तमाचा - 41 (टूअर टू जैसलमेर) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 41 (टूअर टू जैसलमेर)

चारों तरफ उगी हरी-हरी दूब जिसमें कम पानी की वजह से हल्का पीलापन आया हुआ था । कई सारे लड़के और लड़कियां अपनी-अपनी संगति के दोस्तों के साथ बैठे हुए अपनी गपशप में व्यस्त थे। एक लड़का उनके पास आकर बोलता है,"प्रोफेसर अजय हिंदी साहित्य की क्लास ले रहे है। जिसके भी हिंदी साहित्य है उनको बुला रहे है।"
प्रोफेसर अजय केवल इंतजार ही करते रहे आख़िर वह बिना क्लास लिए जाने लगे। तभी कुछ विद्यार्थी उनके पास आते है और क्लास लेने का बोलते है। लेकिन वो बेचारे जो आये उनको जो नहीं आये उनकी डांट सुननी पड़ी।
"तुम लोग यहाँ पढ़ने आते ही नहीं हो। केवल मजे करना ही तुम्हारा उद्देश्य रह गया है। अगर कॉलेज में किसी विषय का प्रोफेसर नहीं हो तो तुम गेट पर हो हल्ला मचा देते हो। नारेबाजी और यहाँ तक कि पूरे शहर में इसकी चर्चा करवा देते हो,विधायक और मंत्रियों तक वह पोस्ट भरवाने के लिए चले जाते हो। लेकिन जो प्रोफेसर आपको पढ़ाना चाहता है। आपकी क्लास लेने आता है। तो तुम क्लास में आते ही नहीं हो। बाहर ही मटरगश्ती करते रहते हो। तुम तो एक दीमक की तरह केवल अपने माँ-बाप की संपत्ति को नष्ट करने आते हो।" प्रोफेसर अपने लंबे छोड़े उपदेश देने के बाद उसी क्रोधित मुद्रा में अपने रूम की तरफ चले जाते है। केवल पांच-दस विद्यार्थियों की क्लास लेना उसने उचित न समझा।
कॉलेज में बहुत ही कम विद्यार्थी थे जो केवल पढ़ने के उद्देश्य से आये थे। अधिकतर अपनी चढ़ती हुई जवानी का इंतजाम करने आये थे। कुछ ने जोड़ियां बना दी थी तो कुछ इस जद्दोजहद में पूरी निष्ठा के साथ लगे हुए थे। क्लासों में अधिकांश वही थे जिनको अभी तलक कोई जोड़ीदार नहीं मिला था।
हालांकि कुछ बच्चे थे जो पूरी तन्मयता के साथ पढ़ाई में लगे हुए थे लेकिन अक्सर कोई मेनका आकर इनके व्रत को डांवाडोल कर देती। क्लासों में अध्ययन का माहौल न होने पर कुछ सच में पढ़ने में रुचि रखने वाले विद्यार्थी पुस्तकालय में अपना मन अध्ययन में रमा रहे थे।

एक खाली क्लास में कुछ विद्यार्थियों ने प्रवेश किया जिसमें सबसे आगे दिव्या थी। बाकी सब विद्यार्थी बेंचों पर जाकर बैठ जाते है। तभी राकेश क्लास में प्रवेश करता है।
"उपाध्यक्ष साहेब आप आने में इतनी देरी करोगे तो कैसे चलेगा। "दिव्या ने हास्य भाव के साथ कहा।
"आई एम सॉरी प्रोफेसर मैडम ! आज के बाद समय पर आऊँगा। " राकेश ने एक मुस्कान अपने लब पर लाते हुए कहा और सबसे आगे वाली बेंच पर बैठ गया जहाँ से एक लड़का उठकर उसके लिए जगह खाली कर पीछे चला गया था।
"आप सभी दोस्तों का स्वागत है। हम यहाँ पर क्यों इकट्ठा हुए है इसकी जिज्ञासा आप सभी को अवश्य होगी। लेकिन अब मैं आपकी उस जिज्ञासा पर से पर्दा हटाने जा रही हूँ। आप सब के लिए एक सरप्राइज है। आशा है आप सबको अवश्य पसंद आएगा। हमारी कॉलेज की ओर से हमने एक एजुकेशनल टूर का प्लान बनाया है। इस रविवार को हम सब जैसलमेर घूमने चलेंगे और साथ ही इंडो-पाक बॉर्डर भी चलेंगे।" दिव्या के ऐसे बोलते ही चारों तरफ तालियों की बौछार होने लगी।
"हू ..हू.."
"येह"
"वाह वाह!"
"ये हुई ना बात!"
चारों तरफ़ जश्न जैसा माहौल बन गया। राकेश दिव्या के साथ सफ़र करने के बारे में सोचकर ही प्रसन्न हो रहा था। लेकिन वो अनजान था कि जैसलमेर में उसकी जिंदगी के एक नए अध्याय की शुरूआत होने वाली थी।



क्रमशः.....