उपन्यास के बारे में संक्षिप्त परिचय-
यह उपन्यास एक काल्पनिक कथा पर आधारित है जिसका किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सीधा संबंध नहीं है, अगर कोई संबंध पाया जाता है तो वह केवल एक संयोग मात्र है।
यह उपन्यास एक ऐसी गूंगी लड़की की कहानी है जो अनाथ न होकर भी अनाथ जैसा जीवन गुज़ारती है और जीवन में अनेक कष्ट और यातनाओं को सहती हुई भी अपनी हिम्मत नहीं हारती है । इसके अलग - अलग पार्ट में आपको अलग कहानियाँ मिलेगी पर अंत में सब ऐसे मिल जाएगी जैसे अलग - अलग पहाड़ो और पर्वतों से निकलती हुई नदियाँ किसी स्थान आकर पर मिल जाती है। उपन्यास के अंत में एक ऐसा मोड़ आयेगा जो न केवल इस उपन्यास के केवल एक पात्र वरन् समूचे समाज पर एक तमाचा है।
आशा है यह उपन्यास आपको मेरे हृदय से बाँधे रखेगा। और आपका प्रेम सदा ही मुझ पर बरसता रहेगा। व्यक्ति गलतियों का पुतला होता है और यह मेरा पहला उपन्यास है अतः मुझ जैसे व्यक्ति से कुछ गलतियाँ अथवा त्रुटियाँ होना लाजिमी है आशा है जिसके लिए आप मुझे क्षमा कर मेरी गलतियों को किनारे रखकर मेरे हृदय से निकलने वाले भाव से एकाकार होंगे।
मैं हर संभव कोशिश करूँगा की हर हफ़्ते में इसका एक पार्ट आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ चूंकि अभी मेरा अध्ययन और विद्यालय दोनों चल रहे है अतः समयाभाव के कारण कभी - कभी विलंब होने पर भी आप मुझे क्षमा करेंगे।
आपके प्रेम और आपकी अमूल्य समीक्षा को आतुर आपके हृदय के किसी एक कोने में स्थान की चाह रखने वाला - नन्दलाल सुथार 'राही'।
भाग -1 (नवदम्पति)
पार्ट - 1 ( नवदंपति)
दोपहर का समय और उस पर चिलचिलाती जैसलमेरी धूप। मानों सूर्य अपने पूर्व जन्म का बदला ले रहा हो। मुश्किल से कोई लोग अपने घरों से बाहर निकले;केवल वही लोग दिखाई पड़ रहे थे जिनको अतिआवश्यक काम था अथवा जो ग्रामीण शहर में किसी कार्य से आये हो।
पीले पत्थरों से बना सोनार दुर्ग इस धूप में और चमक रहा था पर उसकी चमक को देखने के लिए ऐसी धूप में लोग बाहर निकलने से कतरा रहे थे।
कुछ लोग गड़ीसर तालाब के किनारे बैठे आराम कर रहे थे । बहुत ही कम सैलानी आज यहाँ दिखाई दे रहे थे और जो दिखाई दे रहे थे और वो वही थे जो कम पैसों में यहाँ घूमना चाहते थे, क्योंकि गर्मी के मौसम में यहाँ होटलों और अन्य चीजों के रेट कम हो जाते है।
तालाब के किनारे बैठे इन्ही लोगों में एक नवविवाहित दंपति बैठे हुए थे। राकेश जो जयपुर के एक राजनीतिक पार्टी के युवा कार्यकर्ता थे और पास में बैठी उसकी पत्नी प्रिया जो उसके चिपक के बैठी थी और उसके हाथ में अपने भाग्य की रेखाएं देख रही थी।
गर्मी की वजह से दोनों ने आंखों पर सनग्लासेज लगाए हुए थे और राकेश जिसने टी- शर्ट ,कैपरी और सिर पर छज्जे वाली टोपी पहनी हुई थी। प्रिया ने ऊपर हरे रंग का टी-शर्ट और नीचे श्वेत रंग की शॉर्ट्स ही पहनी हुई थी हालांकि उसका खुद का रंग थोड़ा सांवलापन लिए हुए था । लेकिन फिर भी अपनी मासूमियत की वजह से बहुत आकर्षक लग रही थी।
पास ही कुछ लफंगे अपनी आंखों का जहर उसके जिस्म को देखकर निकाल रहे थे ।वह इसी फिराक में यहाँ आते कि शायद कोई लड़की उन्हें मिल जाये। अक्सर वो यहाँ आते और अपना समय और माता -पिता का पैसा ऐसे खर्च कर देते ,जैसे उनके पैसे उड़ाना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है।
राकेश और प्रिया साथ बैठे हुए तो थे, लेकिन उनमें वह बातें नहीं हो रही थी जो साधारणतः एक नवविवाहित युगल में होती है। राकेश अपनी ही कल्पना में खोया हुआ था और प्रिया इंतजार कर रही थी कि कब राकेश कुछ बात करें , क्योंकि अभी तक जितनी बातें हुई उन सभी बातों की पहल प्रिया ने ही की थी।
आखिर ऐसी कौन सी बात थी जिसके कारण दोनों एक होकर भी एक न थे।
क्रमशः ...