अराजकता से आधुनिकता की ओर बढ़ गया हूं। पंरतु व्यव्हार और व्याकरण में पाणिनी द्वारा रचित प्रविष्टियां अभी अभी वही हैं। इत्यादि कहना लिख देना बहुत सरल है परंतु उस इत्यादि में और कितने समीकरण आने हैं। यह बात समाज कल्याण की दृष्टि में अभी बहुत आमूल चूल परिवर्तन करने जैसा है।
जन्म से मृत्यु के बीच में
स्व कल्याण के लिए व्यक्ति समाज का निर्माण कर चुका है।
उसने अपने लिए कुछ नियम बनाए और उनको सम्यमता से निर्वाह करने का मार्ग बताया है।
लेकिन मेरे होने न होने में समाज नियमो में कोई बदलाव नहीं करता है।
बस उनको आगे की पीढ़ी की ओर इशारा कर उनका आदर कहने को कहता है।
वस्तुतः फर्क इस बात से नही है की नियम में कितनी मिथ्या है।
वह अगर नियम है और उसे अगर बुजुर्गो द्वारा निभाया गया है। तो वह समाज का एक अभिन्न अंग है।
कल्याण करने के लिए हमने एक मंदिर बनाया लोकतंत्र का। अगर मैं कुछ भी बोलूंगा अब उस विषय में तो मुझे हो सकता है। कानून व्यवस्था में खलल डालने के विचार में कारावास करार दे दिया जायेगा।
परंतु मैं ये कहूंगा की यह समाज जिधर से निकला था। आज न जाने किधर किधर से निकल रहा है।
और मजे की बात यह है की सब एक दूसरे को कोश रहे है।
यह जानते हुए भी की उसका निर्माण भी उन्होंने ही किया है। जो चाय की चुस्की लेते हुए कोश रहे है।
खैर बहुत बड़ी विपदा बनता जा रहा है। यह समाज कल्याण की दृष्टि में।
मनुष्य धरती पर रहना नही जानता है।
और मंगल और चंद्र की जगह को आशियाना बनाना चाहता है।
आज नारी सशक्तिकरण, भ्रूण हत्या, भ्रष्टचार
एकता भाई वाद
अन्यत्र , अगर मैं जितने शब्द बोलूं तो वो सब अपने आप में एक विषय ही निकलेंगे।
इसका मतलब समझे आप
की सामाजिक व्यवस्था के क्रियानव्यहन में नीति नियम और उनके आयाम इस प्रकार स्थापित किए गए है। की उनसे बस एक कल्याण के पनपने की भावना लोगो में बनीं रहे। जिससे लोग जागरूक न हो और समाज कल्याण की दृष्टि में आगे ने बड़े।
इसके लिए पुख्ता इंतजाम किए गए है। जिनसे सामान्य वर्ग कभी अपने स्तर से परे नहीं देख पा रहा है।
उसमे सर्व प्रथम
राशन, मिट्टी का तेल , और एक जीविको परजक धन राशि जो की समन्यतः भारतीय टैक्स की दशमलव में भी नही गिनी जा सकती है।
इसके इलावा मनोरंजन प्रदान करने के साधन दिए। और कल्याण के लिए युवाओं को रोजगार देने के लिए गुण नहीं सरकारी नौकरी के लिए प्रेरित किया। जो की एक अपवाद हो गया। नाम सरकारी नौकरी
उसमे भी नौकर।
यह सब एक खंड चक्र में देखे तो समाज कल्याण ही तो है।
जो की आने वाले समय में भारत को विश्वगुरु बनाएगा।
मुझे आश्चर्य होता है की कही मंगल ग्रह तैयार हुआ तो ये समाज के प्रणेता वहा पहुंच कर वहा भी कल्याण की दृष्टि से ही काम करेगें। जो की फिर किसी पवित्र ग्रह को एक नश्वर देह में तब्दील करने का काम करेगा।
आशा है मेरे बिना कटाक्ष के आप जागरूक हुए होंगे।