“नीळावंती" के बारे में और एक बात प्रसिद्ध थी की उसे जाननेवाला एक मनुष्य आज भी जीवित है उसे लोग बाजिंद कहते है और वह महाबळेश्वर के जंगलों में रहता है कहते है उसकी आयु १००० वर्ष से भी ज्यादा है। अब सबसे आसान तरीका तो यह है की पहले बाजिंद को खोजा जाये जो उसे जानने वाला है और उसके पास से जो जानकारी मिले उसके आधार पर "नीळावंती" की खोज करे। और एक बात आप को बता दू जो लोग "नीळावंती" के पीछे थे वह चाहे जिस भी काल में हुये हो या फिर किसी भी जगह से हो उन मे एक और समानता थी वे सभी महाबळेश्वर के जंगलों में जाते देखे गये थे। उनमें से केवल दो लोग ही जाने के बाद फिर से देखे गये थे वह भी मृत अवस्था में। बाकियों का जिनकी संख्या सैकड़ों में हो सकती है क्या हुआ किसी को नहीं पता क्योंकी उनका ना शरीर मिला था ना कोई अवशेष।
अब इतनी जानकारी मिलने के बाद क्या आप अब भी चाहते है की आप भी उस ग्रंथ की खोज करने जाये। तो मैं आप को उस आखरी इंसान के बारे में बताता हूँ जो नीळावंती की खोज मे गया था। शायद आपको कोई काम की बात मिल जाये जो आपको नीळावंती खोजने में काम आ जाये।
उसका नाम रावसाहेब था। वह रत्नागिरी के पास एक गाव का जमीनदार था। मुँह मे चांदी का चम्मच लेकर जन्म हुआ था कमी किसी बात की नहीं थी। मल्ल थे इसलिये बल भी था। धन और बल दोनो से वह अपने सामने हर किसी को झुकाना पसंद करता था। बहुत अमीर होने के बावजूद उसे एक बात की कमी हमेशा खलती थी। एक ऐसी बात जिससे सब सुख होने के बाद भी उसकी कई पुश्तों को अफसोस के साथ जीने के लिये मजबूर किया था। इस बात का पता चलते ही वे एक ही बात सोचने लगते थे की शायद यह किसी तरह से बदला जा सके। वह बात यह थी की उसके खानदान मे बहुत पहले किसी ने केवल गलतफहमी के कारण सात कुएँ भरे जाते इतना सोना और हीरे जवाहरात समुद्र मे डुबा दिये थे। उन्हें अफसोस इसी बात का होता था की काश वह बात बदली जा सकती तो आज दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में गिने जाते पर ऐसा तभी हो सकता था जब समय मे पीछे जाकर उस गलतफहमी को दूर किया जा सके।
रावसाहेब को पहले यह बात पता नहीं थी की समय में पीछे जाया जा सकता है। क्योंकी बुद्धिमान मनुष्य इस तरह की बात सोच भी नहीं सकता जो असंभव हो। पर जैसा की उसके पहले कई पुश्तों ने किया था केवल वह उस धन का पता लगाना चाहता था। उसके लिये उसने भी उन्हीं तरीकों को अपनाया था जिसे उसके पुश्तों ने अपनाया था। जैसे ज्योतिषियों, तांत्रिकों, मांत्रिकों के माध्यम से धन का पता लगाना। लेकिन बहुत कुछ कर के भी कुछ हासिल नहीं हो सका था। समय और पैसा दोनों बरबाद हो रहे थे। लेकिन उस अमर्याद धन के आगे इस धन की कोई कीमत नहीं हो सकती थी। और ऐसे में ही एक दिन रत्नागिरी में एक अद्भुत मांत्रिक आया। लोग कहते थे की उसने पिशाच्च वश किया हुआ है। जो उसका हर एक हुक्म मानता था।
