ओ खड़ूस अफसर Yogesh Kanava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ओ खड़ूस अफसर

ओ खड़ूस अफसर

आज अचानक सुबह-सुबह गीता भाभी का फोन आया कहने लगी माला तुम आज ही तैयार होकर मेरे पास आ जाओ मैंने तुम्हारे जॉब की बात की है , आदमी बहुत ही अच्छा है और दफ्तर में अधिकारी है । मैं तो बस जैसे कोई मूर्ति बन गई थी । एकदम भाव शून्य सी खड़ी रह गई थी । सोचने लगी क्या वाकई माता ने मेरी पुकार सुन ली है । क्या मैं भी नौकरी कर पाऊंगी । पता नहीं, गीता भाभी ने कहा है कि भला आदमी है ,अच्छा है ,वैसे तो सभी आदमी अच्छे ही बने रहते हैं, पर मौका मिलते ही उनका असली रूप सामने आ जाता है । क्या जाने यह कैसा है मैंने सर को झटका देकर मन‌ से ऐसे ख्यालात को भी झटक दिया और नहाने की तैयारी करने लगी । अब तो मेरे जैसे पंख लग गए हो ,मैं सब काम जल्दी से निपटा कर गीता भाभी के पास पहुंच जाना चाहती थी । पर घर का भी काम कम नहीं था ,पति कोई काम करते नहीं है लेकिन तो पूरा मारते हैं । सब चीज सही समय पर और ठिकाने पर चाहिए । पहले एक फैक्ट्री में जाते थे वहां पर भी लड़ाई कर ली और काम छोड़कर चले आए घर में । सासू मां को भी अपने ऑफिस जाना होता है वह भी तो जल्दी से तैयार होकर चली जाती है वह भी क्या करें उन्ही पर तो घर का सारा दारोमदार है । ससुर जी अब कुछ कर नहीं पाते हैं वैसे भी वो एक पैर और एक हातग लकवे के कारण पूरी तरह से काम नहीं कर पाते इसलिए वह घर में ही रहते हैं । ज्यादातर बिस्तर में, ऊपर से बेटे के काम ना करने और छुटपुट आवारगी से भी परेशान रहते हैं । मैं जल्दी से नहा धोकर पति को खाना खिला कर कालिका मां के मंदिर में गई । मां का धन्यवाद कर पूजा अर्चना की मैं जल्दी से गीता भाभी के पास पहुंच जाना चाहती थी । आज समय भी लग रहा था कि बड़ा होता जा रहा है दिन अचानक बडा लगने लगा है । मैं बार-बार घड़ी देख रही थी कि कब 10:00 बजे और तब मैं उस दफ्तर जाऊं जहां भाभी ने बात कर रखी है । खैर इसी तरह चलते चलते मैं ऑटो स्टैंड पहुंच गई शेयर्ड ऑटो सवारी का इंतजार कर रहे थे पैसे की कमी के कारण मुझे शेयर ऑटो में ही जाना पड़ रहा है । नियत समय पर मैं गीता भाभी के साथ उसके दफ्तर पहुंच गई ,भाभी ने उस अफसर से मेरा परिचय करवाया जिससे उन्होंने मेरे जॉब की बात की थी। दरसल वो भी उसी मकान में किराएदार था जिसमें गीता भाभी भी रह रही थी । आरंभिक पूछताछ के बाद उसने अपने वरिष्ठ अधिकारी से मिलवा कर मुझे कल से काम पर आने के लिए कह दिया। काम कंप्यूटर पर टाइपिंग और कुछ इसी तरह का था । मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया कल से क्यों आज क्यों नहीं ? आप कागजों मे कल से ही रख लीजिए लेकिन मैं आज थोड़ा काम करके देख लूं। मेरी उत्सुकता और भाभी की सिफारिश पर उसने मुझे काम करने की अनुमति दे दी । जैसे किसी बच्चे को उसका मनचाहा खिलौना मिल जाए और वह खुशी से उछल पड़ता है ठीक उसी तरह मैं भी खुशी से उछल पड़ी थी । मैंने झटपट कंप्यूटर का रुख किया और कहा काम बताइए ना प्लीज । वह थोड़ा सा मुस्कुराए और कहा मिल जाएगा काम भी थोड़ा सा आराम से बैठो सहज हो जाओ । मुझे लगाइए व्यक्ति तो अफसरों की तरह रोब नहीं मार रहा है ।

