तमाचा - 40 (बॉर्डर) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 40 (बॉर्डर)

प्रातः की स्वर्णिम वेला में सूर्य ने अपनी किरणों के हस्ताक्षर द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। दूसरी तरफ चंद्रमा अपनी ड्यूटी पूरी कर अपने विश्राम स्थल की ओर जाता प्रतीत हो रहा था। बिंदु का हृदय आज कुछ तेजी सी ही धड़क रहा था। वह बार-बार दरवाजे पर आकर सारिका के घर की ओर देखती और वापस अपने कमरे की ओर आ जाती । सारिका ने उसे बताया था कि आज शरद आने वाला है। इसलिए उसकी उत्कंठा बढ़ गयी थी।

विक्रम भी आज बहुत समय पश्चात प्रसन्न दिखाई दे रहा था। सारिका ने उसे बताया कि उसने बिंदु को शरद के लिए मना लिया है। जब बिंदु बार-बार सारिका के घर की ओर देखती तो विक्रम मन ही मन हर्षित हो जाता।
"क्या बात है बेटी? आज बार-बार दरवाज़े की ओर जा रही हो। कोई आने वाला है क्या?" विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा।
"नहीं तो पापा ! बस ऐसे ही ।" बिंदु आज बहुत समय पश्चात अपने पापा से स्नेहपूर्वक बोली।

तभी द्वार पर सारिका दस्तक देती है। बिंदु की धड़कन जैसे अचानक बढ़ गयी। वह उनसे कुछ पूछ नहीं सकी। उसकी जुबान पर जैसे किसी ने ताला लगा दिया हो। तभी विक्रम बोला,"आओ सारिका जी। क्या बात है ! आज तो सुबह-सुबह हमारे दर पर।"
"हाँ जी , आपसे कुछ बात करनी थी।"
"अवश्य , आइए बैठिए । बिंदु बेटा एक गिलास पानी ला और ज़रा चाय बना दे सारिका जी के लिए।" विक्रम सारिका को सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुए साथ में बिंदु से बोले।
"अरे..नहीं नहीं .. चाय रहने दो । अभी पी है।"
"रहने कैसे दूँ आंटी ! चाय तो पीनी ही पड़ेगी।"बिंदु एक पानी का गिलास सारिका को देकर रसोई में चाय बनाने चली गयी। सारिका ने विक्रम को विस्तार से पूरा प्लान बताया और बिंदु किस तरह मानी यह भी बताया । तभी बिंदु चाय लेकर आती है। बिंदु उनके पास बैठती है पर उसकी नज़र अभी तक दरवाज़े की तरफ़ थी। वह सोच रही थी सारिका आंटी अकेले कैसे आये? क्या वो नहीं आये या फिर अब आयेंगे? सारिका चाय का कप हाथ में लेकर बिंदु से बात करती है।
"बिंदु बेटा ,जोधपुर में मेरी एक भुआ है। उसका एक बेटा है शरद बहुत ही भला है। आज वो यहाँ आने वाला था ;पर अचानक भुआ जी की तबियत थोड़ी ख़राब हो गयी तो वह आ नहीं पाया। मैंने शरद की शादी के लिए तुम्हारी बात विक्रम जी से की पर वो बोल रहे है कि बिंदु की हाँ होनी चाहिए । अगर बिंदु तैयार है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं। अब तुम बताओ तुम्हारी क्या राय है? शरद वैसे तुमसे मिलने आ जायेगा कुछ दिन बाद।"
बिंदु की नजरें अब झुकी हुई थी वो क्या कहे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। शर्माती हुई वह बोली कि "जो पापा कहे।" और वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गयी।
विक्रम का हृदय आज खुशी से भर गया था। उसकी खुशी की झलक उसके हृदय से निकलकर उसके मुखः पर साफ नज़र आ रही थी।
"विक्रम जी आज तो मिठाई खिलानी पड़ेगी। अब ऐसे काम नहीं चलेगा।" सारिका ने चाय का खाली कप सामने रखी छोटी टेबल पर रख दिया और अपनी हल्के पीले दाँत दिखाते हुए बोली।
"जरूर..जरूर.. सारिका जी....अरे , बिंदु बेटा फ्रीज में से ज़रा मिठाई ले आना ।"
बिंदु शरमाती हुई मिठाई का डिब्बा ले के आई और जाने लगी लेकिन तभी सारिका ने उसकी कलाई पकड़कर उसको खींचकर अपने पास सोफ़े पर बैठा दिया।
"क्या बात है बिंदु रानी ! आज तो बड़ी शरमा रही हो? भई विक्रम जी आपको बधाई तो है ही साथ में धन्यवाद भी। मेरी भुआ को ऐसी बहू लाख ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी।"
"नहीं धन्यवाद तो आपका, आपकी वजह से हमारे घर में भी खुशी का यह पल आया है। लेकिन यह सोचकर मेरा मन बैठ जाता है कि बिंदु की शादी के बाद मेरा क्या होगा? फिर तो मेरी ज़िंदगी वीरान हो जाएगी।" विक्रम उदासी भरे स्वर के साथ बोला।
"हाँ विक्रम जी । यह बात तो आपकी सही है। इसलिए अब से बिंदु का विशेष ध्यान रखे और उसको समय दे।"सारिका ने आग्रहपूर्वक कहा।
"हाँ हाँ.. सही कहा आपने। और हाँ बिंदु बिटिया इस रविवार को हम वहाँ चलेंगे जहाँ जाने की तुम्हारी कई समय से इच्छा थी। तनोट माता मंदिर और भारत-पाक बॉर्डर। जयपुर से स्टूडेंट्स की बस यहाँ आ रही है। वो सब भारत -पाक बॉर्डर देखने जायेंगे । तब तुम भी साथ चलना।"
सारिका के पास सोफ़े पर बैठी बिंदु अपने विचारों में मग्न हो गयी थी। कभी वह सोचती पापा मेरे जाने पर इतना क्यों उदास हो रहे है। वो तो फिर आजाद पंछी की तरह किसी भी तरह जा सकते है और अपनी रंगरलियां मना सकते है। फिर तनोट मन्दिर और बॉर्डर जाने का सुनने पर उसके हृदय को कुछ प्रसन्नता मिली कि चलो यह तो घूम आये न जाने फिर मौका मिले या ना मिले।
लेकिन सब इस बात से अनजान थे कि बॉर्डर घूमने जाने वाली उस बस में कोई ऐसा भी आएगा जो बिंदु का जीवन किसी ओर ही दिशा में ले जाएगा....


क्रमशः.....