रावसाहेब को उसमें रूचि नहीं होती यह कैसे हो सकता था। रावसाहेब भी रत्नागिरी चला गया और उस मांत्रिक को मिला। पहले ही मुलाकात में मांत्रिक ने रावसाहेब पर ऐसी छाप छोड़ी की उसने मांत्रिक को अपने हवेली पर बुलाया। मांत्रिक आने के लिये कबूल हो गया। दो दिन बाद ही मांत्रिक रावसाहेब की हवेली पर था। उसकी अच्छी मेहमाननवाजी की गयी। हर तरह से उसे प्रभावित करने की कोशिश हो रही थी। इसलिये की रावसाहेब ने यह भी सुना था की मांत्रिक के पास अंजन बनाने की विधि है। प्राचीन काल से ही लोगों में यह बात प्रचलित है की किसी तरह का रासायनिक काजल जिसे अंजन कहते है वह आँखो पर लगाने से जमीन के नीचे दबा हुआ खजाना दिख जाता है। वही पाने के लिये रावसाहेब इतने यत्न कर रहा था।
एक हप्ता निकल गया पर मांत्रिक ने कुछ नहीं कहा वह तो अच्छे भोजन और मुलायम गद्दों का आनंद ले रहा था। रावसाहेब के सब्र का बांध टूटने लगा था लेकिन फिर भी अगर मांत्रिक को बुरा लगा तो कही ये मुझे शाप ना दे दे इसलिये उसने चुप बैठना ही ठीक समझा। रावसाहेब का यह धैर्य व्यर्थ नहीं गया। दुसरे दिन मांत्रिक और रावसाहेब एक कमरे में अकेले बैठे थे तब मांत्रिक ने रावसाहेब से पुछा की उसे उससे क्या चाहिये। तब रावसाहेब ने अपनी इच्छा और उस खानदानी खजाने के बारे मे मांत्रिक को बताया।
मांत्रिक की आँखें चमक उठी, उसने जिंदगी मे कभी इतने खजाने के बारे मे नहीं सुना था। लेकिन उसने अपने चेहरे को निर्विकार रखा उससे जाहिर नहीं होने दिया की उसे भी खजाने की लालसा है। उसने रावसाहेब को अपना इतिहास बताना शुरू किया की कैसे वह मांत्रिक बना। उसने जो बताया वह यह था,
"मैं भी पहले एक सीधा साधा किसान था। मेरा नाम बाबु था। मेरी शादी हो चुकी थी लेकिन माँ-बाप में से कोई भी तब जीवित नहीं था। मेरे पास कुछ बीघा जमीन थी उससे ही अपना गुजारा करता था। एक शाम मैं खेत से लौट रहा था तो मुझे अपने दोस्त जो आग जलाकर उसके पास बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे वे दिख गये। उन्होंने भी उन्होंने भी मुझे देखा और आवाज लगाई कहा की मैं भी थोड़ी देर उनके साथ बैठूं काम तो रोज का लगा ही रहेगा। मुझे भी यह बात ठीक लगी की आदमी को थोड़ा समय खुद के लिये भी निकालना चाहिये। घर में बीवी राह देख रही होगी यह बात तो मेरे दिमाग में थी लेकिन फिर मैंने सोचा की एकाद दीन थोड़ी देर हो गई तो क्या हो जायेगा कोई बहाना बना लेंगे। गप्पे लड़ाते लड़ाते समय का ध्यान ही नहीं रहा बहुत देर हो गई। मैं गाव के बाहर रहता था। मैंने अपने दोस्तों से इजाज़त मांगी और अपने रास्ते लग गया। मुझे खेत जाने के लिये पूरा गाँव पार करना पड़ता क्योंकि मेरे घर और खेत के बीच मे गाव था। और एक बात थी मुझे डर बहुत लगता था, और मेरे घर जाने के रास्ते में श्मशानभुमी थी। मैं घर इसलिये जल्दी जाता था की रात को श्मशान के पास से गुजरना ना पड़े लेकिन उस दिन मुझे बहुत देर हो गई थी।
मैने जैसे तैसे अपने मन को तैयार किया क्योंकि आगे श्मशानभुमी यानी भूतों का इलाका शुरू होने वाला था। मुझ जैसे डरपोक इंसान के लिये यह बात बहुत गंभीर थी। मैं तेजी से अपने कदम बढाने लगा। मुझे बस अपने घर पहुँचना था। अब श्मशान भुमी शुरू हो गई थी। मैं मन में रामनाम जपने लगा। अचानक से अंधेरा बहुत घना हो गया। मेरा डर अब चरमसीमा तक पहुँच गया। मुझे अब इतना ज्यादा डर लग रहा था की अब इसी डर की वजह से मेरी मौत ना हो जाये इस बात की चिंता हो ने लगी थी।