मैं रोजाना अपने काम पर जाने लगी धीरे-धीरे पता चला कि वह अफसर उस दफ्तर का सबसे कड़क और सबसे खड़ूस अफसर माना जाता है । लेकिन वह मुझे इतने दिनों के बाद भी और कई गलतियों के बाद भी डांटता क्यों नहीं था । मैं भी अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा डर गई थी । एक दिन मैंने गीता भाभी को बताया कि जिसके पास मैं काम करती रही हूं वह पूरे दफ्तर का सबसे खड़ूस अफसर है , लेकिन मेरे को अभी तक बिल्कुल भी नहीं डांटा है । गीता भाभी ने मजाक में ही कह दिया उसे तू पसंद आ गई होगी। थोड़ा मस्का लगा के रख । वैसे एक बात बताऊं आदमी दिल का बहुत ही नेक, ईमानदार और दयालु है । तेरी परिस्थिति जब मैंने उसे बताई तो वह कहने लगा ,उसे बुला लीजिए। भाई दफ्तर कि मैं नहीं जानती लेकिन घर पर तो वह बडा ही मजाकिया और हंसमुख रहता है । बच्चों के साथ खेलता है और बस सब को हंसाता रहता है। उसका परिवार तो रायपुर में है उसकी दो बेटी और एक बेटा है पत्नी भी अच्छी है आई थी वह भी हंसमुख है । पता नहीं तू क्यों कह रही है कि दफ्तर में वह खड़ूस है । यह भी हो सकता है कि वह नियम कानून कायदे से काम करवाना चाहता हो । वैसे लोगों मे भी तो आजकल हरामखोरी की आदत है और उसके जैसा डायनामिक अपना काम बिल्कुल सही तरीके से चाहता होगा शायद इसीलिए खडूस कहते हैं । गीता भाभी की बात सुनकर मैं बोली बस यही तो बात है भाभी । इसी बात पर सबको डांटते रहते हैं जितनी तनख्वाह मिल रही है उसका 50 फ़ीसदी काम तो कर दो , भगवान का शुक्र मनाओ कि सरकारी नौकरी मिली है लेकिन इसका मतलब भी नहीं है नौकरी मिलने के बाद बस काम ही नहीं करो । वैसे भी भाभी कहते हैं वो ठीक 9:30 बजे दफ्तर पहुंच जाते हैं और देर रात तक काम करते रहते हैं वह कहते हैं मैं भी तो बेईमान हूं सोमवार को दफ्तर में थोड़ा देर से आता हूं और शुक्रवार को थोड़ा जल्दी चला जाता हूं तो जितने घंटे में कार्यालय में नहीं रह पाता हूं उसके दोगुने घंटे में कार्यालय में बैठकर दफ्तर का काम निपटाना चाहता हूं मेरा काम तो मुझे ही करना है ना । सच कहूं भाभी उसकी यह ईमानदारी मुझे भी बहुत अच्छी लगती है वैसे भी ऑलराउंडर है बंदा । पता नहीं सारे काम कैसे कर लेता है । टाइपिंग में मुझसे गलती होने पर समझाता है ,नहीं आने पर खुद ही टाइप कर लेता है । कहानी लिखता है कविता लिखता है इतने सारे लोग मिलने आते हैं दफ्तर वालों के अलावा सारे लोग उसकी तारीफ करते हैं । दफ्तर में भी कुछ लोग तो उसकी खूब तारीफ करते हैं । लेकिन मैं सोचती हूं आज का समय ही कुछ ऐसा है, कबीर जी ने कहा है ना ,सांच कहूं तो मारिए, बस उसकी भी यही कुछ और ऐसी ही आदत है कितनी ही मीठी से मीठी बात हो या कड़वी से कड़वी वो उस आदमी के सामने ही कह देता है । कभी किसी की लल्लो चप्पो नहीं करता है । लोगों उससे डरते भी हैं लेकिन मैं सच कहूं तो बहुत ही भला आदमी है । भाभी मेरा तो कई बार मन करता है कि .......मुझे छेड़ते भाभी ने कहा क्या मन करता है तेरा उसे अपने ......ऐसा भी कुछ ......। क्या भाभी आप भी ना ....मैं शर्म के मारे झुकती गई थी। भाभी आप भी ना बस रहने दो जाओ मैं आपसे बात नहीं करती । वैसे गीता भाभी मेरे रिश्ते की भाभी नहीं थी बस वह मुंह बोली भाभी है लेकिन शायद उनसे ज्यादा मुझे कोई नहीं जानता ।

आज मैं बहुत ही ज्यादा विचलित हुआ क्योंकि मुझे दूसरे दफ्तर में लगभग 3 गुने तनख्वाह पर काम मिल गया है एक तरफ घर की जरूरत है और पैसे की आमद और दूसरी तरफ उस दफ्तर का छूटना । मुझे बहुत ही बुरा लग रहा है । वो दफ्तर , खासकर वो मुझे अच्छा लगता है । वो खड़ूस है खास करके दफ्तर के लोगों के लिए ही है बाकी सब के लिए तो बहुत नेक दिल इंसान है । समझ ही नहीं पा रहे हैं वहां के‌ लोग‌ उसे ।लेकिन‌ मै समझकर भी दूर जाने को विवश।

 

( कहानी - योगेश कानवा)