहने वाला हूं।"
प्रोफेसर ने अपने तीखे स्वर में कहा "बेटा आते ही शुरू कर दी अपनी हरकतें ! यहाँ सिर्फ पढ़ाई करनी है, नहीं तो कॉलेज आने की जरूरत नहीं है।"
राकेश अपना सिर शर्म से नीचे करके बैठ गया और प्रोफेसर के लिए उसके दिल में तभी नफरत पैदा हो गई।
राकेश के बाद एक ही विद्यार्थी का परिचय बाकी था जिसको देखकर राकेश अपने होसो-हवास खो बैठा था।
वह लड़की खड़ी हुई और अपनी जोशीली आवाज में बोली
"मेरा नाम दिव्या है और मैं जयपुर की ही रहने वाली हूँ। मेरे पिता का नाम श्यामचरण वर्मा है जो यहाँ के विधायक है।"

क्रमशः ......


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