श्मशान के सन्नाटे को उल्लुओं कि आवाज भंग कर रही थी। जिससे माहौल और डरावना हो गया। तभी अचानक से किसी के चीखने की आवाज आई। डर की एक तेज लहर मेरे सीने से दौड़ गई। मैं जगह पर ही खड़ा रहा। दूर कही कुछ चमक रहा था। लगता था किसी की चिता जल रही थी। अब मेरी हालत इतनी गंभीर हो गई की मेरे सीने में तेज दर्द होने लगा। मेरी सांस तेजी से चलने लगी और धड़कनें सामान्य से दुगनी हो गई। मुझे फिर से वैसी ही चीख सुनाई दी कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा लेकिन वह चीख नहीं थी वह तांत्रिक उसे पुकार रहा था। मैं सोच में पड़ गया की क्या करना चाहिये क्या मुझे तांत्रिक के पास जाना चाहिये या अपनी जान बचाकर भागना चाहिये। मैंने निर्णय कर लिया की वह अपनी जान बचायेगा। मैं भागने लगा मुझे जल्दी से अपने घर जाना था जहाँ मैं खुद को महफूज मानता था। थोड़ी ही दूर गया था की वह तांत्रिक मेरे आगे ही प्रकट हो गया। अब तो मुझे लगा की मैं पक्का मर जाऊँगा। लेकिन तांत्रिक ने अपना अंगूठा मेरे माथे पर लगाकर उसे शांत किया। मुझे बहुत आश्चर्य लग रहा था की मेरा डर ना जाने कहाँ गया था।
उस तांत्रिक ने मेरा हाथ पकड़कर उस जलती हुई चिता के पास लेकर गया। मैंने देखा वह चिता कम और हवनकुंड ज्यादा लग रहा था। उसके आस-पास बहुत सी अजीबोगरीब चीजे रखी हुई थी। उसमें से कुछ तो भयानक भी थी जैसे की इंसान की खोपड़ी, खून से भरे प्याले, अलग अलग मिट्टी के बर्तनों में कई पशुओं के अंग भर कर रखे हुए थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था की ये सब चल क्या रहा है। मैंने तांत्रिक को पुछने का सोचा लेकिन तांत्रिक ने जैसे मेरी इच्छा भाँप ली। उसने उँगली मुँह पर रखते हुए इशारे से चुप रहने के लिये कहा। मैं बहुत देर तक बैठा रहा जब तक की उस तांत्रिक ने सारी विधियाँ पुरी नहीं की। अब मध्यरात्री हो रही थी, रात शायद अमावस की रही होगी। तांत्रिक उसकी विधि पुरी होते ही वहाँ से उठा और उसने मुझसे कहा की उसे आगे की विधि करने के लिये किसी स्त्री की बली देनी होगी जिसको अब तक बच्चा ना हुआ हो। मेरा दिल दहल उठा उसको लगा की वह किस मुसीबत मे पड गया है।
मुझे बच्चा नहीं हुआ था और मेरी बीवी घर पर थी। मैं एक साधारण किसान था मेरी और मेरी पत्नी का ना कभी झगड़ा होता था ना वह मुझे किसी बात के लिये तंग ही करती थी। उस तांत्रिक के पास ना जाने कौन सी ऐसी शक्ति थी की मैंने उसे अपनी बाँझ बीवी के बारे में बताया। बताते समय भी मुझे लग रहा था की यह ठीक नहीं है मुझे ऐसा नहीं करना चाहिये लेकिन मेरी जुबान अब मेरे नहीं किसी और के बस में थी।
तांत्रिक ने जैसे ही मुझ से मेरी बीवी के बारे में सुना तो वह खुश हो गया। उसने मेरे हाथ में एक बहुत बड़ा छुरा दिया और कहा की अपनी बीवी को यहाँ ले के आओ या फिर उसका सिर काट कर ले के आओ। साथ मे एक इंसान की खोपड़ी भी दी और कहा की यदि बीवी साथ में नहीं आती और अगर मैं सिर काटने का फैसला लेता हूँ तो जैसे ही गर्दन पर छुरा लगाऊँ तुरंत इस खोपड़ी में खून जमा करूँ बिना एक भी बूँद जमीन पर गिराये। मैंने छुरा हाथ में पकड़ लिया मुझे आश्चर्य हो रहा था की मैंने ऐसा क्यों किया।
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