मेरे ठाकुर जी DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरे ठाकुर जी

एक व्यक्ति हर रोज मंगला दर्शन अपने नजदीकी मंदिर में करता है और फिर अपने नित्य जीवन कार्य में लग जाता है। कहीं वर्ष तक यह नियम होता रहा।
 
एक दिन ऐसे ही वह मंदिर पहुँचा तो मंदिर के श्री प्रभु के द्वार बंद पाये। वह आकुल व्याकुल हो गया। अरे ऐसा कैसे हो सकता है?
 
उसके हृदय को खेद पहुंचा। वह नजदीकी एक जगह पर बैठ गया। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे, और आंतरिक पुकार उठी।
" हे बांके बिहारी जी , हे गिर्वरधारी जी।
जाए छुपे हो कहाँ, हमरी बारी जी...।।"
 
बहते आंसू और दिल की बैचेनी ने उन्हें तडपता कर दिया। पूरे तन में विरह की आग जल उठी।
 
इतने में कहीं से पुकार आयी ओ तुने कहाँ लगायी इती देर अरे ओ बांवरिया! बांवरिया! बांवरिया मेरे प्रिय प्यारा!
 
वह आसपास देखने लगा, कौन पुकारता है? पर न कोई आस और न कोई पास था। वह इधर उधर देखने लगा, पर न कोई था। वह बैचेन हो कर बेहोश हो गया।
 
काफी देर हुई, उनके पैर को जल की एक धारा छूने लगी, और वह होश में आ गया। वह सोचने लगा यह जल आया कहां से?
 
धीरे धीरे उठ कर वह जल के स्त्रोत को ढूंढने लगा तो देखा कि वह स्त्रोत श्री प्रभु के द्वार से आता है।
इतने में फिर से आवाज आई
 
ओ तुने क्युं लगायी इती देर अरे ओ बांवरिया!
वह सोच में पड गया! यह क्या! यह कौन पुकारता है? यहाँ न कोई है? तो यह पुकार कैसी?
वह फूट फूट कर रोने लगा।
 
कहने लगा - प्रभु! ओ प्रभु! और फिर से बेहोश हो गया।
बेहोशी में उन्होंने श्री ठाकुर जी के दर्शन पाये और उनकी रूप माधुरी को निहारकर आनंद पाने लगा। उनके चेहरे की आभा तेज होने लगी।
 
इतने में मंदिर में आरती का शंख बजा। आये हूऐ दर्शनार्थी ने उन्हें जगाया।
उन्होंने श्री ठाकुर जी के जो दर्शन मंदिर में पाये। ओहहह! वहीं दर्शन थे जो उन्हें बेहोशी में हुए था।
 
इतने में उनकी नजर श्रीप्रभु के नयनों पर पहुंची, और वह स्थिर हो गया। श्रीप्रभु के नयनों में आंसू! ओहहह! वह अति गहराई में जा पहुँचा।।।।
 
ओहहह! जो जल मुझे स्पर्श किया था वह श्रीप्रभु के अश्रु! ... नहीं नहीं! मुझसे यह क्या हो गया? श्रीप्रभु को कष्ट! वह बहुत रोया और बार बार क्षमा माँगने लगा।
 
श्रीप्रभु ने मुस्कराते दर्शन से कहा, तुने कयुं करदी देर? अरे अब पल की भी न करना देर ओ मेरे बांवरिया!
 
"देखो प्रभु अगर हम मंदिर जाके भी एक पत्थर की मूर्ति को प्रणाम कर आयें या पंडित जी को मोटी धनराशी दे आयें उससे प्रभु प्रसन्न नहीं होंगे। मेरे ठाकुर तो सम्बन्ध मानने से प्रसन्न होते हैं।
जैसे कर्मा बाई ने माना, जैसे धन्ना जाट ने माना..." जैसे मीरा ने बनाया
भाव के भूखे हैं भगवान्...
 
 
देखो प्रभु अगर हम मंदिर जाके भी एक पत्थर की मूर्ति को प्रणाम कर आयें या पंडित जी को मोटी धनराशी दे आयें उससे प्रभु प्रसन्न नहीं होंगे। मेरे ठाकुर तो सम्बन्ध मानने से प्रसन्न होते हैं।
जैसे कर्मा बाई ने माना, जैसे धन्ना जाट ने माना..." जैसे मीरा ने बनाया
भाव के भूखे हैं भगवान्...