कवच - काली शक्तियों से - भाग 1 DINESH DIVAKAR द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कवच - काली शक्तियों से - भाग 1

काश हम उस बस में चढ़ गए होते तो शायद हम उस खतरनाक मंजर में ना फंसते...!!

उस हादसे से पहले तक मैं भूत प्रेत पर विश्वास नहीं करता था लेकिन जो हमारे साथ हुआ उसने हमें विश्वास दिलाने में मजबूर कर दिया कि सचमुच आत्माएं होते हैं। उस हादसे ने हमें अंदर से डरा दिया था तो चलिए जानते हैं आखिर ऐसी क्या वजह थी जिसने हमें वहां तक ले गई...!!

3 साल पहले....
रोहन बेटा उठ जाओ 7 बज गए हैं तुम्हें अपनी रिसर्च के काम से बाहर जाना था ना

रोहन- क्या मां कितना अच्छा अपना देख रहा था कि आपने जगा दिया।

मां- अच्छा जरा मुझे भी तो बता क्या देख रहा था।

रोहन- अच्छा तो सुनो, मैं कहीं जा रहा था सुहाना मौसम था मैं बस में चढ़कर कहीं जा रहा था तभी बस में एक लड़की चढ़ी वह दिखने में एकदम परी लग रही मानो स्वर्ग से कोई अप्सरा हो। वो बैठने के लिए इधर-उधर नजरे फेरने लगी। किस्मत से मेरे बगल वाली सीट खाली थी तो मेरे पास आकर बोली "सुनिए क्या मैं यहां बैठ सकती हूं"

तब मैंने बोला- हां क्यों नहीं आइए बैठिए

मै उससे बात करना चाह रहा था लेकिन कैसे बोलूं यह समझ नहीं आ रहा था। तब उसने ही शुरुआत कर दी "हाय मेरा नाम है चैत्रा है और तुम्हारा..?"

"रोहन, मेरा नाम रोशन है पूछने के लिए धन्यवाद" मैंने जवाब दिया।

चैत्रा- आपसे मिलकर अच्छा लगा।

रोहन- जी वह तो मुझे भी लगा वैसे आप कहां जा रही हैं।

तब चैता ने कहा- मुझे एक रिसर्च के लिए खास फुल (पुष्प) की तलाश है मैंने सुना है यहां से बहुत दूर एक जंगल में मिल सकता है मैं वहीं जा रही हूं।

रोहन अच्छा यह कोई संयोग तो नहीं क्योंकि मैं भी पौधों के पौधों के रिसर्च के लिए काम करता हूं और मैं भी वही जा रहा हूं।

चैत्रा- अच्छा कहीं आप मेरे साथ चलना चाहते हैं इसलिए तो ऐसे नहीं बोल रहे हैं।

ऐसा कहते हुए उसने आपने बैग से कुछ निकाल रहीं थी मै ढंग से देख नहीं पाया और तभी आपने मुझे जगा दिया।

मां- सो सॉरी बेटा

रोहन- कोई बात नहीं मम्मी

मां- अच्छा तुम तो आज कही जाने वाले थे ना!

रोहन- अरे हा मां मैं तो भूल गया मेरे दोस्त वहां पहुंचने वाले होंगे मुझे जल्दी से तैयार होना होगा।

मां- अरे आराम से, तुम तैयार हो जाओ मैंने नास्ता बना दिया है। मैं जरा मंदिर से होकर आती हूं तू जंगल जाने वाला है तो तेरे लिए भगवान का प्रसाद ले आती हूं।

यह कहकर मां चली गई और मैं जल्दी से तैयार होकर जाने की तैयारी करने लगा।

कुछ देर बाद...
मां- ये लो बेटा प्रसाद

रोहन- जल्दी दो मां मैं बहुत लेट हो गया हूं वहां पहुंते पहुते शाम हो जाएगी।

मां- अच्छा सुन यह भगवान का लाकेट है इसे हमेशा अपने पास रखना और यह कुमकुम है यह भी तेरी रक्षा करेगी।

