मन वृत्ति और चित्त Yogesh Kanava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मन वृत्ति और चित्त

मन वृत्ति और चित्त

आज मन बहुत परेशान और उदास था और कारण एक ही था और कारण एक ही था अफगान मोहल्ले में उसकी हुई करारी शिकस्त हुई थी । बरसों बरस अफगान मोहल्ले में मन अपने पैर जमाए बैठा था । इससे पहले भी वो मोहल्ला वितानी और मोहल्ला तेल वालों का में और इसी तरह कई और जगहों पर राजा की तरह दबंगई से अपना रोब जमता आया था। सब लोग डरते थे उससे क्यांकि वो अपने मतलब के लिए कुछ भी कर सकता थ । अब मन को आप यह समझ लीजिए कि या तो वह अपने आप को बहुत बड़ा गुंडा समझता था या फिर आलमी थानेदार और थानेदार भी ऐसा आलमी जो बिना बुलाए बिना रिपोर्ट के खुद ही पहुंच जाएगा किसी भी जगह पर । कानून भी अपना ही फैसला भी अपना चलना चाहिए राज़ी नही ंतो डंडे के जोर पर । अपनी कुटिल चालों से इसी तरह से बरसों से चला आ रहा है इसकी थानेदारी । मन का रौबदार रुतबा जिसको अफगान मोहल्ले में शिकस्त का मुंह देखना पड़ा था आज बेहद परेशान। हालांकि शिकस्त पहले भी हुई है लेकिन इस बार उसका मुंँह बोला बेटा चित्त जो अफगान मोहल्ले के बिल्कुल बगल में अपना अड्डा जमाए बैठा था उसने ना जाने क्यों अपने बाप मन का साथ नहीं दिया और वह चोरी छुपे चुपचाप चुपचाप अफगानी मोहल्ले के गुंडों के साथ मिलकर अपना दबदबा मोहल्ले में बनाना चाह रहा था । अब यह तो वही बात हुई ना कि घर का भेदी लंका ढहाए जब उसका बेटा उसका साथ नहीं दे रहा था तो फिर लंका ढहनी ही थी । वहांँ पर मुंँह की खानी पड़ी और वहांँ से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा जिसका अंदाजा उसने कभी नहीं लगाया था । पहली बात तो यह कि वह आदमी आलमी थानेदार रहा जो अपनी गुंडई अपनी दबंगई से पूरे सब जहान को चलाता था । अपना हुकुम चलाता था और ऐसे हुकुम में किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि उसका कोई विरोध करें, कोई प्रतिकार करें या कोई खिलाफत करके बोल पाए । कौन कर सकता था सबको डर था एक तरफ उसका मुँह बोला बेटा चित्त जो अफगानी मोहल्ले की जड़ में बैठा हुआ था और दूसरा मन की दबंगई। दबंगई में उसका पूरा पूरा साथ देती थी उसकी पत्नी वृत्ति। पत्नी थी या यूंँ कह दीजिए कि मन और वो दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू थे । चाहे आप मन को देख ले या वृत्ति को अगर वृत्ति की आँंखें उठ गई ज़रा सी भी किसी पर भी , तो यह समझ लीजिए कि उसका अब इस दुनिया में या तो जीना मुश्किल हो गया है या उसके दिन खत्म हो गए हैं । वो तो मन की तोता बन गई थी क्रूरता में । आप ये मान लीजिए कि ना तो मन कम था ना वृति कम थी और ना ही चित्त किसी तरह से कम था बल्कि वो तो अपने तथाकथित बाप से एक कदम आगे ही था । उसने अपने गुर्गे बहुत पाल रखे थे और अपने गुर्गों से वह अली गली मोहल्ले मोहल्ले में खुराफात करवाता था । पड़ोसियों को सबको तंग करता था । अब पड़ोसी भी शिकायत किससे करने जाएं दबंग आलमी थानेदार का बेटा ठहरा । उसके पीठ पर हाथ अपने बाप का था और अपनी मां वृति का था तो बस वो ऐसा लड़का था जिसकी हर जायज़ नाजायज़ बात को मां का पूरा समर्थन होता था । ऐसे में उसका भरपूर नाजायज़ फायदा उठा रहा था चित्त । रुपए पैसे खाना.पीना उसकी सारी ऐसो आराम की सुविधा है। सब कुछ मन ही तो दे रहा था और जो कुछ कमी रह जाती थी वो मां वृति पूरा कर देती थी । कहने को तो था कि खुद का है अपना रोजगार है लेकिन हकीकत तो यही थी कि वह मन के ही पैसों पर सारे ऐशो आराम कर रहा था। मन भी इस बात को जानता था कि मेरा बेटा एकदम निकम्मा है ,नालायक और नाकारा है ।वो कुछ नहीं करने वाला लेकिन अब वो किसको दोष दे ,बिगाड़ा हुआ तो खुद का ही था न ।