रोहन- क्या मां मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि मैं इन सभी चीजों पर विश्वास नहीं करता।

मां- अच्छा मेरे लिए तो पहन ले।

रोहट- अच्छा दो मां, मैंने उस लाकेट को और कुमकुम को अपने बैग में डाल दिया।

अच्छा मा चलता हूं अपना ख्याल रखना मैं जल्दी आ जाऊंगा।

मां- अच्छा जाते ही फोन करना।

रोहन- ओके

यह कहकर मैं बस स्टाप पर बस का इंतजार करने लगा तभी बस आ गई... मैं जल्दी से बस पर बैठ गया सफर लंबा था तो मैं खिडकी वाले सीट पर बैठ गया।

बस चलने लगा थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने देखा एक लड़की बस में चढ़ने के लिए दौड़ रही है मैंने बस को रोकवाया।

वो बस पर चढ़ी मैंने उसका चेहरा देखा वो बिल्कुल वही थी जिसे मैंने अपने सपनों में देखा था। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि ये सपना तो नहीं फिर वैसा ही हुआ जैसे मैंने सपने में देखा था वह मेरे पास बैठी मुझसे बातें किया तब मैंने उससे पूछा "चैत्रा तुम कौन से जंगल में जा रही हो..??"

तब चैत्रा ने जावाब दिया "करलाई का जंगल"

रोहन- यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ लगता है भगवान की भी यही मर्जी है कि हम साथ रहे।

तब मैं बोला- अच्छा मैं वहीं जा रहा हूं।

चैत्रा- कही तुम मेरे साथ रहने के लिए तो ऐसा नहीं बोल रहे।

रोहन- नहीं यार मेरे साथ दो दोस्त भी वहां जा रहे हैं तुम चाहो तो फोन लगा के पूछ सकती हो

चैत्रा- ओ सॉरी मुझे लगा तुम मेरा पीछा कर रहे हो

रोहन- कोई बात नहीं

चैत्रा अपने बैग से कुछ निकाल रही थी तभी उसके बैग से कुछ अजीब सी चीज नीचे गिरी तो चैत्रा ने झटपट उसने उठा कर अपने अपने बैग में छुपा लिया

रोहन- चैत्रा वह चीज क्या था एकदम अजीब था

चैत्रा- कुछ नहीं वो मेरे रिचार्ज का हिस्सा है,,

मुझे लगा वो मुझसे कुछ छुपा रहू हैं तभी मुझे एहसास हुआ कि शाम हो चुकी है सभी यात्री उतर चुके थे सिर्फ हम दोनों बस में बैठे हैं

मुझे कुछ गड़बड़ सा लगा मैं बाहर जाकर देखने लगा वहां लिखा था
करलाई का जंगल का सीमा समाप्त
है और भूत बंग्ला क्षेत्र का जंगल प्रारंभ
संभल कर यह एरिया बहुत ही खतरनाक है

हम बस को रोकने के लिए ड्राइवर से कहने लगे यह आप हमें कहां ले आए कलाई का जंगल तो समाप्त हो गया गाड़ी को घुमावो हमें वहां जाना था

ड्राइवर हमारी बातों को सुन नहीं रहा था तो मैं सामने जाकर देखने लगा मैं बर गया ड्राइवर के स्थान पर कोई नहीं था गाड़ी अपने आप चल रही थी

मैं भागकर चैत्रा के पास आया और बोला- चैत्रा चलो यहां से बस अपने अपने आप चल रही है यह कहकर मैं चैत्रा को लेकर बस से कूद गया हम जमीन पर गिर गये हमें थोड़ी सी चोटे आई

तभी हमने देखा बस के सभी यात्री बस में हीं बैठे हैं और हम पर हंस रहे हैं

®®®Ꭰɪɴᴇꜱʜ Ꭰɪᴠᴀᴋᴀʀ"Ᏼᴜɴɴʏ"