आज मन के सामने बहुत बड़ा सवाल यही था कि अब चित्त को कैसे कंट्रोल किया जाए । उसने अब लगता है बगावत करना शुरू कर दिया है। शायद अब वो उन्मुक्त गगन में अपने परों से उड़ना चाहता था । चित्त था तो बहुत चंचल और खूंखार लेकिन अभी भी उसके सामने यही सवाल था कि पैसे का जुगाड कैसे करें। अपने बाप मन को वो नाराज़ कर चुका था वृति ने भी उसको चेतावनी दे दी थी । इस चेतावनी और नाराजगी से वो भीतर ही भीतर तो डर गया था लेकिन दिखाने को वो अब अपने बाप की खिल्ली उड़ा रहा था । पैसों के लिए अब उसने अपने बाप के घोर विरोधी से समझोता करने की कोशिश की। मन को भी इस बात का अंदाजा था इसलिए वो और ज्यादा बौखला गया की उसके सबसे बड़े विरोधी के साथ यदि बेटा मिल गया तो अनर्थ हो सकता है। भीतर ही भीतर मन बौखला गया था और इसी बोखलाहट में उसने कुछ शराफत से जीने वाले लोगों से दोस्ती कर ये दिखाने का प्रयास किया की वो अब गुंडई छोड़ कर षरीफ इंसान बन गया है । अब मन मंथन कर रहा था अब किस तरह से उसकी गुंडई वाली छवि से हटकर किसी तरह से उसकी इमेज सुधरे। बेटे के कारण उसकी हुई बदनामी भी कम हो सके। बेटे ने जिस मोहल्ले पर कब्जा किया था उसकी बगल वाला मोहल्ला जहां लोग अलग.अलग जात के थे अलग.अलग धर्म के थे। इसलिए मन ने यह तय कि इस रंगीला मोहल्ला के मुखिया से दोस्ती कर ली जाए । हालांकि इस रंगीले मोहल्ले के मुखिया की छवि पूरी तरह डिप्लोमेसी वाली थी।वो अपनी जुबान का बहुत कच्चा माना जाता है । और हांँ बड़बोला भी बहुत है मगर मन की भी मजबूरी थी रंगीला मोहल्ला के मुखिया से दोस्ती करने की । अगर ये दोस्ती नहीं करता है तो तो अपनी सल्तनत से हाथ धोना पड़ सकता है हालांकि वो जानता था कि रंगीला मोहल्ला का मुखिया भी कोई ईमानदार और सच्चा आदमी नहीं है । झूठ और मक्क़ारी से भरा वह पूरी तरह से धेखेबाज़ है । बड़बोला आदमी है जो कदम कदम पर अपने मोहल्ले के सारे लोगों को धोखा देता है झूठ बोलता रहा है । इतना सब होते हुए भी उस मौहल्ले के लोग उसको समझ ही नही पाए हैं । यही है सबसे बड़ी उसकी कलाकारी और इसी कलाकारी से प्रभावित मन ने भी उससे दोस्ती गांठने का प्रयास शुरू कर दिया। उसे तरह तरह के प्रलोभन दिए और उससे दोस्ती कर ही ली। इधर रंगीला मोहल्ला का मुखिया भी जानता था कि मन किसी भी तरह से विश्वसनीय नहीं है । वो चंचल है हर एक सांस के साथ वह पलट सकता है । रंगीला मुखिया भी जानता था कि उसके दोनों तरफ मोहल्लों में अलग.अलग तरह से आग लगी हुई है। एक मोहल्ले में मन के बेटे ने कब्जा कर लिया है तो दूसरी तरफ एक और पड़ोसी मोहल्ले ने अपना आतंक फैला रखा है । इन्ही विचारों में खोया रंगीला मोहल्ला का मुखिया उससे दोस्ती कर लेता है । वह भी मन से दोस्ती कर अपना कद बढ़ाना चाहता था । उनकी दोस्ती से यह असर ज़रूर हुआ कि मन का बेटा भी घर से और उधर दूसरे मोहल्ले के लोग भी चौकन्ना हो गए। आज मन और रंगीला मोहल्ला के मुखिया की दोस्ती परवान चढ़ रही है । कब तक दोस्ती रहेगी कोई नहीं जानता बस अभी चल रही है । दुनिया जानती है कि मन धोखेबाज है जहांँ भी जाता है वहाँं से उसे हर बार भागना पड़ा है लेकिन फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और ऐसी स्थिति में रंगीला मोहल्ला का मुखिया भी समझ चुका था यह दोस्ती बहुत ज्यादा चलती दिखती नहीं है। हालांकि उसकी खुद की भी जमीन अपने ही मोहल्ले में खिसक रही थी । अपने ही मोहल्ले में उसके सामने की चुनौतियांँ खड़ी हो रही थी। उसकी इस कमज़ोरी को मन भी जान चुका था इसलिए मन भी अब पीछे हट रहा था। मन वृति दोनो चित्त के बारे मे ही सोच रहे थे कि किस तरह से इस पर काबू किया जाए ।

रंगीला मोहल्ला के मुखिया ने अपनी कुटिल चालें शुरू कर दी थी मन और रंगीला की दोस्ती का ज्यादा फायदा मन को ही था पूरी दुनिया जानती है लेकिन रंगीला अपनी पीठ ठोक रहा था कि इस दोस्ती से उसके मोहल्ले के दिन ही बदल जायेंगे । उसका मोहल्ला अब चांद की कॉलोनी पर जा बैठेगा । वो चाँद पर सूत कातती बुढिया का दामाद बन जाएगा और वो बुढिया उसे दहेज मे चाँद की सारी ज़मीन दे देगी। और उसी ज़मीन पर कॉलोनी बसाने के सपने वो अपने मौहल्ले के लोगों को दिखा रहा था । उसके मौहल्ले के लोग आज भी न जाने क्यों उसकी इन्ही बातों पर विष्वास भी कर रहे थे । इधर मन, मन ही मन बेहद खुष था कि चलो रंगीला मौहल्ला का मुखिया भी अब अपना हो गया है और चित्त वो भी बस नई दोस्ती की टोह ले रहा था।